Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 286351 times)

हेम पन्त

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संगठित होकर एक समतामूलक समाज की रचना के लिये संघर्ष करने को प्रोत्साहित करती हुई चीमा जी की यह पंक्तियां सांसों में एक नया जोश भरती हैं.

सब दुखों को लील ले जो, वो दवा पैदा करें
एक सा बांटे जो सबको, वो खुदा पैदा करें

तख्त पर भी बैठ कर जो सर्वहारा ही रहे
कोख से संघर्ष की, वो रहनुमा पैदा करे

एकता हथियार हो, और मन में हो सच्ची लगन
मंजिलों तक जाये जो, वो रास्ता पैदा करें

अब भी लू में जल रहे हैं, जिस्म अपने साथियो
आइये मिल जुल के कुछ, ठंडी हवा पैदा करें

हेम पन्त

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इस मौकापरस्त दुनिया में अपने ही सबसे गहरा जख्म दे जाते हैं. चीमा जी की इन पंक्तियों में जीवन की कङवी सचाई है.

मुझको दुआ वो दे गये, कुछ इस अदा के साथ
उनका हो उठना बैठना, जैसे खुदा के साथ

जिसके लिये भी मैं बना, जलता हुआ चराग
वो आदमी ही जा मिला, जालिम हवा के साथ

सारा जहाँ आज खेमों में बंट गया
कोई दवा के साथ है, कोई हवा के साथ

उस आदमी को हमने, हकीमों में गिन लिया
जो जहर दे रहा था, दर्द- ए-दवा के साथ

बल्ली अधूरे मन से ही, करता रहा वफा
वो बेवफाई कर गया, पूरी वफा के साथ

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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bahut khoob hem Ji. I have also gone through his poems and found them very impressive.

बल्ली सिंह चीमा जी एक क्रान्तिकारी कवि के रूप में पूरे भारत में एक जाना पहचाना नाम हैं. वह ऊधमसिंह नगर के बाजपुर कस्बे में रहते हैं. उन्होनें आमजन के सरोकारों से जुङे मुद्दों और अपने अधिकारों की रक्षा के लिये संगठित होकर संघर्ष करने के लिये जोश भरने वाली कई मशहूर कविताएं लिखी हैं. उनकी कुछ कविताएं आप लोगों के लिये प्रस्तुत हैं.


यह गीत उत्तराखण्ड आनदोलन के दौरान प्रमुख गीत बन कर उभरा. वर्तमान समय मे यह गीत भारत के लगभग सभी आन्दोलनों में मार्च गीत के रूप में व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाता है.

ले मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के,
अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के,

कह रही है झोपङी और पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे,  लोग मेरे गांव के,

बिन लङे कुछ भी नहीं मिलता यहां यह जानकर
अब लङाई लङ रह हैं , लोग मेरे गांव के,

कफन बांधे हैं सिरो पर, हाथ में तलवार है
ढूंढने निकले हैं दुश्मन, लोग मेरे गांव के,

एकता से बल मिला है झोपङी की सांस को
आंधियों से लङ रहे हैं, लोग मेरे गांव के,

हर रुकावट चीखती है, ठोकरों की मार से
बेङियां खनका रहे हैं, लोग मेरे गांव के,

दे रहे है देख लो अब वो सदा-ए -इंकलाब
हाथ में परचम लिये हैं, लोग मेरे गांव के,

देख बल्ली जो सुबह फीकी है दिखती आजकल
लाल रंग उसमें भरेंगे, लोग मेरे गांव के,

Meena Pandey

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COMMUNITY SONG Wrote by Meena Pandey
म्यार उत्तराखंड

दु बेनियो जस् छिं कुमो- गडवाल
इष्टो की भूमि छु घर- घर देवी थान
देश को उत्तरी भाग सुनछो हिमाल
म्यार उत्तराखंड म्यार उत्तराखंड!

धार माझी माठु- माठु जा संध्या झुली ऐ छो
घुर घुर उज्याव जा दांड- कांदु बे चा छो
वीकी सेवा लिजी यो हमर छो प्रयास
म्यार उत्तराखंड म्यार उत्तराखंड

मिल बेर भै-बेनियो गीत नई ग्युलो
आन्दोलन चिपको जा एक और ल्युलो
अपनी भूमि लिजी तो लगे दयोल जान
म्यार उत्तराखंड म्यार उत्तराखंड!

दातुले की धार होली हुडुकी को थापा
गरीबी बेकारी को न रोलो नाम
गो-गो खुशहाली क देखु तो स्वेणा
म्यार उत्तराखंड म्यार उत्तराखंड!

शिक्षा को झोड होलो विकास ऐ छ्पेली
सबन थे स्कूल होलो च्यल हो या चेली
मेहनतकश लोगो की हिम्मत बणुलो
म्यार उत्तराखंड म्यार उत्तराखंड!

उत्तरांचल राज बनो आजादी आई
नई आस मन मे अब नई छो यो लड़ाई
नशा मुक्त होल पहाड़ हमरो छो नारा
म्यार उत्तराखंड म्यार उत्तराखंड!

खेती बाडी फल फुलली हर भर जंगला
दोफरी को घाम मे जस् बुरासी को फुला
धन्य धन्य राज हमार धन्य संस्कृति हमारी
म्यार उत्तराखंड म्यार उत्तराखंड!

खीमसिंह रावत

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dinesh ji eska nam kyo badal diya sir ji
phale shayad KAVITA tha

Dinesh Bijalwan

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Sir, I have not changed  the name.  Perhaps Forum administrators have done  to make it  relevant in the context of  Uttrakhand.   

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के दौरान लिखी गयी नागेन्द्र जगूङी की एक कविता

दूध का जग्वाला बिराला बण्यां छन
तेरंडी का चोर, सरवाला बण्यां छन
जनता का राज मां, कानून सड्यूं छ
खोला जरा आंखां, अंदयारू पड्यू छ

बाघ यख बाखरों का रखवाला बण्यां छन
बांजा घट की रीख, भग्वाला बण्यां छन

जनता की लाश पर झण्डा गडीग्या
नेता का भाषण और बैनर तनीग्या
नेता मगरमच्छ, मनखी गाला बण्यां छन

पुलिस और पीएसी बटमारा बण्यां छन
मंत्री, मुख्यमंत्री हत्यारा बण्यां छन
घूस भ्रष्टाचार पर पारा चढ्या छन
पहाड का नौजवान अंगारा बण्यां छन

Dinesh Bijalwan

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अपनी कविता की चन्द लाइने - मेरे तथा मोहन बिस्ट के नाट्क कैकु ब्यो -कैकु ख्यो  मे भी इस्तेमाल हुई :-

आवा सरकार सरकार बणावा ,
झन्डा त छै छिन,
चन्दा उगै तै - द्वी चार गुन्डा बि दगडी रावा ,
आवा सरकार सरकार बणावा
क्च्ची देलो दारू माफिया , सौकार देलो ट्क्का
जु लडालो जात धर्म पर , वैका भोट पक्का
आवा सरकार सरकार बणावा
जिया रान मेरा झूटा लबारयो,
सौ खै खै नि सचैणो
आज चैदन भोट तूमू सणी,
भोल तूमुन नि देखेणो
आवा सरकार सरकार बणावा
कुर्सी तै सब स्वान्ग तुम्हारा , कुर्सी कि च दौड,
कभी मतक्दा तुम यखुली यखुली,
कभी करदा गठ्जोड
आवा सरकार सरकार बणावा 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के वर्तमान चुनावी माहौल खासतौर से सभापति के यह एक हास्य पंक्ति .. जो कभी गाने के रूप मे भी गया जाता था !

   चहा को रंग बिगायो चाहापति ले
  गो (गाव) का रंग बिगायो सभापति ले

खीमसिंह रावत

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fir uttarakhan ki hi kavita post kar sakate hai/
kavi ke bare me kaha gaya hai "jaha na pahuche ravi vaha pahuche kavi"

likhanewala to uttarakhandi hi hoga/

 

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