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उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!
Bhishma Kukreti:
डाला ब्वाटा जि हम लगान्दा..
कविइत्री – प्रेम लता सजवाण
डाला ब्वाटा जि हम लगान्दा..
ता किले इन मुक लुकान्दा ।
यु तढतुढु घाम की तिढ्वाक ला.
इन अफु थे किले तिढकान्दा ।।
अज्यू भि बगत रेन्दे बिजे जोला..
अपरा अपरा नौ की डाली लगोला ।
फूल पाती ता क्वी झप्न्यौला बुरांश..
डाली आम की,जु मा फलू की आस ।
बाटा बटोही खुणे,छैल ताजी सांस...
चखुला पन्छी खुणे दिन राति बास ।।
डाला ब्वाटु मा ही हमरु नाज पाणी.
यु के रैण से द्वी पैसों कि हुन्दी गाणी ।
माटु रोकदिन ये ,भ्याल नि रढकदा .
जख तख रूढ ना सूखा प्वढदा ।
यु की फौंकौ मा सौण का झूला ।
यु के परताप ला जलणा चुल्ला ।
आवा लगोला दग्डयो डाला ब्वाटा ।
अपरा प्राणी जाणी कि यूं थे नि काटा ।
Bhishma Kukreti:
ब्वे/मां
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मातृ दिवस पर विशेष गढवाली lok geet
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रचना : प्रेमलता सजवाण
कुण्डलिया छन्द
( 1 )
तू हि सृष्टि, सृजन भि तू ,कनक्वै करु बखान।
तेरि माटि से जन्मणा , त्वै से पाणा प्राण ।
त्वै से पाणा प्राण, फलदि फुलदि रैणि काया।
त्वैसे मंथा पैकि, त्वैसे बण हमरि काया।
ईश्वर ल अपरि जगम, ब्वै धरति म भेजि तू।
प्राणि जगत थै अपरि, कोखि मा पलदी ब्वै तू।
( 2 )
अपरो ल्यो कु दूध बणै, पिलै बणाणी गात।
तींदि गदेली जने स्यै ,सुख्यां म मेरि गात।
सुख्यां म मेरि गात ,अफ बिज्यीं रैन्द रात्यूं ।
हुंगरा सूणिकि ब्वै , ब्वगाणी अमरित छात्यूं।
ब्वै कि करंगुलि पकडि़, दुन्यां जहान भि बिसरो।
त्वै बिना आज भि ब्वै, ध्यान नि रखि सकदु अपरो।
( 3 )
ग्वाई लगै, था लीणू , सिखुणु मि हिटणु, दौड़णु।
भगदै हि रै ग्यो अब ब्वै ,कखिम था नि ले सकणु।
कखिम था नि ले सकणु,तेरि खुचलि याद आणी।
मुण्ड मलसि सिवालिणि , आँख्यु मा निन्द रुसाणी।
बडु शरैल त ह्वै ग्या , लोग भि बडु ब्वना छाई।
छ्वटु खुचिल्या ह्वैके, मि लगाण चान्दू ग्वाई।
( 4 )
फंची कुटरि बंधणि रै ,सेर पाथेक हैंसि ।
बगत कुबगतों धरणि ब्वै, धोति कि गेड़म पैंसि।
धोति कि गेड़म पैंसि, कि हथ नि पसरण प्वाड़लो।
लूण र्वटि खाणि सीखि, ज्यांल नाक बच्यु रालो ।
तेरि शिक्षा दीक्षा कि, दगड़ बंधि रैन्द फंची ।
आज कीसा खालि नि ,तेरि सीख बंधि फंची ।
( 5 )
महिमा तेरि कनकै गौ,आखर भि त्यारा छन
पैलु शब्द भी ब्वाल माँ ,वु सदनि याद रैगिन।
वु सदनि याद रैगिन, तिथै को जि बिसरि ह्वालो।
ब्वै खुट्टो चार धाम ,वृद्धाश्रम म यु कु ह्वालो ।
ब्वै ल पाल घिमसाण , वु मिलि पालि नि साका माँ ।
"प्रेम" जब ब्वै बणि ग्यो,त मिल जाण तेरि महिमा।
प्रेमलता सजवाण..।
Bhishma Kukreti:
इज्जत
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कविता: सुशील पुखरियाळ
सड़कि ढीस च्या कु होटल
बैठ्यां चार पाँच लोग
च्या पीणा तमखु खाणा
वार की प्वार लगाणा
तबरि एकन् कैरि सवाल
अजि! सच्चि ह्वे घपरोळ
परसि बरातिम् तुमर गौं
परधान जीन् दे जबाब
कख अजगाला जमन
घपरोळ्या-गुण्डा-बदमास
दारु पेकि करदन घपला
नथर झूट नि ब्वन भै!
खाण-पीणों सज अयूं छौ
तीन प्यटि त मि समणि टुटीं
अर कच्चि क्वी हिसाब नि छौ
तबरि एक दाना मनखिल्
बीड़ी सुलगै अर खज्जि कन्यै
सवाल कैरि परधान जी जनै
घुत्ता गलादार परमा मा
ब्वनू छौ फजल
जुत्यूळ बि ह्वे बल!
झट बोले परधान जीन्
खयां-पियां मा ह्वेइ जांद
पर झूट किलै ब्वन भै!
हमल त छकण्या प्याई
इज्जत बि खूब इ ह्वाई
-
सर्वाधिकार @सुशील पुखर्याळ…
गढवाली lok geet, गढ़वाली आधुनिक lok geet
Bhishma Kukreti:
---संतुलित आहार----
खान पान अर पोषण मा
यु ध्यान धन पुरु जी,
संतुलित ह्वो आहार हमारु
या बात भौत जरूरी जी।
(भोजन का अवयव छिन पांच)
तागत अर तुरंत ऊर्जा
कार्बोहाइड्रेट दैंदा,
मीठी चीजौ मा अन्न फसल मा
भरपूर कीटीऽ तै रैंदा।
आलू ग्यौं अर चौळ भात मा
कोदा झंगोरा जौं का साथ मा,
चीनी गुड या मीठी चीजों मा
कार्बोहाइड्रेट रळयू- मिल्यू च।
दाल चना, राजमा छेमी
अरहर तौर, गौत मसूर,
भट्ट रैंस अर काळीदाल
दै, पनीर, च्यूं- मशरूम,
शरीर रचौण-बणौंण मा
प्रोटीन मिलदू यौंमा भरपूर।
घर्या राडू, घ्यू बादाम
घर्या तिलों कु तेल आम,
वसा फैट चर्बी मा धर्दा,
शरीर मा तागत जमा करि रखदा।
हरी भुजि या मौसमी फल
आम अखौड़ किशमिश तरबूज,
संतरा नींबू नारंगी आड़ू,
विटामिन कु यौमा धारू।
रोग शरीर नजीक ना औ,
स्वस्थ हौंसिया मुखडी रौ,
विटामिन खांणौ मा ल्येंदि रा,
हर दिन फल सब्जी खांदि जा।
(खनिज लवण का काम अनेक)
रोग शक्ति तै बढ़ौण मा
खांणौ तै पचौंण मा
हड्डी मजबूत कन,
शुद्ध स्वस्थ तन-मन,
धर्ती प्यौट माटा मा रैक,
खनिज लवण का काम अनेक।
आयरन खूनै कमी से बचौंदु
लौखरै कढ़ैमा खांणौ बणौण,
हरी सब्जी कफलु- ढ़ेपलि
कोदै रोटी खांदी रौण।
खांणौ मा जु कैल्सियम ह्वो
शरीर मजबूत टकटकु रौ
दूध दै अंडा पनीर
हड्डी तै मजबूती द्यौ।
ल्वौण ह्वो आयोडीन वौलू
स्वस्थ ह्वो हर खांणो कौलू
घेंघा रोग कबि नि ह्वो
स्वस्थ हौंसिया शरीर रौ।
खांणो प्यौणौ यन समृद्ध हो
जै मा पोषक तत्व मिल्यू रौ
कुपोषण की जकड से
सैरि कुटुम्बदरि मुक्त ह्वो।
-----@अश्विनी गौड दानकोट रूद्रप्रयाग--
अध्यापक विज्ञान राउमावि पालाकुराली जखोली।
---'वैक्सीन'--
समझि जा दूं
बगत पर
वैक्सीन लगौण जरूरी ह्वैगी
सुद्दि यनै-तनै
आळी-जाळी
बातौं मा ना अलझा दूं ।
वैक्सीन लगै
मौत का मुख बटि
कै भग्यान
घौर बौड़िन
मजबूत इम्यून सिस्टम
दगडि
जीवनै रेस अगनै दौड़िन।
जरा यन भी सोचा दूं
ईं बिमारी मा यक-हैको
सारु बणीं रावा दूं ,
बिंडी भीड़ भाड़मा ना जावा दूं
ईं बात तै भलीऽ कैरी तै
अगल बगल संगता समझा दूं ।
कैका दुख बांटी कैकु सारू बण दूं
कैकि निरासीं मुखड़ि मा हैंसी ल्या दूं
कि आवा दूं,
अब एक-एक लपांग
साबधानी से रखला
ईं बिमारी तै दूर भगै
देस-दुन्यां मा
मनख्यात की हैंसी हैंसला
आवा दूं आवा दूं
हम सब कोसिस करला
यूं दिनों की खैरीऽ बिपदै गाड़
घर मु रैक मिलीक तरला।
---@कविता कैंतुरा चिरबटिया रुद्रप्रयाग
---सहजीवन---
च्यूं बरखदा चौमास मा
मजा ल्यौणू छो
बरखै बूंद दगड़ि
खेल ख्य्यनू छो
तबारि शैवाळु भीजि -भीजिक
रौणै जगा खुजौणू छो
यथै देखी , तथै देखी
उंद्यार देखी, उकाळ देखी
पर कखीऽ तैन जगा नि पै |
थकि-हारी सु बण मा,
खडु ह्वेगी
समणि अब वेतै
अजीब किस्मौ डाळू दिखैंणि
क्या च यु डाळू इन्ना किस्मौ?
शैवाळु सौचण लगी
मुंडमा वैका टोपलु छौ
गात वैकु गोरू छो
अर शरीळ भी
लम्बूऽ -चौडू छो |
शैवाळु भी डर्दा-डर्दी धै लगै
ऐ लंबा भैजी
ज़रा जगा दियाल,
शैवाळु वेतै पूछण लगिगी
च्यूंन खित-खित हैंसिक ब्वोलि,
देख भुला मैमु रोणै जगा त छैच
पर तेरी चार, हर्यू गात नी!
घाम औलु त त्वे जांण पडलू
मैं घाम मा खाणौ बणौण त औंदु नी !
शैवाळान बोलि भैजी किर्पा करा
भुला भैजी नातु कुछ इन निभौला
मि तुमतै खांणु द्यौलु
अगर तुम मितै रोणै जगा दी द्योला
च्यूं न भी खुश ह्वैक
शैवाळु तै जगा दीनि
घाम बरखा द्वि कट्ठा रौला
द्वियुंन यु फैसला करी दीनि |
- ---@रिंकी काला मयाली रूद्रप्रयाग
प्रवासी लोखूं का करीब एक रचना---- 'रतन राणा' पालाकुराली की रचना
डाळा लगा
बट्टा बणां
सुंदर सुंदर गीत लगा।
चला सबि मिलीतै
गौं कु विकास करा ।
कांडा काटी
डाळा लगौला
बेकार हवा पाणी
शुद्ध बणौला।
अच्छा अच्छा सौड़ बणोला
गौं तलक रोड़ पौछोला
बिजली पाणी बचा
गाड़ी छोड़ी पैदल जा।
खांणो चुळा वुन पका
रीति रिवाज अपणां
टूट्यां नळखा टौंटी लगौला
बगदा पाणी बचौला।
जब गौं मा सुख-सुविधा मा रोला
त क्वे भी गौं छोड़ी भैर किलै जोला?
-------------------रतन राणा कक्षा-7
राउमावि पालाकुराली जखोली रूद्रप्रयाग।।।
Bhishma Kukreti:
***** बक्की बात ********
गढवाली कविता / गढवाली लोक गीत: प्रेम लता सजवाण
******लावणी छन्द*******
फड़फडा़णि जिन्दगि किताब जन
आखरु दिल धकधक्याणा।
बक्की बात का पढ्दंरा छन
बस्ता भी जपकै जाणा।
निगुसैं सग्वडि़ सि लग्यां फूल
निखिल्यां हि चूंडी जाणा।
बक्की बात ख्वल्या गिच्चों ल
लालसो चाणा बुखाणा ।
गीजि ग्येंनि उज्यडा़ गोर जन
जै कै पुंगडि़ खै जाणा।
बक्की बात का कौथगेर छन
ज्यूरा दगड़ छ्वीं लगाणा।
हैंका कूढि़ फूकि हथ स्यकणा
रंगुडु भी बेची जाणा ।
सांसो की डोर वैका हाथ
यि बनि बनि पतंग उडा़णा ।
प्रेमलता सजवाण..
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