Author Topic: Poems on Pahad By Geetesh Negi Ji -गीतेश नेगी जी की कविताये  (Read 18315 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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नेगी जी बहुत ही मनमोहक कवितायें लिखी है आपने,आपका बहुत बहुत धन्यवाद

geetesh singh negi

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कक्ख जाण: पहाड़ भोत याद आन्द

कक्ख छौ जाणा ?
और कक्ख तुमुल जाण ?
स्वाचा जरा कैरा ध्याणं
कक्ख  छौ तुम ?
और भोल कक्ख तुमुल जाण ?

बिरिडियूँ च समाज
छलेणु चा पहाड़
ब्हेर भट़ेय भी
और भितिर भट़ेय भी
सिर्फ और सिर्फ कचोरेंणु च पहाड़

रंगमत हुयाँ छी सब , बुंना छिन्न
"आल  इज  वेल  "
"आल  इज  वेल  "
पर  बतावा इनं बोलीक
आखिर कब तक हमुल अप्थेय बुथ्याँण ?

जल भी छुटटू ,
जंगल भी छुटटू,
भोल प्रभात कुडी -पुंगडि  भी जाण
फिर बतावा कक्ख हमुल उत्तराखंड ?
और कक्ख तुमुल  " म्यारु पहाड़  " बणाण ?

क्या छाई  मकसद ?
और क्या तुमुल पाई ?
किल्लेय छो छल्यां सी तुम
देखणा खोल्येकी  चुपचाप
तमशू म्यारु  ?

सुनसान व्हेय ग्यीं पहाड़
ख़ाली छीन गौं  का गौं
बता द्यावा साफ़ साफ़
अब क्या च तुम्हरा जी मा?
और क्या च अब तुम्हरी गओवं ?

रह सक्दो अगर मी बिगैर तुम
छोडिकी यु रौन्तेलु मुल्क
ता कुई बात नि चा
पर नि झुराणी फिर जिकुड़ी म्यारा बाना
और नि करणी छुयीं बत्ता मेरी कै मा

अपड़ा भुल्याँ बिसरयाँ ,बाला दिनों की
ग्वाई  लग्याँ चौक डंडाली की
गाड गदिनियों  की
कुडी पूंगडियों  की
धारा पन्देरौं की

राखी सक्दो अगर याद अप्नाप थेय
बिसरी की मीथेय ?
ता कुई बात नि चा
पर भोल ना बोल्याँ  की सच्ची  यार  "गीत "
कक्ख जाण ,   पहाड़ भोत याद आन्द
कक्ख जाण ,   पहाड़ भोत याद आन्द
कक्ख जाण ,   पहाड़ भोत याद आन्द


रचनाकार :        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से,४-११-२०१०)
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                    पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत :             म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा  पूर्व - प्रकाशित (सर्वाधिकार सुरक्षित )
                    (http://geeteshnegi.blogspot.com/)


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अति सुंदर गीतेश जी.. पाठको को काफी पसंद आ रही है आपकी कविताएं! जारी रखियेगा!
जय भारत .. जय उत्तराखंड.

geetesh singh negi

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कै थेय क्या मिल ?


जू भी मिल उन्थेय ,सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा ,
की त्वे थेय ख्वे कै ही  त मिल ,
जब भी हैंस्दी, वू खित खित ही हैंस्दी अब ,
ख़ुशी या उन्थेय ,त्वे थेय रूव्ये-रूव्येक ही त मिल ,

जू भी मिल उखुंण व्हि भोत छाई ,
वा बात अलग चा ,
की उंल फिर भी त्वे से कम ही पाई ,
जू भी मिल उन्थेय ,सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै  ही त मिल ,

वू देखणा छीन ,सुपन्या बड़ा बड़ा बल अज्ज्काल ,
वा बात अलग चा ,
दिन वूं थेय यु , त्वे से मुख -फेरीक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे  थेय ख्वे कै ही त मिल ,

उक्काल काटी कै, दौड़णा छीन सरपट वू  आज ,
क्या व्हाई त़ा ,
दिन यु उन्थेय, तेरी छाती म़ा खुट्टू धैरिक ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से ही त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही त मिल ,

बस ग्यीं आज प्रदेशु म़ा जाकी ,कैरि यलीं  बल महल खड़ा ,
क्या व्हाई त़ा ,
बूणं भी उन्थेय यु ,अपड़ा घार- गौं थेय उजाडिक  ही त मिल ,
जू भी मिल उन्थेय , सब त्वे से त मिल ,
वा बात अलग चा , की त्वे थेय ख्वे कै ही   त मिल ,

" गीत " तू बोडिक अई घार चम्म भुल्ला,कैकी सिखा सैऱी नि करी
किल्लेय  की ख़ुशी  युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल   !
किल्लेय  की ख़ुशी  युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल   !
किल्लेय  की ख़ुशी  युन्थेय ,सदनी धार पोर जाके ही त मिल   !


रचनाकार :        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से,६ -११-२०१०)
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:    ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                     पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत :             म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा  पूर्व - प्रकाशित (सर्वाधिकार सुरक्षित )
                    (http://geeteshnegi.blogspot.com/)[

Vinod Jethuri

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Bahut sundar kavitaye Negi ji.. Bas yohi likhte rahiye..subhkamnaye.. "jai uttarakhand"

geetesh singh negi

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लल्लू पधान
उत्तराखंड कक्षा १० का एक प्रश्न-पत्र मा
मची ग्या बल घनघोर घमसाण
प्रश्न छाई आसान पर बच्चा छाई नादान
जवाब देखि की मास्टर जी खुण व्हे ग्या मुंडरु
हे ब्वे ,हे बुबा अब मी क्या जी करू ?

ये  गौं खुण उन् त क्या छाई  सड़क और क्या रेल ?
विगास का इतिहाश म़ा यु गौं हुन्णु छाई साखियुं भटेय फेल
खबर ,नेता और मेहमान सबही  रैन्दा छाई सदनी गौं से दूर
सैद इंह वजह से यु गौं छाई पहाड़ मा कुछ कम मशहूर
पर आज गौं कु नाम रोशन कै ग्या प्रधान जी कु नौनु लल्लू
सरया गाड फेल व्हे ग्या ,पास व्हाई सिर्फ भुल्ला लल्लू - २

उन् त प्रश्न पत्र मा, प्रश्न छाई अनेक
पर लल्लू थे पास करा ग्या उत्तर वेकु सिर्फ एक
प्रश्न छाई :अपना परिचय दीजिये ?
और लल्लू कु जवाब  छाई
लल्लू राम ,पुत्र श्री उछेदी राम (ग्राम प्रधान )
ग्राम - लापता ,पोस्ट -खाली
जिल्ला- बदर ,वाया -पैदल मार्ग
राज्य - उतंणदंड  पिन -000000

पर ये  सवाल मा फस ग्याई  बडू पेच, कन्नू तब एक
सरया स्कूल कु जवाब भी त आखिर छाई केवल एक
सामूहिक नक़ल का मामला मा ,व्हे ग्यीं सब फेल
पास व्हाई  बस लल्लू पधान,पर बिगड़ी ग्या वेकु भी खेल

मच गया फिर हल्ला ,व्हे ग्या फिर शुरु जांच
मास्टर जी खुण व्हाई मुंडरु ,
लल्लू फर भी आ ग्या बल आंच
जांच मा खुल ग्याई बडू भेद
मूल्यांकन प्रणाली मा हुन्या छाई कुछ छेद
और लल्लू  का जवाब मा स्कूल थेय छाई खेद
एक सवाल छाई :अपने प्रदेश  क़ि राजधानी का नाम लिख्यें ?
लल्लू कु जवाब छाई :  " गैरसैंण "
उन् त सवाल और भी छाई और उंका जवाब भी छाई रोचक
पर लल्लू का दीर्घ -उतरीय प्रश्न जवाब
जांच का हिसाब से छाई बल आपतिजनक और सरकार अवरोधक
जांच हुंणा का बाद लल्लू भी व्हेय ग्या घोषित फेल
और सामूहिक नक़ल का आरोप मा भेजे ग्या वू ६ महीना क़ि जेल

गौं मा छाई मच्युं भारी शोक ,
पर लल्लू कु ददा थेय नि छाई कुई अफ़सोस
और वू बुना छाई
जुगराज रै म्यारा नाती लल्लू ,तुई छई  अब मेरी आश
नक़ल का आरोप मा भी तिल रक्खी पहाड़ क़ि लाज - २
 
काश पहाड़ कु हर नौनु ,लल्लू  बण जांदू
और परीक्षा मा ये सवाल कु जवाब
सिर्फ और सिर्फ   " गैरसैंण " लेखीक आन्दु
क्या पता से  यु दिन आज  " गैरसैंण " क्रांति कु इतिहास बण जांदू  ?
क्या पता से  यु दिन आज  " गैरसैंण " क्रांति कु इतिहास बण जांदू  ?
क्या पता से  यु दिन आज  " गैरसैंण " क्रांति कु इतिहास बण जांदू  ?



रचनाकार :        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,दिनांक १५ -१२-१०)
अस्थाई निवास:   मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत :            म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा  पूर्व - प्रकाशित (सर्वाधिकार सुरक्षित )
                   (http://geeteshnegi.blogspot.com)


geetesh singh negi

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गढ़वाली गीत :राक्खी कैरी जग्वाल माँ

यूँ  रौंस्ल्युं का बीच मी ,करुलू तेरु सिंगार माँ
तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी  जग्वाल  माँ
जू भूली गयें त्वे थेय हे  ब्वेये ,ल्यौन्लू उं बोट्टी अन्ज्वाल माँ
तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी  जग्वाल  माँ

हे डालियूँ-बोटियूँ ,हे फूल -पातियौं ,राख्यां तुम भी ख्याल हाँ
हे गाड-गदिनियौं ,धार पन्देरौं,सों सजाकी रख्यां मेरी रोलयुं हाँ
यूँ  रौंस्ल्युं का बीच मी ,करुलू तेरु सिंगार माँ
तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी  जग्वाल  माँ

हे बुरांश -फ्योली, हे गुईराल सुणा,  मुळ-मुळ हैन्सदा  रयाँ हाँ
हे घुघती, हे घडूड़ी तुम भी अय्याँ ,न्युतेर मेरा खिल्यांणं हाँ
यूँ  रौंस्ल्युं का बीच मी ,करुलू तेरु सिंगार माँ
तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी  जग्वाल  माँ

हे गौर बछड़ो,बल्द बखरौं,तौं भी लिखरुलु चराण हाँ
हे स्यार सगोडीओं,पुंगड़ा-कोदडौं , तौं औलू सेवा लगाणं  हाँ
यूँ  रौंस्ल्युं का बीच मी ,करुलू तेरु सिंगार माँ
तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी  जग्वाल  माँ

हे चौक- देहलि,तिब्बरी-ड़न्डियाली ,मी थेय ना बिसरयाँ कुजाणं हाँ
बौडिक औलू मी घार चम् ,दगडी छ्विं-बत्ता नय-पुरन्णी  ठुंगाणं हाँ
यूँ  रौंस्ल्युं का बीच मी ,करुलू तेरु सिंगार माँ
तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी  जग्वाल  माँ
तू आश ना छोड़ी मेरी ,राक्खी कैरी  जग्वाल  माँ



रचनाकार :        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,दिनांक २६-१०-१०)
अस्थाई निवास:   मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत :            म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा  पूर्व - प्रकाशित (सर्वाधिकार सुरक्षित )
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geetesh singh negi

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यकुलांस


दिल्ली मा
अज्काला कि सब्बि सुबिधाओं व्ला
एक सांस बुझण्या फ्लैट मा
एतवारा का  दिन
जक्ख  ब्वे सुबेर भट्टेय मोबाइल फ़र चिपकीं छाई
बुबा टीवी मा वर्ल्ड कप खेल्ण मा लग्युं छाई
और ६ बरसा कु एक छोट्टू नौनु वेडियो गेम मा मस्त हुयुं छाई
वक्ख ६२ बरसा की  एक बुडडि
छत्ता का एक कुण मा यखुली बैठीं
टक्क लगाकि असमान देख़न्णी
मनं ही मनं मा
झन्णी क्या सोच्णी छाई  ?
और झन्णी क्या खोज्णी छाई ?


रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित  )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड 

Source:         म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व  " पहाड़ी फोरम "  मा पूर्व-प्रकशित
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत ही सुंदर कविता छो भाई जी यो.

पहाड़ बटी पलायन क दुःख व्यक्त करदू छा!

यकुलांस


दिल्ली मा
अज्काला कि सब्बि सुबिधाओं व्ला
एक सांस बुझण्या फ्लैट मा
एतवारा का  दिन
जक्ख  ब्वे सुबेर भट्टेय मोबाइल फ़र चिपकीं छाई
बुबा टीवी मा वर्ल्ड कप खेल्ण मा लग्युं छाई
और ६ बरसा कु एक छोट्टू नौनु वेडियो गेम मा मस्त हुयुं छाई
वक्ख ६२ बरसा की  एक बुडडि
छत्ता का एक कुण मा यखुली बैठीं
टक्क लगाकि असमान देख़न्णी
मनं ही मनं मा
झन्णी क्या सोच्णी छाई  ?
और झन्णी क्या खोज्णी छाई ?


रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित  )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड 

Source:         म्यारा ब्लॉग " हिमालय की गोद से " व  " पहाड़ी फोरम "  मा पूर्व-प्रकशित
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geetesh singh negi

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"त्वे आण प्वाडलू"

रंगली बसंत का  रंग उडी  जाण से पहली 
फ्योंली  और  बुरांश  का  मुरझाण से पहली
रुमझुम  बरखा  का  रुम्झुमाण  से  पहली
त्वे  आण प्वाडलू

बस्गाल्य्या गद्नियुं का रौलियाँण से पहली
डालीयूँ मा चखुलियुं का च्खुलियाँण से पहली 
फूलों फर भोंरा - पोतलियूं का मंडराण से पहली
त्वे  आण प्वाडलू

उलैरय्या  होली का हुल्करा कक्खी  ख्वै जाण से पहली
दम्कद्दा भेलौं का बग्वाल  मा बुझ जाण  से पहली
हिन्सोला  ,किन्गोड़ा और डांडीयों मा काफुल प़क जाण से पहली
त्वे  आण प्वाडलू

छुंयाल  धारा- पंदेरोउन का बिस्गान से पहली
गीतांग ग्वेर्रऊ का गीत छलेएजाण से पहली
बांझी पुंगडीयों का डीश, खुदेड घ्गुगती का घुराण से पहली
त्वे  आण प्वाडलू

मालू , गुईराल , पयें और कुलैं बाटू  देखेंण लग्गयाँ
और धई  जन सी लगाण  लग्गयाँ त्वे
खुदेड आग  मा तेरी , उन्हका फुक्के जआण से पहली 
त्वे  आण प्वाडलू

आज चली जा कतागा भी दूर मी से किल्लेय  भी
मेरु  लाटा ! पर कभी मी से मुख   ना लुक्केय
पर जब भी त्वे मेरी  खुद लागली ,त्वे मेरी सौं
मुंड उठा की ,छाती ठोक्की की और हत्थ  जोड़ी की

त्वे  आण प्वाडलू
त्वे  आण प्वाडलू
त्वे  आण प्वाडलू 

 
रचनाकार:        गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
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