रुद्रप्रयाग से बाल गढवाली कविताएँ
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- संकलन - अश्विनी गौड़
नै छवाळि नै हौंस दगड़ि ना सिर्फ कलम चलौंणी बलकन समसामयिक घटनाचक्र पर भी पैनी नजर च रखणीं,
नै छवाळि यन कलम मौरोंदि रौ, नै पांण गड़दि रौ।
अर हमारी भाषा की नै बिज्वाड़ खूब लकदक बणींतै शब्दों की हैर्याळि खूब पौजौ---
---1---
कोरोना वौरियर जवान--- जै हिंद सैल्यूट---
पैलि अफु बचला, तब हौरुबि बचौला,
कोरोना मामारी मा, सबि एकमुठ्ठ रौला,
बड़ि भारी जंग च, जु जीति हमुन औण,
जूंदि रौ मनख्यात, यनु मिशाल बणौण,
दया,दान, धरम, धरम का करम,
आवा सबि फर्ज निभै, ह्वै जौला एकमुठ्ठ
कोरोना वौरियर जवान---- जै हिंद सैल्यूट--
दवै दगड़ा-दगड़ि हमुन, भला बिचार बणौण
चै कुछ ह्वे जौ, या बीमारी अब हरौण,
पुण्य की ईं धरती मा,यन बिज्वाड़ डाळा,
बेरोजगार परिवारों मा, भूखा ना रौ बाळा,
भूखा निंद द्यौला, उनिंदौ स्यवोला---
आवा सबि फर्ज निभै, ह्वै जौला एकमुठ्ठ
कोरोना वौरियर जवान--- जै हिंद सैल्यूट---
दिन रात खड़ा रैक, जु नियम बणौणा,
हमारी सुरक्षा खातिर, ड्यूटी छिन निभौणा,
हमबि अपड़ि जुम्बरि, अर फर्ज निभौला,
बेफिजूल-बेमतलब, यथ-वथ नि जौला,
अपड़ौ फिकर मा तौं, हमरि भी फिकर च-
आवा सबि फर्ज निभै, ह्वै जौला एकमुठ्ठ
कोरोना वौरियर जवान--- जै हिंद सैल्यूट---
कखि खाकी वर्दी,पुलिस बणीं डट्यांन
अस्पताल भैर भितर डौगटर लग्यांन
कखि क्वे भग्यान सेवादार बणींक
अन्न-धन सक्या सामर्थ दिनरात जुट्यांन
गिच्चा पैर्या मास्क, बीमारी हरौणौ टास्क
आवा सबि फर्ज निभै, ह्वै जौला एकमुठ्ठ
कोरोना वौरियर जवान--- जै हिंद सैल्यूट---
वौरियर
------@अश्विनी गौड़ दानकोट रूद्रप्रयाग ।
----2----
-----कुरिण----
ईं बीमारी कू कुरिण भी, दिये जौलू
नै सुबेर ह्वौलि यु अंध्यारु छंट्यै जौलू ।
अफू भी समझा, हैका भी समझा दूं
आज भितर ग्वड्यां, भोळ आजाद ह्वौला ।
आज द्वि गजे दूरी
भोळ अपणा साथ ह्वौला
देस-परदेस संगता राजी ख़ुशी
भोळ अपणौ दगड़ि त्यौहार मनौला ।
शिक्षा अर रोजगार मा,
फिर सी भलीऽ उन्नति ह्वौलि
ईं बिमारी तै दूर भगै
मुखड़ि मा हैंसी रौली।
लापरवै कतै ना कर्यन
वैक्सीन लगा सुरक्षित रा,
मास्क, सेनिटाइजर लगौण
बगत पर समझि जा।
ईं बीमारी कू कुरिण भी, दिये जौलू
नै सुबेर ह्वौलि यु अंध्यारु छंट्यै जौलू ।
----------@कविता कैंतुरा चिरबटिया रुद्रप्रयाग
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-----"बचपन हर्ची फौनौ पर"------
पैलीऽ चार, नि रै अब कुछ,
देखदि- देखदि यु समाज बदलिगी।
लोग बदलिगीन, खांणु बदलिगी।
रहन - सहन, रीति -रिवाज बदलिगी।
नौनौकि थ्वबड़ि देखा जरा तुम,
गैम खेली-खेली सि पस्त ह्वयां
सासु कु भीतर ककड़ाट मचायुं
ब्वारी फोनों पर व्यस्त ह्वयां।
आजा छोटा-छोटा नौनौ का
हाथौ छन फोन दीन्या
दिन रात लग्यां सि फोनौ पर
और औनलैन छिन गैम ख्यन्ना।
छोटि उमर का जब हम था त,
बांजा लिकवाळ रिंगौंदा था,
दगड़ा मिली पिठ्ठू खैलदा था
कागज फाड़ी जाज उड़ौदा था।
कन दिन था सि, जब हम बच्चा
फोनौ बटि भौत दूर रंदा था,
राढ़ करोंदा था,खौळा-खौळा मा
गौं मुल्क मा अपड़ा मसूर रंदा था।
थ्यगलै बौल सिली सिली हम
बाँज कु फटफटु बैट बणौंदा था,
द्वी टैरे कन गाड़ी रंदी थे,
तै पर रिंगाळी कु लाठु मिस्यौंदा था।
पैंट रंदि थे फटी - फटी
और तौं पर हमारा टाला रंदा था।
कुछ नी थो, पता फोनों का बाराम
यरां हम त जन लाटा रंदा था।
बारह का बाद ही फोन दिलौला
ब्वे- बाबा तब चित्त बुझौंदा था,
फौन से जादा पढ़ै जरुरी च
यीं बात बार-बार समझौंदा था।
आजा बच्चा देखा, जरा तुम
यतरा-यतरा भि, फौन चलौणा
खेल पिरेम और रिश्तौं बिसरी
फौनौ पर छन बचपन ख्वौंणा।
आज नी दिख्यैंदु, गौं मा कुईं
तार मोड़ि गाड़ी बणौ जु
अफुम सब व्यस्त ह्वयां छन
क्वै निरै अब हैका समझौ जु।
समय से पैली बच्चों मा
हाथों मा छन फौन दीन्या
छोड़ धरातल गतिविधी त्वीन
दिन कटणां छन फौनौ मा।
पढ़ै- लिखै क्या फैदा च?
जब घौर बसौण सैरौं मा,
मातृभूमि कु रंत -रैबार,
हाल पूछणां छिन गैरौं मा।
-----@- सचिन रावत, बजीरा लस्यां रूद्रप्रयाग
( Team - Uttrakhandi Kalakaar UK13)
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बण की बिपदा '
कुळै डाळी अर बाजैं डाळी
आपस मा छुयी लगौंणी छिन
क्या पायी हौलु इथगा करि
आपस मा पिड़ा बुझौणी छिन |
बटौयूं तै छैल दिनी
भूखौं तें खाणुं दिनी
हवा दिक सबुतैं पराण दिनी
अपणु ल्वै-मासु चुल्लु जगौंणो दिनी
सब करी - धरी भी
हमारी पिड़ा कैन नी समझी
बणौं का बण फुक्यैगिन
यीं आगे हाळ कैन नी समझी |
कुळै डाळी भी हुगांरा भरिक
अपणा मनै अब रखणी च
बिधाता ते पुकारी अब
प्रार्थना स्या या कन्नी च |
हे बिधाता ! मेरी ना सही
यौं जानबरों की पिड़ा त देख तू
कन माँ अपणा बाळों तें
आग मा जगदा द्येखणी ह्वेली
यीं पिड़ा त समझ तू
देख ये बणां राजो भी
क्या हाल आज होयूं च
अपणा आध फूक्या गात लीक
यख तख सु भी भागणूं च |
मनख्यूं सी भी अब आस नीन
हे बिधाता मेरी पुकार सूंण तू
बरखा कि बुंद बरखै क
यूं जानबारौ कु पराण बचौ तू
यू सभी - धाडी द्येखीक भी
हमारी पिड़ा कैन नी समझी
बणौं का बण फुक्यैगीन
पर यीं आगै हाळ कैन नी समझी |
---@रिंकी काला, मयाली लस्या रूद्रप्रयाग
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----मेरु क्या कसूर--
अगर ड़ाम का टूटण से
ग्वोरु, भैसौं जन,
बौग्यूं मि,
पाण्यां भितर अमोख्यै-अमोख्यै तै
मर्यूँ मि,
त तब क्वे बात नी!
सड़क पर हिटदा-हिटदि
गाड्या तौळा एग्यूं मि,
त तब बि क्वे बात नी।
क्वे जंगलि जानवर
चीरि-फाड़ी..
खै द्योला मेरि जिकुड़ी
त तब बि क्वे बात नी!
सीमा युद्ध का,
बर्चस्व की लड़ै मा बि,
अच्यांणचक मार्येग्यू मि।
त तब बि क्वे बात नी!
बल्कि, ठिकै त ह्वे!
कि, फट-फटाक मर्यूं मैं।
न पिड़ा ह्वे,
ना जादा भुगती मैन।
ख़ुशी की बात च।
शांति मिलली मेरि आत्मा तै
मेरु जीवन कैका त काम ऐ।
हौर बि भौत बाना छन ज्यूंरा मु
म्यरा परांण लूछणा।
पर ईं अजांण, अणदेखी
मामारी का दिनौं मा,
घबरांणू अर, डर्यूं-डर्यूं छौं मि।
कि, कखि मरि न जौं।
मन मा भितरा-भितरी कबलाट ह्वौंणू च।
जबकि, हर कै बेमौत मर्दारौं
रौंदि-बिबलांदि, तड़फिदि आत्मा
की बाच आज बि धै लगौणी।।
----@गितांशू कप्रवान,जवाड़ी, रूद्रप्रयाग..