"पहाड़ी नि छै त कु छै तू??"क्यो छै अपणी पछ्याण लुकाणु,
क्यो छै अपु पर सवाल उठाणु,
क्यो छै अपणो से दूर तू जाणू,
क्यो छै झूटि सान चिताणु,
अन्वार मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?
कख छै बस्ग्यली पाणि सि बगणु,
कै छै तू घामपाणि सि ठगणु,
क्यो छै बिरणा मुलुक तू भगणू,
क्यो चौका-तिबारयु स्यु मन्न नि लग्णु,
छुयों मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?
क्यो तेरु नौनु पहाड़ी नि बिन्ग्णु,
क्यो तेरा गों वू अपणु गों नि बुल्णु,
क्यो दाना ब्वे-बाबों का बारा नि सुच्णु,
क्यो त्वे से गोर-बखरू नि खुच्णु,
पैरवाक मा पहाड़ लिख्युं जैकू,
पहाड़ी नि छै, त कु छै तू?
आज त्यरू पहाड़ त्वे धै च लगाणु,
तू वेकु हि छै त्वे बडुली लगाणु,
कख छै लोला तू बिरड़दू जाणू,
त्वैकू ठंडी हवा, ठंडो पाणि धर्युं,
अर तू छै स्यीं गरम लू तख खाणु,
गरमन हाल बेहाल हुणू जैकू,
पहाड़ी अर बस पहाड़ी छै तू......
विजय गौड़
सर्वाधिकार सुरक्षित
१८.०९.२०१२
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