Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 334770 times)

Dinesh Bijalwan

  • Moderator
  • Sr. Member
  • *****
  • Posts: 305
  • Karma: +13/-0
साथियो  - कविताओ के लिए एक नया  कालम/थ्रेड आरम्भ कर रहा हु/ आप सभी सुधि जनो से आग्रह है कि कविता पोस्ट करे/ कविता स्वरचित हो तो अछ्छा होगा/ किसी अन्य की हो तो लेखक क नाम जरूर दे / श्रीगणेश मै अपनी  कविता क्लर्क से कर रहा हू :-

मै क्लर्क हू ,  सरकारी श्रस्टी का आधार स्तम्भ,
अनपढो के लिये पूर्ण ब्रह्म ,
अनादि काल से मेरा अस्तित्व है ,
यम राज के यहा भी ( चित्रगुप्त) मेरा प्रभुत्व है,
समय के साथ साथ मैने भी विकास किया है,
काय्स्थ , ्मुनिम  , लिपिक से  कलर्क तक का सफर तय किया है,
चम्चागिरी  धर्म है मेरा , ओवरटाइम कर्म है मेरा,
बगल मे फाइलो की ढेरी, सामने कम्प्यूटर की भेरी,
 
भारतीय परजातन्त्र तेरे लिए पुन्य प्रसाद हू मै ,
लार्ड मैकाले की आखरी याद हु मै
अर्थशास्त्री मुझसे खौफ  खाते है,
पन्च वर्शीय  योजनाओ की विफल्ता का मुझे प्रमुख कारण  ठ्हराते है.
 
सुबह देर से दफतर जाना, शाम को जल्दी घर आना,
आधा घन्टा चाय पीने मे तो घन्टा भर लगाना,
उस पर भी बोनस बोनस , डीए- डीए चिल्लाना
 
उन्हे कौन बताए मै सब कुछ कर सकता हु
क्लर्क से गवर्नर- जनरल बन सकता हू
बस की क्यू मे अडे अडे ,  विस्व राजनीति पर बहस कर सकता हू खडे खडे,
परमाणु कार्यकर्म , ड्ब्लूटीओ वार्ता,  भारतीय  हाकी - किर्केट,
कौन कैसे जीतता, कैसे हारता,
 
मै सब जानता हू , कैसे?  चलो बताता हू, एक क्लर्क के ज्न्म की कथा सुनाता हू,
 
जब एक भावी क्लर्क पैदा होता है, जग हसता है वो रोता है,
माता  लोरी देती है,  पिता तान सुनाएगे-
हम अपने लाड्ले को डाक्टर , इन्जिनियर, आए ए एस बनाएगे,
प्बलिक स्कूल की खोज होती है,
पर उनकी जेब रोती है
हारकर- झकमारकर , सन्तोस कर लेते है,
लाड्ले को म्युनिसिप्ळ्टी के स्कूल मे डालकर
दस्वी मे साठ प्रतिसत, १२वी मे ५० और बीए मे ४५  प्रतिसत प्राप्त कर ,
वह लाल नाम कमाता है,
पढा लिखा बेरोजगार कहलाता है,
ओर दे डालता है ,
अधिकारी वर्ग की सैकडो  प्रतियोगी  प्ररीक्छाए ,
और वह किसी को भी  लक्छ्म्ण रेखा की तरह पार नही कर पाता, और
टूटता है , वह बाद   हर इम्तिहान के,
बामियान बुद्ध जैसे हाथ तालिबान के,
और तब  वह सर्व ग्यानी होकर, अपना चार्म खोकर,
उतरता है स्टाफ सिलेक्स्न  कमीशन के समरान्ग्न मे,
और पहूचता है, सरकारी कार्यालयो  के प्रान्ग्न मे
 
रोज्गार पाते ही  दोपाये से चौपाया होता है,
फिर सन्त्तती होती है , फिर जेब रोती है-----
 
 
और एक बार फिर वही स्ब कुछ दोहराया जाता है,
ओर तब वक्त  की याज्सेना (द्रोप्दी) हस कर कह्ती है,
अन्धो के अन्धे और क्लर्को के क्लर्क
 
और चलता रह्ता है नियती चक्र - चलता रहता है नियती चक्र

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
Re: कविता
« Reply #1 on: August 05, 2008, 02:28:04 PM »
Great Dinesh ji +1 karma is kavita ke liye :)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
Re: कविता
« Reply #2 on: August 05, 2008, 02:48:09 PM »
दिनेश जी,
       बहुत अच्छा विषय प्रारम्भ किया है आपने, हमारे कई सदस्य कवि हृदय हैं, यह उनके लिये एक प्लेटफार्म का भी काम करेगा।

खीमसिंह रावत

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 801
  • Karma: +11/-0
Re: कविता
« Reply #3 on: August 05, 2008, 02:53:09 PM »
Dinesh ji bahut bahut badhiya kavita likhi hai/

ek kavita to likhi hai par vo kundli font me hai /kya kundly font me likhi kavita ko aapake es kalam me dal du/ kripaya bataye.

Dinesh Bijalwan

  • Moderator
  • Sr. Member
  • *****
  • Posts: 305
  • Karma: +13/-0
Re: कविता
« Reply #4 on: August 05, 2008, 03:35:19 PM »
धन्यवाद अनुभव जी, महर जी/

Rajen

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,345
  • Karma: +26/-0
Re: कविता
« Reply #5 on: August 05, 2008, 03:43:54 PM »
गुरु जी पहले १ कर्मा मेरी ओर से यह टोपिक स्टार्ट करने के लिए
१ और कर्मा ... (?) पोल खोलने के लिए. ;D  ;D  ;D  ;D

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
Re: कविता/Poem
« Reply #6 on: August 05, 2008, 03:54:41 PM »
पेश है श्री रतन सिंह किरमोलिया जी की कविता "लौटि आओ म्यार गौं

यौ कुड़िक ढुंग, माट्म गार, निरओ उ दिन
उदिन उणू है पैली, लोटि आओ म्यार गौं।
माठुमाठ कै बिलाणई गौं, मणि-मणि के हराणई मनखी,
बुसिण लारै मन्ख्योव सारी, ह्वैलाण लारै स्वैंण पनपी।
माठुमाट के सिराणी संस्कार, रीति-रिवाज हमार त्यार-बार,
क्यार बाई तलिमलि सारैं-सार, माठुमाट के पुरखों की मिटनै अन्वार।
गोठ पान धौ धिनाई नाज पाणि, सुकनै ऊनौ छ्याव, चुपटान, नौवोक पाणी,
हमरि पितरुं कि आपणि हौत छी जो, आ दुरांकि हौत करि यौ हरै सरग चाणि।
लेखी-जोखी खोई म्वाव, इकद्रि ह्ण छी ठुलि कुडिक,
जैस दारपदार बणी हं छी, घाव दयार और तुणीक।
मणि-मणि कै मेटिणै नौ निसाणि,
फुफाणौ अर्याटे-कर्याटे सिसौंण क भूड़,
मौनाक जावांक मौ धौ देखिण ह गो,
मौनाक जावां अडारौंल लगै हाली पूड़।
के म्यार पुरखोंक गौंकियस्से छी पछ याण,
दूद जुन्यावैकि पुज लागछी थान बार,
पितरौंक बताए बाट जांछी सब्बै,
किलै भुलि गेई आपण पर्याय अच्यानचार।
भौव हैं गौंक इतिहास पढ़्न है पैल्ली, गौंक बाट मेटिण हैं पैल्ली,
पुरखोंक पुस्तनाम द्येखण हैं पैल्ली, उ खन्यार कुणौ मि आजी ज्यों नै छों।
यौ कुडि़क ढुंग, माट, गार, नि र ओ उ दिन,
उ दिन ऊण हैं पैल्ली, लौटि आओ म्यार गौं,
लोटी आओ, म्यार गौं....................।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
Re: कविता
« Reply #7 on: August 05, 2008, 04:05:46 PM »
Good going Mahar ji aapse aur bahut saari prasidhh kavitaon ki ummid hai :)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
Re: कविता
« Reply #8 on: August 05, 2008, 04:09:46 PM »
पेश है श्री घनश्याम सैलानी जी की कविता "गढ़वाल लो गौरव कख गै"

हरचि कख गढ़वाल कू वो कोदू कण्डाली,
गोल गफा बंण्या रन्दा था जैन गढ़वाली।
मोल था बमोर पक्यां,
डाला था झकाझोर झुंक्यां,
कना दिन था तबारि,
कुछ न थै दुख बिमारी,
काफल किन्गोड़ खाई लौण रालि-रालि। हरचि..............
साग छौ चलू बडयालू,
दगड़ा मा लेंगडू कुथैल्डू,
कोदा झंगोरा की सारि,
छानि मुंग भैंसी लैरी,
छांसि का परोठा खाया झंगोरा मा रालि। हरचि................
पाण्डव जब यख आया,
तौन भी यख कोदू खाये,
रिमोला लोदी न खाये,
घांगु रमोला न खाई,
कोदा का परताप यख भड़ रै गढ़वाली। हरचि..................
मलेथा का माधो सिंह-
भण्डारी न कोदू खाये,
कफू चौहान न खायी,
राजा क सिर नि झुकाई,
कोदा कू स्वाभिमान देखा चन्द्र सिंग गढ़वाली। हरचि.........
खाणि ज्यूणि जो पुराणि,
हरचिगे सी सभी धाणी,
यो कनू विकास ह्वैगी,
घी का जगा डाल्डा ऎगी,
छांसि छोडि़ टिचरी पेणा भौं कै देणा गालि। हरचि...............
सड़कि फुण्डा कुड़ा बण्यां,
भौं कखि मुंग कितला चड़यां,
गौं छोडिले वो पराणु,
सडकि मा पड़्यूण उताणों,
सड़कि फुण्डा चाय पेण औन्दा रतिकाली। हरचि..............
अब काम धन्धा कुछ नि कन,
खाणु पिणु होण कखन,
नांगु मुण्ड चिफल घीचू,
समझणा छन हवैगि किछ,
पर कुछ भी निहवै चिफला ढुंगू मती को ये फाली। हरचि...........


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Re: कविता
« Reply #9 on: August 05, 2008, 04:15:47 PM »
 

सासु ब्वारी खीचा तानी पर पूरन चंद कांडपाल जी की यह कविता ..

           रू धुनु दुनिया भागी - रू धुनु दुनिया भागी
      सासु ब्वारी की नोंक झौक जब बटी दुनिया

सासु :  पानी क घराट ब्वारी, पानी क घराट ब्वारी
       उठी जा ब्वारी, गोठ पड़ी पड़ीगयो भैस क औराट

ब्वारी :  झुलिया चिचन हो सासु - झुलिया चिचन हो सासु
       अलबैर मे दिल्ली जान रयो, तुमि रिया निशचन


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22