Author Topic: Poems & Songs written by Mr Vijay Gaur- श्री विजय गौड़ के लेख एव गीत  (Read 11228 times)

Vijay Gaur

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"उत्तराखंड मा संगीत-सिनेमा"

उत्तराखंड मा संगीत-सिनेमा कि आजै हालत से क्वी अजाण नि च, यन त येमा म्यरु मुलुक सदनि तिरस्कृत हि राई, पण बीचा कुच सालों मा जरा विस्वास सि ऐ छौ कि क्य कुच ह्वै जालु कि। आज उत्तराखंड सिने अवार्ड वला चन्द्रकांत भै कि पोस्ट "नि हॊन्दु रे जणी ऐन्सु यूका ............" पढ़ना क बाद मि अफु थैं रोकि नि पाई यु लिखण से। सच्ये आज क्वी नि आणु अग्नै प्रदेस मा ये उद्योग थैं बचाणु। कलाकार बस जन-कन कै द्वी पैंसि जमा कैरि कैसेट बणोंणा छन, क्वी फ़ौज क रुप्यों से, क्वी कूड़ी-पुन्गड़ी बेचि ये काम कना छन पण आखिर कब तक। टी-सीरीज, रामा क्वी बि अब पैन्सा लगाणु राजि नि, झणी क्य होलु, यी सचै पर चार लैन मा अपणा उदगार लिख्णु छौं, तुम बि अपणि सुणयाँ।

घर-बार कूड़ी-पुन्गड़ी फूकि कब तकै नचला हम?
यन भितरों जै-२ कि गाणों कब तकै बिचला हम?
द्वी चार मनख्यों क सारा इतिहास कब तकै रंचला हम?
मुलुक खणि मिलि-बैठि करणे कब तकै सुचला हम.. . . ?

विजय गौड़
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Jan Pratikriya:

Chandra Kant Negi: yahi haqeekat hai..

Vijay Butola: ·sahi baat hai ....

विजय गौड़: Sahi baat ch pan badi buri baat ch..muluk khuni abhisaap ch..

Chandra Kant Negi: विजय गौड़ ji kya aapko lagta hai ki is industry mein log Cinema ke vikas ko dhyan me rakh kar kaam kar rahe hain ??? ya adhikaans log apna souk poora kar rahe hain ?? jainsa budget wainsi quality !!!

Manish Mehta Sochniy .

Surendra Semwal: Pr iss gambheer samasya k liye kya hm or hamre Adrneey Log or hamari rajya govt kuch kadam utha rhe h....ki jisse iss uddhog or sanskrity ko bachaye ja ske.....pta nhi pahad k logon ko kab samajh me Ayega ki Agar kvi khin v hamare astitwa ki bat ayegi to.....Nam hme uss pahad ka hi lena padega...jisse hm bhagne ki kosis kr rhe h....Aj jhan pura word Samaj me apne astitwa k liye or apni sanskrity k liye har Ladayee k liye taiyyar h....or jarurat hone pr jan dene ko v taiyyar h....wahin hm apni pahchan se bhagne ki kosis kr rhe h....sacch me bahut durbhagyapurn h..............

विजय गौड़:  सच छाँ तुम बुलणा भाई चंद्रकांत जी, जिम्मेवरि लीणों क्वी तैयार नि, नतिजा यु च कि जु आणु बि च वेथैं अपणु बतोंण मा सरम च औणी. क्य कबि क्वी सेंसर बोर्ड होलु हमरु जैमा क्वी संवेदनशील लोखु कि टोलि होलि। Chandra Kant Negi

विजय गौड़: क्य कन, पुरण्यो न सच हि बोलि छौ, "बल ब्वै जिन म्येरि होंदि त रवै हि क्येकि छै"

Dev Deepu Sundriyal: क्या हुआ जो अभी, अपनी- अपनी फ़िक्र में उलझे हैं लोग मेरे गढ़ के!
जल्द वक़्त भी वो आएगा,
उनकी नादानी ग़ज़ब कुछ ढायेगी!
जाग भी जा ख़त्म अब नाराजी कर
फिर फना होने की बेला आयेगी!
मिल गया सन्देश तेरा देश को
आग चिंगारी यही सुलगायेगी!
!!!!!!!!!जय भारत जय उत्तराखंड!!!!!!!!!!!!!!!

Narendra Rawat: ekdum sache baat cha sabko sochna padega

Chandra Kant Negi: जहाँ तक मेरा मानना है ये एक गैर सरकारी इंडस्ट्री है। जिसको हमारे लोगों ने कभी भी रोजी रोटी का सहारा नहीं समझा (अगर समझा होता तो कलाकार वर्ग से आन्दोलन और धरने होते) तो सरकार भी इसको गंभीर नहीं ले रही।

एक एनजीओ भी सरकार से तभी मदद मांगती है जब वह कम से कम ३ साल तक अपने उद्देश्यों के अनुरूप काम करती है और सरकार को अपने कार्यों के प्रति आकर्षित करती है तभी सरकार उनको सरकारी सहायता प्राप्त एनजीओ घोषित करती है।

शुरू में कुछ ऐंसा काम हुआ था (1983 - 2000) की सरकार ने फिल्म पालिसी पर काम करना शुरू कर दिया था। लेकिन सरकार बदल गयी कलाकार बदल गए

विजय गौड़ आस त मिथें बि तनि हि च, दयेखा कथ्गा बगत लगदु। बस रैबार दीं ण वला भिंडी चयेणानDev Deepu Sundriyal ji..

विजय गौड़ कुच मिलि कि यनु करदा कि मुल्कौ भलु हो, युका थैं ठेरण नि दयेंण, यनु मेरु सुझाव च, अगर फिल्म नि बणदन त थ्वडा बदलाव कैरि पेश कनै कि कोसिस करला पण रुकण नि दयेंण, यनु म्येरू मत च, Chandra Kant Negi

Chandra Kant Negi: जब तक आप जनि विचार का कलाकार और दर्शक छन .. एक जिम्मेदार संस्था होणा का नाता हमरू प्रयास जारी रालू भुला

विजय गौड़: त पोस्ट डाला फेर!!
जरुर होलु ये साल बि यूका,
सिन नि लगण दयेंण हमुन,
संगीत-सिनेमा थैं जूँका !Chandra Kant Negi

विजय गौड़ Vinod Sirola ji bas like karan se hi kuch ni hon bhaare..apna vichaar jarur likha, yeen stithi se tum bi gujarna chhan ajkyaal..

Jagmohan Negi: sundar abhibyakti vijay ji...magar mera maana hai ki kuch sarthak banega to jaroor log accept karenge ..jaha tak YUCA ki baat hai unka prayas sarahniya hai....

विजय गौड़ Biklul sahi kaha aapne, lekin saarthak banaane ke liye log bhi to aage aane chahiye. Aage aane ke liye painsa chahiye, yahin aake hum sabki gaadi atak jaati hai. Creativity kya kare bechaari, arth ke aage sar jhukaye khadi hai, khaaskar hamaare chhetra ke sandarbh me to...Jagmohan Negi..

Vinod Sirola यंग उत्तराखंड जनि संस्था द्वारा यनु बयान सिनेमा जगत सी जुड़यां लोगु थैं demoralize कन्नू च, हालांकि भौतिक स्थिति भी कुछ यन्नी च पर या उत्तराखंड की यानि संस्था च जु उत्तराखंडी सिनेमा की अन्तराष्ट्रीय स्तर पछाण कराणि च कलाकार आप लोगु थैं देखिक अपड़ा काम मा गुणवत्ता लहाणा छन, या आपदा भूली नि भूलेंण्या पर उत्तराखंड थैं ईं बिप्दन लाग्यां मानसिक सदमा सि भैर निकालण मा आपकू सहयोग सर्वोपरि अपेक्षित च.......शायद यू यूका कु आधिकारिक बयान नि च,..............विजय गौड़ साहब आपकू सहयोग ये कार्य मा वाकई सराहनीय च.... 'घणा डालों बीच छिर्की आलू घाम तेरा मुल्क भी, सेक्कि पालै द्वी घडी छिन्न हौरी मुट्ठ बोटी की रक्ख'

Ramakant Dhyani @VIJAY ji aajkal ka gitar ar kalakar uttrakhand ki sanskirti par geet ni gana chi balki apani photo ar naam khuni gana chi in kam rala ta kudi pungdi beek b jali ta kwi fark ni poddu.

विजय गौड़ य ह्वै न बात.…
छंट्येलु अँधेरु, होलु उज्यालु सिंनक्वली,
ढान्डू-कांडों मा तब तलक तू सकणु रै!!!
हिटणा कु दियीं खुट्टी,
रै मनखी हिटणु रै!!!
बुटणा कु दियीं च स्या मुट्ट,
तू बुटणू रै!!Vinod Sirola

Vinod Sirola सिनेमा जगत की गुणवत्ता मा बदलाव औणु च, फेर बढ़िया फिल्म आर एल्बम तैयार होणी छन........ हम भी अपड़ी एल्बम मा क्वालिटी, culture अर Profesnalizam थैं सर्वोच्च स्थान देणा छां

Chandra Kant Negi "नि हॊन्दु रे जणी ऐन्सु यूका " यूका ह्वालू या नि ह्वालू सवाल यु नीच .. या सवाल वे हर फिकरमंद कलाकार या दर्शक कु च जैकी कुछ उम्मीद बंधे गये छाई कि हमारी फिल्म और सिनेमा थै लोगु का बीच पंहुचाणो एक मंच तैयार ह्वेगी लेकिन जब वेकि या उत्सुकता की ये साल कु कु फिल्म ह्वेली .. कन कन बणी ह्वेली, ये सवाल लेकि मार्किट माँ जांद त खौले रै जांद .. जब वु निराश ह्वेक वापस औंद और वी सवाल "नि हॊन्दु रे जणी ऐन्सु यूका"

विजय गौड़: ध्यानी जी मि यिख वुं गितेरों कि बात जमा नि कनु छौं, मि वुंकि कनु छौं जु भितिर बिटी कुच भलु कनै सोच दगड़ी लग्याँ छन। वुं थैं जनता -जनार्दन कु सहयोग भिंडी जरुरि च। पण लोग छन कि ३० रूप्या बि नि खर्चणा एक सी डी सणी, कैसेट नि बिकणी त कंपनी पैंसा लगाणु राजि नि, अर सच बि च, वोंन कब तलक बिन कमै क रौंण/रोण। Ramakant Dhyani

विजय गौड़: सिंन नि बोला कि,""नि हॊन्दु रे जणी ऐन्सु यूका"
तुमरा सारा कत्यों मन फुटणा छन कुंगला छ्युंका। Chandra Kant Negi, Vinod Sirola

भगवान सिंह जयाड़ा: गौड़ जी ,मैन अपरी गढ़वाली फिल्मु माँ जादा तर देखि ,उ सब अपरा उत्तराखंड का ही इर्द गिर्द ही घुमदी रांदी ,कुछ इन कथा बस्तु की जरूरत छ ,जै सी गढ़वाली फिल्मु की पहिचान कुछ इंडिया लेबल या वर्ल्ड लेबल पर होई चैद ,जै मा कहानी कार और गाणोंउ कु लिरिक्स लेखन मा कुछ तबदीली होई चैन्दी ,भाषा गढ़वाली त सर्बोपरी छ ,पर दूसरी भाशावो मा डबिंग की भी गुंजाइश की जरूरत होईं चैन्दी ,और दगड़ा मा कॉपी राईट की शक्त जरूरत छ ,जैसी गैर कानूनी ढंग सी कॉपी नि व्हे सकौंन ,, ,ताकि प्रोडूसर कै अपरा लगाया पैंसा मुनाफ़ा का साथ वसूल व्हे सकौंन ,मैं समझदु कि कलाकार ,गायक ,कथा बस्तु यूँ साबू मा कुछ तबदीली की जरूरत छ ,,बाकी आप लोग यां का बारा मा जादा जाणदा ,हमारू ता यु एक नजरिया छ ,,,

विजय गौड़ मि आपै बात से सहमत छौं। सिनेमा कि गुणवत्ता मा सुधार कि बड़ी जरुरत च। एक परेसनि य च कि राज्य तनि छ्वटु च, मथि बीटी द्वी भासा अर वेमा बि दिखदरा गिण्या-चुण्या। जब दिखदरा कम छन त लिखदरा बि स्वभाविक रूप से कम हि छन। एक समिति कि बड़ी जरुरत च, जैम कलाकार अर ब्यवसाय कि समझ रखण वला लोग बि व्हेन, ताकि हम येथें एक भासा आन्दोलन, सांस्कृतिक आन्दोलन क दगड़ी व्यवसायिक बि बणे सको, याँ से मुलुक म रोजगार क अवसर बि पैदा होला, पलायन बि रुकलु इत्यादि। पर य बड़ी लम्बि लड़े च ज्व केवल सोशल मीडिया पर हि न वे से भैर ऐकि वास्तविक जमीन पर लड़ण पोडली, तबि कुच होलु। Bhagwan Singh Jayara, Chandra Kant Negi, Manish Mehta, Vinod Sirola

Chandra Kant Negi विजय जी अपनी फिल्मों के प्रति दर्शकों का रुख एक बार फिर से मोड़ने के जरूरत है इसके लिए हम अपने गली मुहल्लों की संस्थाओ से बात कर के कुछ बेहतरीन फिल्मों को प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखा सकते हैं ताकि दर्शकों की फिल्मों के प्रति रूचि बढे और आगमी फिल्मो, एल्बमों के लिए अधिक से अधिक दर्शको की संख्या बढे।

उपाय कई हैं लेकिन जरूरत है सोचने की और अम्ल में लाने की

विजय गौड़: सच्चि बात, यनु हि कुच कन्न पोडलू, तबि कुच होलु।

Vijay Gaur

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"प्याज, परजा (प्रजा) अर पुजै"

आज मि तिथैं प्याज दयुन्लू,
भोल तू मिथें वोट दये,
ये देसकि सज-समाल,
फेर म्येरा हथों मा छोडि दये।

सस्तु प्याज अबि छौं दीणू,
सस्तु नाजों बंदोबस्त बि हुणु,
नाज-प्याज खै-खै कि, निचंद ह्वैकि तू स्ये जै,
ये देसकि सज-समाल,
फेर म्येरा हथों मा छोडि दये।

सासु जिन यु कै यालि,
पुन्गड़ी तुमरि मै दये यालि,
कमों बेटा इथ्गा प्याज, जु सासु चुनौ जीति जै,
ये देसकि सज-समाल,
फेर म्येरा हथों मा छोडि दये।

"पुजै" हैंका साल ह्वैलि,
धरयाँ तब तै स्यु प्याज च्वैलि,
दारु-बुग्ठ्या बि ऐ जालु, खै-प्ये वोट दये कि जै,
ये देसकि सज-समाल,
फेर म्येरा हथों मा छोडि दये।

फेर तू ना मै पछयाँणि,
खांण-प्योणे फेर छ्वीं नि लाणि,
हमरि मुखाभेंट फेर, हैंका चुनौ मा होलि भै,
ये देसकि सज-समाल,
फेर म्येरा हथों मा छोडि दये।   

Copyright @ Vijay Gaur
२२/०८/२०१३
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Vijay Gaur

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भोलै, भोल हि दिख्ये जालि!!!

भोलै सोचि मि डरु किलै,
भोलै, भोल हि दिख्ये जालि,
अबि ह्वै जौं अध्म्वरु किलै?

काम-धाणी आजै बचिं अबि,
जरा वे निमाडि ल्या त पैल,
सुबेरो घाम ऐ नि कखि,
तुम दिखण लग्याँ अछेल,
जै गौं मिन जाण हि नि,
वेकु बाटु मि हयरु किलै?

भोलै सोचि मि डरु किलै,
भोलै, भोल हि दिख्ये जालि,
अबि ह्वै जौं अध्म्वरु किलै?

आजम ज्योंण सीखि ल्या जरा,
भोल रै जाला बस टपकरा,
आज भुकि छाँ कि भोलकु बचौन्ला,
भोल कैन नि दयेखि, खाणु छ्वड़दरा,
जु जलम ल्यालु, खै-कमै बि ल्यालु,
अफु मा कर्युं तिन, स्यु गरु किलै?

भोलै सोचि मि डरु किलै,
भोलै, भोल हि दिख्ये जालि,
अबि ह्वै जौं अध्म्वरु किलै?

विजय गौड़
Copyright @ Vijay Gaur 23.08.2013\
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Vijay Gaur

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"उरख्यलि"

दगिड्यो,
आज सब्यों कु परिचय एक यनि चीज़ से कराणु छौं जु हमरा इतिहास मा बड़ी ख़ास जगा रख्दि छै। आज जरुर नै ज़मना क नौन्याल बुल ला कि मि क्य बात कनु छौं पण सच यु च कि यांकु हम सब्यों क वास्ता बडू योगदान रै। वे ज़मना मा यु दिख्ये जा त ब्वै कु हि रूप छौ। मै बात कनु छौं "उरख्यलि" की ज्व कबि हरेक चौकै तिरालि दिख्यान्दि छै, जैमा रोज नाज कुटेंदु छौ अर फेर हम खांदा छाया। आज य विलुप्ति कि कगार पर च, पर मि नि चंदु कि हम यीथैं यन बिसरि जा। एक कविता हमरा पुरण्यों कि ईं सैन्दाण "उरख्यलि" थैं समर्पित।

बिसरी ग्याँ तुम जैथैं, मै व़ी नखरयलि छौं,
जरा पछ्याँणा त भुलों मैथै, मै तुमरि हि उरख्यलि छौं।

तुमरु मेरो साथ साख्यों बिटी च,
ब्वै क हतु कि रुटलि, भैणि राख्यों बिटी च 
तुम भूकन कबि रुयाँ त मि ब्वै बणी ग्यों,
मौस्याँण सि चा रयुं भैर, पण मौस्याँण कबि नि रौं,
मि सुप्पु कि दगड्या अर दीदि गंज्यलिक छौं,
पछ्याँणि तुमुन मैथै, मै तुमरि हि उर्ख्यलि छौं।   

ददि-दाज्यों बारम भुलों बड़ी सज-समाल छै,
धुवै-पुछ्ये कि, रोज कुटे कि होंदि जग्वाल छै,
ब्यो-पगिन्यों बेर मैमु बि रान्दि हल्दयाण छै,
बार-त्योहारों कि वे बगत अहा कनि रस्याँण छै,
पितरों कि सैन्दांण भुलों, मै नाजै औंज्यलि छौं,
पछ्याँणि तुमुन मैथै, मै तुमरि हि उर्ख्यलि छौं।   

अब मुल्कौ रीत-रिवाज सि मि बि हर्चि ग्यों,
नै ज़मानै दौड़-भागम भुलों, मि नि दौड़ी सक्यों,
खेति-पात्यों जब नाज हि क्वी नि बुतणा,
उरख्यली, जन्दरि फेर कैन सुंगणा?
पाणी जैकु प्योणु नि क्वी आज, मि वा नवलि छौं,
पछ्याँणि तुमुन मैथै, मै तुमरि हि उर्ख्यलि छौं।   

कॉपीराईट @विजय गौड़ २७.०८.२०१३ 
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Vijay Gaur

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साबधान, मेरु मुलुक, साबधान !!!!

दगिड्यो,
आज फेर मुल्कौ आवाहन कनु छौं, इन्टरनेट द्वारा उपलब्ध ये सामाजिक माध्यम द्वारा। हम्थैं नयु राज्य मिलि अब १३ साल ह्वै ग्येनि पण हमरि स्तिथि जख्यातखि च, राज्य बणु छौ पहाडों क वास्ता पण पाडों मा हि कुच नि ह्वै। आज बगत बुनु च कि एक हैंकु आंदोलन चयेणु उत्तराखंड मा, पहाड़ क वास्ता, पाड्यों क वास्ता। दगड़ा दगड़ी अकलबर बणी यन बि दिखण कि कखि फेर यनु नि ह्वै जा कि बीज बूता हम अर कुन्ना भरि जै हौरों का, जन उत्तराखंड राज बणणों बगत ह्वै। ये हि विषय पर कविता लिखि आवाहन कनु छौं सब्यों से, रैबार जरूर पौञ्चलु, यनि आस च, विस्वास च।


साबधान, मेरु मुलुक, साबधान !!!!   


कबि खुटी ज़मीन नि छोड़ त्येरि,
अर टक नि छोड़ कबि असमान,
भैऱ्या पछ्यण्या बैऱ्यों से पैलि,
रै भितरै अजाणों से साबधान !!
साबधान, मेरु मुलुक जरसि साबधान!!
ब्वल्युं मान, बगतौ ब्वल्युं मान।

जब तू अयूँ छौ सड़क्यों मा,
कुच चिलांग बैठ्याँ छा खिड्क्यों मा,
वुख तू लड़णू छौ सड़क्यों मा,
वू मौका द्वपणु छौ खिड्क्यों मा,
फेर नै लड़े लड़ण से पैलि,
जरा यूँ द्वी-चारों से साबधान!
साबधान, मेरु मुलुक जरसि साबधान!!
ब्वल्युं मान, बगतौ ब्वल्युं मान।

बालु नि रै तू बडू व्है ग्ये अब,
तेरह सालम छड़छुड़ू व्है ग्ये अब,
मनखि पछ्यणणों बगत ऐ ग्ये अब,
हौरों सारा तू भिंडी रै ग्ये अब,
अपड़ू समझि बुलंण से पैलि,
जरा जैचंदों से साबधान!!
साबधान, मेरु मुलुक जरसि साबधान!!
ब्वल्युं मान, बगतौ ब्वल्युं मान।

देस खुणि सहीद होणो इतिहास रै बुलंद त्येरो,
भविष्य नौन्यालु कु हेरुणों घौर बिटी मुखुंद त्येरो,
तौं उठै कि उन्द लि जैकि काज नि होण हल त्येरो,
यिखि पौढ़ी जब यिखि कमैलो, भाग तबि सुफल त्येरो,
भोलै पुन्गड्यों हलाहल से पैलि,
बीज त बूत ये बर्तमान,
साबधान, मेरु मुलुक जरसि साबधान!!
ब्वल्युं मान, बगतौ ब्वल्युं मान।

रचना: विजय गौड़
कॉपीराइट @ Vijay Gaur २६/०८/२०१३                 
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आज ज्यू बोलि कि ज़िन्दगी म होंदि घट-बढ़ पर कुच लिख्ये जा, सच ब्वलु त वुन लिख्णु भिंडी दिन बिटी छौ पर आज यनु लगि कि सब्यों दगड़ी साझा करये जा। अब जु बि लिख्ये, सब्यों समणी च , भलि होलि त लोग भलु बोल ला, निथर म्यारू लिख्युं मै मा हि रालू। नमस्कार। ……. विजय गौड़

'ज़िन्दगी'

कबि हैन्सै, कबि रुवै जख,
क्य तुम बि गयाँ वे गौं ?
'ज़िन्दगी' जैकु नौ।
कबि घाम, कबि बथौं।।

भला दिन बि लान्दि या,
त कबि दिन बुरा कै जान्दि या,
भला-बुरा कर्मों कु फल बि,
यिखि चखै चलि जान्दि या,
फेर बि खाणु रांदु मनखि,
दिब्तौं झूटि सौं,
कबि घाम, कबि बथौं।।

कबि हैन्सै, कबि रुवै जख,
क्य तुम बि गयाँ वे गौं ?
'ज़िन्दगी' जैकु नौ।
कबि घाम, कबि बथौं।।

कैकु दिन त कैकि रात यिख,
पण सब्यों होंद बकिबात यिख,
वेकि मर्जि न रिन्गदा मनखि,
खिल्दा फूल, झड़दा पात यिख,
सज-समालि धैरि रे लाटा,
चिफला बाटों स्युं खुटों,
कबि घाम, कबि बथौं।।

कबि हैन्सै, कबि रुवै जख,
क्य तुम बि गयाँ वे गौं ?
'ज़िन्दगी' वेकु नौ।
कबि घाम, कबि बथौं।।

दिलै सूणा, मनै बोला तुम,
जैथैं चैल्या, वेका ह्वै ल्या तुम,
सुपन्यलि आख्यों मा,
स्वीणों सजै ल्या तुम,
द्वी दिना कु मिलीं च दगिड्या,
काट- काटी नि बितौ,
कबि घाम, कबि बथौं।।

कबि हैन्सै, कबि रुवै जख,
क्य तुम बि गयाँ वे गौं ?
'ज़िन्दगी' वेकु नौ।
कबि घाम, कबि बथौं।।

विजय गौड़
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Reactions on Facebook:

Virendra Dobriyal : bahut sunder bahut badhiya..

भगवान सिंह जयाड़ा

कबि हैन्सै, कबि रुवै जख,
क्य तुम बि गयाँ वे गौं ?
'ज़िन्दगी' जैकु नौ।
कबि घाम, कबि बथौं।।
---------------------
बहुत मार्मिक रचना छ श्री गौड़ जी ,,,बस मन कै छूण वाला भाव छन ,,,बहुत सुन्दर ,,,,

भगवान सिंह जयाड़ा
बस आप यनि लिख्दु रवा गौड़ जी अपरी मात्री भाषा मा,बहुत अच्छू लगदु और साथ मा गर्व भी महशूश होन्दु ,,,,धन्यबाद आपकू ,,,

Sudesh Uniyal
kabhi gham kabhi batho......ati sundar rachna gaur jiii

Ramakant Dhyani
कबि घाम कबि बथौँ" शब्द चयन मेँ नयापन, बहुत सुन्दर

Chandra Mohan Negi
द्वी दिना कु मिलीं च दगिड्या,
काट- काटी नि बितौ,.........bahut sundar ...

Jagpal Rawat
 'ज़िन्दगी' वेकु नौ। कबि घाम, कबि बथौं।। बहुत सुन्दर

सतेन्द्र रावत
बहुत सुन्दर विजय भाई.........................................

& Many more...

Vijay Gaur

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"घंग्तोल अर दद्दि"

दगिड्यो,

आज फेसबुकै कनि बौल अयीं च, हम सब्बि जणणा छाँ, जै थैं जबि मौका लगणु, कुच्ये जाणू फेसबुक पर।  ब्यालि मिन एक अपडेट पढ़ी, कैन गौं मा डल्युं छौ कि भारै जै का गोर होला, हमरा पुंगड़ा उज्याड़ खाणा छन, जैं बि मौ क छन, लि जावा निथर हमुन गुठ्ये दीणन। द्वी-चार मिनट मा हि वेपर कथि 'लैक' बि ऐ ग्येनि, त बतावा ये फेसबुकन गोर त गोर, गुसैं बि उज्यड़ा बणै यलिंन, निथर ब्वाला दि गोर उज्याड़ खाणा न अर लोग "लैक" कन्नान, बकिबात च।  यनि फेसबुक स्ये परेसान 'दद्दि' कि छ्वीं लगाणु छौं जैंकु नौनु-ब्वारि त दूर नाति-नतिणा, यिख तक 'बाई' बि येमा हि व्यस्त छन,  'दद्दि' न "नाति"  जैकु नौ "घंग्तोल" च,  कु हात पखड़ी अर चलि ग्ये डाक्तार मा, जू अफु बि फेसबुक मा हि लग्युं छौ, त ल्यावा 'दद्दि' अर "डाक्तार" कि छ्वीं "घंग्तोल" क रोग पर जु अज्युं बि मोबैल पर हि लग्युं, बक्कि क्वी खबरसार ना .…


बिन तप्याँ हुयुं टट्गार,
मसाण लग्युं कि पित्रों असगार,
नाड़ नबज बि चलणी ठीक,
अयूँ लोलु यु कनु बुखार,
त्वै बि क्वी खबरसार,
बतौदि बेटा डाक्तार?

जांदू च त आन्दु नि,
ऐ बि त बच्यांदु नि,
कबि मोबैल, कबि कम्पुतार,
हौरि कुच खुज्यांदु नि,
कबि बैठि, कबि लम्पसार,
कनु क्य रांदु लगातार?
बतौदि बेटा डाक्तार?

For complete poem visit my blog http://vijaygarhwali.blogspot.in/.......

Vijay Gaur

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अज्क्याल यूँ नेतों थैं जनता खुणी कुच कनों कु बड़ु ख्याल आणों च, नया -२ बिल, आर्डिनेंस पास हूँणांन। मिथैं बि यु पर लिख्णों ज्यु ब्वैलि ग्ये, अखिर कब तलक मि अफ़ि -अफ़ि सुच्णु रांदु। भारे! पसंद आलो त टक लग्वै बथयाँ।

भारत निर्माण !!!

६५ सालों बिटी राज पाट तुमारो,
फेर अज्युं तलक रयाँ कन अजाण,
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??

साख्यों बिटी त लबड़खंड हि छाया,
अफ़ि धरीं छै सैरि मुल्कौ माया,
अपणा पुट्गा क्य छिकै यलिन,
जु जनता पुट्गा खुणि कानून ऐ ग्याया ?
क़ानून त जरुर लै ग्याँ तुम,
भुर्र्येलि बि थकुलि, कुज्याँण, कुज्याँण ??
अचणचक निंद कनि टुट य तुमरि,
जु कन लग्याँ भारत निर्माण ??

For complete poem, please do visit my blog http://vijaygarhwali.blogspot.in/

Copyright@ विजय गौड़
०९। ०९। २०१३ 

 

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