Author Topic: Poems & Songs written by Mr Vijay Gaur- श्री विजय गौड़ के लेख एव गीत  (Read 11631 times)

Vijay Gaur

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कोसिस  कन्न  वलों कि  कभि हार नि हून्दी!!!!!

कोसिस  कन्न  वलों कि  कभि हार नि हून्दी,
ढंग से छईं कूड़ी, सलीका से मिसयीं पटैली
कन्न-कन्न बस्ग्याल मा भि नि चूंदी!!!!

ब्वे का पुटगा मस्त खिलदु नौनु,
भैर आन्द हि दौड़ नि सकदु,
लगातार एक द्वी साल कु प्रयास,
खुचिला बीटी भुयां औंण मा लगदु.
ग्वया लगाण से अट्गणा कि मंसा,
बालामन मा सदनी बणी रौंदी,
कोसिस कन्न वलों कि .........

परिवर्तन ज़िन्दगी कु एक बडू सच च,
इंसान त क्या प्रकृति भि या से बचीं नि च,
बगत का पाणि मा बगदु मन्खी छाल जरुर पौन्चदु,
जू बगत का साथ नि ऐन,वोंकु भगवान् भि ख्याल नि रखदु ,
खैरी का बाटों हिटणु रै,
एक ना एक दिन स्या उकाल जरुर पुरेंदी,
कोसिस कन्न वलों कि कभि......

कांडों भ्वरीं यीं दुन्या मा त्वै खुणी फूल भि धरयांन,
कखी तू कांडों चलदा चलदा हि नि थकी जै,
त्येरा बांठा सुख त्वे सिनक्वैली मिल ला,
मन्न कि वीं आस तू छोडि नि दये,
दगडया! यी दुन्या मा अयूँ छै त या गेड़ बाँधि ल्ये, 
बिन रुयाँ त ब्वे बि दूध नि दयेंदी,
पर कोसिस कन्न वलों कि कभि हार नि होंदी ...
कभि हार नि होंदी.....

विजय गौड़
२८.०८.२०१२
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Vijay Gaur

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"पहाड़ी नि छै त कु छै तू??"

क्यो छै अपणी पछ्याण लुकाणु,
क्यो छै अपु पर सवाल उठाणु,
क्यो छै अपणो से दूर तू जाणू,
क्यो छै झूटि सान चिताणु,
अन्वार मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?

कख छै बस्ग्यली पाणि सि बगणु,
कै छै तू घामपाणि सि ठगणु,
क्यो छै बिरणा मुलुक तू भगणू,
क्यो चौका-तिबारयु स्यु मन्न नि लग्णु,
छुयों मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?

क्यो तेरु नौनु पहाड़ी नि बिन्ग्णु,
क्यो तेरा गों वू अपणु गों नि बुल्णु,
क्यो दाना ब्वे-बाबों का बारा नि सुच्णु,
क्यो त्वे से गोर-बखरू नि खुच्णु,
पैरवाक मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?

आज त्यरू पहाड़ त्वे धै च लगाणु,
तू वेकु हि छै त्वे बडुली लगाणु,
कख छै लोला तू बिरड़दू जाणू,
त्वैकू ठंडी हवा, ठंडो पाणि धर्युं,
अर तू छै स्यीं गरम लू तख खाणु,
गरमन हाल बेहाल हुणू जैकू,
पहाड़ी अर बस पहाड़ी छै तू......

विजय गौड़
सर्वाधिकार सुरक्षित
१८.०९.२०१२

http://vijaygarhwali.blogspot.in/
KHUD.....


Vijay Gaur

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Re: Poems & Songs written by Mr Vijay Gaur- लाटि माया!!!!!
« Reply #22 on: December 07, 2012, 01:59:10 PM »
लाटि माया!!!!!

वीं मिलणो मिन बाटों का गारा कुर्च्येनी,
वा सदानि बाटु बिरड़ान्दी रै!
मी भितिर हि भितिर फुकेणु रौं,
वा खित-खित हैंसी, हौर सुल्गांदी रै!

मी सच्चा मन से वीं मा बुल्दी रौं,
वा म्येरी सांचि माया थैं ठगांदी रै!
मिन अपणा दिल कु भेद वीं मा खोलि,
वा ज़मना थैं बथान्दी रै!

वींका बाना अपणा, परया ह्वै ग्येनी,
वा परायों थैं अपणान्दी रै!
मी वीं जनै हिटदु रौं,
वा फुन्डों-फुन्डों जांदी रै!

मिन ज़िन्दगी का पुंगडों भला-भला बीज बुतिनी,
वा जख्या जमांदी रै!
मिन या लाटि माया, लुके-ढकै समालि छै धरीं,
वा सुद्दी गारों सी छमणान्दी रै!

आज स्यु हुयू क्वीलु सि कालु,
वा ग्वारों खुज्यांदी रै!
मी भि बालपन मा गोरु हि छौ ,
या ज्वनी  कालु बणान्दी ग्ये!!
या ज्वनी  कालु बणान्दी ग्ये!!     

विजय गौड़
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Vijay Gaur सैंदाण
 
 कै बिरणे सैंदाण मिन समालि धरीं च,
 मिन कै नि दिखाण, कि मिन क्य पालि धरीं च।
 
 माया ज़िन्दगी मा पंछी बणि आंदी,
 त्वै मायादार कैकि, कखि हौर उड़ी जांदी,
 मैमा एक तोला नि, वून नालि धरीं च,
 कै बिरणे सैंदाण मिन समालि धरीं च....
 
 म्येरु बाटू हिटणो, वा झणी कख्वै ए जांदी,
 काण्डों वला बाटों बि सजीला फूल खिलै जांदी,
 कबि ज्वा रै छै खुचिला, वा अब तिरालि धरीं च,
 कै बिरणे सैंदाण मिन समालि धरीं च......
 
 होन्दि म्येरि अपणी त मैमा हि त रांदी,
 म्येरू बणयु घोल, सिन त नि रितांदी,
 मिन अपणी नवलि, कै हैंको खालि करीं च,
 कै बिरणे सैंदाण मिन समालि धरीं च....
 
 विजय गौड़
 सर्वाधिकार सुरक्षित
 पूर्व प्रकाशित
 http://vijaygarhwali.blogspot.in/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Vijay Gaur भयात 
 
 कभि जु दगड़ी खेल्दु छौ,
 कभि जु अपणु सि मिल्दु छौ।
 कभि जु म्येरी हैंसी बानो,
 अपणु सुख-दुःख भुल्दु छौ।
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 कभि जु घुग्गा बिठांदु छौ,
 कभि मि लम्डू, उठांदु छौ,
 कभि गट्टा -कुंजा खिलांदु छौ,
 कभि फुटयाँ घुन्डों सिलांदु छौ,
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 कभि जु स्कूल लि जान्दु छौ,
 कभि जु कंचौ खिलांदु छौ,
 कभि दगड़ मा कुकर छुल्यांदु छौ,
 कभि सारयों मा बांदर हकांदु छौ।
 आज यु कन बगत ऐ ग्ये,
 एक हि कोख से जन्म्यु भै,
 म्येरू सोरु ह्वै ग्ये !!
 
 हे विधाता! मि त्वै स्ये बुन्नु छौं,
 अपणी हि न, सभि मन्ख्यों कि बात कनु छौं,
 अगर तिन भयात कु अंत यन हि लिख्युं,
 त मि त्येरि बात नि मनणु छौं,
 तु यु कनु इंसाफ कै ग्ये,
 जु बालापन कु अटूट ज़ोड़,
 या लोलि ज्वनि, आन्द-आन्द हि खै ग्ये.
 
 विजय गौड़
 सर्वाधिकार सुरक्षित   
 http://vijaygarhwali.blogspot.in/

Vijay Gaur

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"वैलेंटाइन्स डे पर विशेष: सभी प्यार करन वलों सणी"

त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु,
त्येरा अग्नै स्यु ज्यून बि पाणि मंगदु।

करलि आंख्युं न घैल कैर जांदी,
अर मरीजो हाल बि नि पुछणों आंदी,
आखिर मै स्ये चांदी छै त क्या चांदी,
लोलि त्येरा ख्याल से हि मै बडुली ऐ जांदी,
ब्यखुनि -फज़ल बस त्वै याद करदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।।

यीं आग कु क्या, ज्वा बेर-बेर लग जांदी,
पर बुझदा-बुझदा कुज्यणि कथगा खंड खिलांदी,
जल्याँ कु दुःख जलदरा कि जिकुड़ी हि चितांदी,
जै मौलदा-मौलदा सर्या ज़िन्दगी लग जांदी,
मै त्वै हि यीं आग कु मलहम मनदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।। 

ज्यू ब्वनु कि कबि तु भि मैथें चांदी,
म्येरा दगड़ी मायादार छवीं लगान्दी,
त म्येरि ज़िन्दगी बि सब्यों बतै पांदी,
कि रोज-रोज ज्यून मै मिलणु आंदी,
यां से पोर मि कुच हौर नि सुचदु,
त्येरि मुखुड़ी से स्वाणु मै कुच बि नि लगदु।।।।       
त्येरा अग्नै स्यु ज्यून बि पाणि मंगदु।।।।

विजय गौड़
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Vijay Gaur

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हम इथगा मजबूर किलै छाँ!!!
« Reply #26 on: February 24, 2013, 03:04:57 PM »
हम इथगा मजबूर किलै छाँ?
पहाड़ी ह्वैकी बि पहाड़ से दूर किलै छाँ??

जख कबि टुट्या खटलोँ का सारा ग्वाया लगैन,
जख कबि माटु अर गारा इना-उना छमडैन,
जख कबि कमेडू - कलमन आखर लिख्येन,
जख कबि बड़ी घाम बाँचि गिनती- पाड़ा सिख्येन,
वीं जलमभूमि से बगणा बदस्तूर किलै छाँ??
हम इथगा मजबूर किलै छाँ??

जख कबि बार-त्योहार रंग-पटखा उड़येन,
जख कबि दगिड्यों दगड़ी खौला-म्येला घुमैन,
जख कबि ब्यों-बरत्यों मा बिस्तर-लखडा सरैन,
जख कबि गोँ बिटी दिदी-भुली सैसुर लख्वैन,
वूँ रीत-रिवाजों थैं बिसरणा हुजूर किलै छाँ??
पहाड़ी ह्वैकी बि पहाड़ से दूर किलै छाँ??

जख कबि अपणी भासा का क ख ग सिख्येन,
जख बाटु हिटदा झणी कथगा पट मिसयेंन,
जख कबि जागर, थड्या, चौफंलों कि भौंण सुणयेंन,
जख कबि ग्वैर बणी पाखों रसिला गीत गुनगुणेंन,
वीं पछ्याण फुंड खैति हूणा मसहूर किलै छाँ??
हम इथगा मजबूर किलै छाँ??

लोग अपणु अस्तित्व सणी झणी क्य-क्य करदन,
भांडु नि रा त औंज्वल्योंन पाणि भरदन,
अपणी बोलि बुल्दरों कि संख्या ब्यखुनि-फजल उन्द जाणी,
अर हम छाँ कि कुच हथ-खुटा हि नि मरदन,
दुन्या दयेखा साब बणनी अर हम मजदूर किलै छाँ??
पहाड़ी ह्वैकी बि पहाड़ से दूर किलै छाँ??

विजय गौड़
मि पहाड़ी, पहाड़ म्येरि पछ्याँण
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Vijay Gaur

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धिरज धैर त्येरि अर्जी बि मंजूर जरुर होलि,
आज न त भोल तु बि मसहूर जरुर होलि।।

कोसिस त्येरा हथ पर च वेमा कसर नि छोड़,
दिन हो या रात तु कनु रै उठा-पोड़।
मेहनत सब्यों कन पुडद लाटा,
चा घाग बल्दों कि जोडि ह्व़ा, या हवीं अणहिटल्यां बोड़,
तू पुंगणों बाणु रै एक दिन फसल भरपूर जरुर होलि,
आज न त भोल तु बि मसहूर जरुर होलि!!!

बगत कि मार से घबरै आस न छोड़,
लग्युं रै बाटू, निबटे बिना सीं सांस नि तोड़,
भला दिन जरुर बौडदन लोला,
बुरु बगत से डोरि अपणु बाटू नि मोड़,
तू जोर लगाणु रै सुनवै उख जरुर- जरुर होलि,
आज न त भोल तु बि मसहूर जरुर होलि!!!

विधातन अपणा सबि लाटों सणी कर्युं जन्का-जोड़,
त त्येरा पुट्गा क्यांकि पीड़ा, कनु मरोड़?
बगतन बि अपणा बगत से हि आण लठयाला,
च्या तु दैणु हाड़, च्या बौन्हड़ पोड़।
अधीर हूँण स्ये मनै खुसी ज्वा दूर जरुर होलि,
आज न त भोल तु बि मसहूर जरुर होलि!!!

विजय गौड़
6/03/2013
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Vijay Gaur

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खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च,
हिटा भै-भैण्यो साथ-साथ,
रड़दी,बगदी मनख्यात का खातिर,
उठा भै-भैण्यो, मिला त हात

क्वी लचार त्वै धै च लगाणु,
मुलुक हुयुं ल्वै-ल्वै च बथाणु,
रौल्यों गलणी स्यीं गात क खातिर,
रीटा भै-भैण्यो ताल-मात,
खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च हिटा........................

कखि बचपन ब्वै-बाब खुज्याणु,
कखि क्वी मन अफु धीत बंधाणु,
दिन मा हुईं स्यीं रात खातिर,
कारा भै-भैण्यो, उज्यलै कि बात,
खैरि-विपदों कु बगत अयूँ च हिटा........................

कुच दिब्तों कु रैबार च आणु,
पण लाटा त्वे स्ये नि बिन्ग्याणु,
ये रुसयाँ बद्री-केदार का खातिर,
सोचा भै-भैण्यो, मिलि-बैठि साथ,
रड़दी,बगदी मनख्यात का खातिर, उठा ......................

रचना: विजय गौड़
०३।०७।२०१३
कविता संग्रह, "रैबार" बिटी ...
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Vijay Gaur

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ऐंच म्येरा उत्तराखंड मा गों क गों बौगि ग्येनि। बुन-बच्याण कु बि मनखि नि बच्यान। यनु हि कै यकुलु बच्युं मनखि क मन का भाव सबि भै-भैनों तक पौंचाणु छौं।म्येरा सबि उत्तराखंडी भै-बन्दों यु हम सब्यों सणी रैबार बि च, बिग्याँ अर मुल्क खुणि कुच कर्यां।

मन रै कख-कख छै जांदू,
लोला अब कैथें खुज्यान्दु,
सरग न सबि सोरि-पोंछि,
अपणु-परया, क्वी त रान्दु,
मन रै कख......................

पाड़ सियूँ छौ निचंद,
सुपन्यो वलि स्वाणी निंद,
यनि ऐ बगतै कि मार,
हिलि ग्ये बद्री-केदार,
फेर कै थैं धै लगान्दु,
मन रै .............................

कैमा जैकि रोण तिन,
विपदा कै सुणोंण तिन,
आंख्यों पाणि पोछ लोला,
अफु थैं अफ़ि बुथ्योंण तिन,
गयुं, बौड़ी नि आन्दु,
मन रै .............................

चखुला घोलूँ गैनि सब,
त्येरु मुलुक, त्येरि लडै अब,
रुसयाँ दिब्तों मनै कि,
चड़ी जा स्यी उकाल अब,
बगत त्वै स्ये यु हि च चांदू,
मन रै .............................

रचना : विजय गौड़
कविता संग्रह, "रैबार" से
२८।०६।२०१३
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