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Poems written by Bhagwan Singh Jayara-भगवान सिंह जयड़ा द्वारा रचित गढ़वाली कविता
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dosto,
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भगवान सिंह जयाड़ा13 hours ago**रात कु सुपिन्यु **
रात मैन एक प्यारु यनु सुपन्यु देखि ।
हरीं भरीं धरती छई बांज बुरांस कखी ।।
ह्युवाली डांडी काँठी,सफ़ेद चादर जन ह्यू ।
बार बार देखण जैकू करदु थोउ ज्यू ।
माँ बाबू कु, बचपन कु ऊ दुलार देखि ।
भैई बैणों कु , बचपन कु प्यार देखि ।।
ग्वेर दगड्यों कु ऊ पुराणु उलार देखि ।
स्कूली दगड्यों कु पुराणु प्यार देखि ।।
दाना सयाणु कु उ पुराणु दुलार देखि ।
डाली बुटिल्यों कु प्यारु मौल्यार देखि ।।
कखी गाड़ गद्न्यों कु स्यूस्यातट भारी ।
हरीं भरी धरती कन लगदी थै प्यारी ।।
लैया ,पंया फ्ह्योंली का फूल था प्यारा ।
बुरांस का फूलुन जंगल लगदा था प्यार ।।
सभी जगा थैई छायीं जख बसंती बयार ।
सभी लोगु मा देखि एक अनोखू उलार ।।
प्रेम प्यार देखि मैन जख सबू मा न्यारू ।
हकीकत सी लगी मैं यनु सुपन्यु प्यारु ।
देवी देव्तोऊ का मंदिर देख्या मैन सारा ।
दर्शन करण कु जाण्या जख लोग सारा ।।
गॉऊ की चहल पहल जन फिर बौडी एगी ।
पुराणु रीती रिवाज जन फिर लौटी एगी ।।
एक बिसरीं जिंदगी फिर जन याद एगी ।
हकीकत की जिंदगी जन मैं बिसरी गैगि ।।
सुबेर जनि मेरु आंख्यों कु सुपिन्यु टूटी ।
सभी देख्युं करयूँ वखि पहाड़ मा ही छूटी ।।
या सपनों की दुनिया भी क्या छ न्यारी ।
सेयाँ सेयाँ मा ही दुनिया घुमौंदी सारी ।।
रात मैन एक प्यारु यनु सुपन्यु देखि ।
हरीं भरीं धरती छई बांज बुरांस कखी ।।
द्वारा रचित >भगवान सिंह जयड़ा
दिनांक>21/02/2013
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M S Mehta
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
भगवान सिंह जयाड़ा ***मन मिटाव किलै ***
मन इन्शान कु किलै बदली जांदू ।
एक जनु यु सदानी किलै नि रांदु ।।
द्वेष भाव किलै यख मन मा औन्दू ।
अपुरू किलै यख हम सी दूर जांदू ।।
जै अपुरु समझदा किलै मुख फ़ेरदु ।
अफु अफु मा ही किलै फुकेंदु रांदु ।।
किलै मन मिटाव अपरोऊ सी होंदु ।
अपुरु किलै कभी मुख मोड़ी जांदू ।।
मन कु यु मैल हटौण पडौलू पैली।
प्रीत प्रेम तब यख सदा बणी रैली ।।
छोटी छोटी बातु पर कभी नि रूठा ।
मिली जुली राँण कु तुम खड़ा ऊठा ।।
नि रौवा आपस मा यख मुख मोड़ी ।
प्रीत प्यार रखा सदा यख थोड़ी थोड़ी ।।
आपसी प्यार जब यख यु बण्यु रालू ।
जिंदगी जीण कू तब सच्चू मजा आलू।।
मन इन्शान कु किलै बदली जांदू ।
एक जनु यु सदानी किलै नि रांदु ।।
द्वारा रचित >भगवान सिंह जयड़ा
अबुधाबी (यूं .ए .ई .)
दिनांक >18/02/2013
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
From - गवान सिंह जयाड़ा एक कल्पना मेरे मन की ,,,,,
******साहिल और लहरें ***
लहरों ने छेड़ा कुछ यूँ ही साहिल को ,
तुम सदा खामोश निष्चल क्यों रहते हो ,
हम बेताब रहते है तुम को मिलने को ,
तुम हो कि इजहार तक नहीं करते हो ,
साहिल ने कहा तब मुझे क्या जरूरत है ,
तुम सदा हमें गले तो मिलते रहते हो ,
थपेड़ों का अहशास तो जरूर होता है मुझे ,
मगर मैं अचल निष्चल को मजबूर हूँ ,
दिल तो मचलने को मेरा भी करता है ,
मगर क्या करू बंदिशों से जकड़ा हुवा हूँ ,
अगर जज्ज्बात में अपनी हद तोड़ता हूँ ,
तो क़यामत सी आ सकती है जमीं पर ,
तुम मनचलों का क्या भरोंसा है यहाँ ,
तुम कहाँ तक चली आओगी जहां पर ,
फिर तो साहिल की क्या हैशियत यहाँ ,
इस जहां पर सकल तुम ही मचलावोगी ,
सारी धरा पर तब तुमारा ही राज होगा ,
जमीन सारी तुम में बिलींन हो जायेगी ,
जल प्रलय का मंजर होगा सब जगह ,
तुम्हारी मौज मस्ती मुझे महँगी पड़ेगी ,
कोशता रहूँगा तब हर पल अपने को ,
सोचता हूँ हर पल सदा इसी सपने को ,
इस लिए मत छेड़ो मुझे यूं इस कदर ,
नहीं तो भटकती रहोगी सदा यूँ दर बदर ,
मुझे निष्चल खामोस सदा यूँ ही रहने दो ,
बस यूँ ही मिलने का सिलसिला चलने दो ,
द्वारा रचित >भगवान् सिंह जयाड़ा
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
भगवान सिंह जयाड़ा गाँव कु पढ़ी लिख्यु एक लड़का जब प्रदेश जांदू ,और बिदेश तक पहुंची जांदू ,बहुत सालू का बाद अपरा गंवाड्या दगड्यों कै मिलदु त कनी बात करदू ,,,
****सभ्यता की ब्यथा ****
हल्लो ब्रदर हावु आर यू,
मैन बोली वे तै मैं ठीक छऊ ,
पर भुला त्वेतै यु क्या होई ,
अपरी बोली भाषा बिसरी गैई ,
स्यु बोलदु ,फॉरगेट ओल्ड डेज ,
नाउ आई ऍम गोइंग अनादर वेज ,
मैन ब्वाली भुला तू अब बदलीगी ,
अपरी सौ सभ्यता भी बिसरिगी ,
गोरु बाखरा हमुन दगड़ी चरैन ,
स्कूल भी गाँव माँ हम कठ्ठी रैन ,
स्यु बोलदु, नाव वी हैव एवेरी थिंग ,
आई कैन बाई नाव एवरी थिंग ,
मैन बोली भुला स्यु त सब ठीक छ .
पर तेरा मन मा कतै सकूंन निछ ,
तभी त पहाड़ आज खाली छ होणु ,
दानु प्राणी यख बिपदा मा छ रोणु ,
हम घर्या लोगु तै नि दिखावा शान .
नितर हमुन भी बौण भैर चली जाण ,
तुम्हारा ब्वे बाबु कु हम रखदा ध्यान ,
अर तुम छाँ कि,किलै यथगा गुमान .
अपरी जन्म भूमि कु करा तुम मान ,
जन्म भूमि होंदी जन माँ का समान ,
बौंण भैर जैकी खूब पावा मान सम्मान ,
कभी भी अपरी बोली भाषा नि भुलान ,
औणु अपरू सदा तुम यख करदी रवा ,
अपरी संस्क्रती तै कभी न भुलावा ,
तब तै भुला का समझ मा बात आई ,
मन ही मन मा स्यु बहुत पछताई ,
बोल्दु भेजी मैं तै तुम माफ़ करयान ,
आज बीटी सदा मैं यु रखुलू ध्यान ,
जै सी नि घटु कभी मात्री भूमि कु मान ,
अपरी संस्क्रती तै सदा याद रखुलू ,
अपरी बोली भाषा कु सदा मान करलू ,
तब द्वि लब्ज मैन ब्वाल्या अंडर स्टैंड नॉऊ ,
स्यु बोल्दु भेजी अब ता मैं कभी न भुलोउ ,
मैंन बोली ओके भुला थैंक्यु बाय बाय ,
अबकी बार अपरा घौर तू जल्दी आई ,
अबकी बार अफु अफु इकुली नि आई ,
बाल बच्चों कै भी एक बार गढ़वाल दिखाई ,
द्वारा रचित >भगवान् सिंह जायाड़ा
आबूधाबी (यू .ए .ई .)
दिनांक >14 /02/2013
http://pahadidagadyaa.blogspot.com/
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
From - भगवान सिंह जयाड़ा ****यु कनु बदलाव *****
नि सुणेदी कखी गोरु की घाडुली ।
नि बजदी कखी ग्येरू की बांसुरी ।।
हर्ची गैन कखी घर की जांदुरी ।
कख हरिची होली घर बुणी मांदुरी ।।
बांजी पड़ीग्यन गोंऊ की ऊखल्यारी ।
रतब्याण माँ उठदी थई बेटी ब्वारी ।।
हर्ची गैन कखी अब ऊ झुमैलू गीत ।
हर्ची गैई कखी उ मनिख्यों की प्रीत ।।
नि लगदी अब बैखारू की कछड़ी ।
ह्युंद की रातू बैठदा था कभी दगडी ।।
हर्ची गैई कखी कौथग्यारू की टोली ।
खेला मेला होन या दीपावली ,होली ।।
तीज त्योहारु की रौनक भी नि रैगी ।
हर्ची उलार यख देखा कनु बक्त एगी ।।
भली लगादी थई घस्यार्यों की टोली ।
हेंसुणु खेलणु और मुंड मा गडोली ।।
ब्याखुनी कु घर ओंदा गोरू की लैन ।
उ पूराणा दिन नि जाणी कख गैन ।।
मौसम बदल्न्यु छ ,बदलगी यख हवा।
विनती छ मेरी सभी मिली जुली रवा ।।
अपणी संस्क्रती सी बिमुख नि होवा ।
पुराणी सभ्यता अपरी कुछ त बचावा ।।
नि सुणेदी कखी गोरु की घाडुली ।
नि बजदी कखी ग्येरू की बांसुरी ।।
द्वारा रचित >भगवान सिंह जायाड़ा
दिनांक >14 /02 /2013 — with Rajpal Panwar and 28 others. भगवान सिंह जायाड़ा दिनांक >14 /02 /2013" height="403" width="403">
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