Author Topic: Poems & Songs written by Mr Vijay Gaur- श्री विजय गौड़ के लेख एव गीत  (Read 11519 times)

Vijay Gaur

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"पहाड़ माँ बलिप्रथा"
« Reply #10 on: July 24, 2012, 12:29:01 PM »
"पहाड़ मा बलि प्रथा" : पहाड़ की एक बड़ी कुरीति पर बुल्दी विजय गौड़ की कलम


 "पहाड़ माँ बलिप्रथा"



हे देवी! दैंनी ह्वै जै, ये साल मेरु नाती ह्वै जालू ता त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू,
हे देवी! दैंनी ह्वै जै, मेरु नाती थैं पांच साल कु कैर दयेई त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू.
हे देवी! दैंनी ह्वै जै, मेरु नाती थैं दस पास करे दये त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू
हे देवी! दैंनी ह्वै जै, मेरु नाती की नौकरी लगे दये त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू
हे देवी! दैंनी ह्वै जै, मेरु नाती कु ब्यो करे दये त्वैमा 'जौंल' चढ़औंलू.



क्या सच मा देवी याँ से दैंनी ह्वै जान्द?
या यांका पैथर सिर्फ हमरि पिछड़ी सोच आन्द?
आखिर एक जीव की ज्यान लेकी देवी दैंनी कनकै ह्वै सकद?
शायद यु जीव भी ता देवी की दया से ही पैदा ह्वान्द?
मिथें आज का समाज मा कन्या भ्रूण की दशा,
और पहाड़ी समाज मा बुग्ठया की स्तिथि मा कुछ अंतर नि दिख्यान्द,
एक पैदा हूण से पैल मार दिए जान्द,
और दुसरू थैं खिलै-पिल्लै की चट कैर दिए जान्द.
मेरु धन्यबाद च मेडिकल साइंस थैं,
की अल्ट्रा साउंड आज भी भिंडी पैसों मा ह्वान्द,
निथर बखरी कु और ब्वारी कु अल्ट्रा साउंड दगडी करये जान्द,
और ब्वारी कु कोख मा नाती पता चलन पर,
बखरी कु कोख कु नौनु देवी मा चढ़ये जान्द.
क्या आस्था का नाम पर यु कत्लेआम ठीक मन्यु चाँद?
जेथें हमरु समाज कभी अष्ठ्बली का नाम से देवी का थान मा,
या फिर अलग अलग जात, पूजै का नाम पर कनी रान्द?
मी हम सब्यों क सामणी एक सवाल रखनु चाँदु,
कि जब एक बेजुबान का सरीर और कंदुढ मा चौंल-पानी डल्ये जान्द,
ता क्या झुर्झुराट स्ये वेकु बदन नि हिलण चयांद?
बस उठावा डन्ग्रू और उडै दया वेकि मूण,
वू निरीह ता चुपचाप हमरी अंधी आस्था की भेंट चढ़ी जान्द.
और हमरा घार मा द्वी तीन दिन तक संगरांद हुईं रांद.
अरे! हमसे भलु ता वू 'क़सै' च,
जू अपणा व्यवसाय मा देवतों कु नौ त नि लांद.
उठ, जाग और बोट मुट्ट मेरा उत्तराखंड कु नयु समाज,
खा सौं की यी कुरीति पर अब रोक लगी चाँद.
निथर भोल हमरी आणवाली पुश्त भी यी नि सोच की,
कै बेजुवान, कै लाचार की ज्यान देवतों क़ नौ पर ल्येन से पुण्य आन्द.



विजय गौड़
२१/०६/२०१२
सर्वाधिकार सुरक्षित



विजय वचन: दगीड्यो या कविता मी कैथैं ठेश पौन्चाना क़ वास्ता नि लिखनु छौं, बल्कि अपणु नयु उत्तराखंड क़ जनमानस से विनती कनू छौं की हमरा समाज मा जू कुप्रथा छन, अंधविश्वास छन, वें सें भैर आण चयेनु च. या मात्र पिछड़ापन की निशानी च. क्या हम यी बात थैं सब्यु क़ सामणी गर्व से बोल सक्दन की या हमरि महान परंपरा च? अगर आप लोगु कु उत्तर 'ना' च, ता एक नयी शुरुआत खुद से कारा, वा या की मिन आज से देवी क़ थान मा 'बलि' नि दयेन. वे पैसा थैं आप एक डाली रोपी की वांकी देखभाल पर लगये सक्दां, या फिर देवी क़ नाम पर और भी बहुत कुछ करे सक्येंदा, जैसे संपूर्ण जनमानस थैं लाभ होलू और देवी प्रसन्न ह्वैकी अपणु आशीर्वाद आप और आपका परिवार थैं जरुर दयेली.



यी कविता पैड़ी की अगर मेरा सिवा अगर एक भी मनखी देवतो क़ नाम पर जीवहत्या नि करण की सौं खान्द ता मी ये थैं अपणी सफलता सम्झुलू.



Vijay Gaur

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बहुत सुंदर गौर जी.. जारी रखियेगा.. आशा हमारे पाठको को आपने कविताएं पसंद आ रही होंगे!
बहुत बहुत शुक्रिया मेहता जी !! कुछ दिन से ज्यादा समय नहीं दे पा रहा हूँ, लेकिन जैसे ही समय मिलेगा, जरुर कुछ पोस्ट करता रहूँगा.

Vijay Gaur

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"अन्ना फिर आणू च"
« Reply #12 on: July 24, 2012, 03:48:41 PM »
"अन्ना फिर आणू च"

एक मनखी जू झणी कथगा  सालों बिटीं,
अपणी ग़ात, अपणु सरैल यीं दुन्या का वास्ता झुराणु च.
गों गल्यों मा मिन हल्ला सुणी कि,
सीं बौगा सरदी " पॉलिटिकल फॅमिली" थैं फिर चुग्न्याणौ,
वी अन्ना आज जंतर -मंतर आणु च.

एक साल पुराणी बात ह्वै ग्ये,
जब सरया मन्ख्यात दिल्ली मा 'भ्रष्टाचार' भगाणु,
झंडा और डंडा ल्येकी अट्गणी छै.
ह्वै क्या च?
'भ्रष्टाचार' करों कु वोडू एक साल माँ एक बिलाग भी नि सरकी,
और हमरा कीसौं बिटीं झणी कथगा सरकै की,
लोला हमरु ही मखौल उडाणु च,
लाचार ह्वैकी अन्ना फिर जंतर-मंतर आनु च.

अब दिखदा कि क्वा नयी 'रामैण' लिख्ये जांदी?
और हमरी "राजनैतिक बिरादरी" अबरी दा कै नया "इस्टाइल" से ठगांदी?
अन्ना थैं फिर एक सालै कु स्वास्थ्य लाभ कु कंनक्वे भिज्ये जा?
संसद का पुटुग हर क्वी यी सुग्बुगाणु च,
कुत्ग्यायो जू भी सुचणा आजै राती च,
भोल दिखल्या अन्ना और बड़ी लंगात ल्येकी आणु च,
नना -तिना, दाना-सयाणा सभि रस्ता लग्यान,
और हरेक मा अन्ना ही अन्ना दिख्याणु च....

विजय गौड़
सर्वाधिकार सुरक्षित
24.07.2012

Vijay Gaur

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भिंडी दिनों बिटि भितिर हि भितर किल्स्येणु छौं
अपणी पछ्याण थैं प्रसिद्धि दयेणु कु तर्स्येणु छौं
म्यरा उत्तराखंडी भै भैणों आज मी सै बिन बुल्याँ नि रयेणु च,
मिथें उत्तराखंड कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

आज अगर मिथें क्वी पुछदु कि आप कख क़ छा?
'उत्तराखंड' बुल्दु ता पुछ्दरा क़ माथा पर प्रश्नचिन्ह ऐ जांदू.
फिर समझाण पुडदू कि देहरादून, नैनीताल क़ पास,
मेरी मातृभूमि क़ नौ कु यनु अपमान मी सै नि सयेणु च
मिथें उत्तराखंड कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

क्या कन्न हमरु इतिहास और आज भि कुछ यनु च
कि हमुथैं 'उत्तराखंडी' बताण मा बड़ी सरम औंद,
क्वी बुलद दिल्ली कु छौं त क्वी देहरादून कु,
देवभूमि क़ रैन्दरों कु यु 'दैवीय रूप' मी सै नि बयेणु च
मिथें उत्तराखंड कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

मी यनु नि बुल्दु कि 'उत्तराखंडी' दुन्या से पिछनै छन,
पर यु भि सच च कि फिर भि 'उत्तराखंड' जरुर पिछने च,
अब यनु कनुक्वे व्है सकदु कि 'बच्चा' अग्ने और 'मातृभूमि' पिछनै?
म्येरा परदेस कु यु हि समीकरण मी सै नि बिन्ग्येणु च,
मिथें उत्तराखंड कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

मेरी विनती च हर उत्तराखंडी से कि गिचू खोली कि बोला,
कि हे पुछ्दरा! तू कनु लाटु छै रे लोला,
म्येरा उत्तराखंड मा औण कु त देवतो मा भि लैन लग्यी राद
और एक तू छै कि त्वैथैं "उत्तराखंड" कु नौ भि याद नि आन्द
मेरा उत्तराखंडयों! ठोका छाती और ल्या संकल्प,
कि हम 'उत्तराखंडी' छाँ
और हमुथैं "उत्तराखंड" कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

विजय गौड़
०७/०८/२०१२
सर्वाधिकार सुरक्षित....

Vijay Gaur

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भिंडी दिनों बिटि भितिर हि भितर किल्स्येणु छौं
अपणी पछ्याण थैं प्रसिद्धि दयेणु कु तर्स्येणु छौं
म्यरा उत्तराखंडी भै भैणों आज मी सै बिन बुल्याँ नि रयेणु च,
मिथें उत्तराखंड कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

आज अगर मिथें क्वी पुछदु कि आप कख क़ छा?
'उत्तराखंड' बुल्दु ता पुछ्दरा क़ माथा पर प्रश्नचिन्ह ऐ जांदू.
फिर समझाण पुडदू कि देहरादून, नैनीताल क़ पास,
मेरी मातृभूमि क़ नौ कु यनु अपमान मी सै नि सयेणु च
मिथें उत्तराखंड कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

क्या कन्न हमरु इतिहास और आज भि कुछ यनु च
कि हमुथैं 'उत्तराखंडी' बताण मा बड़ी सरम औंद,
क्वी बुलद दिल्ली कु छौं त क्वी देहरादून कु,
देवभूमि क़ रैन्दरों कु यु 'दैवीय रूप' मी सै नि बयेणु च
मिथें उत्तराखंड कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

मी यनु नि बुल्दु कि 'उत्तराखंडी' दुन्या से पिछनै छन,
पर यु भि सच च कि फिर भि 'उत्तराखंड' जरुर पिछने च,
अब यनु कनुक्वे व्है सकदु कि 'बच्चा' अग्ने और 'मातृभूमि' पिछनै?
म्येरा परदेस कु यु हि समीकरण मी सै नि बिन्ग्येणु च,
मिथें उत्तराखंड कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

मेरी विनती च हर उत्तराखंडी से कि गिचू खोली कि बोला,
कि हे पुछ्दरा! तू कनु लाटु छै रे लोला,
म्येरा उत्तराखंड मा औण कु त देवतो मा भि लैन लग्यी राद
और एक तू छै कि त्वैथैं "उत्तराखंड" कु नौ भि याद नि आन्द
मेरा उत्तराखंडयों! ठोका छाती और ल्या संकल्प,
कि हम 'उत्तराखंडी' छाँ
और हमुथैं "उत्तराखंड" कु नौ विश्व मानचित्र मा चयेणु च!

विजय गौड़
०७/०८/२०१२
सर्वाधिकार सुरक्षित....
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Devbhoomi,Uttarakhand

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Bahut hi sundar Rachanayen,Geet likhe hain apne Gaur ji keep it up

Vijay Gaur

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Bahut hi sundar Rachanayen,Geet likhe hain apne Gaur ji keep it up

बहुत बहुत धन्यवाद! आप लोगु का यना आखर पौढ़ी की और ज्यू बुल्दु लिखण कु..

Vijay Gaur

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"जनन्युराज"

आवा ! भै-बन्दों तुमु थैं, तुमरी-म्येरि, हम सब्यों की "चस्गदी" कथा सुणादु.
जरा द्येखा इना-उना, अग्ने-पिछ्नै,
कखी सुणनी त नि छन वू ढडवा बिराली ,
निथर द्वि घड़ी कु सुरुक, अपणा दुलुण ही चलि जांदू .

बालापन मा रेडू बुल्दु छौ, "कैमा ना बुल्याँ भेज्यो सैन्यु कु मरयु छौं".
ज्वान हुयुं ता पता चली कि, नेगी भैजी अपू पर बितीं छौं सुणादु,
अब बिन्ग्णु छौ कि बोर्डर मा चौड़ी छत्ती करदू फौजी दिदा भि,
भौ द्येखी कि सुट पुछडि किलै लुके द्यांदु.

आज जब मी अपना मुलुक मा पुरुष की स्तिथि की समीक्षा करदू ,
त वा मिथें कमोवेश देश की सरकार जन्न ही दिख्यांद,
जख सर्या उज्याड़ ता एक जननी खाणी च,
और भुगत्नौ कु बिचरू सरदार व्है जांद.

या कविता लिख्णु भी छौं, ता भितिर बीटिं कव्लाट च हुनु,
कि कखि यी का प्रकाशन का बाद लुकणु नि पोडलू कूणु,
सुच्नु छौं चट्ट बगल कु शर्मा भै कु नाम लिख देन्दु कवि का नाम मा,
और दिखलू कथगा दिन तक खड़ू राद लोला चढ़चडू घाम मा.

जन्दौ छौं कि मेरा भिंडी भै बंद यी कविता सै बड़ा खुश होणा होला,
और मिथें वीर पुरुष कि संज्ञां देना होला,
पर दगिड्यो! तुमारी यी खुसी खुन झणी क्या भुगतण पोडलू आज,
घौर, दफ्तर, देस-विदेस, जौं ता जौं कख, जख-तख ता हुयू "जनन्युराज".

विजय गौड़ "शर्मा जी का बुल्यानुसार"
सर्वाधिकार सुरक्षित (मी चा सुरक्षित रौं नि रौं)
०९ अगस्त २०१२

Vijay Gaur

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ओलंपिक मेडल: "छै"

एक अरब से भिंडी मनखी और मेडल बस "छै"
क्वी भग्यान बतालू मीथैं, क्या यी च म्येरा देस कि सचै?

गों-गल्यो, जख-तख ढोल-दमो बज्नाण,
दाना-सयाणा रंगमत हुयान अर छ्वटा-बड़ा यिख-उख नच्नाण,
देस "तीन" मेडल से "छै" पर पौंची ग्ये,
देस मा  खेलो कु विकास चार साल मा सौ प्रतिशत  ह्वै ग्ये,
द्वी चार दिन कु कौथिग और फिर टुप स्ये जान भै,
खबरदार! क्वी उठैयाँ ना हमुथैं, जब तक हैंकु ओलंपिक नि ऐ.

क्या म्येरू देस कु यु सौभाग्य च कि हम ५५ वां स्थान पर ऐ ग्याँ?
या दुर्भाग्य च कि छैंदा प्रतिभा का एक सोनू कु बाटू हेरणा रैग्याँ?
धन-धन  छन यी द्वी-चार भारत मा का सपूत जू कम से कम "द्वी चांद्या" और "चार कांस्या" तमगा त ली ऍन,
निथर देस कि व्यवस्था कु हिसाब से हर खिलाड़ी थैं, बस ओलम्पिकै खिचड़ी खैकी औंण चएंण.
प्रसाशन का कंदुड मा आज तक जूं नि रीन्गु जू आज रीन्गलु भै,
तभी त देस कि जनसँख्या एक अरब और मेडल मिल्या बस.."छै"

अब दिखदा "लन्दन" से "रिओ" पौचदा-पौचदा हमारू कथगा विकास होंद?
क्या खैन्चदा-खैन्चदा जणेक सोनू तमगा भि ऐ जालू या सोनू सिर्फ मन्त्र्यो का घौर हि रौंद?
सच भि च कि भारत जनु सदान्यूक विकासशील देस मा सोनू त "राजाओ" का वास्ता हि बन्यु च'
आम खिल्वाड़ी त अपणी खून पाणि कि मेहनत का बाद भि सोनू छू भि सकनौ च,
ये महान देस मा मेहनत कन्न वलों थैं छन्च्या भि नसीब नि,
और फेडरेसन छन उड़ाणी घ्यू, दूध और दै,
क्या कन्न, क्या ब्वन्न...
यु हि च म्येरू भारतवर्ष, अर म्येरा महान देस कि सचै....

विजय गौड़
१३.०८.२०१२
"सर्वाधिकार सुरक्षित" (चा मी सुरक्षित रौं नि रौं)

http://vijaygarhwali.blogspot.in/2012/08/blog-post_13.html

Vijay Gaur

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चार दिन कु रैबासु!!!

चार दिन कु रैबासु रे यी दुन्या मा त्येरु,
सुद्दी नि बुन्नु, कणू नि बुन्नु,
बस यु हि रैबार च म्येरू.....

त्वे भि दयेयी और मी भि दियुं,
वे विधाता न जलम,
द्वी घड़ी कु यु मेल चुचा,
सोच अपणा मन मा,
सोच अपणा मन मा भोल हवे जालू रे अंधेरु,
सुद्दी नि बुन्नु,  कणू नि बुन्नु
बस यु हि रैबार च म्येरू.....

अपणो कु अपडु त क्वी भि हवे सकदु,
मन्खी ता वी च जू,
हो बिराणो कु अपडु,
सोच अपणा मन मा,
होलू  भोल नयु सबेरू,
सुद्दी नि बुन्नु,  कणू नि बुन्नु
बस यु हि रैबार च म्येरू.....

औंण जौंण कि रीत ता,
रौंण यिख सदानि,
सब्यों कु एक हि जोग लोला,
पदान   हो या पदानि,
सोच अपणा मन मा,
भोल हवे जाला प्राण पखेरू,
चार दिन कु रैबासु रे यी दुन्या मा त्येरु,
सुद्दी नि बुन्नु, कणू नि बुन्नु,
बस यु हि रैबार च म्येरू.....

विजय गौड़
नवम्बर २००८
सर्वाधिकार सुरक्षित....

 

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