दादी मैन तू सदानी तन्नी देखी,
चौडी भ्रकुटी पर चिन्ता का रेखडा,
मेरा कन ह्वाला, कन राला,
आन्खी खत्णी हमेसा स्वाति बुन्द,
बाटू हेरणी अपणो की राजि खुसी वापसी को,
पर पन्खर ल्ग्ण का बाद क्बी पन्छी घोल पर टिकेन,
जन रुडियो म जान्दान हन्स कैलास,
अर वापसी की बात पड जान्दी ढौढ.
दादी कत्गा हि दा त्वैन खैची छो मै चेनखो सी,
जब खुन्टी उद उल्टू लट्की जब मै गण्दो छौ उल्टा गैणा,
फिर वो बग्त भी आये जब तू हिट्ण ल्गे मी लाठो बणैक.
मूल से सूद प्यारो होन्द तभि पेन्द छै बाबाजी से पैले हमारी भुक्कि,
दादी, तू कभि छोटी नौनि रै होली, भुली नि मान्दी,
पर तू रै होली,
तभी त ह्वै जान्दी छै छोटी नौनि, सुणिक नातियो का ब्यो की छुई या फिर लै क नयी धोती,
दादी घर का लोग बुल्दा छा कि वो भिन्डी जाण्दान,
क्या त्वै से बे जादा,
बाबाजी अर काकाऔन त बाच हि त्वै म्न पाये,
मा अर काकी, ऐ थै - छोरी तेरा अग्वाडी,
पर तू जाण्दी थै आखरी सच, तबी त बोदी छै,
कि मेरू देलू मै कोरी कान्ध,
पर त्वैन बार नि लाए जान्द,
दादी मेरी कोरी रैगी थै कान्ध
दिनेश बिज्लवाण
१९९३