समयक उखव- दाजू भलीभाख फोकव
(Kumauni Anuwad of a poem by Henry Wadsworth Longfellow by Mr. Rakesh Belwal)
समयक उखव भीतेर, सब भागक् निर्माता छन
उमें क्वै महान निर्माणकार , क्वै गीतकार लै छन
क्वे काम बेकार नि हुन भुला, हर चीजक अपण महत्व छू
और जे काम बेकार दिखूं, वीकलै दुहरकामो में ओट छू।
आजकवक ईट-गार दगड़, जो लै ढांच हम ठाड़ करनू
उकै हमैं भली-भाक सुझूण व बणूण चैं,
यस नि सोचण चैं कि क्वे उकै नि देखणौं.
हमर पुरण निर्माणकार जिनूल बहुतै जतन करो कुछीं ..
किलै नी भुला...भगवानज्यू तो देखणीं..
आओ करू अपण काम ..दीखाई द्यू भलै नैं..
आओ बणूं अपण प्रदेश पवित्र जां हमर देवी-देवता रै सकैं
नहैथै हमर जीवन समयक-उखव भितेर अधूरै रै जाल
ऊखव कूटणीं टूट जाल , हाथ-पैर सिथिल है जाल
हमकू बणूण छू अपण बुनियाद इतुक ताकतवर कि
उणीं वाल कल जैके माथ भै सकैं
हम पा सकूं उ स्थान जा बै हमरि आँख
एक एकछत्र व विशाल दुनि के साफ देख सकैं.
यो आशक दगड़ कि आप इके अमल करला.....
आपुक अपण,
ऱाकेश बेलवाल