Chandra Shekhar Kargeti
पलैन्कं की पीड़ (पलायन की व्यथा)
द्वि डबल कमाणक् लिजी,गों छूटी गो पहाड़ छूटी,
कन भल स्कुल जछीं, दद्दा भूली दगड़ी ओंछी,
हीसालू किलिमोडी सबैं ल्योंछी,बेडू तिमिल दगड़े खोंछीं,
सबैं बाग बाकैरी खेलछीं,दिन धोपरी उधम मचों छीं ,
द्वि डबल कमाणक् लिजी, गों छूटी गो पहाड़ छूटी........
अमां म्येरी कंथ लगोंछी ,बुबू म्यर नतिया बुलोंछीं,
बुड़ बुड़याँ क् पालणु सैत्यनु,दिद्दी भूली दगडिया छूटी,
छूटी बाखई पाणी नौला, गोरू भैंसा ग्वल बण कु जाणो,
कन् भल समें कटी यो, खेत जंगल यो हवा पाणी छुटी,
द्वि डबल कमाणक् लिजी,गों छूटी गो पहाड़ छूटी.........
ज्वान ह्वीक् विदेशी मुलुक् आयो,लुकुड़ बदली,बदली झांकेरी ,
गिटपिट बुलानुं अंग्रेजी अब मैं पहाड़ी की अब को ल्यूं खबर,
ठाट बाट खूब छन म्यर अब डबल है गेई भौत सकरी ,
गाड़ी मजी सर्रsss जानूं अब पर गेट पार चा अर्दली म्यर,
क्वी कमी न सबैं सुख छन् म्यर भकार,नी करनु अब उधारी ,
याद कर्नुं नान्छिंटा दिनां क् मैं जब, तब खुलनी पीड़क् द्वार,
द्वि डबल कमाणक् लिजी गों छूटी पहाड़ छूटी.........
ठुल ईजू म्येरी हर्याव लगें छी,जी रे जाग रयें आशार्वाद दीछिं,
एकक् पांच पाँचेक् पचास ह्यजवा, म्यर पोथीली सेर है जये,
अब नानतिन त एकैं चै बगत नहैती म्यर पास,
डबलूँक़ है रे रेलमपेल डबल चैनी पाँचेंक् पचास,
त्यर म्यर नी जाण छी में,छल प्रपंच नजीक रय,
सबैं म्यरा सबैं त्यरा क्वेक़ न छीं अलग द्वार ,
द्वि डबल बचाणक् लिजी, अब हैगैई चार द्वार,
मन बदली गो मनखी बदली गैई,अब एगो भ्रष्टाचार,
द्वि डबल कमाणक् लिजी,गों छूटी गो पहाड़ छूटी.......
कां गो छ म्यर हरिया, कां गो भुवनी,
कां गेयी म्येरी लछिमा, कां गेयी भागुली,
ध्याव छूटी गो छूटी गई इजा बबा म्यर,
क्ये करूँ निर्भागी मैं...........
द्वि डबल कमाणक् लिजी,गों छूटी गो पहाड़ छूटी.