मुझ को पुरानी राह पर चलना नहीं आता,
खुद का बनाया रास्ता सीधा नहीं जाता।
बेगैरत अगर बनता बहुत आगे निकल जाता,
गुमराह करके राह पर चलना नहीं आता॥
ना रहते आसरे उनके तो फ़िर हम और क्या करते,
हमें उनकी तरह राहें बदलना भी नहीं आता।
गये वो ऎसी राहों पर अकेला छोड कर मुझ्को,
कि जिन पर ठीक से मुझको तो चलना भी नहीं आता॥
मुझे नकली हंसी के साथ मुस्कुराना नहीं आता,
पराया माल अपने नाम करवाना नहीं आता।
दिल के किसी का दर्द भी देखा नहीं जाता,
मगर दिल चीर कर दुनियां को दिखलाना नहीं आता॥
हमने बहते पानी से भी दोस्ती निभाई है,
फ़िर भी बर्फ़ की तरह अबतक तैरना नहीं आता।
शौक जलने का हमें कब था यहां ’मदन’,
पर राख में से आग अलग करना नहीं आता॥
मुसीबत का पहाड भी किसी दिन कट ही जायेंगा,
मुझे सिर मार कर दीवार पर मरना नहीं आता।
चकाचौंध की दुनियां मुझे भी गुदगुदाती है,
मगर चादर के बाहर पांव फ़ैलाना नहीं आता॥
जिन्दगी जीने के सिर्फ़ दो तरीके हैं,
एक उनको नहीं आता एक हमको नहीं आता॥
...................मदन मोहन बिष्ट...............