Basant
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By : Dr Nand Kishore Daudiyal 'Arun'
बनΣम बागम ताल-तड़ागम घाटुम बाटुम आयु बसंत।
गा°व गल़ी अर धूपम-कूपम् रूप अनूपम् छायु बसंत।।
पात-प्रभातम् फूलम् कूलम् धूˇम नै रस लायु बसंत।
आयु कन्, अर छायु कनू, रस लायु कनु, मन भायु बसंत।।
मौˇिगि डाˇि खिली गिन फूल, ह°सी गिन भौंरि सुहांदु बसंत।
लायु नयू उत्साह उमंग, बनि बनि रंगुम आ°दु बसंत।।
कौथिग-ढोल-दमा≈° बजीं, थकुली-चखुली संग गांदु बसंत।
आयि गै, छायि गै, गायि गै, गीत सि पोतˇि़ सू फफरांदु बसंत।।
आयु नयु त्यौहार सुहाणु सि फूल कि कंडि तैं हाथ मा लैकि।
गा°दु च गीत अनौखु बसंत कई रस भूड़ि- पकोड़ि सि खैकि।।
फूल भला संग्राद भली, अर होरिक रंग मुख लपटैकी।।
नाचदु आयि गै रूप बसंत स्वरूप सुहाणुसि जी भरमैकी।।
होरि च होरि च रंग बिरंगि रे आज सभी मिलि ख्यालदि होरी,
गीत लगावदि ढोल-बजावदि, लालि सुणावादि गा°वकि छोरी।
रंग बिरंगी स्वाणि गल्वड़ी कनि पैलि छइ आह, रूप किशोरी।।
भीगि गै अंग, रंगी नया रंग, बसंत क संग म गा°व कि गोरी।।
आयु बसंत खिली गिनि डाˇि, कखी हरियाˇि भी गीत लगांदा।
फूलिगीं साकिनि और बुरांस कि डाˇी कनि यख जी उमगांदा।।
मेˇु फुलिं झकझौर बणि अर पैंΠया सि लैΠया भि झूमि की आंदा।
आह, कनि बिगरैलि बसंति कु गीत धरू-धरू चाखुलि गांदा।।
∂योंˇि क फूल त कंुजु फूल्यां, जख पिंगˇि पोतˇि भी फफरांदा।
भौंर्यूं क गीत कन उमरैल छीं याखुलि मानखी खुद लगांदा।।
आमु कि डाल्यू° मा कोयल गांद ता काफूकि बौलिम जी रर्क्यांदा।
आहा कनि बिगरैलि बसंति कु गीत धरू-धरू चाखुलि गांदा।।