Author Topic: Kumaoni Poem by Sunder Kabdola-सुन्दर कबडोला की कुमाउनी कविताये  (Read 15102 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

From Sunder Kabdola

“आ सुणडा यु रिर्वाज कुँर्मो होई कु जुबान”

(होली-होरी-होई)
Image Hosted At MyspaceGens
“आ सुणडा यु रिर्वाज
 कुँर्मो होई कु जुबान”
फाँल्गुण मास एक गतै
 21 दिन बैठ होली
 गाजि-बाजि सार कुँर्मो
 कुँर्मो होली गीत मा
 गौ गाड़ा झौवड चाचरि
 गौ बखाई घर- घरा
 नान-ठुला बुँढ-बाँढा
 ढोल-ढमँऊ हुडकि बौल
 शिवराञि कु… शिव होलि
 शिव होली मा नर-नारी
 काथ-पुराण लोकगीत
 गाजि-बाजि सार कुँर्मो
 रँग मँगडि नर- नारी
 रँग मँगडि नर- नारी
छै दिनु ठाड होई (खडि होली)
 बखाई बखाई यु घुमि
 कुरता-पजाम टोप मा
 घँघरि डालि घेर मा
 झौवड चाचरि नर- नारी
 होली स्वाँग कु भरमार
 देव लौगुण गीत मा
 ले चढै होली आग
 ले चढै होली आग
ठाड होई कु पँचवा दिन
 निशाणु प्रतितक तै
 ढोल- ढमँऊ छाजि गीत
 सार कुँर्मो गौ वा गौ
 देवि थाण होली चैढ
 देवि थाण होली चैढ
 बुरँशि खिलि दब्यतू थाण
 ढोल-ढमँऊ गाजि- बाजि
 कौतिकै होली उकाल
 नान कै ठुला खूब झुमि
 कौतिकै हुलार होली
 कौतिकै हुलार होली
ठाड होई कु छटँवा दिन
 छटँवा छँलडि होली कु
 सार कुँर्मो भिजि जा
 छँपडा छँपौड होई मा
 पानि कु बौछार तै
 पानि कु बौछार तै
 माँठ-माँठु यु हुलै
“कुँर्मो होली कु हुँयार
 कुँर्मो होली कु हुँयार”
 नैऐ धौई…
 हँलवा होली यु पकै
 देव कु पँखुवा चैढ
 ईष्ट मिञ गौ गाड़ा
 होली कु प्रसाद बँट
 होली कु प्रसाद बँट
“आ सुणडा यु रिर्वाज
 कुँर्मो होई कु जुबान”
लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 copy right sundarkabdola , All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
“छाँव-छरपट चेलि मेरी गाई ले त्यर प्यारि लगदि”

“माँ का अपनी लडकि के प्रति विवाह से पुर्व मन मे हो रही उथल-पुथल का चित्रण”
“छाँव-छरपट चेलि मेरी
 गाई ले त्यर प्यारि लगदि”
 राति घाम चुई मा पँहुचि
 गढ-भिडो मा दौडि भागि
 घाँ कु डालु ख्वर मा तेरो
 फुर-फुर करदि इग्लिश बोलि
 पढण-लिखण मा अवल छै
 शान-शौक दी डबल कु तेरो
 बुते कि तू लखिया छै
 बुते कि तू लखिया छै
 छाँव-छरपट चेलि मेरी
 काम-काज मा हाथ सरौण्दि
 ईजा-बौज्यु-आम्मा-बुबु सेवा करदि
 “छाँव-छरपट चेलि मेरी
 गाई ले त्यर प्यारि लगदि”
भैस नऊण-दुध पिऊण
 तू छै मेरो दै कू ठेकि
 मयण कू जैसो मेरी चेलि
 जबै तू जालि यु घर छोडि
 याद तू आलि मेरी चेलि
 याद तू आलि मेरी चेलि
 त्यर छवट-छवट बात
 नटखट याद
 जबै तू जालि यु घर छोडि
 याद तू आलि भौते भारि
 याद तू आलि भौते भारि
सौरास मा जैकि नि बदलि
 सासु-सौरा ईजा-बौज्यु तै समझी
 पढि-लिखे घर संसार लगैई
 छाँव-छरपट चेलि मेरी
 जबै तू जालि यु घर छोडि
 याद तू आलि भौते भारि
 याद तू आलि भौते भारि
त्यर नान-नान कपडा
 ठुल-ठुल झौरा
 सिराण मा धेरि
 अपणु मन जिकुडि तै बुथुण
 तेरो-मेरो साथ छी इतगा
 अपणु मन जिकुडि तै बुथुण
 जबै तू जालि यु घर छोडि
 याद तू आलि भौते भारि
“छाँव-छरपट चेलि मेरी
 गाई ले त्यर प्यारि लगदि”
लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
“ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि कोट भाँम्ररि भगवति मय्या”

“ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या”
Image Hosted At MyspaceGens
मि तेरो द्वार
 दुख विपदा मा घैरि घर परिवार
 भगवति मय्या मि तेरो द्वार
 ना चुनरी ना दीया-बाति
 गरीब छू मय्या दुख विपदा
 फुल-पात मा तेरो घर दरबार
 दुख विपदा मा आयो तेरो द्वार
 कर दे मेरो यु बेडा पार
 सुख सँम्पन्न घर परिवार
“ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या”
 अपना मेरो मेरो अपना
 छोड चलि यु घर परिवार
 राग-दोष मा उलझि मय्या
 उलझि मेरो घर परिवार
 ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 भगवति मय्या मि तेरो द्वार
 तेरि महिमा सार लोक मा अपरम पार
 लगै दे मय्या दुख विपदा कु पार
 सबै कु दैछि माँ-ममता कु आँचल
 जो ले उछि तेरो शरण मे मय्या
 बिन माँगि भर दैछि यु अन्न भखाँर
तू शिव भक्तणि गौरि रुपणि
 तेरो घर परिवार
 यु आस लगै शरण मा तेरो
 ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या मेरी
 फुल-पात मा सँतुष्टि तेरी
 खाल हाथ मि तेरो द्वार
 तू जग जननी तू दुख हरणि
 अपणु छाया रख दे मय्या
 दुख विपदा मा मेरो घर परिवार
“ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या”
 जन समहु अपार यु देखि
 डगोलि मा तेरो कौतिक जे लागि
 उमड पडि यु जन समहु
 दर्शन कु अभिलाषी
 दुख विपदा सुख सँम्पन्न
 सबै तेरो थान भैटोणि
 थान मा देखि तेरो रुप निरालि
 सज्जी-धज्जी तू डोट नथुलि
 दीया-बाथि तेरो नौ मा जलणि
 मन मा यु अभिलाषी लैई
 जन समहु अपार यु देखी
सार लोक मा मय्या मेरी
 सबसे प्यारि
 “ऊँच डाण्डि मा रुणि वालि
 कोट भाँम्ररि भगवति मय्या मेरी”
लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कितनी किमती थी ओ चिट्टी ना सुनके छलकि आँखे जिसकीBy Sunder Kabdola


‘कितनी किमती थी ओ चिट्टी’
 जिसको मै था देता
 उसकी खुशिया मे ही पाता
 गाँव का था मे एक तारा
 जिस बाँटु से होकर मे था जाता
 गाँव कि ताई बेटि ब्वारि
 बडे आस से पुछ ही लेती
“ओ डाँक्वान दाज्यु”
म्यर चिट्टी ले आई छा कै
 दिल ले म्यर भौते दुखछि
 “ना हो ब्वारि नि छू आई”
 ना सुन के छलकि आँखे जिसकी
 कितनी किमती थी ओ चिट्टी
छिडि लडाई कारगिल कि
 शरहद से राजखुशी पैगाम ना होता
 माँ कलेजा फट ही जाता
 चिट्टी मे होती कुछ ऐसी बात
 शरहद मे बैठा लडका उसका
 टक टकि यु लगै
 ईजा बौज्यु भै बैणि चिट्टी पतर सुवा कु
 ना जाने कितने बार पढा था
 उस फौजि नै
 उस फौजि नै
 कितनी किमती थी ओ चिट्टी
ना सुन के छलकि आँखे जिसकी
 चिट्टी मे होती कुछ ऐसी बात
 फिर जो लिखती थी ओ चिट्टी
 शाम सवेरे रात उजाले
 लुकि छुपि कि मन कु बात
 खुश दुखै कि होती बात
 चिट्टी मे होती कुछ ऐसी बात
 हराऊ हरेला चिट्टी मे आता जाता रहता
 अगर तू लिखता रहता चिट्टी
 अगर तू लिखता रहता चिट्टी
कितनी किमती थी ओ चिट्टी
 चिट्टी मे होती कुछ ऐसी बात
 ना सुन के छलकि आँखे जिसकी
गुम होती हस्तलिखित लिखावट
 एक चिन्ता एक बहेस..?
लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
दर्प-दहा

“दर्प-दहा”
कैकु भल जै हैई
 दर्प-दहा यु पैलि रैई
 कैकु घर मा लागि
 यु बण मा लागि
 सदाबहार…
 जेठ कु चड़कण घाम कू जैसोँ
 छाँव मिलो ना ठण्डोँ पानि
 दर्प-दहा ज्युँ दिल मा मेरोँ
 मैत कु दब्यत सौरास पुकारि
 पुजण मा रुणि साल महेण
 दर्प-दहा यु सैणि-मैसि
 लडणु-झगणु ऊमर यु गुजरि
 दर्प-दहा मा दुनिया छाडि
 छाडि सबै…
 जैक लिजि दर्प-दहा
 जैक लिजि दर्प-दहा
लेख-सुन्दर कबडोला
 गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
 © 2013 copy right, All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

जा रे काँवा म्यर मैतौणि र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा”

जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
कै दैई म्यर बाबा तै
बालँपनो कु उ दिना
हैँसि खेलि घर आगँण
जवानी कु यु कै पाँखा लागि
र्फुर उडाई… किले रे बाबा
बालँपन कु घोला छाडि
छोडि तुमरु द्धार बाबा
किले रचाई म्यर ब्याह हो बाबा
किले बनाई पराई हो बाबा
किले बनाई पराई हो बाबा

ओ म्यर लाडली प्यारि चेलि
तू छै मेरो जूँ अर पराण
चेलि जात कू यु छा रश्म
“एक दिन जाण पडु रे
अपणु स्वामि कु द्धार”
चेलि कू यु छा जात
जा चेलि तू अपणु द्धार
पराई हैग्यु यु मेरो द्धार
त्यार-ब्यार मा रौनक हौलि
जबै तु आलि मेरो द्धार
जा चेलि तू अपणु द्धार

जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
झुरि हौलि म्यर ईजा
आगँण कु एक कोनु मा
बैठि हौलि म्यर ईजा
टुकुड-टुकुड उ चाणि हौलि
त्यार-ब्यार कु गिनती रौलि
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
राजि-खुशि छू.. कै दैई..
“दुख लगै नि कैई रे”

ईजा-बाबा झुरि जाला
आँखा आँसू बरकि जाला

राजि-खुशि छू तुमरि चेलि
दुख लगै नि कैई रे
दुख लगै नि कैई रे
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
र्फुर उडि जा मेरो काँवा

ओ म्यर लाडली प्यारि चेलि
तू छै मेरो जूँ अर पराण
साल महैण यु बिति गिण
त्यार-ब्यार ले पुरि गिण
किले नि ऐई मेरो द्धार
रिसै-रिसाई छै कि तू
राछि-खुशि कै दुख-पिडा
ओ रे काँवा सच बते दै
मेरि चेलि दुख-पिडा
मेरि चेलि दुख-पिडा

तुमरि चेलि दुख-पिडा
कसकै लगु मि मुख-पिडा
साँस-ससूर ले दहैज मा टोकि
रोज निकलणु आँसू आँखा
लुकि-छुपि कि…
ओ म्यर बाबा… ओ म्यर ईजा…

जा रे काँवा म्यर मैतौणि
र्फुर उडि जा मेरोँ काँवा
कै दे मेरो ईजा-बाबा
राजि-खुशि छू तुमरि चेलि
दुख लगै नि कैई रे
“ईजा-बाबा झुरि जाला
आँखा आँसू बरकि जाला”
राजि-खुशि छू कै दैई
दुख लगै नि कैई रे
दुख लगै नि कैई रे
जा रे काँवा म्यर मैतोणि
र्फुर उडि जा मेरो काँवा

लेख-सुन्दर कबडोला
18/01/2013
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
ओ ईजा….म्यर ईजा

म्यर ईजा…
कन याद समाई ममता मा
दुध भात खिलाई बचपन कु
जब याद ले उँछि ओ ईजा
मन ले दौडि त्यर बाँट पिछाणि
म्यर ईजा…
ब्याव बखत कमरा पँहुचदु
बुलबुलि ऐण मा करि
बनठनि कु सितणु छू
स्वैण मा लै जुण घर उत्था जी
भल आँगणि एक घाँघरि
म्यर ईजा…
निँद मा हैग्यु घनाघौर हे ईजा
जन पिछाडि मुड़ जा ईजा
देश बे ऐरु त्यर भेट-भिटाणु
सुपि-सुपणियोँ मा ऐग्यु घौर
म्यर ईजा…
स्वैण टुटण तै पैलि
हँसदि मुखडि मिठु बोल
चौथार मा बैठि फँसक लगाणु
म्यर ईजा…
स्वैण टुटि जौल राति ब्याण
ऐण मा दैखुण…
टिक पिठाँ यु आँसु आल
टिक पिठाँ यु आँसु आल
त्यर बिन कसकै कटनु दिन म्यरा
तिमलु पाता पाण धरि पराण म्यार
ओ ईजा….म्यर ईजा

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
ओ माँजि… म्यर माँजि!

ओ माँजि…. म्यर माँजि….
त्यर मयालु आँचल मा
बचपन बितो जवानी मा
ले गिण माँजि परदेश मा

‘भूख लागण ऐजा खेजा
को छू अब धात लगौणि’
पापी परदेश मा…
याद ले औणि ओ माँजि
त्यर धात लगौणि
भात पशै… ऐजा रे
‘याद ले औण्दी त्यर रसीलो भात दगडि’
‘जब भूख ले लागदि दिन मा देखि’
मन ले बौडि… रुक जा माँजि
मै ले आन्दु… भात कौ खाणु
टप-टप टपकि
त्यर याद मा माँजि
”भूख लागण ता थामि ल्युण
त्यर याद नि थामि ओ माँजि
त्यर याद नि थामि ओ माँजि
त्यर याद नि थामि ओ माँजि”
कसकै थामि पापि मन तै
ओ माँजि…म्यर माँजि

तु रुन्दी रूख मा
म्यर माँजि हुर्णल दुख मा
य सोचि-सोचि त्यर दुखमा
आँख बे टपकि बँण्धार क पाणि
भुख ले थामि म्यर मुखमा
त्यर दुख-पिडा म्यर हैजो माँजि
अगिल जन्म ले हैजो म्यर माँजि
ओ माँजि… म्यर माँजि…

‘भूख नि लागण
त्यर याद लागण’
ऐजा खेजा कब कौलि
त्यर याद ले औणि
म्यर डाँड ले जाणि
बैशाख मैहण मा छुट्टी औणा
‘त्यर म्यालों ममता क भेट करु’
ओ माँजि… म्यर माँजि…

कै तू कौलि… कै मि कौला
दुख पिडा साथ जतुणा
पुराण दिना क छुई लगुला
त्यर दगडि गढ मा जूणा
फँसक-फँसक मा हाथ बटुणा
त्यर दगडि धाण माणुणा
पराल पुठोरि पुठ मा ल्युणा
पराल पुठोरि लुट मा दुणा
लुट क छाया थाक बिसुणा
ओ माँजि… म्यर माँजि…

गिनति रैगिण छुट्टी हौला
दुखले त्यर मुख मा हौला
ओ माँजि… म्यर माँजि…
अब ता पौणु हैगिण घर मा देखि
“टिक-पिठा कुछ आँसू आला
पुर याद समालि झौलि मा
मैले जाणु परदेश मा माँजि”
परदेश मा जैबे याद पुठोरि
रोज दैखण…
ओ माँजि… म्यर माँजि… !

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

From - Sunder Kabdola

“ओ परुँवा बौज्यु भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ”

ओ परुँवा बौज्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
लाल ज्लेबी एक चपल मुले ध्यु

ओ परुँवा ईजा
नानतिण ज्युँ तेरो ख्वाट
चूट ले तू भँट्ट
फिर कौलि मैथे रे
ओ परुँवा बौज्यु…
“चपल कै ले छा यस”

ओ परुँवा बौज्यु
सुन-सुनै यु गीत सुनि
उत्तँराखण्ड मा धूम मचि
नान कै ठुला खूब झुमि
अब हैगिण हम दी बुँढा
सुपर हिट गीत कु
यु कुडि यकलु हम
का बै कुनु… ओ परुँवा बौज्यु
“चप्पल कै ले छा यस”
परुँ ले हैगोँ जस
जमान ले ऐगोँ कस
ओ परुँवा बौज्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
हिट दगडि परुँवा बौज्यु
लाल ज्लेबी एक चपल मुले ध्यु

ओ परुँवा ईजा
नानतिण ज्युँ तेरो ख्वाट
चूट ले तू भँट्ट
कौथिकै डबलू कू खेल छू
सुपणियो हैरु… घर मा मैरु…
काण पडि गगरि तै…. चूँगि गो
डबलू कू पाणि नै
डबलू कू पाणि नै
साल महैण बिति गिण
हाँट-बाँट टुटि गिण
परुँ कु याद नै
परुँ कु याद नै
बुढ-बाढि जुण-मरि ख्याल नै

ओ परुँवा बौज्यु
हुँक्का थामो कश तो मारो
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
घुमि उणा भगवति कौथिक तै
रँग-बँरगि चूडि हला
लाल ज्लेबी पात तै
अणकसै मिजात देखि…. भगवति थान कु
कौथिकै कौतियार ले… झुमि हला
हौसिया मुलार मा
गौ कु चेलि-बेटि
नौ रँगि सिगाँर मा कौथिकै बाँटु तै
पटै गै आँख मेरो
घँघरि कु निल मा
घँघरि कु निल मा
हाथ जुडाणा खूट पडुणा… भगवति माता तै
एक स्वैण दि दै… परुँवा तै
गौ मा तेरो बुढि ईजा
दगडे वैकु
जाँठ टेकु…!
परुँवा बौज्यु
नौ वैकु…!
सुपर हिट गीत कु
सुपर हिट गीत कु
ओ परुँवा बौज्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
लाल ज्लेबी एक चपल मुले ध्यु

ओ परुँवा ईजा
नानतिण ज्युँ तेरो ख्वाट
चूट ले तू भँट्ट
जाँठ टेकि कौथिकै उकाल तै
कसकै हिटैण…
बुढ पडि पराण तै
चिर पडि जेब मा
डबलू कू पाणि नै
ओ परुँवा ईजा
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
अणकसै रुप तेरो
हिट दगडि परुँवा ईजा
लाल ज्लेबी…
एक चपल मुलै ध्यु
एक चपल मुलै ध्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
ओ परुँवा ईजा
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ

ओ परुँवा बौज्यु
भुरु-भुरु कौथिक ऐगोँ
लाल ज्लेबी एक चपल मुले ध्यु

ओ परुँवा ईजा
नानतिण ज्युँ तेरो ख्वाट
चूट ले तू भँट्ट

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

From Sunder Kabdola

दो दिन के मेहमान है आज

पहाड कि नारी कितनी प्यारि
सिर मे इनके घाँस का बौजा
कमर दाँथुलि इनके साथ
‘पैर मे कांटा
हाथ मे छाला’
उर्फ ना करती नगै पैरे
पहाड के टेडु मेडु बाँट
एक निवाला चैन से खाती
कैसे आज…?
दिन भर करती खेत मे काम
धुँप भी लगती
प्यास भी लगती
धार अर नौला फर्ज निभाते
देखा मैने…
दो दिन कि छुट्टि मे आज

अदत्त-मदत्त भी करते कैसे
दो दिन के मेहमान है आज
कैसी किस्मत अपनी
ना बच्चो के बढती ऊर्म को देखा
इजा-बौज्यु ढलती ऊर्म भी कैसी
ना सुख-दुखा अपनो के साथ
दो पैसोँ के खातिर
गाँव मुलुक से दुर है पास॥
गाँव मुलुक से दुर है पास॥

लेख-सुन्दर कबडोला
गलेई- बागेश्वर- उत्तराँखण्ड
© 2013 copy right पहाडि कविता ब्लाँग , All Rights Reserved

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22