लब मैरिज
कुलानन्द घनशाला
जिठाणा कु भैसाब, सासू कू मांजी,
मेरू नौ लेकी भट्योन्दी च,
अपणा बुबा कु कुजाणी क्या ब्वलदि
पर मेरा बुबा कु पापा बोलणी च।
नांगा मुण्ड मां पल्लू धनु, धोती पैरण नि आंदी,
टी शर्ट-जींस पैरण मा जरा भी नी शरमांदी
झुकी सेवा लगौण मा कमर चसक पड़ जान्दी,
गाली़ अर गिच्चा चलौण मा द्वी हाथ अगाड़ी जान्दी।
बिना सौ सलाह का जब मर्जी मैत भाजी जान्दी,
फिक्वाˇ सी घ्ुामिघामी, ब्यखुनी हाथ हल्कैकी ऐ जान्दी,
काम काज कनु बुनै त जन लचुड़ी आई हो, टुप से जान्दी।
अर पकायूं खाणू सबसी पैली गाडी खै जान्दी
जरा कुछ ब्वलणे त बिना बाजौं का ही नचण बैठी जान्दी,
मां-बैणी गाल़-घात देकी धौ-धौ कै घिरे जान्दी।
गाड़-फाˇ , डांडा-फांस-जैर खाण की धमकी तक दे जान्दी,
कि दहेज अर वीं निर्भागी लब मैरिज की भी याद दिलै जान्दी
मिन बोली चुची ब्यो त ब्यो ही च,
दुनिया से बाकी बात थ्वींड़ी हांेयी च,
वींन गुरौं सी ठप-ठपाक मारी खबरदार,
ब्यो नी हमारी त लब मैरिज हांेई च।
शुभ दिन शुभ घड़ी देखी हाथ जोड़ी बोली मिन,
चुची नारी त देवी कु रूप होन्दु
वीन जुता की सी ठक्क चोट मारी,
हां नर भी त वींकु भगत होन्दू।