मन्ख्यात च खतरा मा
असलियत बताती , झुलसाती गढवाली कविता
Humanity in danger
A Garhwali poem
कवि: रमाकांत ध्यानी
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कखि?
यंत्र,
कखि?
मंत्र,
कखि?
तंत्र,
खतरा म।
कखि?
धर्म,
कखि?
कर्म,
कखि?
राष्ट्र,
खतरा म।
कखि?
जात,
कखि?
गोत्र,
कखि?
भ्यात,
खतरा म।
इन ब्वना छन,
सब्या बुद्धिजीवी.....
मि मूढ़ मनखी,
इदगा!
स्वचणु छौं....
य त,
मि खतरा म,
य!
मेरी मन्ख्यात खतरा म।।
*©*रमाकान्त ध्यानी"आरके"*
*ग्राम-गोम,नैनीडांडा।*