Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य
Kumaoni-Garwali Words Getting Extinct-कुमाउनी एव गढ़वाली के विलुप्त होते शब्द
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कुमाऊ बोली में विविधता । पढो और आनंद लो ।
1 यस किलै कूँछा ?
2 यस के कमछा ?
3 यsस के कुणौछा ?
4 यस/तस कै कुनोछा हो ?
5 यस क्र कुणो छा ?
6 यस के कहछा हो ?
7 येस कि कूनैहा पें ?
8 यस के कुणछा आपू ?
9 ये कि कमुछा ?
10 यस की कुन्चा हो ?
11 यस किलै कौंछा ?
12 यो के कुणा छा हो ?
13 अरे तस के कुणौछा ?
14 हडभो के कुनछा ?
15 यस किले कुन्छे ?
16 इस किले कूमर्छा ?
17 यस की कुनैछा ?
18 एस के कुनोचा ?
19 तोस्स के कुनाहा हो ?
20 यान क्या बुन्यूउचूओ ?
21 यस के कुणोछा ?
22 येस के कुनोचा ?
23 यस के कौनाछा त?
24 का कमचा ?
25 के कुन लागिरेचे तौस ?
26 यस कै कुना छा त ?
27 एस के कुणो छा ?
28 आपु यस कै कुनोछा हो ?
29 यस के कुरोछा ?
30 एस् के कुणौछा ?
31 यस के कुणौ छा ?
32 हाय यस के कुनछा ?
33 यस किले कुना चा ?
34 यस किले बालण छा ?
35 यश के कुणछा हो ?
36 यस के कुन्नाछा हो?
37 यश के कुणछा हो ?
38 उज्जा तुम यस किलै कुणौछा?
39 यश के कम छा ?
40 तस कि कुनाहा हो?
41 यश किले कमछा ?
42 तस के बुलाण छा?
43 यास कि कुव्रुना छा?
44 योस क कमछा?
45 इसो को कुमरेचा हो?
46 तस के कुनो छा ?
47 एस का कुनो चा?
48 यस के कणौछा ?
49 यर के काम छा ?
50 यस /तस के कूनाछा?
51 यस किलै कुणौछा ?
52 यसकुनछि ?
53 यस के कूंणछा ?
54 यस के कुनौछा ?
55 इस कि कुन्मरछे ला ?
56 यो क कुनी
57 यस कि कुन्नूहा ?
58 यस कि कुणसा ?
59 तस/यस क्याकि कुमरछा ?
60 यौस कि खुनोछा ?
61 केयै बेतबौल्न ?
62 ऐस कै कुनौछा हो ?
63 यन क्या ब्वोन्ना तुम/ ब्वोन्नु तु?
64 ऐसे की कुन्हा हो ?
65 यस के कुणौछा ?
66 यस किले करनोछा ?
67 तस के कुणौ छा ?
68 यन क्या बुनण्यु ?
69 यस की कुनाछा
70 यस क्या कम छ ?
71 यस किले बोलण रै छै ?
72 यश के कम छा ?
73 यौस की कुनछ तू ?
74 यस के कण /कन ले रचा हो ।
75 योस क्यूहों बलानोछा ?
76 योस क्यूहों बलाणोछा ?
77 यस के कुणछा ?
78 यस के बलांण छा ?
79 यस की कुमरून्छा हो ?
80 इस क कुन की रे बता ?
81 इस की कुम्रछहा ?
82 यस जे किहि कुनूछा ?
83 यस ढ्बक के कूनाचा ?
84 योस के कुंछा ?
85 यस के कुनो छा ?
86 तस की कुनार छा
। अगर
आप की बोली इंगित नहीं तो उसे जोड़ना है ।io
By jogasingh kaira
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उपमा अलंकार की महिमा ।
बलाण में गूड़ जसी
ठंडी हवा रुड़ जसी
पिपलैकि छाया जसी
हिरद की माया जसी।1।
आँख की तारी जसी
कन्या कुमारी जसी
प्योली की फूल जसी
अक्ले की मूल जसी।2।
मंद मंद चंठ जसी
कोयलेकि कंठ जसी
मुखड़े की जून जसी
देखिणे की चुन जसी।3।
ह्योने की घाम जसी
पाकिया आम जसी
ठुल घरे चेली जसी
सुनें की बेली जसी।4।
फुले की डाई जसी
ज्ञान गुरु माई जसी
चाल गज राज जसी
कमर बन राज जसी।5।
पाकिया अनार जसी
कौणीं की बाल जसी
कैड़ा फूुल बुरुस जसी
जिंदगी की सांस जसी।6।
दिलेकी सागर जसी
पाणि की गागर जसी
सती सावित्री जसी
धरमें पवित्री जसी।7।
लक्ष्मीक सार जसी
बीणा की तार जसी
इजे की पुकार जसी
ठंडी हवा धार जसी।8।
अकाशकी तार जसी
सालकी त्यौहार जसी
म्हेंण में कुंवार जसी
दिनों में इतवार जसी। 9।jsk
By joga singh kaira
Bhishma Kukreti:
विलुप्त होतेहुए कुछ गढ़वाली शब्द
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संकलन – महेशा नन्द गढवाली के प्राचीन शब्दों के ज्ञाता
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#कंप्यरु (पु0)- जमीन से बाहर निकला हुआ नुकीला पत्थर.
#कछ्वळा (पु0)- आमाश्य.
#खांड्यूँ (पु0)- अत्यन्त उपजाऊ भूमि.
#गबदाट (पु0)- अनेक लोगों का एक साथ बोलने-बतियाने का अस्पष्ट शोर/पंजों से किया जाने वाला मर्दन या नोचन/दोनों हाथों से सामान को टटोल कर किया जाने वाला निरीक्षण.
#घत्वड़ु (पु0)- तरल पदार्थ के अधिक मात्रा में लगातार पिए जाने की क्रिया.
#घिंघऽघ्यळि (स्त्री0)- ऐसे शिशुओं का समूह जो खुद चल-फिर नहीं सकते/रोकर अपनी ओर आकर्षित करते हुए शिशुओं का समूह.
#चटक्वांस (स्त्री0)- किसी वस्तु की भारी कमी.
#चड़ऽ (पु0)- जाँघ.
#छूपुण (पु0)- चूल्हे में रखे बर्तन के पानी को जल्दी उबालने के लिए उसमें डाला गया मंडवे का आटा/ओड़ा जाने वाला झीना कपड़ा/ढकने या आच्छादित करने वाला झीना कपड़ा.
#छैतु (पु0)- कुछ समय के लिए उधार माँगा गया सोना या चाँदी का गहना. (बीस-तीस साल पहले यह परम्परा थी. जो गरीब लोग होते थे वे जब अपने बेटे के लिए बहु माँगने जाते थे तब अपने सक्षम हितैषी से सोना या चाँदी का गहना माँगते थे. वह गहना माँगी गयी बहु को पहनाया जाता था. जब शादी हो जाती थी तब वह गहना लौटा दिया जाता था.)
#जुख्यला (पु0)- बीज/अखरोट की गिरी.
#झिड़बिड़ि (स्त्री0)- घृणा/घिन.
Bhishma Kukreti:
उलणा और जळतुंगा के पौधे.....
(बिलुप्त होते या होने वाले -गढवाली शब्द श्रृंखला )
महेशा नन्द (भाषा विशेषग्य )
जब पहाड़ों का जीवन सीधा प्रकृति से जुड़ा था तब इन पौधों की बहुत मान्यता थी। इन प्रकृति प्रेमियों ने प्रकृति से सीखकर अपना जीवन सरल बनाया।
आज स्थिति यह है कि लोग इन पौधों के नाम तक नहीं जानते होंगे। ये दोनों पौधे नम स्थानों में होते हैं।
1- #उलणा- यह एक फर्न की प्रजाति है। फर्न की पहाड़ों में मुख्य तीन प्रजातियाँ हैं
(a)- #लिंगुड़ा- लिंगुड़ा छायादार नम स्थानों में होता है। मुख्यता यह पौधा गधेरों में, पानी के नम छायादार स्थानों में होता है। बरसात में इसके कोमल तने लम्बे होकर गोल घंड़ी के आकार जैसे हो जाते हैं जो सब्जी बनाने के काम आते हैं।
(b)- #कुथड़ा- कुथड़ा भी फर्न प्रजाति का है जो चीड़ या बाँज के जंगल के नमीदार स्थानों में होता है। इसके तनों की भी सब्जी बनायी जाती है। इसके तने भी लिंगुड़ा जैसे होते हैं किन्तु वे बारीक होते हैं। लिंगुड़ा और कुथड़ा के स्वाद में यदि तुलना करें तो लिंगुड़ा अधिक स्वादिष्ट होता है।
(c)- #उलणा- यह फर्न की मुख्य प्रजाति है। उलणा बाँज के जंगल में नम किन्तु किसी भी स्थान में कहीं भी उग जाता है। यह #जहरीला पौधा है। इसका उपयोग पहाड़ों के कच्चे घरोंं की छतों को छाने के लिए किया जाता था। क्यों किया जाता है ? फिर कभी....
2- #जळतुंगा- जळतुंगा चारा देने वाला पौधा तो है ही, साथ ही इसके तने से मिट्टी, गोबर, पत्थर आदि ढोने के कण्डे बनाए जाते थे। इस कला के माहिर थे रुड़िया। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि रुड़िया लोग उत्तराखण्ड के मूल निवासी हैं जो बाँस, रिंगाळ से कुन्ने, डुखरे आदि बनाते थे। इन शिल्पियों को मै हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
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