Jai Prakash Dangwal
1 hr · Delhi · Edited ·
मेरी कलम से ©जय प्रकाश डंगवाल:-
तुझे सताने का जान बूझ कर मेरा, क़तई कोई मक़सद नहीं है,
मुहब्बत पगला गई है, उसे संजीदगी से लेने की जरूरत नहीं है.
कभी भी मुहब्बत की तपिश लेकिन जहान में कम नहीं होती है,
वह् कल थी, आज है, कल भी रहेगी, वह् तो सदा बहार होती है.
मुहब्बत में, पतंगों के जलने की, मुहब्बत ने, कब फिकर की है,
वह तो, लम्बे अरसे से, जल रहे हैं, जलना उनकी फितरत में है.