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Kumauni & Garhwali Poems by Various Poet-कुमाऊंनी-गढ़वाली कविताएं
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
सुणि त होली आपन व पुराणि औखाण,
"आदू कु स्वाद बल बांदर क्य जाण",
तुमि तै मुबारक या नया जमनै की
भौ- भौ अर् ढीकचिक- ढीकचिक,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
अंग्रेजी बैण्ड पर नाचदा रमपमबोल,
अर् दाना-स्याणू कु उड़ान्दा मखौल,
छोडियाली युऊन अब ढोल दमाऊ
और मुसिकबाजु त कैन बजाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
आजकल का नौन्यालू कि इखारी रौड़,
बाबै की मोणी मा फैशन की दौड़,
यी क्य जाणा कन होन्दु मुण्ड मा टोपली
अर् कन्धा मुंद छातू लिजाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
पढोंण का खातिर यूँ तै भेजि स्कूल,
अददा बट्टा बिटिकी ये ह्वाय्ग्या गुल,
घुमया-फिरया यी कौथिक दिनभर
दगडा मा लिकी क्वि गैला-दगडीयाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
मुसेडै की डॉरौकु और पैसे कि तैस,
चुल्लू उजड़ीगे और ऐगिनी गैस,
यूँन नि जाणि कन होंदी बांज कि लाखडि
अर् व्यान्सरी मु फूक्मारिक चुलामुन्द गोंसू जगाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
काटण छोडिक लाखडु अर् घास,
खेलण लग्यां छन तम्बोला तास,
घर मु गौडी भैंसी लैंदी ही चएंदी सदानी,
बांजी भैंसी गौडी कख फरकाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
पेण कु चैन्दि यु अंग्रेजी रोज,
बै-बुबगी कमाई मा यी करना मौज,
जब कभी नि मिलदी यु तै अग्रेजी त्
देशी ठर्रा न ही यूँन काम चलाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
खाणौ मा बर्गर, पीजा, चौमिन, दोशा,
नि मिली कभी त बै-बुबौऊ तै कोशा,
हेरी नि सकदा यु कोदा झंगोरू तै,
कफली अर् फाणु त यून कख बीटी खाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
बदन पर युंका लत्ती न कपडि और,
वासिंग मशीन भी यी लैग्या घौर,
इनी राला घुमणा नांगा पत्डागा त
आख़िर मा ठनडन पोट्गी भकाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
फैशन मुंद युंका इनु पड़ी विजोक,
कमर युंका इन जन क्वि सुकीं जोंक,
डाईटिंग कु युन्गु इन रालू मिजाज
त डाक्टर मु जल्दी यूं पड़लू लिजाण
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
भिन्डी क्य बोलू आप दगडी यांमा मैं,
आप भी पढ़यालिख्या और समझदार छै,
नी सुधर्ला त कैन मेरु क्या बिगाडंन
बूडेनदी दा तुमन भी आपरी खोपडी खुजाण,
भै ! मिन त गीत पुराणु ही गाण !
गोदियाल
(http://www.ghughuti.com)
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
गढ़वाली कविता : बिरलु
बिलोका की मीटिंग मा
व्हेय ग्या बिद्रोल
प्रमुख छाई कन्नू फिफराट
चली ग्या कैरिक घपरोल
चांदु ठेक्क्दार और पांचू प्रधान
कन्ना छाई ऐडाट
क्या व्हालू हमर ठेक्कौं कु अब
कन्न फुट कपाल
चतरू बुड्या हैसणु राई
थामिकी चिलम
बिरलु जी रुसालु
आखिर कज्जी तलक
फ्यारलू मुख दुधा की डिग्ची देखि
द्याखा धौं आखिर कज्जी तलक ?
रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
"मनखि-मनखि मा मनख्यात ख्वज्यौणू छौं"
धनेश कोठारी
दो गढ़वाली कविताएं.
1. हिकमत न छोड़
थौक बिसौण कू चा उंदारि उंद दौड़
उकाळ उकळं कि तब्बि हिकमत न छोड़
तिन जाणै जा कखि उंड-फंडु चलि जा पण,
हौर्यों तैं त् अफ्वू दगड़ न ल्हसोड़
औण-जाण त् रीत बि जीवन बि च
औंदारौं कू बाटू जांदरौं कि तर्फ न मोड़
रोज गौळी ह्यूं अर रोज बौगी पाणि
कुछ यूं कू जमण-थमण कू जंक-जोड़
हैंका ग्वेर ह्वेक तेरु क्य फैदू ह्वे सकद
साला! वे भकलौंदारा थैं छक्वैकि भंजोड़ ॥
2. घौर औणू छौं
उत्तराखण्ड जग्वाळ रै मैं घौर औणू छौं
परदेस मा अबारि बि मि त्वे समळौणू छौं
दनकी कि ऐगे छौ मि त सुबेर ल्हेक
आसरा खुणि रातभर मि डबड्यौणूं छौं
र्वे बि होलू कब्बि ब्वैळ् मि बुथ्याई
तब खुचलि फरैं कि एक निंद कू खुदेणू छौं
छमोटों बटि खत्ये जांद छौ कत्ति दां उलार
मनखि-मनखि मा मनख्यात ख्वज्यौणू छौं
बीसी खार मा कोठार लकदक होंदन्
बारा बन्नि टरक्वैस् मा आमदनी पूर्योणू छौं
-धनेश कोठारी, युवा कवि
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Chandra Shekhar Kargeti
पलैन्कं की पीड़ (पलायन की व्यथा)
द्वि डबल कमाणक् लिजी,गों छूटी गो पहाड़ छूटी,
कन भल स्कुल जछीं, दद्दा भूली दगड़ी ओंछी,
हीसालू किलिमोडी सबैं ल्योंछी,बेडू तिमिल दगड़े खोंछीं,
सबैं बाग बाकैरी खेलछीं,दिन धोपरी उधम मचों छीं ,
द्वि डबल कमाणक् लिजी, गों छूटी गो पहाड़ छूटी........
अमां म्येरी कंथ लगोंछी ,बुबू म्यर नतिया बुलोंछीं,
बुड़ बुड़याँ क् पालणु सैत्यनु,दिद्दी भूली दगडिया छूटी,
छूटी बाखई पाणी नौला, गोरू भैंसा ग्वल बण कु जाणो,
कन् भल समें कटी यो, खेत जंगल यो हवा पाणी छुटी,
द्वि डबल कमाणक् लिजी,गों छूटी गो पहाड़ छूटी.........
ज्वान ह्वीक् विदेशी मुलुक् आयो,लुकुड़ बदली,बदली झांकेरी ,
गिटपिट बुलानुं अंग्रेजी अब मैं पहाड़ी की अब को ल्यूं खबर,
ठाट बाट खूब छन म्यर अब डबल है गेई भौत सकरी ,
गाड़ी मजी सर्रsss जानूं अब पर गेट पार चा अर्दली म्यर,
क्वी कमी न सबैं सुख छन् म्यर भकार,नी करनु अब उधारी ,
याद कर्नुं नान्छिंटा दिनां क् मैं जब, तब खुलनी पीड़क् द्वार,
द्वि डबल कमाणक् लिजी गों छूटी पहाड़ छूटी.........
ठुल ईजू म्येरी हर्याव लगें छी,जी रे जाग रयें आशार्वाद दीछिं,
एकक् पांच पाँचेक् पचास ह्यजवा, म्यर पोथीली सेर है जये,
अब नानतिन त एकैं चै बगत नहैती म्यर पास,
डबलूँक़ है रे रेलमपेल डबल चैनी पाँचेंक् पचास,
त्यर म्यर नी जाण छी में,छल प्रपंच नजीक रय,
सबैं म्यरा सबैं त्यरा क्वेक़ न छीं अलग द्वार ,
द्वि डबल बचाणक् लिजी, अब हैगैई चार द्वार,
मन बदली गो मनखी बदली गैई,अब एगो भ्रष्टाचार,
द्वि डबल कमाणक् लिजी,गों छूटी गो पहाड़ छूटी.......
कां गो छ म्यर हरिया, कां गो भुवनी,
कां गेयी म्येरी लछिमा, कां गेयी भागुली,
ध्याव छूटी गो छूटी गई इजा बबा म्यर,
क्ये करूँ निर्भागी मैं...........
द्वि डबल कमाणक् लिजी,गों छूटी गो पहाड़ छूटी.
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
नीता कुकरेती
उŸाराखण्ड की धै
ये कुलैं का डाˇा, ये बांजा डाला,
ये बरांसा डाला
धै लगौणा छन,
एक ∫वे जावा, अगनै आवा
एक प्रश्न बणीगे उŸाराखण्ड,
यू उŸाराखण्ड कू सवाल नी च
तुम्हारी अस्मिता कू सवाल च
क्या तुम पर्वतवासी जर्जर छां
या तुम्हारी जड़ कमजोर छन
यांकी आजमाइस कू वक्त च
ये वक्त तुमन दिखै देण
कि तुम रयां छा बा°जों का डाˇों बीच
खईं च कुलै की ठंडी हवा
पल्या° छा कठोर चट्टानों मां
त चट्टान बणीक अपणी पहचाण दिखावा
आवा, आवा उŸाराखण्ड बणावा।।
नीता कुकरेती
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