Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 337005 times)

पंकज सिंह महर

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पहाड़


वहाँ घरों में ताले नहीं होते
क्योंकि किवाड़ों में कुण्डे नहीं होते
वहाँ खटखटाना शब्द भी नहीं होता
क्योंकि लोग अपने पहुँचने से भी पहले
बतियाने लगते हैं देहरी में बैठकर
वहाँ चोरियाँ नहीं होतीं
क्योंकि वहाँ तिजोरियाँ नहीं होतीं

कभी-कभी रात में
किवाड़ों पर अवरोध डाल दिये जाते हैं
क्योंकि वहाँ बाघ होते हैं

मगर अब वहाँ कुण्डे और ताले बिकने लगे हैं
क्योंकि अब वहाँ शहरी दिखने लगे हैं


साभार- http://meribatiyan.blogspot.com/

sanjupahari

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waaah waaah Mahar ji,,,,kya kya kavitayein laye hain....HUkka bu hi baat bhi ekdam dil se pasan aayi....thnx is due to bring this aswesome subject ,,,,,,,,,,,JAI UTTARAKHAND

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हीरा सिह राणा जी की यह कविता जो की उत्तराखंड मे आजकल के माहौल पर एक दम सही बैठती है !  यह कविता राणा जी एक किताब " मनखियो पहाड़" से लिया गया है !

 त्यर पहाड़ म्यर पहाड़
 हय दुखो डयर पहाड़
बुजर्गो ले जोड़ पहाड़
 राजनीति तोड़ पहाड़
ठेकेदारों ने फोड़ पहाड़
 नानतिनो छोड़ पहाड़


अर्थ :  हिन्दी मे

ये तेरा पहाड़
ये मेरा पहाड़
है दुखो का पहाड़
बुजुर्गो ने इसे जोड़ा और बनाया
राजनीति और राजनेताओ ने इस तोडा
भूमाफिया (ठेकेदारों) ने इस पहाड़ को फोड़ा
जवान बच्चो ने इस पहाड़ को छोड़ा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राणा जी के एक और कविता

  अगर हम पहाडी
  हुना रिवाडी (नदी के किनारे के ठोस पत्थर)
    मजबूत ईमारत हनी थाडी
  मगर क्या यो नेता
  की यो जनता, की हम और तुमि
  सब छे बुसिल दुंग (कमजोर पत्थर)

खीमसिंह रावत

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पड़लै च्यला पड़
बाबूलै कय पड़लै च्यला पड़,  ईजलै कय पड़लै च्यला पड़
जरां अंख देखणी है जालै, द्वीव रवट भलिकै तुई खालै 
य खेती पर के नीछ बज्यान, नि हुन द्वी मैहनैक खहन /
                                           पड़लै च्यला पड़
एक मुठ्ठी निहून कहाण महाण, य खेती पर लगाई हाय खालि पराण
एतु करीबे मन्हु नीछ एक डालि, अटभट टोणण लगी  रहयू खालि   
च्यला तू पड़लिख जालै कसिकै, हमरी विपत्त जय क्य रहली यसिकै
                                           पड़लै च्यला पड़
मन्हु झुंगर खाबै कसिकै दिन कटी गई, आघिन यलै पैद नीछ हणी
खेती पर छी पैली भारी इज्जत, अब यपर हैरौ खालि फज्जित
आजकै टैम नीछ पैलिक कस, अणि टैम छा डब्लुक और पैसोंक
                                           पड़लै च्यला पड़
ईजलै त्येरी कमजोर जसी हैइ, आम्मलै आज भो जाणीये हैइ
जहाँलै खुटहात चलण रहयी, काम जैतूक हौल हम आफी करुल
मैं लै  कभणी तक बैठ रुल, जहाँ लै टैम छा पड़लै च्यला पड़
                                           पड़लै च्यला पड़
आफी ल्यूल हम घा लखड़, पाणिक लै नि कणी त्यूल फिकर 
जही बै ब्या है जांछ च्यला, तहीबै को पड़ सकूँ आघिन
पढ़ीलिखी जालै, पढ़ीलिखी ब्वारी ल्यालै, हमुकै लै भल लागल
                                           पड़लै च्यला पड़
हमर सालम यैक छा असोज, पढ़णियक लिजिक रौजे छा असोज
इस्कूलम बै आबै खेलिये झन, साग नीछ दै में रवटम खै लियै
तू भालिकै पढ़ीलिख ल्यलै, भै-बैणियों, गैव कै बाट  दिखालै 
                                           पड़लै च्यला पड़


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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत सुंदर खीम जी ... मजा आ गया . Nice poem on acutal situation.

पड़लै च्यला पड़
बाबूलै कय पड़लै च्यला पड़,  ईजलै कय पड़लै च्यला पड़
जरां अंख देखणी है जालै, द्वीव रवट भलिकै तुई खालै 
य खेती पर के नीछ बज्यान, नि हुन द्वी मैहनैक खहन /
                                           पड़लै च्यला पड़
एक मुठ्ठी निहून कहाण महाण, य खेती पर लगाई हाय खालि पराण
एतु करीबे मन्हु नीछ एक डालि, अटभट टोणण लगी  रहयू खालि   
च्यला तू पड़लिख जालै कसिकै, हमरी विपत्त जय क्य रहली यसिकै
                                           पड़लै च्यला पड़
मन्हु झुंगर खाबै कसिकै दिन कटी गई, आघिन यलै पैद नीछ हणी
खेती पर छी पैली भारी इज्जत, अब यपर हैरौ खालि फज्जित
आजकै टैम नीछ पैलिक कस, अणि टैम छा डब्लुक और पैसोंक
                                           पड़लै च्यला पड़
ईजलै त्येरी कमजोर जसी हैइ, आम्मलै आज भो जाणीये हैइ
जहाँलै खुटहात चलण रहयी, काम जैतूक हौल हम आफी करुल
मैं लै  कभणी तक बैठ रुल, जहाँ लै टैम छा पड़लै च्यला पड़
                                           पड़लै च्यला पड़
आफी ल्यूल हम घा लखड़, पाणिक लै नि कणी त्यूल फिकर 
जही बै ब्या है जांछ च्यला, तहीबै को पड़ सकूँ आघिन
पढ़ीलिखी जालै, पढ़ीलिखी ब्वारी ल्यालै, हमुकै लै भल लागल
                                           पड़लै च्यला पड़
हमर सालम यैक छा असोज, पढ़णियक लिजिक रौजे छा असोज
इस्कूलम बै आबै खेलिये झन, साग नीछ दै में रवटम खै लियै
तू भालिकै पढ़ीलिख ल्यलै, भै-बैणियों, गैव कै बाट  दिखालै 
                                           पड़लै च्यला पड़


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hem

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पड़लै च्यला पड़
बाबूलै कय पड़लै च्यला पड़,  ईजलै कय पड़लै च्यला पड़
जरां अंख देखणी है जालै, द्वीव रवट भलिकै तुई खालै 
य खेती पर के नीछ बज्यान, नि हुन द्वी मैहनैक खहन /
                                           पड़लै च्यला पड़
एक मुठ्ठी निहून कहाण महाण, य खेती पर लगाई हाय खालि पराण
एतु करीबे मन्हु नीछ एक डालि, अटभट टोणण लगी  रहयू खालि   
च्यला तू पड़लिख जालै कसिकै, हमरी विपत्त जय क्य रहली यसिकै
                                           पड़लै च्यला पड़
मन्हु झुंगर खाबै कसिकै दिन कटी गई, आघिन यलै पैद नीछ हणी
खेती पर छी पैली भारी इज्जत, अब यपर हैरौ खालि फज्जित
आजकै टैम नीछ पैलिक कस, अणि टैम छा डब्लुक और पैसोंक
                                           पड़लै च्यला पड़
ईजलै त्येरी कमजोर जसी हैइ, आम्मलै आज भो जाणीये हैइ
जहाँलै खुटहात चलण रहयी, काम जैतूक हौल हम आफी करुल
मैं लै  कभणी तक बैठ रुल, जहाँ लै टैम छा पड़लै च्यला पड़
                                           पड़लै च्यला पड़
आफी ल्यूल हम घा लखड़, पाणिक लै नि कणी त्यूल फिकर 
जही बै ब्या है जांछ च्यला, तहीबै को पड़ सकूँ आघिन
पढ़ीलिखी जालै, पढ़ीलिखी ब्वारी ल्यालै, हमुकै लै भल लागल
                                           पड़लै च्यला पड़
हमर सालम यैक छा असोज, पढ़णियक लिजिक रौजे छा असोज
इस्कूलम बै आबै खेलिये झन, साग नीछ दै में रवटम खै लियै
तू भालिकै पढ़ीलिख ल्यलै, भै-बैणियों, गैव कै बाट  दिखालै 
                                           पड़लै च्यला पड़


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बहुत सुंदर

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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तुम मांगते हो उत्तराखंड कहा से लांऊ?
सूखने लगी गंगा, पिघलने लगा हिमालय!
उत्तरकाशी है जख्मी, पिथौरागढ़ है घायल!
बागेश्वर को है बेचेनी, पौडी मे है बगावत!
कितना है दिल में दर्द, किस-किस को मैं दिखाऊ!
तुम मांग रहे हो उत्तराखंड कहां से लांऊ????

मडुवा, झंगोरे की फसलें भूल!
खेतो मे जिरेनियम के फूल!
गांव की धार मे रीसोर्ट बने!
गांव के बीच मे स्वीमिंग पूल!
कैसा विकास? क्यों घमंड?
तुम मांगते हो उत्तराखण्ड??

खडंजो से विकास की बातें,
प्यासे दिन अँधेरी रातें,
जातिवाद का जहर यहाँ,
ठेकेदारी का कहर यहाँ,
घुटन सी होती है आखिर कहां जांऊ?
तुम मांगते हो उत्तराखण्ड कहां से लांऊ???

वन कानूनों ने छीनी छांह,
वन आबाद और बंजर गांव,
खेतों की मेडें टूट गयी,
बारानाजा संस्कृति छूट गयी,
क्या गढ़वाल? क्या कुमाऊ?
तुम मांग रहे हो उत्तराखण्ड कहां से लांऊ??

लुप्त हुए स्वालंबी गांव,
कहां गयी आंफर की छांव?
हथोडे की ठक-ठक का साज,
धोंकनी की गरमी का राज,
रिंगाल के डाले और सूप,
सैम्यो से बनती थी धूप,
कहा गया ग्रामोद्योग?
क्यों लगा पलायन का रोग?
यही था क्या " म्योर उत्तराखण्ड" भाऊ?
तुम मांगते हो उत्तराखण्ड कहां से लांऊ??

हरेले के डिकारे, उत्तेरणी के घुगुत खोये!
घी त्यार का घी खोया,
सब खोकर बेसुध सोये!
म्यूजियम में है उत्तराखण्ड चलो दिखांऊ!
तुम मांगते हो उत्तराखण्ड कहा से लांऊ??


By- Hem Chandra Bahuguna

hem

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तुम मागते हो उत्तराखंड कहा से लाऊ?
सूखने लगी गंगा, पीघलने लगा हीमालय!
उत्तरकाशी है जख्मी, पीथोरागढ़ है घायल!
बागेश्वर को है बेचेनी, पौडी मे है बगावत!
कीतना है DIL मे दर्द, कीस-कीस को मैं दीखाऊ!
तुम माग रहे हो उत्तराखंड कहा से लाऊ????

मडुवा, झंगोरे की फसले भूल!
खेतो मे जीरेनीयम के फूल!
गांव की धार मे रीसोर्ट बने!
गांव के बीच मे sweeming पूल!
कैसा वीकास? क्यों घमंड?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड??

खद्दंजो से वीकास की बातें,
प्यासे दीन अँधेरी रातें,
जातीवाद का जहर यहाँ,
ठेकेदारी का कहर यहाँ,
घुटन सी होती है आखीर कहा जाऊ?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ???

वन कानूनों ने छीनी छाह,
वन आवाद और बंजर गांव,
खेतो की मेडे टूट गयी,
बारानाजा संस्कृती छुट गयी,
क्या गडवाल? क्या कुमाऊ?
तुम माग रहे हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ??

लुप्त हुए स्वालंबी गांव,
कहा गयी आफर की छाव?
हथोडे की ठक-ठक का साज,
धोकनी की गरमी का राज,
रीगाल के डाले और सूप,
सैम्यो से बनती थी धुप,
कहा गया gramy उध्योग?
क्यों लगा पलायन का रोग?
यही था क्या " म्योर उत्तराखण्ड" भाऊ?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ??

हरेले के डीकारे, मकरेनी के घुगुत खोये!
घी त्यार का घी खोया,
सब खोकर बेसुध सोये!
म्यूजियम मे है उत्तराखण्ड चलो दीखाऊ!
तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ??

By- Hem Chandra Bahuguna

Good Poem.

हेम पन्त

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दुदबोलि-2006 से साभार
लेखक- श्री बहादुर बोरा ग्राम गढतिर, बेरीनाग (पिथौरागढ)


तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक, गाड खेत
क्वै चौड चकाल, क्वै चार हात एक बैत
आहा कस अनौख लागनीं?

ग्यौं, जौं, सरच्यंक पुडांड
मडुवा, इजर, धानाक स्यार
कै में भट-गहत
कैमें चिण-गन्यार
अहा! कस रंग-बिरंग छाजनीं?

किल्ल-महलाक जास,
खुटकण, शिवज्यू मन्दिराक जास सीढि
काला क दिन बै कायम
खानदान जास पीढि-दर-पीढि!
अहा! देख बेरि मन में स्वीण जामनीं!!

लेकिन यो खालि खेतै न्हैतिन
यो स्मारक छ, यादगार छन!
एक-एक कांध मेहनत कि काथ
और संघर्षकि व्याथा बाँचनी!

तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक गाड खेत
आहा कस अनौख लागनीं?

 

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