अबै दारु का नशाम त लमंड ले
रचना ----भगवान सिंह जयाड़ा
झूम ले , झूम ले , अबै दारु नशाम त झूम ले
लमंड ले , लमंड ले , दारुक नशाम त लमंड ले
कन फुके पहाड़ी समाज माँ या दारू ,
कनी छ हैंशदी मवास्यों कु या खारू ,
यख ब्यो बरात होंन या जन्म दिन ,
अब त यनु उलटू रिवाज देखि मिन ,
बिना ईका कार्योँ मा मजा नि रैगी ,
यन बात यख सबुका मन मा समैगी
, शराब छ त सभी लोग वाह वाह करदा
, नित सभी वीं मवासी का नौउ धरदा,
जैन जादा पिलाई वेकि वाह क्या बात ,
सभी देण्या छन यख यन लोगु कु साथ ,
खाणु पाणी कथगा भी जू खूब करदा ,
शराब नि छ ता लोग ऊं का नौऊ धरदा ,
मन्न जन्मण मा अब कुछ फर्क नि रैगी ,
या निर्भागी दारू अब सब जगा समैगी ,
अगर यनि यीं दारू कु बोल बालू रालू ,
दिन दूर नि ,जब दारु मा सब समै जालू ,
तब पछतैक कुछ हमारा हाथ नि औण,
अपरी गलती कु सबून यख बाद मा रोण ,
कन फुके पहाड़ी समाज मा या दारू ,
कनी छ हैंशदी मवास्यों कु या खारू ,
Copyright @ भगवान सिंह जयाड़ा दिनांक >१२ /०४ /२०१३