Anil Karki
April 29 at 11:54am ·
गुरुवर शैलेश मटियानी की एक कहानी है..प्रेतमुक्ति, सुयाल नदी के किनारे की, जिसमें किशनराम और केवलानन्द पंडित की कथा है ....संभव हो आपने पढ़ी हो. यदि हाँ तो, बस उसी कथा की उत्तरकथा है 'दिलबर गुरु' (इस दुसाहस के लिए क्षमा)
दिलबर गुरु
दिलबर राम अम्बादत्त का पुस्तैनी नौकर था, जिसका दादा किशन राम अम्बादत्त के दादा केवलानंद जोशी का हल जोतते हुए मर गया. केवलानन्द ने किशन राम को अन्त तक यह कहते हुए हल जोतने के काम में लगाये रखा था कि वह मरते वक्त किशन राम का हाथ गाय के पूँछ में देकर बैतरणी तार देगा, परन्तु ऐसा न हुआ, जैसे ही किशन राम ने प्राण त्यागे, केवलानन्द ने दो लोगों को भेजकर किशन के बेटे धनराम को उसके मालाकोट से बुला लिया और उसे दो नाली जमीन देकर फिर से हल जोतने के काम में लगा दिया। धनराम भी अम्बादत्त के बाप दादाओं का हल जोतते हुए एक दिन मर गया और अब मरने की बारी थी दिलबर राम की। भीतर की बात यह है कि दिलबर केवल जात से ही हरिजन है पर नैन नक्स में वह अम्बादत्त का छोटा भाई लगता है, लम्बा, रौबिला चेहरा और साफ़ सुथरा भी। कम बोलता था और चुपचाप रहता था। बस चिलैली तो खसियों को ही लगी रहती हैं, सामने से गुजरा नहीं कि उसे चिड़ाने के लिये कहने लगते ’’दिलबर गुरु राम राम!’’ एक बार ठाकुर लछम सिंह ने ही जबरन बिठा के दिलबर से कहा था, कब तक करेगा रे तुम्हारा खानदान इस बामण की सेवा चाकरी? तेरा बूबू किशनुआ भौत मायादार आदमी था। तेरी आमा चनुली तेरे बाप को पेट में ले माईके चली गई और फिर कभी लौटी ही नहीं। इस केवलानन्द ने तेरे बूबू को यह झूठ बोल दिया कि तेरी आमा दूसरे घर चली चली गई । बेचरा किशनवा, जीवन भर तेरी आमा के लिये तरसता रहा। हल जोतते-जोतते बीच. में ही बैल रोककर पूछने लगता था कि ’’गुरू मेरे प्रेत को मुक्ती कैसे मिलेगी? केवलानन्द कहता अरे मैं तेरा तर्पण कर दूगाँ तू चिन्ता न कर मुक्ति हो जाएगी । जिस दिन तेरा बूबू मरा, इन्होंने उसे छूवा तक नहीं, दो दिन तक उसकी लाश गाँव के लोगों ने पोरिया के रखी थी, जब तेरा बाप आया तब जा के बेचारे को अग्नि मिली।’’ दिलबर चुपचाप सुनता रहा और फिर लम्बी सांस लेकर बोला ’’छोड़ो हो लछम दा, पुरानी बातों से क्या करना, अपना दिल साफ होना चहिए बस’’ तो लछम सिंह ने टोक दिया ’’ठीक है मान लिया भुला पुरानी बातों से कुछ नहीं लेना, पर यार तेरी इतनी उम्र हो गई ब्याह कर ले, एक वारिस और मिल जायेगा तो बामण के परिवार को हल जोतने लिये.’’ बात बुरी तरह चुभ गई दिलबर को, मन हुआ कि एक झापड़ लगा ही दे, पर लिहाज आ गया । बस इतना ही बोल पाया ’’लछम दा अब आईन्दा मुझसे इस तरह की बात न करना।’’ लछम सिंह ने मजे ले लिये ’’क्यों रे भुला। कहीं पण्डिताईन पर दिल ता नहीं आ गया तेरा।’’ इस बार दिलबर उठ के चल दिया और लछम सिंह के ठहाके उसका पीछा करने लगे।