Author Topic: Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं  (Read 198803 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाली  कविता : ख्वीन्डा सच

ख्वीन्डी व्हेय गईं  दथडी थमली
पैना करा अब हत्थ
रडदा ढुंगा मनखी व्हेय गयीं
गौं व्हेय गईं सफाचट्ट
बांझी छीं पुंगडी यक्ख
पन्देरा प्व़ाड़याँ छीं घैल
थामा अब मुछियला दगडीयो
मारा अब झैल
थामा अब मुछियला दगडीयो
 मारा अब झैल
अँधेरा  मा छीं विगास बाटा
 कन्न पवाड चुक्कापट्ट
 लुटी खै याल पहाड़
 मारा यूँ चप्पट
 लुटी खै याल पहाड़
 मारा यूँ चप्पट
झुन्गरू , बाड़ी , छंच्या वला मनखी हम
 सुद्दी -मुद्दी देहरादूणी कज्जी तक बुखौला
दूसरा का थकुला मा भुल्ला
हम कज्जी तक जी खौला
छोडिक गढ़-कुमौ मुल्क रौंतेलु
परदेशी हवा मा कज्जी तक जी रौला
अयूं संयु जौला आज  म्यार लाटा
भोल  बौडिक त  ग्वलक मा ही औला
अयूं संयु  जौला  आज  म्यार लाटा
भोल बौडिक त ग्वलक मा ही औला

रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
   स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
(हिमालय की गोद से :  http://geeteshnegi.blogspot.com)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Write a comment...Sandeep Bisht काली चाय मा गुडु कु ठुंगार
 पूषा का मैना चुला मा बांजा का अंगार
 कोदा की रोटी पयाजा कु साग
 बोडा कु हुक्का अर तार वाली साज
 चैता का काफल भादों की मुंगरी
 जेठा की रोपणी अर टिहरी की सिंगोरी
 पुषों कु घाम अषाढ़ मा पाक्या आम
 हिमाला कु हिंवाल जख छन पवित्र चार धाम
 असुज का मैना की धान की कटाई
 बैसाख का मैना पूंगाडो मा जुताई
 बल्दू का खंकार गौडियो कु राम्णु
 घट मा जैकर रात भरी जगाणु
 डाँडो मा बाँझ-बुरांश अर गाडियों घुन्ग्याट
 डाँडियों कु बथऔं गाड--गदरो कु सुन्सेयाट
 सौंण भादो की बरखा, बस्काल की कुरेडी
 घी-दूध की परोठी अर छांच की परेडी
 हिमालय का हिवाँल कतिकै की बगवाल
 भैजी छ कश्मीर का बॉर्डर बौजी रंदी जग्वाल
 चैता का मैना का कौथिग और मेला
 बेडू- तिम्लौ कु चोप अर टेंटी कु मेला
 ब्योऊ मा कु हुडदंग दगड़यो कु संग
 मस्क्बजा की बीन दगडा मा रणसिंग
 दासा कु ढोल दमइया कु दमोऊ
 कन भालू लगदु मेरु रंगीलो गढ़वाल-छबीलो टेहरी गढ़वाल,
 बुलाणी च डांडी कांठी मन मा उठी ग्ये उलार
 आवा अपणु मुलुक छ बुलौणु हवे जावा तुम भी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हिठाले दिअद
 
 माठु माठु हिठाले दिअद
 दोपहरी को घामा
 म्यरु तीसलू शरीर
 तीशालू पराण
 माठु माठु हिठालेदिअद
 
 बंजा पुन्गाड़ा
 उजाड़ा ये डंडा
 काचा पाका
 ये सड़की बाटा
 माठु माठु हिठाले दिअद
 
 घुअती घुराना
 ये उंचा निचा डंडा
 हीलंस को पारंध
 लगाधू ये आकशा
 माठु माठु हिठाले दिअद
 
 दूर मेर गाम दिअद
 जस बद्री को धाम
 कीन्गोड़ा काफल च्खैकी
 कर थोडू आराम
 माठु माठु हिठाले दिअद
 
 खैरी कामणी ये दिअद
 मील णी कभी आराम
 विपदा कैमा लगाण दिअद
 कैंका लागु मी सार
 माठु माठु हिठाले दिअद
 
 हिठ हिठ की दिअद
 कमरी मेर पाटेगी 
 खाली पुटागी णी भारे
 बीणा खुठी तुडैकी
 माठु माठु हिठाले दिअद
 
 माठु माठु हिठाले दिअद
 दोपहरी को घामा
 म्यरु तीसलू शरीर
 तीशालू पराण
 माठु माठु हिठालेदिअद
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाली व्यंजन / कुमाउनी व्यंजन / हिमालय के व्यंजन
Ethnic Food of Uttarakhand, Garhwali food, Kumauni Food, Ethnic Himalayan Food
गढ़वाली व्यंजन / कुमाउनी व्यंजन / हिमालय के व्यंजन
हरीश जुयाल (बदलपुर , गढ़वाल )

किसिम - किसिम का गढ़वळी व्यंजन
जुयाल़ा घरम आज प्क्याँ छन
आवा भैजी आवा जी
जु बि तुमर ज्यू ब्वनू च
कीटि -कीटि क खावा जी
दस भेली की सूजी खैन्डी च . छै नाल़ी क खुसका पक्युं
दल्यां चणो की दाळ धरीं च पुवौं न पुरो बिठलु भर्युं
भूड़ा -पक्वड़ा स्वाल़ा अरसा , लड्डू -पूरी , लगुड़ा -पटुड़ा
दड़बड़ी खिचड़ी, सड़बडु छ्न्च्या , चुनमंडो कु तौल धरयुं
आ ए दीदी , आ ए भुली , तु बि आ ए बौ ...
उड़द रयाँसू की दाळ पकीं च डिगचा धरयां छन छवाड़ मा
बासमती का चौंळ पकैकी तौला धरयां छन प्व़ार मा
लमींडा/ चचिंडा . ग्वदडि , छीमी , भिन्डी , लिंगुडा, खुन्तडा अर अचार
राई , मूल़ा, टुकुल, की भुजी तुमारो गिच्चाऊ खुण कर्युं ठुंगार
आ बोडी, आ काकी, आ मेरी समदण ...
ग्थ्वणि, फाणु , गिंजडि पकीं चा भदवल़ा छन भोरिक
फरफरी कौणि का भड्डू धरयां छन दाळ पकीं च तोर की
मूल़ा की थिंचवणि , पलिगौ धपड़ी , लया की चटणी , चून कु रोट
ड़्वळणि -झन्गवरु मरसा की भुजी कंड़ळी-बाडि घोट्म घोट
आ ये पौण ...
अल्लू क गुटका , ग्युं क फुल्का , निरपाणि की खीर पकीं
गैथुं का भरवाँ रवटलौं समणि घी की माँणि धरीं
तैडु गीन्ठी क परता भ्र्याँ छन ज्ख्या तुडका मा खूब भूटयां छन
ग्वीराळ , सकीना, बेथु , बसिंगू , बंसकल़ा ल्हेकी छन खुडक्यां
सिंगनि का ग्वबका घन्डाघोर , कुख्ड्या च्यूं का डेग धरयां
तिमला दाणी , खडिका टुक्कू , रौला प्फ्डी की भुजी बणी
टिमाटरूं कु झोंळ बन्यून च तुमारो खातिर झैळ लगीं
आवा कक्या सास जी , बड्या सास जी ...तू बि आ स्याळी जी
पीणा खुणी छांछ धरीं च , छांची मा नौणी गुंद्की घ्वलिँ
चटणा-खुणि आमे चटणि चटपटि, चसचसी , चटणि चिन्नी घ्वलिँ
फल फ्रूट मा लिम्बो क्छ्बोळी , पपीता खावा लूण रल्यूं
गल्ल प्क्याँ छन बेडु तिमला लूण दगड तेल रल्यूं
हैरी कखड़ी मा चिरखा दियां छन , भरवाँ लूण की चटणि पिसीं
हिसर , किन्गोड़ा ,करंडा , बिरन्गुळ, खैणा, हरड़, बयड़, किम्पू
टीपी टीपी तैं ढवकरा भ्र्याँ छन काफुलूं की कंडी भ्वरीन
घिन्घोरा , मेंलु, आडु, आम , औंल़ा, बेर दळम्याँ , बिजवरा
सेब, संतरा, घर्या क्याल़ा धाई लगाणा
आवा भैजी , अव्वा जी
सौंप सुपारी की जगा म्यारा सुप्प भर्याँ छन चूड़ा अर खाजा से
अखोड़ धरयां छन च्यडाउन दगड़म भ्न्ग्जीरो , तिल खूब रल्यां
काल़ा भट्ट का खाजा भुज्याँ छन कौन्यालुं का कुटरा ख्व्ल्याँ
मरसा क खील, ग्युं टाडा , मुगरी भूजिक ड़लुणा भ्रयाँ
छ्युंती म्याला , ब्वदल़ा टीपिक , सुरजा कौंल़ा धरयां तुम खुणि
बात हिटा को गुजारो कर्युं च भ्न्गुला तुमड़ा भ्रयाँ तुम खुणि
किसिम - किसिम का गढ़वळी व्यंजन
जुयाल़ा घरम आज प्क्याँ छन
आवा भैजी आवा जी
जु बि तुमर ज्यू ब्वनू च
कीटि -कीटि क खावा जी

सर्वाधिकार @ हरीश जुयाल, बदलपुर, पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखंड २०१०

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Himalayilog - गढ़वाली कविता--- पहाड़
       ------ सिंगापुर से गीतेश सिंह नेगी
                                      मी पहाड़ छोवं
                             बिल्कुल  शान्त
                                     म्यार छजिलू  छैल
                                     रंगिलू घाम
                           और दूर दूर तलक फैलीं
                       मेरी कुटुंब-दरी
                       मेरी हैरी डांडी- कांठी
                 फुलौं  की घाटी
                     गाड - गधेरा
                     स्यार -सगोडा
                            और चुग्लेर चखुला
                                    जौं देखिक तुम
                                    बिसिर जन्दो सब धाणी
                            सोचिक की मी त स्वर्ग म़ा छौंव
                                   और बुज दिन्दो  आँखा फिर
                    पट कैरिक
              सैद तबही नी दिखेंदी कैथेय
                    मेरी खैर
                   मेरी तीस

                     म्यारू मुंडरु

                म्यारू उक्ताट
      और मेरी पीड़ा साखियौं की
     जू अब बण ग्याई मी जण
     म्यार ही पुटूग
     एक ज्वालामुखी सी
   जू कबही भी फुट सकद !
 
 साभार---अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bharat Lohani  ज्यू द्वारा रचित "अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद " कविता आप सबूँ लिजी......... लोहनी ज्यू भोत्ते धन्यवाद य खूबसूरत कविता लिजी :) :) अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद 
 
 आलूक थेच्छय़ू प्याजक पुड़पूड़ी 
 काकड़क रेत मूअक साग
 मुंगेकि मुंगोड़ी माशेकि बड़ी
 कावपट्ट चुणकाणी लसपस भात
 इज खोची खोची खवे दिछि
 जिबड़ीक म्यरा बड़ मिजाज 
 अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद 
 
 जोश्ज्यूका का काकड़ लझोड़
 बिस्टज्यू को आड़ूक बाग
 पन्त्ज्यू का पूलम  नि छोड़
 नेगिज्यूका खेतम  पड़य़ू  उजाड़
 दिन भर म्यरा रोंते में कटी जाछि
 भोते भल छि हो म्यरा ठाटबाट
 अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद 
 
 भीजी शिसूण हाथम दंड
 महेश मास्सेप  भोते  खतरनाक
 चुलगम मेल चिपकाय कुर्सी में
 चप से चिपक गयी  मास्साप
 सब नान्तिनुले  दोड़  लगे  दे
 भूभी कूटिगो घुस्स लात 
 अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद 
 
 घटेकी घर घर द्यारे कि  सर  सर
 पल भाखेयी  कुकुरोक टीटाट
 शिटोवे कि चू चू  बिरावे  कि  म्यू  म्यू 
 पार तली गाड़क सरसराट
 डरक मारी हगभराछी
 ब्याव पड़ी सुण बागक घुरघुराट
 अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद 
 
 ओ रुपली शौज्यूकी चेली
 दिन रात रिटछ्यू त्यर आसपास
 नि के सकियू आपुणे मनेकी
 तुगे देख म्यर लकलकाट
 खुबे नाँचीयूँ द्वी ढक्कन पिबेर
 जब मोहनदा लायीं त्यार घर बरात
 अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद 
 
 कां रेगो गौं कां रेगे गाड़
 कां रेगो काफल कां तिमिल्क पात
 कां रेगे रुपली कां ऊक फरफराट 
 कां रेगेंयी दगड़ू कां उनर बोयाट
 रात अधरात क्याप  जस लागों
 गाव् भरी जां, आँख भिज जानि 
 जब ऊँछी गौंकी परदेश में याद
 अपुणे गौं गाड़ेकी बात, परदेश में ऊनी याद 
 भारत लोहनी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Khyali Ram Joshi
 

दोस्त हमार बणनें रओ यदुग लै भौत छू,
सब हर बखत हसनें रओ यदुगै भौत छू।
हर क्वे हर बखत कैका दगाड़ रैनिसकन,
याद एक दुसरै कें करनें रओ यदुगै भौतछू॥

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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म्यर मुल्क म्यर पहाड़
कविता - श्याम जोशी !

म्यर पहाड़ म्यर मुल्क देखणा आया,
जब आली ऋतू बसंत बाहारा,

याद आला तुमको आपण दिना,
आँख डब- डब भर आला तुमरा,

जब आला तुमके वो दिन यादा,
किलगे छोड़ी गेछा मुल्क आपणा,

म्यर पहाड़ म्यर मुल्क देखणा आया,
ठंडी हवा ठंडो पाणी मुल्क म्यर हरी भरी...

पूरी कविता पढने के लिए इस लिंक का प्रयोग करें :-
http://bit.ly/VNGXup

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Khyali Ram Joshi
August 26
पाणील तस्वीर कां बनें
स्वैणोल तकदीर कां बनें
कै दगड़ी दोस्ती करो तो
सांच दिलैल करो किलैकी
य जिंदगी फिर कां मिलैं

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Khyali Ram Joshi
August 24
दुनियकि भागम- भाग में मन ब्वजक ताव दाबी दुःखोंल घेरी रौं।
कलजुगी आदिमैकि मंसूबों कें देखि इनसान हैबै इनसान डरी रौं॥

 

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