Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32055 times)

Bhishma Kukreti

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********म्यारू गौं********एक हर्चदु चित्र *****

My Village Loosing Charm

 

रचयिता डॉ नरेन्द्र गौनियाल

 

 


म्यारू गौं
गौं कु बाज़ार ,मुख्य द्वार
सब बदली गे
दूध दही घ्यू कखि ना
दुकन्युं माँ सिर्फ
बीडी-सिगरेट, पान मसाला
चरि तरफ दरोल्यों कु शोर
बाज़ार का बीचों-बीच
सरकारि दुकान गल्ला की बि च 
पण दूर एक कुणा माँ सिर्फ नामै
राशन मैना माँ मुश्किल से एकदा एक द्वी मुट
मगर शराब रोज छक्वे 

म्यारू गौं कु कोलिन
यकुडू बल्द बेची दे
क्वलड़ू निकाली कै एक तरफ धैरियल
ठुलू नौनु पुरानी दिल्ली माँ
एक सरदार जी की दुकानी माँ चिपगी गे

चैत का मैना औजी लोग 
जागरण अर प्रतिष्ठा गीत गैकी चैत मंगदा छाया
ब्वै ऊंते गयुं-धन.शक -सब्जी ,लूण-गुड़
पैसा-ध्यल्ला-तम्बाकू दीन्दी छै
वो  लिक्य की सौभाग्यवती नौणी का घर
दुःख-सुख द्य्खनो जान्द छा
अब न औजी रैगेनी अर न लिक्या
न रिवाज

म्यार गौं माँ
अब नि आंदी वो फुल-संक्रांद
जब रुडिया कि बनयीं बांस-रिंगाल कि
छवटी -छवटी फुल्कंडीयों माँ 
खेलदा छा फूल
आन्दु छौ रंगीलो बसंत

अब नि दिखेंदा
दादी का कंदुड़ों मुर्ख्ला-मुंदडा
गौलुन्द हंसुला-करेला
ब्वै का गौलुन्द गुलोबंद

अब नि लगदी
कै बि तिबारी माँ कछ्डी
हर्ची गे दादा जी कि फर्सी
ह्युंद का दिनों
सब्युं कु एक घेरा माँ बैठी कै आग तापणु
बीरा भैणी अर सात भयों कि कथा
सब हर्ची गे
काला भट भूजी कै बुकाणा
लाल पानी अर गुड़ कि कटाग
अखाणा-पखाणा बज्जी लगाणा
तू चल मी आन्दु छौं क्या ?....

म्यार गौं का घराट का द्वीइ पाट 
अर छत कि पटाल
सब बिकी गैनी
सिर्फ बचीं छन उजड़ी पाळी   
घौर मा जंदरा को हथनाड़ो निकाली याली
ब्वे कि वैम अब लालटेन टकीं रेंद
गंजेली बि संभाली कै
टांड मा धैरी याली
उर्ख्यला मा अब हमारू भोटू पाणि पींद

सुबेर रतबियान्य मा अब नि सुणेदी
जन्दरों कि घर्र-घर्र  उर्खेलों मा घम्म-घम्म
सिप्पा सी-सी सिप्पा सी-सी
सुबेर पुंगडा  मा बल्दों कि जोड़ी तै हकान्दा
हल्या कि आवाज ले-ले, या-या, दू-दू ,बू-बू
कम ह्वैगे
अब वो दिन सिर्फ याद बणी गैनी
जब पुंगडा मा 
हल्या अर डलफोड़ा ननद-भौजी खुण
रिगाल कि कंडी मा
आंदी छै कल्यो कि रोटी
प्याज-दै कु रैतु
सोंधी-सोंधी खुशबु वलु छीमी-मूला को साग

अब नि रैगे चौमास मा
हर रोज हैंकि पुण्डी मा सरकणि वाळी गोठ
कख हर्ची गैनी
बांस-मालू अर छैड़ी का फडिका
हर्ची गे वो गोठ बंदी का दिन पकण वलि खीर

अब नी दिखेंदा-सुणेंदा
लोकगीत थड्या-चौंफुला
''ओ दरी हिमाले दरी, ता छुम-ताछुमा दरी
नचद दा  एकी दा खुटा उन्द अर उब
धम्म-धम्म,धम्मा-धम्म
एक जनि आवाज
एक जीवन शैली 
निर्विकार मनोरंजन

अब नी रैगे
जेठ-आषाढ़ मा सेरों मा सट्टी कु रोप्णु
तिमला अर कंदार का पत्तों मा खएंदी रोटी
बिष्ट बूबाजी कु बणायो
आलू-प्याज अर काला चनों कु चटपटो साग
कैना डाली मूड लूण राली कै
पत्बेडा पर पकयाँ गड्याल
मंडुवा का टिक्कड़ दगड़ नौणी कु गुन्द्को

अब त लोग 
बिसरी गैनी छ्वै लगाणु
हर्ची गैनी शहद कि कमोली
मौनों कि कुड़ी अब भरीं रेंद
दारू कि खाली बोतलों से

गौं मा अब नी हूंदा कौथिग 
जख मिलदी छै
मौसी कि लयीं मास कि ब्यडा रोटी
क्याला का पत पर मुंडयेडा लपेटी कि धरीं
बूढी नानी का हाथों बणी खीर
मेला अब झमेला ह्वैगेनी

हमर गौं का पंडजी कु नौनु
पढे-लिखै मा बेकार ह्वैगे
कुछ दिनों बीटी ब्रास बैंड दगड़ी गितार ह्वैगे

अब नी सुनेंदी
चौमास का दिनों जंगल मा
सफ़ेद घैणी कुयेड़ी का बीच
बिंदुली गौड़ी का गौलुन्द बंधी घांडी
बंसुली कि धुन
''कैल बजे मुरूली ओ बैणा ऊँची -निसी डांडीयों मा''

 गौं मा पैली
घुघूती घुर्दी छै त खुद लगदी छै
कोयल कुकदी छै त गीत बणदा छा
काणों का काँव-काँव पर
क्वी औण लग्यां इन समझदा छा
आज यू कुछ नि रैगे

अब म्यार गौं का नौना नि जणदा
क्य हूंद तमोली ,कमोली,नवला अग्यार,गुठ्रयार 
जन्दरी,घरात,गंजेला,उर्खेला
ढांकर-ढांकरी ,मंडुवा कु टिक्कड़ ,कंडली कु साग
भ्यूंल-गालण छवे,पिट्ठू,गुलीडंडा

सब हर्च्युं-हर्च्युं,बदल्युं-बदल्युं ,बिखर्यों -बिखर्यों सी

पतानी कख गै
वो जीवन ,वो लोग
कख गै म्यारू गौं .............


सर्वाधिकार : डॉ नरेन्द्र गौनियाल
--

Bhishma Kukreti

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कुछ तिड़का

रचयिता - डॉ नरेन्द्र गौनियाल   


**********आंसू ********
यो लाटा आंसू बि
च्वीं जन्दीन
सुद्दी-सुद्दी
तर्पर-तर्पर
अर लोग ब्वल्दिन
स्वांग कर्नू रैंद.

********मजबूरी ********
मै तै पीण पड़द
सदनी
संतुष्टि कु टॉनिक
किले कि मी
शंकालु छौं
आशावाद का प्रति

***********हींस **********
पर्याउ गौड़ी कु ऐणु
भौत बडू
पण
दूध
पाणि से बि पतळु द्यखद
हरेक पड़ोसी         

*******सबूत *****
द्वी भयों कि
आपसी एकता
अर प्रेम रूपी फल कि दाणी
कर्द फट द्वी फाड़ी
पुन्गडी का बीच मा
मुल-मुल हैसदो
वाडू  ...........................
.....डॉ नरेन्द्र गौनियाल   


Bhishma Kukreti

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***********************फरक *************************



रचनाकार - डॉ नरेन्द्र गौनियाल




१-*****नौनी *****
खाणी  छै त
खैले
निथर
त्वीत पायीं छै
नहे-धुएकी
त्वे बिजरि जि
हूणों च
यख करलु

२-******नौनु *****
खैले ब्वे
खैले रे
या खैले खैले
म्यारू लाटा खैले
म्यारू ट्वाका खैले

३-*****दर्रे *****
सुवै बोडिन
भितर बिटी
भैर ऐकि बोलि-
भगवान कि कृपा से
ब्वारी कि जान छुटीगे
भैर चौक मा बैठ्याँ
बैख अर ब्यठुलों न पूछी-
क्य ह्वै ?
नौनु कि ..
बोडिन बोलि -
लछमी हुयीं च लछमी !
सुणि कै
सब्बू का मुख बिटी
छुटीगे
दर्रे .!..

४-******छलक्वन्य पाणि *****
नौना तै
घुसीं रोटी
नौणी कि गुंद्की
अर
नौनि तै
कपला को छल्क्वन्य पाणि
 
५-*****नौनि अर ब्वारि*****
अपणी नौनि तै
ससुराल मा
सुखी अर
खुश द्यखन चान्द
अपणी ब्वारि तै
सदनि
परेशान करण वाली सासु ........                       
          डॉ नरेन्द्र गौनियाल
Copyright@ Dr. Narendra Gauniyal


Bhishma Kukreti

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*********हिसाब **********

(Satirical Garhwali Poem , गढ़वाली  व्यंग्यात्मक कविता, )



डॉ नरेन्द्र गौनियाल


अपणि टीबी  की मरीज
अंत-पंत हुयीं घरवळि  बान 
द्वी दिन की दवै खुण
श्रीमानजी अपनी खीसी  टट्वळदन हाथ पर अयूं
सौ कु नोट अर एक दस रुपया
हैंका तरफ खसगेकी
सिर्फ दस रुपया देकी ब्व्ल्दीन
बाकी हैंका दिन
मिन बोली-
भैजी ! तुम्हारा हाथ मा त यू
एक सौ दस रुपया हौरि छन
भैजी ब्वल्दीन
आज मेरा समधी अर जवैं छन अयाँ   
वींकी खबर-सार ल्हीणों
तौन एक बोतल त जरूरी ही पीण
अर यो बचणू च सिर्फ एक दस कु नोट 
त एक नमकीन की थैली बि लीण ......       
          डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...

Copyright@ Dr Narendra Gauniyal

Bhishma Kukreti

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डॉ नरेन्द्र गौनियाल   की द्वी गढवाळी कविता       


*********विकास *********


ग्रामसभा मा
बड़ी तकरार का बाद
जनता की सुविधा
अर विकास कार्यों का वास्ता   
पास ह्वैगे बजट
दस दिन का भीतर ही
गौं का द्वीइ तरफ
हजारों का खर्च से
बड़ा-बड़ा गेट ह्वेगीन तैयार
जौं पर एक तरफ लिख्युं छौ
स्वागतम
अर हैंकि तरफ
धन्यबाद .....
 
*******एक सच ******
खचाखच भरीं
खटारा बस कु
सर्या चंजर-पंजर
हिलणू छौ
अर
डरैबर का समणि
लिख्युं छौ -
भगवान त्यारो सहारो. 
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल             

Bhishma Kukreti

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********छित्यकी पदनचरी *******

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Poem By Dr Narendra Gauniyal


हमारा पदान जी
बुना छन
तुम फिकर नि कारा
तुमर नौं कि बांठी
तुमतै द्यून्ला 
पण
दगड़या पञ्च-परवान
जिद्द कना छन
कैकु खट्टा पर सी सोर
सर्या बोक्ट्या पर
क्वी बुना छन सिरी
क्वी बुनू फट्टी   
 क्वी मुन्डली
अरे निर्भग्यो
इनि लड़ना रैला
इनि झगड़ना रैला
खींचा-खींच करना रैला
त फिर
कख रै तुम्हारो
मान-सम्मान
तुम केका पञ्च-परवाण
इनि बि क्याच या
छित्यकी पदनचरी .. 


  Copyright@    डॉ नरेन्द्र गौनियाल

Bhishma Kukreti

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Garhwali Poems by Dr Narendra Gauniyal



***********खिंखराण*************


जात-पात कि ज्यूड़ी
ऊँच-नीच कि खुटळी
कुटेब कि भरमार
दारू कि बाढ
जुआ कु घोल
दुन्य भर कि
गन्दगी कु झोळ
नक़ल कि छौंक
भ्रष्टाचार कु भोग
बेशर्मी कि डकार 
चरि तरफ
खिंखराण
हे प्रभु
इनमा क्य जी कन
कख जि जाण.....

***उपकार***


हमन घुप्प अंध्यर मा
जगदु मुछयलन
बाटु दिखै जैतै
उज्यलु हूँण पर
वी
चुटैगे मुछ्यला
हमारा बरमंड मा ....


***यकुलांस ***


मि द्यखणू छौं
कन जाणा छन लोग
एक हैंका पैथर
सरासर इथैं-उथैं
पण मि त
अजक्युं रै गयुं
ये भिभड़चल मा
यखुल्या-यखुलि ....

****जड़ कटै****
जैंई डाळी तै मि
खाद-पाणि देकी
फुलदा-फलदा
द्यखण चांदु
वाई डाळी
म्यार जलड़ा काटी कै
उपाड़ी दींद .....

***सीख ***
बरामदा मा
अध्फटीं चटै मा
दगड़ी बैठ्याँ
कुछ नौनि-नौना
जोर-जोर से
चिल्लाणा छया-
''क '' से कबूतर
''ख '' से खरगोश
''ग'' से गधा
अर गुरूजी
छवाड़ पर बैठि कै
बीड़ी सुलगाणा छाया .....


     डॉ नरेन्द्र गौनियाल   

Bhishma Kukreti

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Satirical Garhwali Poems by Dr Narendra Gauniyal




*********छिटगा *******


*******बिजोक *******
आज का
नौनौं कि
मुखड़ी कु उज्यलु
खुट्यों मा ऐगे
गिच्चा छन अन्ध्यरपट
अर जुत्ता
चमाचम

******छलक्वन्य पाणि*******
पहाड़ एक छंछ्वल्या
पहाड़ी मन्खी -दही
शिक्षा समस्या कि रौड़ी
बेरोजगारी कि ज्यूड़ी
भौतिक सुखों कि चकाचौंध
 चाहत कि खींचा-खींच मा
पहाड़ों कि नौणि
बगणी च उन्द
अर बचणू च यख
सिर्फ
छल्क्वन्य पाणि

*****राज ****
खांदी -पींदी
कुटुम्दरी कि
सुख-शान्ति
अर हूण -खाण कु राज
रस्वडा का भितर
चूल्हा का नजदीक
खितखिताट.........



डॉ नरेन्द्र गौनियाल     

Copyright@ Dr Narendra Gauniyal

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*********छिटगा *******

 

Poems by Dr Narendra Gauniyal


*****भौंदि****
ठीक च
मि तै नि छ क्वी हक़
कैकु तै बि कुछ बुनौ
शिकैत करनो
पण यू बगण वळी अन्स्धरी त
मेरी अपणी छन ..

*****मौका *****
मेरी खुट्यूं मा
जनि
पड़नि छल्यूर
लोगों न तनि
चुटैनी
बाटों मा
गारा-कांडा-कठ्गा
खैड़-कत्यार..

****खबरदार ****
झुकण वल़ा !
झुकि ले
पण जरा
सोची कै झुकि
इन नि हो कि
कखि 
तेरि मुंडळी
नि रै जाव सदनि
झुकीं-झुकीं ..

*****दारू ****
पीणु अर पिलाणु
लड़णु अर झगड़णु
बकणु अर बहकणु
लट्गिणु अर फरकिणु
निकम्मी गाळी
गन्दी नाळी
खीसा खाली ..
 
****अस्गुनु ***
समय का दगड़ा-दगड़ी
बढ़णी च
दुन्य  मा 
अधर्म   कि फंची
जन कि
सुबेर का बढ्दा घामा दगड़ी
अध् कपाली को मुंडारो       ...
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल                   


Bhishma Kukreti

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**********औंगाळ /अंग्वाळ ***********

कवि: डॉ नरेन्द्र गौनियाल       

  ***********   ***********       

जणि किलै
बिगड़ी
हमरि अन्द्वार
अफ्वी करणा छाँ
अपणो खंद्वार
सि त्यारो
यि म्यारो
बोलिकै
न फोड़ा
एक-हैंका बर्मंड
न कारा स्यु कुक्र्यूल
आवा
आंखि खोला
उज्यलु बाळी कै द्याखा
हम सबी छाँ
एक माई का लाल
सब्बि भै- बंद
एक ह्वै जाँ
डाळी कै
एक-हैंका पर
भट्ट औंगाळ ...
 Copyright@    डॉ नरेन्द्र गौनियाल                   

 

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