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Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य

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Bhishma Kukreti:
होरी है!..............बल होरी है!!
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होली पर गढवाली में व्यंग्य
व्यंग्यकार – देवेश जोशी
A Garhwali Satirical Prose on Holi festival
By Devesh Joshi
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बल होरी है कि हल्लारोळी नि होली त क्या पता नि चलण कैते कि होरी ऐग्ये। पता त तब्बि चलिग्ये छौ जब आरू, मेळू, चूळा कि फांग्यूं मां कुट्मण्यूंकि सजीं-धजीं बारात बैठीं दिखेग्यी छै। जब फ्यूंली पिंगळा रंग लेक, निंद बिजाळीक धरती कि मोरी-खोळ्यूं बटि भैर औण लगी छै। जनु कि पीतल का बंठा लेकि जाणी हों पंदेरी, मेंडल्यूंका बाटा। होरी औण वळि छ यू, हैरा बणू की ललांगी अन्वार बि बतैगै छै। बुरांसी कि बौळ कि हमुन त बणांग लगौण। फागुण मा गल्वाड़्यून् लाल-गुलाबी नि होण त हौर कब होण। बल होरी कि हल्लारोळी नि बि होली त होरी को पता चल हि जांद जब क्वी नखर्याली बौ अचणचक्क पूछदी कि द्यूरजी, कब छिन ल्योंणा द्यूराण। तुम्हरी ज्वानिकु तरास नि सयेंदू अब। बल होरी है कि हल्लारोळी बि कख च अब सुणेणी। होरी का नवाब त छन नी पर होली मुबारक बोलिक इना छन लोग भिंटैणा कि जना लखनऊ का नवाब होन।
पीठ पर पिठ्वा बैग लटकैक बाटा लग्यां एक ज्वानन् एक बार पूछि कै गौंको बाटो त मैन बि पूछि कि भुला कै एनजीओ मां काम कर्द क्या। बोलि वैन कि न भैजि अपणा गौं छों जाणू। मम्मी ने गुजिया भेजी है गाँव वालों के लिए। लगातार द्वी वाक्य गढ़वाळि मा बोन्न मा असज जन चितायी वैन। फेर पूछि मैन कि मम्मी-पापा दिल्ली रांदा या देहरादून त वैन बोलि ना, ना वो सामने गोपेश्वर में सेटल हो गए हैं हम। मम्मी बता रही थी कि गाँव में अबाजा है। फ्रैंक्ली स्पीकिंग आइ डोंट नो व्हट दिस अबाजा इज़। बट, हमारी ट्रैडीसन है, कल्चर है तो आइ डोंट माइंड इट। एनीवे, मैंने आपसे गाँव का रास्ता पूछा था। बाटो त तू बिरड़ीग्ये भुला, पर तेरा ब्वै-बुबा तैं नमस्कार जरूर कन पड़लो कै दिन। प्लीज़ हिंदी में बतायें, मेरी गढ़वाली भौत वीक है। होरी का रंग कि रंगत वेकि मुखड़ी मा तीन दिन बाद बि साफ दिख्येणी छै अर मि कल्पना कनू छौ कि कतगा जोरसोर से होरी मनायी होली, ये भुलान्, पंजाबी गीतूंकि ढौळमा नाचि-नाचिक। बाटो ये सर्त पर बतायी मिन कि दुबारा कबि गौं औलू तू त बाटो याद राखि। बिरण्यां मनखि तैं बिचगण मा टैम नि लग्द।
बल, होरी है का जबाब मा बाजिदां यन बि सुणेंद कि गीली है कि कोरी है। गात भीजू न भीजू पर जिकुड़ी भीजण चैंदी। अर इतगा भीजण चैंदी कि हो......र.....री........है........है..........प्पी.............हो..........ळी...........ळी बोल्दा-बोल्दी कम से कम पॉंच मिनट लग्जौं अर लाळन् समणि वलैकि मुखड़ी बि भीज जौ। बल, असली हुल्यैर त वु कि जु बतैद्यौ कि कै नाल्यू पाण्यू सवाद कतगा नमकीन छ। जु अपणा कुकुर तै पूछद कि हमारी होली कि गुजिया कैसी बनी थी अर जु शराफत से डाक्टर मूं अपणि पिड़ा बतांद कि डाकटर साब अब क्या बतौण कि कख-कख दुखणू छ। होरी मनाना नहीं जानते हैं लोग साब। अपने घर में इन्ज्वाय करते सरीफ आदमी को भी जबरदस्ती खैंच कर ले जाते हैं। अब देखो गरम पाणी से सेंकने में घरवाली ही काम आ रही है। सची मसल च कि यार दोस्त किसके, खाये-पिये खिसके। ऐन टैम पर, घरवाली मुझको, कमर के खोट से नहिं पछाणती तो इन हुळ्येरों ने तो मुझको दुन्या सेहि खिसका दिया था साब।
बल होरी है, चाइनीज पिचकार्यू दगड़ि होरी मनौंदा, नौन्याळो! तुमतैं बि होरी है। पय्यां-मेळूकि झण्डी नि देखी तुमुन। न होरि का चंदा का पैसूं से पक्यूं दाळ-भात-सूजी कि रस्याण तुम जाण्दा। ढोलकी-मंजीरा-चिमटा लेकि गौं-गौं मा जांदी सोंजण्यूंकि बालमण्डली दगड़ा होरी को एडवेंचर क्या होंद तुम नात् कखि पढ़ि सकदा अर न कै फिलम-एलबम मा देखि सक्दा। होरी त हमारा जमानै कि छै अब त कुछ हौर हि छ।
बल होरी है, निर्गुसैं कूड़ों वळा गौंमा आंदि-जांदि सांस-सी दिखेंदा डुट्यालो। बल होरी है, बांजा पुंगड़ों मा जम्यां भेत्तु अर भंगळा कि राजकीय बोट्ल्यो। कि तुमरा छोंदा हम कसम खैकि बोलि सक्दा कि गौंमा बांदरूं अर सुंगरून सत्ता परिवर्तन नि कैरि साकी। कि गौंमा हमारा अबि बि पुंग्ड़यूंमा भौत कुछ पैदा होणू च। हमुन पारम्परिक खेती छोड़्याली। हम कैशक्रॉप उगौणा छन। हम अपड़ि पुंग्ड़यूंमा भेत्तू-भंगलू जमौणा छन।
बल, हाथ मा मोबेळ लेक, मुखड़ी रंगन् लपोड़ीक बनि-बनिका रूपमा सेल्फी खींचदी नौन्यो अर नौन्योंकि ब्वयो, होरी है तुमतैं बि होरी है। कि आज दुन्या तै बतै देण बल हमारि बि होरी है। आज मैचिंग कलर को बी क्वी बंधन नी। आज फॉरमल-कैजुअल को बी क्वी चक्कर नी। कि आज मैं ऊपर आसमां नीचे, कि सब ह्वैग्या एडवांस त हम किलै रौं पीछे। कि आज कोई देवता-असुर नहीं, कि आज कोई किसीका जिठाणा-ससुर नहीं। चाहे महिला के जीवन में कितनी बी खौरी है, पर साल में एक दिन होरी है, बल होरी है।
बल द्यब्ता का दोस अर प्राकृतिक आपदा का बावजूद आबाद गौंका ज्यूंदा बच्यां दाना-सयैणू तैं होरी है से पैलि नेगीदा को रैबार कि जख तलक ह्वै साकू निभैल्या। मोरि-मोरीक भी मांड प्यै ल्या। तुमारि खुद अब कैते नि लगणी तुम खुदेणा छां त खुदेल्या। तुमुन त चितायी बि नि होलू कि माई थोड़ा आगे, थोड़ा आगे बोलीक कब चकड़ैत रावण तुमारा पाड़ै चहल-पहल लूछिग्यै अर तुमारा दाना आंख्यूंमा रिटदा सुपन्यूंकि चखळ-पखळ करिग्ये। बल बौडा, धुंवण्या होक्का, डब्बा खंकारा को, नयु जमानू ऐग्ये लुकैल्या। अंग्रेजी की द्वी तुराक मा बिसर जाण खौरी हो। बल, देरादून वळों कि तरपां बटि तुमारी खुट्यूंमा, होरी हो।
बल, होरी है ऊंतैं बी जौंतैं देहरादून का रंग माफिक ऐग्यां पर सौं जु गैरसैंण का खांणा छन। जु कोदा-झंगोरा खायेंगे, पहाड़ी राज्य बनायेंगे का, आंदोलन का दिनों का नारों तैं अबि बि निभौणा छन। परेड ग्राउंड का ट्रेड फेयर बटि कोदा-झंगोरा का पैकेट लेकि पकौणा छन। बल होरी है ऊंतैं बी जु आंदोलनै पिंसन पाणा छन या आंदोलन तैं सरकारि नौकरि मा भनाणा छन। तुमारि कुर्बानी बि बेमिसाल च किलै कि जब तुमारा दगड़्या ल्वै बगौणा छा तुम प्रेसनोट मा सबसे ऐंच अपड़ु नौ लिखौणा छा।
बल होरी है ऊंतैं बी जु परधानी मा त हार्या छा पर अब राजनीत्या प्राचार्या छन। जौंकि त्वचा देखिक ऊंकि उमरऽ पता नि चल्द अर जोंकि चर्चा सूणी ऊंका जमा-खर्चऽ सार नि पायेंद। जु आराम से सपष्टीकरण दी सकदा कि हमुन केसर उगौणै बात कख करि छै हमुन त क्रेसर बोलि छौ। तुम लोगूंकु ध्यान त बस पव्वा कि पर्च्यूं पर रौंद भासण त बस पतरकार लोग सुंणदन ध्यान से।
बल, होरी है बदरी-केदार का कांठा, होरी है गंगोतरी-जमनोतरी की रोल्यो। तुमारा परताप से सारा देस का मनखि उब बाटा लग्यां छन अर तुमारा अपणा उंद सरकणा छन। पाड़ को पाणी अर ज्वानी द्वी परदेसूं मा डबखणा छन। धाद मारा दौं प्रभो, पर्चौ दिखा दौं। बिरण्यां नौन्यालों तैं घर बौड़ा दौं। सच-सच बता दौं तुम कैकि धड़्वै छन। ऊंका जोंन सोना का कलस दीन्या, चांदी का छतर चढ़ायां या ऊंका जोंन फाफर को भोग लगायी, जोंन ह्यूंदमा उणचोळा पैरायी।
बल, होरी है नरसिंग, भैरों, नागरजा महाराज। तुमारा चिमटा, टिमरू का सोटा अर तिरसूल ही त हमारा असली तीरथ छन। कोर्ट-कचरी बी अर कौथिक का थियेटर बी। तुम दगड़ी हमुन नै-नवाण बि बांटी अर अपड़ी दुख-बिपदा बी। तुमुन हर्च्यां जीबन-मनख्यूंकि सोर-खबर बि दीनी अर सारू बी कि फिकर न कर, मैं छूं दगड़ा मा। छाया-माया रखण प्रभो, बदरीकांठा बटि बिधानसभा तलक।
बल, होरी है ऐंसू बि होरी है। सर्ग बर्खी नी त सार सब्बि कोरी है। सरकरि बादळों कु आश्वासन कि हर पुंगड़ी तलक डिजिटल बरखा आएगी। हमारि कूल का सामणी माधौसिंग कि फीकी ह्वै जायेगी। बांदरों को सीजनल लेबर रखणै की योजना है। सुंगरों को खनन का परमिट देना है। बाग बल, जनसंख्या नियंत्रण प्रभारी होला। बसग्याळ मा, स्टे एट युअर ओन रिस्क की मुनादी होली। होली, जरूर सुबेर होली।
भग्यानूंकि होरी होंदी अभाग्यूंकि छरोळी। रंगूं को त्योहार, रंगूं को कारोबार। मौळ्यार को रंग, हौंस-उलार को रंग। रंगूं को इन्द्रधनुष अर रंगूं को छारू-मोसू। फ्यूंली-बुरांस का रंग, कफ्फू-हिलांस का संग सब्बूंकि जिंदगी मा होन। धरती का रंग बच्यां रौंन। हम, रंगूं का रसिया रंगमत ह्वैक होरी मनौणा रौंन। होरी मा क्वी चोरी नी। जु जिकुड़ा भितर उ भैर बोली। बुरु नि मान्या कि होली की ठिठोली। होरी है!.................बल होरी है!!

Bhishma Kukreti:
खुंच्या"

गढवाली व्यंग्य , गढवाली चबोड़, मजाक , मसखरी
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व्यंग्यकार – वीरेन्द्र जुयाल
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कुदरत क कतगै चमत्कारों का बीच ई धर्ति मा बड़ बड़ा सिद्ध ऋषि मुनि पैदा ह्वीं जौं मा दुर्वासा ऋषि जना वाणी से बेजाम कड़क अर महर्षि दधीचि जना त्यागी ऋषि भी ह्वीं । त हिरण्यकश्यप, कंस अर रावण जना असुर भि यखि ह्वीं । अलग अलग समै पर प्रहलाद, हनुमान जी, मीरा अर संत रैदास जी जना प्रभु भगत भी पैदा ह्वीं ।
पर एक बात मी तैं भारि अचरज मा डलद कि यो खुंच्या मरण वळा टैप क लोग कख बटि ऐं ।
जन कि सब जणदि कि खुंच्या कु आशय क्वी पैनी अर बिनाण वलि चीज से हूंद। खुंच्या मल्लब रिंग्यूं, रिट्यूं, डुंडू लखुडु, गिंड़कू कुछ भि ह्वा पर हूंद छैंच ।
वुन त भगवान गौतम बुद्ध जी ल भि ब्वाल छौ कि "बल सैरि दुन्यम् क्वी आदिम इन नि ह्वे सकदु कि जैकि क्वी निंदा नि कारा, या जैथै सब भलु बताला ।"
पर खुंच्या मरण भि एक कला च, ये कु अलग मनोविज्ञान च, ये कु सवाद वी चितांद जो खुंच्या मरण जणद होलु। वुन त खुंच्या दप्प-दुप्यांदु च पर जब अपड असर दिखांद त बड़ी बड़ी तोप भि सिळै जंदि।
अचगाल त जैकि मनमर्ज्यू नि हूंदि वी खुंच्या मारि हैंक क भारि असंद गाडि दींद । बगत क नौ फरि बिरणि कुसज मा अफ संग्रांद बजै कि भाजि जांद । खुंच्या मरण वला आदिम फरि आपरुपी पुछड़ि भि अर पंखुड़ि भि लगै दिंदी। छंद आण फरि यो सूना मुखिड़ि तैं पितलण्यां बणैं दिंदी।
ये जमन लोग इतगा ख्वींडा ह्वेगिन् कि ढाळ पंदाळ आण फरि सौंण भादौ सि बरखि जंदि। लैंदी गौड़ि सि पनपी भि अर पिज्यै भि जंदि। अर जब गौं नि आंदि त जै कै कु कपाळ भलिकै रेचि भि जंदि।
अचगाल बल एक छोड़ मनख्याता क सुग्सा लग्यां छन अर हैंका छोड़ मनख्यों थुपुडा लग्यां छन । युं थुपुड़ों मा बटि कुछ मनखि इना छन जौं कि खुंच्या मन मा जन्मजात पीएचडी करिं च। यो बड़ा सगोर ल खुंच्या मना बगत बिरंदि। यो जै फरि रुड़ि मा खुंच्या कि खच्चाग मर्दि वो ह्यूंद तक खुंच्या कि तिड़क्वाळ बुज्याणू रैंद।
अर क्वी त इन वरदानी खुंच्या स्ट्राइक मर्दि कि शाख्यूं तक छाळ छटयौ नि ह्वै सकदु । क्वी क्वी त इन विषैला खुंच्या मर्दि कि कन कनौ कि अक्लगंड़ ऐ जांद। तब आदिम स्वचद कि ब्याळि तै जो भलु मनखि चितेणु छौ वो त उल्लू पट्ठा निकलणु च ।
खुंच्या मरण वळु पैलि त अफि छक्वै छुयूं कि छर्वळि विर्वळि लगांद अर जैका प्रति बरखुणूं ह्वा वैतै मन रुपी उर्रख्यलुंद चळमिळि गिच्ची ल बिना गंज्यळन घाण सि कूटि काटि जांद । खुंच्या मरण वळु रतखुलणिम बटि खुंच्या तैं पळ्यांण बैजांद ।
खुंच्या वेकु इन ब्रहमास्त्र च कि वो वे खुंच्या लि हौर्युं थै च्वोरमार भि मरद्, सिंगाद भि च, लत्थयांदु भि च अर कच्यांदु भि च। कुल मिलैकि खुंच्या ल वो कखि भि कै थै भि अर कभि भि ल्वैखाळ कै सकद । यख तक कि वो सुपिन्यु मा भि कै थै नि छोडदु ।
खुंच्या मरण वळा कैकु मुंड मलासी द्याला अर कैकु छेदी द्याला अमणि समणि कुछ पता नि चल्द । कैकि बिज्वाड़ सुखै द्याला, कैकि मवसि घाम लगै द्याला कैकु उज्याड़ खवै द्याला, कैकु अन्याड़ कै जाला युंकि नेथ तब पता चल्द जब वो खुंच्या मारि छला बैजंदि ।
मनख्यों सुख मिजाण द्यौ-द्यप्ता,पोरी-अंछिरी,भूत-भुतेड़ा, शैद-पीर भि नि देखि सकणा छन। तभी त रोज बन बनि बिमरि ऐकि जिंदगी मा खुंच्या मनि छन । पोर-परार तक हैजा, पोलियो, टीबी, कैंसर, बर्ड फ्लू अर स्वाइन फ्लू क बोलबाला छौ।
आज ब्याळि बगत ल इन खुंच्या मार कि 'कोरोना' चीन मा अवतरित ह्वेगे । इबरि ये कोरोना कि सैर्या दुन्यम् इन रौळ-बौळ मचैईं च कि लोग बाग अब पैंछि सांस ल्हीणा खुणि भि कोरोना मा बटि एनओसी मंगणा छन् ।
अब जरा आपतैं वखि ल्हिजंदौं जख ये खुंच्या कु नामकरण ह्वे जी हाँ उत्तराखंड । जन कि सब जणदि कि उत्तराखंड पैलि उत्तर प्रदेश कु एक भूभाग क रुप मा प्रसिद्ध छौ ।
खटीमा अर मसूरी कांड अर एक बडु राज्य आंदोलन मा शहीदों की कुर्बानी क बाद जब आज से बीस साल पैलि श्री अटल जी क कार्यकाल मा उत्तराखंड कु सिरिगणेश ह्वे त लग कि अब हम्हर हक मिललु हम्थैं पर भा रै आज तक हम्हर हथ खुंच्या कि खच्चाग ही लाग ।
वुन भि उत्तराखंड का पैरोकार, ठ्यकादार, सिपैदार, गलदार, जिमदार जो भि छन वो सब अपड़ा हिसाब से जै कु जनै छंद आणु वो उनै बगत कुबगत फरि "खुंच्या" मरण फरि लग्यां छन्।
अथ खुंच्या प्रकरणम इति श्री !
 Copyright @ वीरेंद्र जुयाल उपिरि
फरसड़ि पलतीर क्लब
दिनांक-16-03-020.

Bhishma Kukreti:
   
 
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जीक "अंधेर नगरी" गढ़वळि मा अनुदित करनै एक कोसिस। आपै सौ सल्लाक स्वागत छ।
गढवाली अनुवाद – अखिलेश अलखनियां
-------------------------“अंधेर नगरी"--------------------
अंधेर नगरी चौपट्ट राजा
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
(पैलू दृश्य)
(सैर से भैर)
(बाबा जी अफरा द्वि चेलो दगड़ि गौन्दू बजौन्दू औन्दन)
राम राम जपल्या रे
राम राम जपल्या रे
जपला जू तुम राम
त निभ जाला सब काम
राम राम जप...
बाबा जी- ब्यटा नारायण दास! भैर बीटी त यू सैर भौत सुंदर लगणू छ! देख दौ कुछ भिक्चा विक्चा मिलू त भगवान तै भोग लगू बक्की क्या चयेणु।
ना. दा.- जी गुरजी! दिखेंण दर्शनों तै य जगा जू होली सू होली पण भिक्छा बी उन्नी बढ़िया मिलू त मजा ई एजौ।
बाबाजी- ब्यटा नारायण दास तू ईंS धार जा अर
ब्यटा गोवर्धन दास तू वीं धार जा। देखा तब जू कुछ बी मिलू त देबतो तै भोग लगू।
गो. दा.- गुरजी तुम चिंता नी करा, यखा लोग भारी मालदार चितेंणा छन। मैं अब्बी झोल्ला भोरी लौंदो।
बाबाजी- रे रे रे चुचा भंडी लोब नी करी, जादा लोब करी कैकी मवसी नी बंणी आजतलक।
लोब करी कैकी मवसी नी बंणी,
पूरा नी होंदा क्वी काम।
लोब छोड़ी राम राम जपल्या,
बंण जौला तेरा सौब काम।
(गौन्दू गौन्दू सौब चल जांदन)
(दूसरू दृश्य)
(बजार मा)
बोड़ा जी- घर्या दाल लेल्या, घर्या दाल लेल्या। सोंटा, गौथ, तोर अर मसूर लेल्या। कुटरी भोर भोरी लीजा। पाड़ मा लीजा चा पाड़ से भैर लीजा। खै पेतै सेत बंणा। ये मैंगा जमना मा टका सेर लेल्या, टका सेर लेल्या।
बोड़ी- गोदडी, कखड़ी, खिर्रा, चचेंडा लेल्या। घर्या भुज्जी मरसू, पलेंगू अर मुंगरी लेल्या। कै जमनो मा होंदा छा अब समलोंणया ह्वे गेन। माटू खंणला त मिनतौ खैल्या, मिनत नी कैल्या त टका सेर मोलौ लेल्या।
नौनू- हिसर, काफल, बेडू अर लिम्बा नारंगी लेल्या। रस्यांणै चीज छन अब बिसरेंणै ह्वे गेन। खटै बंणै तै खा चा बंणा तुम कचमोली। निम्जा भोरी लीजा टका सेर लेल्या।
मिठै वलू- गरम गरम जलेबी, सिंगोरी, बाल लेल्या। लड्डू , बर्फी अर पेड़ा लेल्या। बन बनी मिठै छन बन बन्या लोख्वू तैं। उलारै मिठै छ छोट्टा बाळो तै, रस्यांणै मिठै छ दानो तै, रंगतै मिठै छ ज्वानू तै, घुसै मिठै छ निकज्जो तै अर राजनीति मिठै बी छ दलबदलू तै। मोन्नै मिठै छ बचणै मिठै छ, टका सेर लेल्या...टका सेर लेल्या।
गाजा बाजा वलू- डौंर ल्या थकुलि ल्या, ढ़ोल ल्या दमो ल्या, रंणसिंग ल्या मसकबाजू ल्या, पिपरी तुतरी सब्बि धांणी ल्या। बाजू लगा मंडाण लगा। देबतों नचा, मनखी नचा। मंडाण बी बन बन्या लगा, राजनित्यो मंडाण लगा, धर्मो मंडाण लगा, जात पातौ मंडाण लगा, आरक्षणा जागर लगा, भ्रस्टाचारौ घड्यलू लगा। जैकू चा वेकू जागर लगा पण या अंक्वेक नचण जनतन ई छ। गाजू बाजू चा क्वी बी ल्या मिललू सिरप टका सेर..टका सेर।
दूध बेचदरु- पिबर दूध ल्या, घ्यू ल्या, नौंण ल्या, दै ल्या, मठ्ठा ल्या। छांछ हमरी छोलेंण तुम सिरप मजा ल्या। मिनत हम यख करला परोठि भोर भोरी तै तुम उंद लीजा। जू बी छ पिबर छ असल छ, जथगा बी ल्या टका सेर ल्या..टका सेर ल्या।
विकास वलू- विकास ल्या, विकास ल्या। अफरु ल्या दूसरोंक ल्या। नयू राजौ विकाश ल्या, हस्पतालों ल्या, स्कूलू ल्या, चारु गुजरू विकाश ल्या। नेतौंक ल्या वूंका चमचोंक विकाश ल्या, विधायकोंक ल्या गौंका पधनूक विकाश ल्या, गल्लेदरुंक ल्या, पल्लेदरुंक ल्या। असल मा ल्या चा कागजूं मा विकाश ल्या टका सेर ल्या...टका सेर ल्या।
शिकार वलू- शिकार ल्या शिकार ल्या। सिरी ल्या, फट्टी ल्या, भुटवा ल्या। तर्रिदार ल्या, सुखू ल्या, चरचरी बरबरी ल्या, कंठ खोलणदार ल्या। कुखडै ल्या, बखरै ल्या, ढ्यबरै ल्या, बोंण सुंगरु ल्या बन बनी रसदार शिकार ल्या। जथगा बी ल्या टका सेर मा ल्या...टका सेर मा ल्या।
खाजा बुखणा वलू- खैजा रे खैजा खाजा बुखणा खैजा। चळमळा कुरमुरा खाजा बुखणा लेल्या। दगड़ा मा छन सबदी रोट अरसा। इबरी मिलणा छन भोळ यूँतै खुदेला। लेल्या रे लेल्या खाजा बुखणा लेल्या, टका सेर लेल्या...टका सेर लेल्या।
राशन वलू- आटू ल्या, चौंळ ल्या, लूंण मर्च ल्या, चिन्नी ल्या, तेल ल्या। टका सेर राशन टका सेर पांणी ल्या।
गो.दा.- उममममम लाला जी यू आटू क्य भौ दे?
राशन वलू- बल टका सेर मा।
गो.दा.- अर चौंळ?
राशन वलू- टका सेर।
गो.दा.- अर चिन्नी?
राशन वलू- यूबी टका सेर।
गो.दा.- अर तेल?
राशन वलू- टका सेर।
गो.दा.- अर लूंण मर्च?
राशन वलू- अरे बामण माराज सब्बी धांणी टका सेर छन।
गो.दा.- हे रे चुचा चखन्यो नी करी वS बामणै दगड़ी। सब्बी टका सेर कनक्वे?
राशन वलू- चखन्यो करी क्य बामणों अपजस लगाण मिन अफ परै।
गो.दा.- (खाजा बुखणा वला मा जैतै पुछदू) भुला यू खाजा बुखणा, रोट अरसा क्य भौ देन?
खाजा बुखणा वलू- माराज सौब टका सेर मा देन, सौब टका सेर छन।
गो. दा.- ब्वा साब क्य बात छ, यख त सब्बी चीज बस्ती टका सेरा भौ से बिकणी छन। ये मैंगा जमना मा य उल्टी गंगा कनक्वे ह्वेली बगणी। (यन बोली तै गोवर्धन दास मिठै वला मू जैतै पुछदू) हाँ त ब्यटा राम मिठै क्य भौ देन?
मिठै वलू- माराज! लड्डू, बर्फी, पेड़ा, जलेबी, सिंगोरी, बाल सब्बी मिठै खटै टका सेर मा देन।
गो.दा.- ब्वा साब! मजा छ यख त। किलै रे मादा झूठ त नी तू बोलणी मैमा। अछी जी होली सब्बी धांणी टका सेर मा?
मिठै वलू- झूठ बोली क्य मिलण माराज हमतै, ईं जगै चाल ई इन्नी छ यख सब चीज बस्ती टका सेर मा बिकदन।
गो.दा.- ईंS जगा नौ क्य छ ब्यटा राम?
मिठै वलू- माराज अंधेर नगरी।
गो.दा.- अर रज्जा कू भग्यान होलू ब्यटा?
मिठै वलू- जी बल चौपट राजा।
गो.दा.- ब्वा साब, अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा। (रंगमत ह्वेतै गोवर्धन दास इखरी इखरी मजा मा यन बोलणू रौंदू)
मिठै वलू- अरे माराज कुछ लेंणी देंणी बी कन तुमन की सुद्दी खीचरोडी कन। लेंदा त ल्या निथर फुंड जा।
गो.दा.- ब्यटा राम मांग मुंगी तै भिक्छा मा सात पैसी मिली छै, उख्खी मा सढ़े तीन सेर मिठै देदी तू। इथगा सब्बी गुरु चेलो तै छकण्यां छ प्वटगी भोरणो तै।
(मिठै वलू मिठै तोलदू, अर गोवर्द्धन दास मिठै लेतै अंधेर नगरी चौपट राजा..गीत गांदू गांदू अर मिठै खांदू खांदू मजा से वख बिटी जांदू)
(तिसरू दृश्य)
(बोंण मा)
(एक तरफ बाबाजी अर नारायण दास राम राम जपल्या भजन गौन्दू गौन्दू औन्दन अर हैंकी तरफा बटी गोवर्धनदास अंधेर नगरी चौपट राजा गौन्दू गौन्दू औन्दू)
बाबाजी- ब्यटा गोवर्धनदास बोल क्य भिक्छा लये। निम्जा त तेरु भारी गर्रु लगणू छ चुचा।
गो.दा.- गुरजी! भंडी माल ताल छ मेरा झोल्ला भीतर। निम्जा भोरी मिठै लयी मेरी आंSSS।
बाबाजी- बतौ दौ ब्यटा राम क्य लयूं तेरु (गुरजी अफरा समणी मिठै कू बुजडू खोलदन)। ब्वा ब्यटा राम! शबास मेरा काळा, पंण या इन बतौ इथगा मिठै लये कखन, कै भग्यानन दे त्वे?
गो.दा.- गुरजी! सात पैसी मिली छै भिक्छा मा वक्खी मा सबा तीन सेर मिठै लयो मैं।
बाबाजी- ब्यटा यू नारायण दास बोलणू त छैं छौ यख सब्बी धांणी टका सेर मा मिलणू छ पण मीन बिसास नी करी। ब्यटा य जगा क्वा छ अर यखौ रज्जा कू छ?
गो.दा.- गुरजी! अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
बाबाजी- ई बप्पा! त ब्यटा जख टका सेर मा भुज्जी अर टका सेर मा खाजा मिलदू हो वीं जग रंयू नी चयेणू।
दोहा : सेत सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास।
ऐसे देस कुदेस में कबहुँ न कीजै बास ॥
कोकिला बायस एक सम, पंडित मूरख एक।
इन्द्रायन दाड़िम विषय, जहाँ न नेकु विवेकु ॥
बसिए ऐसे देस नहिं, कनक वृष्टि जो होय।
रहिए तो दुख पाइये, प्रान दीजिए रोय ॥
यान चला ब्यटों यखन। जैं अंधेर नगरी मा दूंण पाथों भोरी तै फोकट मा बी मिठै मिलू वीं जगा जरा बी रुकूंण ठीक नी।
गो.दा.- इन त क्वी बी देस ई नी ई मुंथा मा जख द्वि पैसा मा छकण्या पेट भोरी खाणो तै मिलू। मीन त नी जांण यख बिटी। हौर जगों त दिनभर मांगी बी पेट नी भोरेन्दू। बाजी बाजी जगों त भुख्खी बी रौंण पोडदू। मीन त यख्खी रौंण।
बाबाजी- देख ब्यटा पिछनै तीन पछतौ कन। बल दाना बोल्यू अर औंला सबाद पछनै औन्दू याद।
गो.दा.- न गुरजी आपै किरपा राली त कुछ नी होंण। मैं त बोल्दो तुम बी यख्खी रावा।
बाबाजी- मैं त नी रौंण्या यख सप्पा बी, भोळ बोली ना मीन बतै नी छौ। मैं त जंदो यख बिटी पण तू कबरी कै दुख बिपदा मा फँसलि त मैं याद करी।
गो.दा.- जी गुरजी परणाम। मैं तुमतै रोज याद करलू। मैं त अब्बी बी बोल्दो तुम यख्खी रुक जावा।
बाबाजी नारायण दासै दगड़ी जांदन अर गोवर्धन दास बैठी तै मिठै खांदू।
क्रमशः .........(बक्की भोळ)
©®अखिलेश अलखनियाँ

Bhishma Kukreti:
दाँत गे, वेदांत ऐ! बल।
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हरी लखेड़ा
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बाक़ी सब त हमार रिशी मुनी बतै गीन पर एक काम म्यार ज़िम्मा छोडि गीन-दांतों की वेदांत तक की यात्रा कु रहस्य ।
चमचा महंग ह्वे गीन बल त अपर ढोल अफीक बजाण पडनै च।
बच्चा बिना दांतू क पैदा हूंद किलै की दांत लेकि पैदा ह्वालु त दूध पींद पींद माँ क दुधि काटुल और दर्द क मार दांत पिचकांद पिचकांद माँ की दांत झड जांद। भगवान सब सोचीक करदन ।
एक साल क अंदर दांत आण लगदन और पाँच क बाद एक एक करीक गिर जांदन और फिर नै पक्क दाँत आंदन। तब तक माँ क दूध भी बंद। मतलब माँ क दूध माँ भी ओवलटीन मिलाण पडलो क्या?
२५ साल तक आंद आंद अकल दाढ़ भी ऐ जांद पर अकल आणै की क्वी गारंटी नी!
पढै लिखै ख़त्म, नौकरी परिवार शुरू, और ज़िंदगी की लडै चालू। सर पर अपरि छत, ज़रूरत- बेजरूरत सामान, बच्चों की पढै! ६५ तक रिटायरमेंट, बच्चों की ज़िम्मेदारी लगभग ख़त्म!
आपाधापी क बीच दांत बचाणै की कोशिश-टूथपेस्ट, डेंन्टिस्ट, फिलिंग, रूट कैनाल और यख तक कि पूरा नी त हाफ़ डेंचर । अब यन बताणै की ज़रूरत नी कि दांत नी हूंद त क्या हूंद! न बुखाणों की खंख्वाल न मुर्ग़ा की टांग! गन्ना छीलीक चबांण और चुसण त भूल जौ।
ई वु समय च जब अहसास हूंद कि जैन धरती पर भ्याज वै तै ही भूलि गेवां । कुछ दगड नी जाण। भगवान भजन मा ध्यान लगा, अगलि जनम संवार।
लोग बोलदन:
दुख में सुमरिन सब करें सुख में न सुमरे कोय,
जो सुख में सुमरिन करें, तो दुख काहे को हेय।
म्यार हिसाब से:
दांत गये सब सुमरत हैं, दांत रहे न सुमरे कोय,
दांत रहे सुमरिन करें, तो दांत गये का दुख ना होय ।
कैन सै ब्वाल- दांत गे वेदान्त ऐ!
सर्वाधिकार @ हरी लखेड़ा

Bhishma Kukreti:
बुलबुल
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ब्रिज  कुकरेती
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ब्याली जब मि बाल बणाणं कू गयूं त नाई न पूछी कि साब कैसे बाल बनाने हैं । तो मिन जबाब दे " बुलबुल" वैकी समझ माँ जन भी ऐ होलू पर। मेते अपणा बचपन की याद ऐगे। बचपन मा हम बाल बणाण कू तब जाँदा छा, जब बाल कँदूण का ऐंच झीझू सी बणी ए जाँदा छै अर माँ बुलदी छै तो लटलों तै बणै लेदी तेरी सरी खुराक खाणा छन।
तब सोचिक् इतवार का दिन बाल बणाण कू मुहर्त निकलदू छै। फिर पिताजी से पैसों कू अनुदान ये हिदायत का साथ मिलदू छै कि ले य द्ववी अन्ना हिन्दू नाई मा जै अर मसीन लगैग ऐ। किलैकी पौड़ी मा वै जमना मा द्वी हिन्दू नाई छा बाकी मुसलमान छा।पिताजी सनातनी छा और ऊँ तै हिन्दू का अलावा दुसरा से बाल बणवाण स्वीकार नि छै।
त मी पिताजी की आज्ञा का अनुसार बाल बणाण कू चली गँयू। नाई न पूछी कन बणाण रे तेरा बाल मिन मरयां मन से बोली जन् हमेशा ही बणदना। बुलबुल त बण नी सकदा छा।याँ का वास्ता पिताजी की आज्ञा अर चार आना चैणा छा। बाल बणैक घर अयूँ पिताजी न पूछी ऐ गे रै, अर चारों तरफ से बालों को स्टाइल देखी, अर पास कर दे।
दुसरा दिन स्कूल गयूं अपणा दुसरा दोस्तों का बा ल को स्टाइल देखी, मन बहुत कोफ्त ह्वे।पर कर क्य सकदू छै। फिर निश्चय करी अगली बार मिन भी बुलबुल बणाण । और समय ऐगै पिताजी पौड़ी नि छा। समय मिल गे माता जी से पैसा लेकर और कुछ अपणा पैसा लेकर सीधे मुसलमान नाई का पास चल ज्ञयों किलैकी हिन्दू नाई न त बुलबुल बणाण नि छै। ठाट से नाई की सुपर चेयर मा राजा महाराजा की तरह बैठ ग्यौं। नाई न पूछी कैसे बाल बनाने हैं बाबूजी और मैंने रौब से कहा "बुलबुल "। और बुलबुल बन गये और तमन्ना पूरी हुई ।
घर पहुँचा माँ ने देखा, बहुत गुस्सा हुई ।लेकिन मना लिया ।माँ तो माँ होती है। कुछ दिनों के बाद पिताजी ए गैनी, अपराध करयूं छै ऊँ का समणी नि पण्यूँ।लेकिन बकरे की माँ कब तक खैर मनाती, सामना हो गया। देखते देखते ही पिताजी गुस्सा सातवें आसमान पर । कहाँ से लाया बाल बनवा कर।क्या जबाब देता। पिताजी कोर्ट के आदमी थे सब समझते धे।और एक झटके में मेरा " बुलबुल " बना दिया।
और दूसरे दिन हिन्दू नाई के पास ले जाकर मसीन लगवा दी। दिल के अरमा आँसुओं में बह गये, लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली जरूर हुई कि मैंने एक बार बुलबुल बनना लिए ।
बुलबुल मीन्स फैशन वाले बड़े बाल।

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