Krishna Nayal किस कदर झुलसा जीवन (हिटो पहाड़).
वादियाँ मेरे गाँव की मुझको बुला रही है.
वाह रे मन, तुझको तो सिक्को की खनक भा रही है..
सब कुछ लूट जायेगा, क्या तब तुम जाओगे.
भिखरा हुआ आशियाना, क्या फिर सजाओगे..
मुंगेरी लाल के सपने मुझे झूले में झुला रही है.
वादियाँ मेरे गाँव की मुझको बुला रही है..
विनाश काले बिपरीत बुद्धि कितना सत्य लगता है.
टपक पड़े जब बूद पत्थर पर, पत्थर भी घिसने लगता है..
मुरझा रहे है फूल खुशियों के, और मन चाँद को पाने का सपना दिखा रही है.
वादियाँ मेरे गाँव की मुझको बुला रही है..
बेखबर हम है, उस जमीन पर किसी और ने ठिकना कर लिया.
सर छुपाने की जिद्दोजेहद में जिंदगी को परवाना कर दिया..
जलकर सबकुछ खाक हो जायेगा एक दिन, दर पर आज बर्बादी की चिंगारी सुलगा आये है.
वाह रे मन, तुझको तो सिक्को की खनक भा रही है..
वादियाँ मेरे गाँव की मुझको बुला रही है.
वाह रे मन, तुझको तो सिक्को की खनक भा रही है..
(अशोक नयाल दा रचित ये सुन्दर पंकतिया) — with
Geeta Chandola and
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