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Re: Information about Garhwali plays-विभिन्न गढ़वाली नाटकों का विवरण

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Bhishma Kukreti:
Dala ni Katla: Semi Lyrical Garhwali Drama about the importance of Trees for the Environment

Review by: Bhishma Kukreti (Literature Historian)
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 The children's stage play ‘Dala ni Katla by Dr. Umesh Chamola is about making children aware of the importance of forests, trees, and plants for human life.  Dr.Umesh uses songs for speeding up the drama and making drama easily understood by the children.
   The language is simple and the drama is fit for children playing it in primary schools.
Dala ni Katla (Semi lyrical Stage Play)
From Bandyo ki Chitthi , drama collection)
By-Umesh Chamola
Year 2018
Pub- Samay Sakshya , Dehradun
Copyright@ Bhishma Kukreti
Importance of Trees , Garhwali Stage plays /dramas from Block, Pauri Garhwal, South Asia; Importance of Trees , Garhwali Stage plays /dramas from Garhwal, South Asia; Importance of Trees , Garhwali Stage plays /dramas from Chamoli Garhwal, South Asia; Importance of Trees , Garhwali Stage plays /dramas from Rudraprayag Garhwal, South Asia; Importance of Trees , Garhwali Stage plays /dramas from Tehri Garhwal, South Asia; Importance of Trees , Garhwali Stage plays /dramas from Uttarkashi Garhwal, South Asia; Importance of Trees , Garhwali Stage plays /dramas from Dehradun Garhwal, South Asia;

Bhishma Kukreti:
  गढ़वाळम  संस्कृत नाट्य परंपरा
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भीष्म कुकरेती
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   सैकड़ों साल से चाहे वु  क्वी बि कि कत्यूरी राज रै या शाह वंश  राज राइ , संस्कृत उत्तराखंड की राजभाषा राइ   तबि त  शिलालेख अभिलेख अर ताम्र पत्र अधिकतर संस्कृत म इ छन।  मध्य अंध युग से ब्रज भाषा दरबारों साहित्यिक ही ना राजाओं व आम जनताs नाथ गुरु भाषा बि राइ।  ब्रज भाषा म मंत्र तंत्र साहित्य रचे गे। 
 बुनो मतलब च बल  गढ़वाळम राज भाषा अर कर्मकांडी भाषा राइ अर राजाउंन समर्थन बि कार त गढ़वाळम संस्कृत साहित्य बि रचे गे।  जख तलक संस्कृत ट्य परम्परा क सवाल च डा प्रेम दत्त चमोली हिसाब से बारहवीं सदी म राजा अशोक मल्ल न 'संस्कृत ग्रंथ नृत्याध्याय ' (नाट्य शास्त्र का ) की  रचना करे।
यांक  उपरान्त हम तै सैकड़ों साल तलक गढ़वाळम संस्कृत नाट्य साहित्य दर्शन नि हूंदन। यी बि सूचना उपलब्ध नी बल श्रीनगर म पंवार वंशी राजाओं दरबार म संस्कृत नाटक हूंद था या ना।  टिहरी म सुदर्शन शाह क बगत या पैथर टिहरी म एक नाट्य गृह निर्मित ह्वे छौ जख हिंदी व कुछ गढ़वाली नाटक मंचित हूंद था।  संस्कृत नाटक बारा म सूचना नी।  असलम संस्कृत गढ़वाळम कर्मकांडी अर वैदों तलक इ सीमित छे अर  आम जनता क संस्कृत ज्ञान नि हूण  से संस्कृत नाट्य मंचन इन छौ जन तिमला फूल या बिरळs  औंर दिखण ।
   हमम  जु बि गढ़वाळ म संस्कृत नाटक रचण या गढ़वाळयुं द्वारा संस्कृत नाटक रचना की सूचना उपलब्ध च वा संस्कृत नाटक लिख्युं सूचना उपलब्ध च।
 सबसे पैल गढ़वालम रच्यूं  संस्कृत  नाटक की सूचना सुदर्शन शाह क दरबार म नाटक मंचन प्रस्तावना पर आधारित नाटक 'सभा भूषणम ' च।  सभाभूषणम ' का रचयिता विशुन दत्त हरिदत्त छन (डा डबराल व डा चमोली ) नाटक म चार अंक , पांच मर्द अर नौ  जनानी पात्र छन व नाटक कम विद्व्ता दर्शन अधिक च।  कथा सर्वथा काल्पनिक अर गढ़वाल से असंबंधित च।  वार्तालाप नीरस , लम्बा , जटिल अर पत्रों द्वारा याद कारण कठण इ न दर्शक या बचनेरुं कुण समजण बि कट्ठण च।  नाट्य शैली सर्वथा क्लिष्ट च। हाँ  ! 'डा चमोली अनुसार सभा भूषणम 'साहित्यिक दृष्टि से सफल कृति च अर  अलंकार संयोजन प्रशंसनीय च।
  संस्कृत का महान विद्वान्  बालकृष्ण भट्ट  द्वारा रचित संस्कृत नाटक 'नव्य -भारत - नाटकम' पराधीन भारत की दुर्दशा , अस्पृश्य समाज की दुर्दशा , शिल्पकारों अपमान वळि जिन्नगी अर पश्चमी सभ्यता बुरु प्रभाव नाटकीय शैली म चित्रित करदो।      पांच अंकम विभक्त  'नव्य -भारत -नाटकम' म   युक्त छ्व्ट नाटक च जु समाज सुधार की दृष्टि से महत्वपूर्ण नाटक च। सामयिक परिष्तिथियुं  चित्रण भलो हुयु च। प्रथम अंक म 4 2 पद्य , 22  पद्य दूसर अंकम , तिसर अंकम 45 पद्य , चरों अंकम 59 पद्य छन अर गद्य बि च आधुनिक चित्रण का दगड़ी दगड़ शिव वंदना , श्री कृष्ण अवतार , बद्रीश अवतार संभावना सब कुछ छ.
       संवाद सरल व  सुंदर छन।  वाक्य छूट छन।  संवाद पात्रों अनुसार छन जन कि विदूषक अर नटी का संवाद  प्राकृत म छन।  नाटक कथा , संवाद , सामजिक उद्देश्य , संवाद , भाषा हिसाबन उत्तम नाटक च अर  प्रसाद श्रेणी नाटक च।
      पंडित मुरलीधर शास्त्री रचित तीन अंक वळ 'नर -नारायणाभ्युदयं  ' नाटक बद्रिकाश्रम कथा संबंधित पौराणिक आधारित नाटक च. नाटक गीतेय  अर  गद्य -पद्य मिश्रित नाटक च।  नाटकम शारदा वंदना , नर नारायण , देवता , ब्रह्मा , सःकवच , दैत्य , मुनि विष्णु , प्रजापति , प्रजा , पुरोहित , विदूषक , नारद आदि पात्र छन। पात्र पौराणिक हूण से बिंगणम सरल च।
        गढ़वाल बिटेन  संस्कृत तै सबसे अधिक योगदान दीण वळ शिव प्रसाद भारद्वाज न  ' संगच्छ ध्वम  -संवदध्वम  ; मायापति ; अजेय  भारतम , हूण पराजयम , कैसरि चक्रम ; साक्षात्कार ;  अभिन्दनम ; नाटक रचिन।  नाटकीय दृष्टि से नाटकीय तव्व भरपूर संगच्छध्वं -संवदध्वम देशभक्ति , एकता , भारतीयता आधारित नाटक च।  मायापति म सामाजिक भावना का प्रति व्यंग्य युक्त एकाकी नाटक च।  1962 म चीन अतिक्रमण पर आधारित नाटक 'अजेय भारतम ' म युद्ध कु सजीव चित्रण च व ध्वनि रूपक च याने रेडिओ रूपक च।
  हूण पराजय एक ऐतिहासिक नाटक च जो हूण आक्रमण , महाराजाधिराज  यशोवर्मन की वीरता , शौर्य तै चित्रित करदो।  डा चमोली हिसाबन  नाटक भाषा , भाव , शैली कथावस्तु दृष्टि से बेहतर नाटक च. आजीविका समस्या संबंधित नाटक एक सामयिक संस्कृत नाटक च।  नाटकीय दृष्टि से यु नाटक भाण च ेकी पात्र याने मोनोलोग शैली नाटक च।
   डा पुरुषोत्तम डोभाल कु नाम संस्कृत साहित्य म जण्ययुं पछण्यं  नाम च. पुरुषोत्तम डोभालन  तीन दृश्यों एकांकी अभिनन्दनम नाटक रचे जु भारतम भ्र्ष्टाचार तै उजागर कर्ण म सक्षम नाटक च।  संवाद , गति , उद्देश्यय प्राप्ति प्रशंसनीय च।
  वामदेव विद्यार्थी लिख्युं नाटक ' नागेश ' दंत कथा पर आधारित नाटक च जखमा नागेश की  अर्थहीनता व विद्व्ता का मध्य द्व्न्द दिखाए गे. नाटक नाटकीय च।  रूपक परम्परा निर्भाव 'नागेश ' म दिखेंद '
     जगदीश सेमवाल कृत ' याम न चिकेतकीयम ' नाटक  पौराणिक कथा  पर आधारित नाटक च जखमा पिता की आज्ञा से नचिकेत यम द्वार पॉंचद ार तीन वर प्राप्त करदो रूपक रूप म प्रस्तुत करे गे।  नाटक शास्त्रीय दृष्टि से रचे गे अर नाटक म दर्शन आदि दृष्टिगोचर हूंद।  भाषा संवाद छुट अर पात्रानुसार छन 
 जख तक संस्कृत नाटकुं मंचन सवाल च , गढ़वाली कृत संस्कृत नाटक कु मंचन की क्वी सूचना नी।  ह्वे सकद च बल आकाशवाणी से  प्रसारित ह्वे हो।  मंचन हेतु भौत सी समस्या छन , जब गढ़वाली जनता गढ़वाली नाटक दिखणो इ तैयार नि हूंदी तो संस्कृत नाटक क्या द्याखाली।  फिर इन कलाकार कखन लये जावन जो नाटक  खिलण प्रेमी बि ह्वावन अर संस्कृत बि बोल साकन।       
     
आभार - लेख डा प्रेम दत्त चमोली पुस्तक ' गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन ' पर आधारित च   
  Sanskrit dramas from Uttarkashi Garhwal; Sanskrit dramas from Dehradun  Garhwal; Sanskrit dramas from  Haridwar Garhwal; Sanskrit dramas from Tehri Garhwal; Sanskrit dramas from Chamoli Garhwal; Sanskrit dramas from Rudraprayag  Garhwal; Sanskrit dramas from Pauri Garhwal;
       
 
     

rbrbist:
नमस्कार
अति सुंदर
अति ज्ञानवर्धक जानकारी
वन्देमातरम ll
ओम हर हर महादेव ll जय माँ ll

Bhishma Kukreti:
गढ़वाली  नाट्यकर्मियों, रंगमंचकर्मियों  को याद किया जाय !
 ( गढ़वाली नाट्यकर्मी -1 )
  - भीष्म कुकरेती
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  कुछ रचनाधर्मी ऐसे होते हैं जिनका योगदान भाषा प्रचार में बहुत होता है किंतु कालग्रसित इतिहास में इनके नाम दब  जाते  हैं जैसे हमारे कई संस्कृति प्रचारकों के साथ होता आया है। 
गढ़वाली नाटक मंचन में गढ़वाली नाट्यकर्मियों , कलाकारों का महत्वपूर्ण स्थान है किन्तु उनका ब्यौरा एक मंच पर उपलब्ध  नहीं है। 
इस श्रृंखला में हम उन नाट्यकर्मियों की खोज करेंगे जिन्होंने गढ़वाली नाटकों में भाग लिया या पाठ खेला। 
 गढ़वाली नाटकों ने प्रवासियों के मध्य गढ़वाली बचाने /सुरक्षित रखने में सबसे अधिक योगदान दिया है। स्वतंत्रता पश्चात  आधुनिक गढ़वाली नाटकों को प्रवास में सर्वपर्थम मंचन  श्री जीत सिंह नेगी ने पवाण लगाई व  इस पवाण के संरक्षक थी1928 में स्थापित मुंबई की 'गढ़वाल भ्रातृ मंडल जिसके तत्वाधान में शायद 1955 -60  मध्य  जीत सिंह नेगी  द्वारा रचित गीत नाटिका 'भारी भूल का मंचन हुआ।  इस नाटक के बाद गढ़वाल भ्रातृ मंडल ने कई नाटक जैसे 'खाडू लापता ' बुड्या लापता अदि भी मंचित किये। 
    आज हम 'भारी भूल के नाट्यकर्मियों की याद तरोताजा करेंगे।
 मुंबई में भारी भूल को मंचन करने में निम्न नाट्यकर्मियों ने भाग लिया था -
कुमारी शैला सुमन , कु.  दिरजेकर , शिव प्रसाद बमरोड़ा , पातीराम बिंजोला , ख्यात सिंह रावत , पितंबर दत्त खंडूड़ी , ऐस पी उनियाल , गोकुलदेव , घनश्याम गोदियाल , कल्याण सिं,   मोहन , प्रेम  तथा श्याम सिंह गढ़वाली।
   दिल्ली में भारी भूल का चार बार मंचन हुआ व  मंचन में निम्न रंगकर्मियों ने सहयोग दिया था (लिस्ट अपूर्ण है ) -
   कु  काँटा , कु कमलेश , उमाशंकर चंदोला , सैनसिंह  रावत , गंगा सिंह रावत , नारायण सिंह , सचिदानंद , श्याम सिंह रावत , गोविन्द सिंह नेगी , सत्ते सिंह रावत , कलम सिंह रावत  , चंदन सिंह , पुरुषोत्तम शैली , चैत सिंह रावत।
   देहरादून में भी भारी भूल का कई बार मंचन हुआ और मंचन के नाट्यकर्मी थे (लिस्ट अधूरी है ) -
कु कमला , मनोहर ध्ष्माना , जगदीश जुगरान , दयाराम कोठरी , नित्यानंद उप्रेती , सुंदर लाल उनियाल , महावीर नेगी , महावीर बड़थ्वाल , सतीश पुजारी , बंदिश कृष्ण, विशंबर थपलियाल
साथ में नेगी जी ने उल्लेख किया कि 'भारी भूल '  के  संसोधन में श्री ललित मोहन थपलियाल  व गीतों को पहाड़पन लाने के लिए श्री धरणेश्वर चंदोला का भी हाथ रहा है
यदि आपके पास नाट्यकर्मियों की जानकारी है तो उसे साझा करें अवश्य
Copyright @ Bhishma  Kukreti

 गढ़वाली रंगमंच नाट्यकर्ता , गढ़वाली नाट्यधर्मी  श्रृंखला जारी - 2

Bhishma Kukreti:
अर्धग्रामेश्वर नाटक के  कलाकार  व सहयोगी
 ( गढ़वाली नाट्यकर्मी -2 )
  - भीष्म कुकरेती
  आधुनिक गढ़वाली  नाटकों में अर्धग्रामेश्वर एक मील का पत्थर  साबित हुआ।  इस नाटक के प्रथम मंचन में निर्देशक , कलाकारों व सहयोगियों का ब्यौरा इस प्रकार है
लेखक राजेंद्र धस्माना
निदेशक - मित्रा नंद कुकरेती
गीत , संगीत - महेश तिवाड़ी
कलाकार -
सूत्रधार - महेश बुड़ाकोटी
पं  महिमानंद - खुशाल सिंह बिष्ट
सतयनारायण ( अधिकारी )- संजय बिष्ट
नैन सिंह - रवींद्र गौड़
प्रो विद्यासागर - हरी  सेमवाल
सूरदास - कृपाल सिंह रावत
कुंदन की मां - सुशीला रावत
कल्पी - कुसुम  बिष्ट
सुमति -  मंजू बहुगुणा
राजेश्वरी - संयोगिता पंत ध्यानी
ग्राम प्रधान अनसूया - ब्रिज मोहन शर्मा
शकुन्ति - धनेश्वरी नैथानी
मातवर - दिनेश कोठियाल
मेहरबान - गिरीश बिष्ट
गरीब - गिरीश बलूनी
पतरोल - डा हरेंद्र असवाल
प्रताप - श्याम सिंह रावत
वीएलडब्ल्यू - सतीश भंडारी


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Garhwali Dramatists  , Garhwali Drama activists

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