सजग सतर्क रे तै,
प्रेरक गढवाली कविता
कविता: अश्विनी गौड़
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सजग सतर्क रे तै,
कोरोना दूर भगावा,
अफु भी बचा-
अर होरु बचैक,
फर्ज अपडु निभावा।
देशी परदेसी
घौर-गौं जु औंणा,
पैलि
जांच अपडि करावा!
अपडि माटी-थाति का
भै-बंधो मा,
बीमारी ना फैलावा।
देश बिटि जब
घौर-गौं एगिन,
सबसे पैलि नयौंण,
खांसी-जुकाम अर बुखार
जूं मनख्यूं
सि डाक्टर मा पौछौंण।
हर यन लक्षण
जैमा दिखैंदा,
कोरोना त नी होलू?
ना,चिंता-फिकर कन
नी सरमाणू !
अस्पताल चलि जांणू।
खांदि-पैंदि ,
उठदि-बैठदि दौ,
सेनिटाइजर लगावा,
जथ्या बगत भी हवै
सकदू त
हाथ सबुका धुलावा।
ब्यौ-बराती,
अर बर्थडै पार्टी,
भीड़ मा ना क्वच्यावा,
आलतू-फालतू, सैर-बजारु,
कुछ दिनों,
आणु-जांणू छोड़ी जावा।
भेंटण भी नी अर,
हाथ नि मिलाणू!
नजीक सुदि,
कैका भी नी जांणू,
जख तख थूकण,
नाक सिक्न्न,
अर
खासदि दौ,रखा ध्यान,
रूमाल अपडि खीसी बै गाडी
गिच्ची पर टप्प लांण।
बीमारी का जाळ मा,
दुनिया फंसी च,
मनखि लग्या,
सुद्दि मन्न पर,
थोड़ा सजग,
सतर्क रैक सबि
लग्या रौला कुछ कन्न पर।
एकमुठ्ठ सोचि ,
बिचारि हमुन अब,
मन मा ठांणी द्यौंण,
साफ सफै करी,
जागरूक रैक
कोरोना हरौंण
---अश्विनी गौड़ ---दानकोट अगस्त्यमुनि ----