बौडी औ दग्डया हुवै गै बतेरी जगवालथामे नि थमैदो मन को उमाल घास अर लाख्डू कान्डो का बोणदिन डसदू सुर्म्यालो घाम रात डस्दी जोनमाया बण्गे तेरी जी को जन्जाल - बौडी औ------सौन्ज्ड्यो दगड जब जान्दी दग्ड्याणी,चैत्वाली बयार डाण्ड्यो जब रन्दी बयाणीतिसू तिसू तिसि चोली जब कखी भट्याणीदिल मा उठ्दी हूक मेरा कानू बज्दी धूयाल - बोडी औनथुली बुलाक झ्यूरी मेरी कन करोदा खौलि मेरीजुडी दथी घास घ्सेरी सबि पुछ्दा बात तेरिझ्ट्प्ट घर आवा कि मै तख बुलावानि कट्दु यखुलि बस्ग्याल --- बौडि औ
Friends जगा हे मेरा गढ़ कुमाओं का वीर भादों का वंशज जगा जागना कु अब बगत एज बरसों की अपरी नींद त्यागा .
dhanyabad rajen ji ,.........Abhi to shuruaat hai .....Abhi to bahut sari poems post karni baki hain.