Author Topic: Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य  (Read 189541 times)

Bhishma Kukreti

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Humour/Satire

हौंस हौंस मा चबोड़ !


                                   भितर-ग्वडै (सुहाग रात ) की कथा
                             
                        भीष्म कुकरेती


                  म्यार दगडा क दड्या, दोस्त अपण भितर-ग्वडै याने सुहाग रातै कथा रस ल़े लेकी सुणान्दन.

ये मेरी भीना ! दगड़यों भितर ग्वडे क कथा मा उन्माद, राति, आवेग, मद, रोमांच उलार

क्या क्या नि होंद, ज्यू बुल्यांद सरा राती दगड्यों क भितर-ग्वडै कथा बार बार सुणणु रौंउ . अर

जब मेरी पांति (बारी ) भितर-ग्वडै कथा सुणाणो आन्द त मी ऐं बें देखिक बात टाळी दींदु.

                            गढवाळ मा भितर-ग्वडै शब्द द्वी जगा प्रयोग होंद एक जब कै तैं अड़ाणो बान भितर गव्वाड़ी क मर्चुं

धुंआं दिए जान्द या जब सुहाग रातौ बान मर्द अर जनानी तैं भितर ग्व़ाडे जान्द . ठीक इ शब्द च भितर ग्वडै'

द्वी इ घटनों मा कै ना कै तैं अडये जांद. उन अमतौर पर भितर ग्वडै क प्रयोग तब जादा होंद जब

कै द्यूर तैं रंडोळ भौज क दगड ब्याओ बान गां गौळ की रजामंदी से भितर ग्वडे जांद.

               अब जब म्यार ब्यौ होई त भितर-ग्वडै नामक सांस्कृतिक रसम बि उनि ह्व़े जन की हौर रसम को निभाण

जख मा ब्योला-ब्योली तैं क्वी मौका इ नि मील की दुयूं मादे कैकी बि चलि जाव

उन मीन मुबई का अपण सबि सुहाग रात ना हनी मून विशेषग्य दगड्यों से पक्की ट्रेनिंग बि ल्याई . हमर टैम

पर हनी मूनौ बान क्वी फौर्मल ट्रेनिंग स्कूल नि छ्या ना ही इन्टरनेट की क्वी खबर छे त अनुभवी दगड्यों

की मौ मदद इ मानदंड छौ.

                 अब जब ब्यौ गां मा होलू त बथाणो जरूरत नी च बल भितर -ग्वडे नाम को सांस्कृतिक रसम बि पवित्र हिमालय

क खुकली याने हिमालय की गोद मा ह्व़े. हौरुं खुणि हनी-मूनौ बान हिमाला जाण एक रति, श्रृंगारिक भाव वाचक

घटना होंदी होली मेखुणि भितर -ग्वडे हिमाला मा मनाण एक मजबूरी छे. हमर टैम पर हनी-मून भैर मनाण संस्कृति भंजक

मनिखों काम छौ अर मी अर म्यार ड़्यार वाळ अबि तलक निसयेंदु गरु (असह्य बोझ) संस्कृति तैं मुंड मा उठाण मा प्राउड फील

करदन. त इन बुले सक्यांद म्यरो भितर -ग्वडे की पवाण गां मा लग याने मधुचंद्र की शुरुवात हिमाला की गोद मा ह्व़े .

              अब जब हम बम्बई बिटेन गां जयां छ्या त यो बि जरोरी च गां मा खूब झर फर से जीमण जामण होली. आज बि अर तैबरी बि

गां मा इन समजे जांद बल बम्बै मा गढ़वाळी रूप्या हगदन. त म्यार ब्यौ मा गां वाळ से जादा भैराक पौण छ्या. अब म्यार बुबा जी

बम्बै का प्रवासी छ्या त मतबल बम्बै का सेठ छ्या. अर जब तथाकथित बम्बै क सेठौ नौनो ब्यौ ह्वाऊ त पौणु/मेमानुं मा लकड ददा,

पकड़ ददा , झड़ ददा , पड़ ददा से लेकी अपण ब्व़े-बाबौ क रिस्तेदारुं तैं न्यूत दीण जरूरी छौ. निथर कैन मनण थौ बल म्यार बुबा जी बम्बै रौंदन.

उन बात बि सै च हम मुबई वाळ बौंबै मा क्वी जीमण जामण कै फाईब स्टार होटल मा कौरी बि द्योंला त क्या ह्व़े गे . अरे जख टाटा, बाटा

बिरला , अम्बानी समोदर मा क्रूज या याट मा जीमण-जामण करदा ह्वावन उख फाईब स्टार होटल की क्या बिसात ! त

हम बौंबै वल़ा इख बॉम्बे मा त कुछ दिखाई नि सकदवां त हम बौंबै वल़ा गां मा औकात से जादा खूब झर फर करदवाँ अब चाहे झर फर

दिखाण मा धौणि इ टूटी जाव धौं पण झर फर करण जरूरी च.

              त जब बरात बौड्याइ होई त वैदीन भितर -ग्व्ड़े (सुहाग रात) क सुचण इनी छौ जन बुल्यां बिरळऔ औंर खुज्याण या

तिमलौ फूल खुज्याण. गां मा कै बि मौ क इक तिल धरणे जगा नि छे बचीं त ब्योला क इख त जगा क क्या बुन ! त

                  वै दिन सौरी! वीं रात मून हनी नि ह्व़े बल्कण मा मून (मेरी ब्योली) पौणु/मेमानु पिपड़करू मा दिख्याई इ नी च

दुसर दिन द्वी चार इन पौण हमर घौर से इलै बिदा ह्वेन जौंक कूड इखुली जगा मा छौ निथर स्ब्युंन अपण बेटी क सौं घटीन

बल कूड गां से भैर नि होंद च त गौ बुरी चीज वो जांदा.

त पौण दिवता जन (अतिथि देवो भव ) क वजै से दुसरी रात बि हनी मून की रसम रिवाज या रिचुअल अनसीन सरकमस्टांसेज से
ना डिसाइडेड डिसीजन क तहत पोस्टपोन्ड करे गे.

                    पण जन गढ़वाळ मा जन आपदा-प्रबंधन/ डिजास्टर मनेजमेंट च इनी हमर इख आपदा प्रबंधन की बैठक ह्व़े . राति बारा बजी

 कुछुं तैं याद ऐ बल अरे जांक बान यू इथगा ताम झाम (याने बारात आदि ) ह्व़े बल वांको त कुछ ह्वाई नी च. अर जकता सगती (आनन फानन)

मा म्यरो भितर ग्वडे क इंतजाम करे गे.

                 ब्योली हनी मून को बान नी पुळयाई/खुस ह्वाई बल्कण मा इलै पुळयाई बल हनी-मून को सुख

मीलो या नी मीलो दस बाई दस की कोठड़ी मा जख दस जनानी छया , वै गैस चेम्बर से निजात त मीलली.उ त भलो

छौ बल सबि जनान्युं न इक्सनी खाणक खयूँ छौ जां से सब्युन्क मानव जनित नेचुरल गैस को फ्लेवर एकी छौ. हाँ ! गैस प्रोडक्सन

हॉउस को आउटलेट से जब गैस भैर दुनया मा कदम धरदी छे त अलग अलग आवाज मा , बिगळी बिगळी भौण मा गैस खुसी जतांदी छे.

या सैत च गैस अपण आणो खबर अवाज गाडीक दीणी छे . गैस प्रोडक्सन आउटलेट से पैदा हूण वळी ख़ास आवाज छे

ठुस-ठुस , फुस-फुस , प्वां प्वां . प्वीं, प्वीं, , पर्र -पर्र , पूर्र, पुर्र अर भ्वां, भ्वां ...

                         अब जो काम जकता-सगती मा ह्व्वाऊ उखमा विधि विधान , पूर्व नियोजित काम को क्या काम ? म्यार लयां

काजू, किसमिस, छ्वारा बदाम अर फाईब स्टार की चौकलेट, परफ्यूम्स, टेप रिकौर्डर म्यार सूटकेस जोग इ रै गेन. भितर -ग्वडे या सुहाग राति कुणी

दूध को इंतजाम सिरफ़ फिल्मुं मा ही होंद. हम गढ़वाळी फोर्मलिटी मा विश्वास नी करदां . अरे जब अस्कदी/ आशाबंद/प्रिगनेंट

जनानी तैं दूध नी दिए जांद छौ बल्कण जै कौम मा सदियों से बाड़ी, झंग्वर अलुण गरम पाणी मा खाणो दिए जान्द छौ

वीं कौम मा भितर-ग्वडे मा दूध सेवन की बात घड़ये/सुचे इ नी सकेंद .

                      हम दुयूं ब्योल़ा-ब्योली तैं कुछ कुछ अद्बिज्यां हालात मा एक कुठड़ी मा धकये ग्याई. अदरातिक डिजास्टर मनेजमेंट

क हिसाब से यें कुठड़ी से बढिया कुठड़ी आज की रात त मिली नी सकदी .असल मा डिजास्टर मनेजमेंट न मेरो भितर -ग्वडे

क प्रोग्राम इ तब बणाइ जब अदा राति मा कै तैं खयाल आई बल या कुठड़ी भौत बडी गलती से खाली रै गे अर पौण बिहीन च

.                 अर गां क एक बुड्या जी (जु डिजास्टर मनेजमेंट का सदस्य बि छया) न रस लेकी, दांत कीटिक, द्वी ऊँठूँ तैं मिलैकी इन अवाज गाड

जन बुल्यां बुड्या जी न खटो लिम्बू खैइ होलू , मी तैं बताई बल यीं कुठड़ी से एक फ़ायदा च बल कुठड़ी गां क छ्वाड़/किनारों

पर च त उफंदरी/उत्पाती बच्चों क क्वी डौर नी च, अर चूंकि कुठड़ी क बगल मा गौं क गुदनड़/ गुज्यर ( ओपन ट्वाइलेट) च

त डिस्टरबेंस की क्वी गुन्जैस बि नी च. निथर अजकालौ बच्चा त ...

                   भितर ग्वडे से पैलि बुड्या जी न हिदैत दे बल कुठड़ी की खिड़की नी खुलण किलैकि गुदनड़ बिटेन गंध ऐ सकदी .

अर मेरी ब्योली तैं बाटो दिखाण वळी बुडड़ी जी न ब्वाल बल रात कैं बि हालत मा द्वार खुली नी रखण , कुज्याण गुलदार/

ढीराग/बाग़,  चिनखों बान इखी पुण लुक्युं ह्व्वाव त ?

                 जब हम ब्योला-ब्योली कुठड़ी भितर ह्व़े गेंवां त बुड्डी जी न द्वार बन्द करदा ब्वाल "ह्यां सांकळ/ कुण्डी लगै दियां

नव्हां बाग़...' अर मीन पैल काम कार द्वारौ सांकळ ठीक से लगाई.

                      मैं तैं पता इ नी छौ की हमर स्वागत का वास्ता यीं कुठड़ी मा ख़ास बन्दोबस्त च . एक चिमनी छे ज्वा सैन/संकेत

करणि छे बल बस कुच्छ इ देर की मेमन होली किलैकि चिमनी क तेल खतम होण इ वाळ छौ अर सैत च डिजास्टर मनेजमेंट वाल़ून

सोची होलू की चिमनी कखी हनी मून मा डिस्टरबेन्स कारली त वूंन चिमनी क तेल की चिंता इ नि कार.

                    मीन फिल्मुं मा कथगा द्फैं देखी छौ (अर म्यार दगड्यों न बि बतै छौ) बल गरीब से गरीब की

भितर-ग्वडे/सुहाग रात/हनी मून मा एक चौरस/चौडो, बड़ो भारी पलंग होंद, पलंग मा गुलाब का फूल होन्दन,

पलंग का चर्री तरफ फूलों झालर होन्दन आदि आदि . पण मेरो भितर-ग्वडे मा पलंग नी छौ . एक ग्वाठ मा को

झिल्लू खटला छौ. हिंदी फिलमुं मा मीन देखी छौ बल गरीब से गरीब की सुहाग रातौ पलंग मा साफ़, सुन्दर ,

गदगदो गद्दा होंद, अर गद्दा मा होंद एक रेशमी चादर . पण इख त झिलो खटला मा एक टल्लयुंन बण्यु

क्वी चीज-बस्तर छे जो गदेला क याद दिलाणो छौ. इन मा चदरो उमेद करणो मतबल बौळयापन/पागलपन.

                   फिल्मुं मा मीन देखी छौ कि गरीब से गरीब की सुहाग राति क पलंग मा द्वी सुफेद साफ़ सुथरा हृदय का चित्रुं से

 चित्रित/ एम्ब्र्वाइडेड द्वी तकिया होन्दन. इख मेरो भितर -ग्वडे मा तकिया त नी छ्या पण हाँ सिरवणी/तकिया जगा एक पुराणो

खप्युं-खुप्युं जोळ/पाटा कु टुकड़ा बुलणोक/ तथाकथित गदेली क तौळ जाणि बूजिक धर्युं छौ कि लुकयुं छौ यि त भगवान इ जाण धौं !.

                मी तैं म्यार दगड्यों न बि बथै थौ अर मीन फिल्मुं मा बि देखी छौ कि गाँव हो या शहर , गरीब होऊ या अमीर

ब्योला/बर पलंग मा बैठ्यु रौंद अर जनि ब्योली मधु-चन्द्र/हनी मून कक्ष मा भितर छिरकदी /प्रवेश करदी त ब्योला उठिक

सने-सने, धीरे-धीरे ब्योली तैं दर्वज बिटेन पलंग का तरफ लांद अर ब्योली तैं बड़ो उलार, जतन, प्रेम, उमंग,हर्स,

रोमांच , चपलता,लड्योण (लाड प्यार) से पलंग मा बिठान्द . मी येही मकसद से खटला मा झम से बैठु अर मेरी ब्योली क समज

 मा बि आई गे छौ कि मी कै मकसद से खटला मा बैठणु छौ त वा खड़ी राई कि मी (ब्योला) खटला से उठल़ू

अर वीं तैं लौलु. पण जनी मी झम से खटला मा बैठूं कि जन बुल्यां सरा कुठड़ी मा भ्युंचळ या प्रलय ऐ गे होलू.

खटला तौळ बखर-ढयबरों का चिनखों चिल्लाहट शुरू ह्व़े अर फिर हुर्स्या-हुरसी/देखादेखी /नकल मा कुठड़ी का

सबि चिनखा-चिनखी चिल्लाण लगी गेन अर मेरी ब्योली डौरन किराई अर लतडक, ढम से खटला मा

गिरी गे. मेरो जु सुच्युं छौ वो मीम इ रै गे. अर भैर थ्वडा दूर बिटेन बुडड़ी क आवाज आई "ये नर्भाग्युं ! इन बि क्या च !

सबर त कारो . सरा रात तुमारि इ च." सैत च अबि बुड्डी गौळ बि नि लांगी ह्वेली . अबि तलक हम दुयूंन मधु-चन्द्र क

रौंस मा देखी नि छौ कि कुठड़ी मा हौर बि जीवन छन. अब हम दुयूं न चिमनी क पिंगल़ो उज्यळ मा कुठड़ी क

भितर हेर/हयार/द्याख त हनी -मून क बीच मा ज्वा रस्म होण छौ वो रस्म पैलि होण बिसे गे

याने कि हम दुयूं क रंग बदरंग/वैवर्णय/चेंज ऑफ़ कलर ह्व़े गे. हनी-मून श्रृंगार रस को एक ज्वलंत

उदहारण च अर श्रृंगार रस प्राप्ति मा मुखौ रंग बदरंग/वैवर्णय/चेंज ऑफ़ कलर होई जांद पण हमारो मुखौ

रंग बदरंग संयोग- श्रृंगार रस प्राप्ति से नि ह्वेई बल्कण मा यि देखिक ह्वाई की हमारो भितर-ग्वडे/मधुचंद्र/सुहाग रात/हनी-मून

क गवाह बारा तेरा बखर-ढयबरों का चिनखा छया, चारेक त पांच छै या दस बार दिन का होला अर सब्बी फुच्ची छ्या कुछ खटला तौळ

छया बकै इन उना कूण्यों जोग छ्या . अब इ सीन त महमूद या राजेन्द्र नाथ की फिल्मुं मा बि नि द्याखी छौ त इन सीन

की कल्पना म्यार हनी-मून ट्रेनर दगड्यों न क्या करण छौ ! सबि शहरी छ्या. मेरी समज मा नि आई की इन परिस्थिति

मा हनी-मून को अगलो कदम क्या होण चयेंद .

                मी तैं या मेरी ब्योली तैं अफिक अगला कदम उठाणे मेनत करणे जरूरत इ नि पोड़.हम दुयूं क कदम असमानों

तरफ जाण लगी गेन. हम द्वी खटला मा बैठी छ्या पण खटला इथगा झिल्लो छौ कि हम दुयूं क पश्च भाग जमीन से

चिपटा चिपटी करण मा अपण अहोभाग्य समजणा छया अर दुयुंक चर्री टंगड़ा अस्मान मा कुठड़ी क बौळी , बलिँडों तैं

लौंफ्याणो एक हैंको दगड छौम्पा दौड़ी करण मा अग्ल्यारी ल़ीणा छया. म्यार दगड्यों न मी तैं अड़ाइ छौ बल हनी-मून

कि राति कन ब्योली तैं पलंग मा बिठाये जांद अर फिर लड्योड़ (लाड -प्यार से ), प्रेम से कनो बात अगनै बढ़ये जांद पण

इख बैठण इ कठण छौ त दगड्यों सिखयूँ सौब भेळ जोग क्या गुदनड़ जोग इ ह्वेई .

              अर हाँ दगडड्यों न ख़ास बोली थौ बल द्वी तीन किस्मौ इतर/परफ्यूम जरुर ल़ी जै. जब ब्योली कम्ररा मा आली त वां से

इतर/परफ्यूम कमरा मा खासकर पलंग मा जरुर छिड़क दे सब्युंक बुलण थौ बल परफ्यूम कि सुगंध सुहाग रात तैं रंगीन बणाण मा

चमचों से बि जादा सहायक होन्दन. दगड्यों न ज्ञान बढ़े छौ बल इतर-परफ्यूम्स से जनानी जात मर्दों से आकर्षित जल्दी होंद.

अब क्या बुलण इतर परफ्यूम्स त सूटकेश मा इ रै गे छौ. पण कुठड़ी मा गंध सुगंध कि क्वी भौंकी कमी नि छे उलटं

इन गंध ना त ब्योली न सूंगी छे ना इ मीन. चिनखों बकर्वळ की अलग इ गंध छे अर चिनखों मूत की चिराण एकजोटिक छे

कि उत्तेजक छे यां पर तीस साल ह्व़े गेन हम द्वी झणो मा एकमत नि ह्व़े सौक. हाँ एक बात छे कि चिनखों चिराण

हुर्सेणि/ चिरडाणि जरुर छे बल गां मा याने हिमाला-क-खुकली (गोद) मा हनी-मून मनाण मा कुछ त नै गंध मीलली ई.

उनां चिमनी कैबरी बुजी जाओ यांकी बि फिकर छे . किलैकि दगड्यों बतयीं कथगा ई रस्म अबि बाकी छे .अर हरेक

रस्म प्रकाश मा हूण जरुरी छे

               अब जन कि बैठीक एक हैंका दगड प्रेम से छ्वीं लगाण से सुहाग रात की शुरुवात करणे बात त असम्भव ही ह्व़े गे छे . किलैकि

जन क़ि पैलि बथाई याल बल झिल्लो खटला मा बैठण कठण ई ना असम्भव ई छौ. त दोस्तों क बतायूँ अग्वाड़ी को स्टेप कि बारी छे.

                        अगलो स्टेप मा हम द्वी नव विवाहित्यूं तैं पलंग मा दूर दूर पोड़ण छौ , संगीत लगाण छौ अर फिर धीरे धीरे इके कैरिक

 प्रेम ग्रन्थ का पन्ना पढ़ण थौ. जख तक संगीत को सवाल थौ मी एक पॉकेट टेपरिकौर्डर लेकी बि अयूं छौ अर द्वी तीन प्रेम से

 छळबळ/लबालब भर्याँ गाणो टेप बि लै छौ जु सूटकेश मा इ झुल्लों, इतर आदि तैं गाणा सुणाणा होला . उन हमर

 हनी-मून रूम मा म्युजिक कि क्वी कमी नि छे. चिनख बनि बनि (तरह-तरह) कि आवाज से वातावरण तैं

संगीतमय बणाणे कोशिश करणा इ छया . बाकी जो कमी रईं छे जन कि सितार जन स्ट्रिंग म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट

की त सितार की कमी तैं पुरा करण मा झांझु/मच्छरों न कुठड़ी मा सौब जगा अलग अलग सैकड़ों कन्सर्ट की कछेडी

लगाण शुरू करी याल छे. इन लगणो छौ बल जन बुल्यां झांझु/ मच्छरों हरेक झुण्ड मा संगीत की क्वी आल इंडिया कम्पीटीसन

चलणि ह्वाऊ .

सुहाग राति क अगला स्टेप क अलावा अब कवी हौरी स्टेप हम निभै नि सकदा छ्या त हम दुई खटला मा पोड़ी गेवां.

                 दोस्तुं न दस दें रटाई छौ बल पलंग मा द्वी झणो तैं दूर दूर छ्वाड़/किनारा पर पड़न/लेटना चएंद . अर फिर धीरे धीरे

ब्योली-ब्योला/दुल्हा-दुल्हन तैं एक हैंको नजीक आण चयेंद. ये दौरान श्रृंगार रस का भौत सी रीति निभाण छौ जन कि

एक हैंका कि घर द्वार की बात पुछण, हौब्बीज कि जानकारी हासिल करण, एक हैंको शारीर से छेड़खानी करण ,

चुहुलबाजी, दुल्हा तैं दुल्हन की मन माफिक बात करण आदि दसियों रस्म छे जु मै तैं अर ब्योली तैं पड़याँ- पड़याँ

निभाण छे. आकर्षण पैदा करणों वास्ता दूल्हा याने मी तैं रति विषयक, हास सम्बन्धी, रोमांच बढ़ाण वळ छ्वीं या करतब,

चपल सम्वाद , आवेग आदि क रसम निभाण छे फिर धीरे धीरे कौरिक एक हैंको नजीक आण छौ अर संयोग श्रृंगार

 को अंतिम पडाव से पैलि घंटो तक स्यूं झुल्लों क एक हैंकाक गात/ शरीर से चिपक्युं रौण थौ.

हाँ त जब हम खटला मा दूर दूर पड़णो खातिर खटला मा पोड़वां त दूर दूर हूणो जगा हम एक हैंका

क नजीक इ नि आणा बल्कण मा एक हैन्काक अळग पोड़णे कोशिश करण बिसे गेवां. अर हम या एक

हैंकाक अळग पोड़णे कोशिश क्वी प्रेमातीत आकर्षण का कारण नी करणा करना छ्या , या अफिक

जोर नी लगाणा छ्या बल्कि झिल्लो खटला क कारण गुरुत्वाकर्षण का बसीभूत ह्वेका हम दूल्हा-दुल्हन

एक हैंकाक अळग पोड़णा छ्या. दगड्यों हिसाबन भितरग्वडे मा एक हैंकाक गात/बदन पर चिपटण त

संयोग श्रृंगार क्रिया से थोडा पैलाकी क्रिया छे पण जै हो झूलेलाल नुमा खटोला की जैन विधियुं क स्टेपुं

मा इथगा उलटफेर करै दे. खैर हम फिर बि बचणा छया कि गात/बदन चिपकणो क्रिया से दूर इ रौवां पण

खटला क झिलोपन जन्मित गुर्त्वाकर्षण हमारी कोशिश पर भारी पोड़नू छौ .

                दोस्त अर रतियुगीन कवियुं जन कि विहारी क कवितौं क असीम कृपा से मी तैं ज्ञान छौ बल

भितर ग्वडे मा चुनगी दीण या दान्तुं न खास खास शरीरो  भाग जन कि ऊंठ, गल्वडों पर दांत

चुभाण भितर-ग्वडे विधान क एक प्रमुख क्रिया-प्रतिक्रया होंद. भगवान् की असीम कृपा अर डिजास्टर मनेजमेंट

की हपड़ -दपड़ मा लियुं आपातकालीय पर समयगत निर्णय की कृपा से हम दुयूं तैं दांत बि नि खुलण पोडेन

अर हम द्वी झणो तैं भितर ग्वडे जन एक दैवीय दत प्रक्रिया मा एक हैंका पर चुनगी दीणे जरोरत इ नि पोड़.

चुनगी अर दांत कटणो काम पैल त झांझुं न बखूबी निभाई अर बाकी थकी जु कमी बेसी रयिं बि छे

वो उप्पनो न कार्य संपादन कार. प्रेम मा या श्रृंगार रस मा एक भाव होंद जै तैं असूया या जळण, ईर्ष्या, इनवे

बुले जान्द बि उत्पन होंद. हम द्वी झणो तैं झांझ/मच्छरूं अर उप्पनूं से डाह हूण, ईर्ष्या होण लाजमी छौ की यि सौब

बगैर हम तैं पुछ्याँ ओ काम करणा छन जो हमन करण छौ. झांझुं न अर उप्पनू न हम दुयूं तैं इन इन जगा काट जौं

जगा की बात ना त म्यार दगड्यों न बथै छयी ना ही रतिकालीन कै कवि न इन जगों कल्पना करे छे.

               अब दोस्तुं क बताईं एकी बात बकै रईं छे अर वा छे कि दूल्हा दुल्हन की भुक्की प्याओ याने चुम्मा ल्याओ याने

ब्राइडग्रूम शुड टेक किस ऑफ़ ब्राइड . फिर दुल्हा तैं दुल्हन तैं इनकरेज करण चयेंद बल वा बि किस्सिंग मा शामिल

ह्व़े जाओ. पण चिनखो न सैत च रत्यां कबि मनिख नि देखी छ्या अर वो प्रेमाभूत ह्वेका मेरी दुल्हन का खुट अर मुंड

चाटण लगी गेन. दुल्हन याने नौली ब्योली तैं झिड़झिड़ी लग अर मै तैं भौत क्या भौत जादा इ बुरु लग बल मेरो इ

समणी क्वी मेरी ब्योली तैं चाटणु च. बस हमारो सुहाग रात मनाणो कार्यक्रम रद्द करण पोड़.

हम द्वी इ उठा अर चुपचाप उखी ऐ गेवां जख हम पैल सीणे छंवां.

त हमारो भितर-ग्वडे/मधुचंद्र/ सुहाग-रात याने हनो-मून हिमाला क खुकली मा नि सम्पन ह्व़े.

क्या ! आप जणण चाँदवां की फिर हमन हनी-मून कख मनाई ? द्याखो म्यार बूड-खूड बताई गेन बल

इन बात कै तैं नि बताये जान्द बल. हनी-मून बिलकुल व्यक्तिगत बात होंद त ये सांस्कृतिक कार्यक्रम

तैं सार्वजानिक नि करण चएंद.



Copyright@ म्यार गौं क एक चिचा जौंक दगड यो डिजास्टर अछेकी ह्व़े छौ

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Humor/Satire /Wits 

चबोड़ इ चबोड़ मा

                                   फूफू क मोछ होंद त वा काका /चचा होंदी

 

                                  If Queen Had Moustaches  She Would Have Been King

 

                                                            भीष्म कुकरेती
 

                           हाँ , हम जादातर इन होंदो त, तन होंदो त, इफ्स अर बट्स, अगर, मगर, मा भगवान से बि बिंडी विश्वास करदवां.बुलद दें इन कबि नि ह्वाऊ बल हम 'इन ह्व़े जांदू त आहा कथगा भलु होंद, . आहा ! तन ह्व़े जान्द त वैकी मवसी घाम लगी

जान्द या तिकी मवासी बसी जांदी' जन वाक्य नि बवालों. फूफू क मोछ होंद त वा काका होंदी या राणी क मोछ होंद त वीन इ राजा बणण छौ हमारी संस्कृति बौणि गे.

                         अब द्याखो ना सी पोरुक सालो त छ्वीं छन जख मा फुफ क मोछ होंडा त पर बबल ह्व़े गे. . मूसी काकी क कूड छयाणो छौ. त जन कि गां मा घर्या अर्थशास्त्रीय  रिवाज च, या क्या च धौं पण ओड अर हौरी चिणे दारूं खुणि  सुबेरो नक्वळ/नास्ता, दिनौ खाणक, दिन मा चार बजे चा अर द्वी रुट्टी अर स्याम दें  खाणक दीण इ पड़दो.अर ह्व़े साको त कूड़ो काम पुरो हूण पर बखरू मारे जाव त भलो. 

 

                 अब वै दिन क्या ह्वाई बल दुफरा मा मूसी काकी ओडु तैं रूस्वड़ मा खाणक दीणि छे. चौंळ अपणो  स्यारक का छ्या .पण कुज्याण भै कुज्याण धौं कैको दाग लग धौं !  ए मेरी ब्व़े !  भात गिल्लू इ रैगे. इथगा मा मूसी काकीन ओडू तैं सुणेक ब्वाल," इ राम दा !  जरा पाणि कम  पड़दो त भात न गिल्लू नि होण छौ ". कै बि ओड न बोल बल मूसी काकी बुलणि च बल फूफुक दाड़ी- मोछ  होंद त फूफू काका ह्व़े जांदी.    अब कुटुमदरी क बात च, कूड चिण्याणो फिकर च एक दिन भात गिल्लू ह्व़े बि गे त क्या ह्वाई. अर कैबरी चौंळ बि मनिखों दगड रैकि अपण  प्रकृति बदली दीन्दन . एक मैना पैली  वी चौंळ कम  पाणी खान्दन पण एकी मैना उपरान्त दल बदलू नेतौं तरां  अपणी प्रकृति बदली दीन्दन अर वी चौंळ पाणी बिंडी /जादा  खाण बिसे जान्दन . त कबि भात गिल्लू अर कबि भात क्वर्री या कड़कड़ो  रै जांद. चौंळ छन त इन ह्वेई जांद . त वै दिन चौंळ  गिल्ला रै गेन. बात आई गाई ह्व़े गे. ना त ओडून कुछ ब्वाल ना ही पैथारां  कै कुकरो न कुछ ब्वाल जौं तैं बि वी  गिल्लू भात दिए गे.

 

                   अर ए भै वै दिन बि काण्ड लगी  गेन. अब दुसर दिन बि मूसी काकी  इ रसोई मा छे. घौर की गुस्याण छे त परम्परा से मूसी काकी कु  इ हक बणदो छौ बल भगवान जन  मेमानु खुणि वा दुफरौ खाणक बणाउ अर सौंरु(परोसना)  बि , . भात वै दिन बि गिल्लू रै गे. 'मेरी फूफुक मोछ होंद त वा काका होंदी ' जन मानसिकता की असली बेटी , असली 'मेरी फूफुक मोछ होंद त वा काका होंदी ' मानसिकता की असली सम्वाहक मूसी काकीन आदतन फिर ब्वाल बल , इ राम दां! कन भुलमार ह्व़े धौं ! आज फिर मीन पाणि जादा डाळी त क्या सुन्दर चौंळ !  फिर गिल्लू रै गेन ". बात त नियाय निसाब की इ छे. पण ओड दयाल़ू दादा  बि कम नि छौ. अपण अडगै/क्षेत्र को बीरबल च, बड़ो चबोड्या च, वैक छ्वीं  सूणीक सांक मा धर्युं मुर्दा बि हंसण बिसे जांद.   . दयलु  दादा न  चखन्यौ  मा बोली दे , '   अहा ! ये काकी  जु त्यार मोछ होंद त कसम से तीन म्यार काका लगण छौ अर काकी तीन बि हमर दगड ओड ब णण छौ.". जैन   जु समजण छौ वैन वी बींग. आज बी बात आई गाई ह्व़े गे.

 

                  पण  जब जोग इ ग्वरकटा ह्व्वान त भेमाता  बी क्या कारली ! जब निहूणी लिखीं ह्वाओ त हुणत्यरी डाळी पर कूरी त लागलि इ. तिसर दिन बी मूसी काकी न खाणक  दींद दें पाई बल आज बि भात गिल्लू इ रै गे त झटाक से मूसी काकीन ब्वाल, " ये कनो बिजोग पोड़ीन मेरी यूँ हथकुळयूँ.  पर  आज बि चौंळऊँ  मा पाणी  जादा पोड़ी गे. जरा पाणी  कम ह्व़े जान्द त भात न फरफरु होण थौ.  उंह ! बुरळ पोड़ीन यूँ हथ्युं मा जौन जादा पाणी डाळी दे.". बिचारी मूसी काकी ओडु  तैं खुस करणों बान अपण हथुं  तै इ गाळी दीण बिसे गे . पण दयलु काका बि कम नि छौ वैन बोली दे, बोली  क्या जरा जोर से इ ब्वाल, हे ! काकी! हाँ तौं  हथुं  पर लुचड़ त पड़यूँ इ च, द्वी मुठी चौंळ हौरी डाळी बि दीन्दी  त ऊँ सटयूँ दबलोँ  न खाली नि  होण छौ."  अर ये म्यार भुम्या ! वै दिन त गिल्लो  भातौ  बात सारा गां मा सौरी (फैली) गे.

 

         अब सरा गां मा ह्व़े 'फूफू क मोछ लगाणे बात अर फूफू तैं काका बणाणे'  बात पर . भुन्दरा ज्योरू  न ब्वाल, " ए ब्वारी !  तू जरा भात देर तक पकांदी त भात न गिल्लू नि होण छौ." 

        त भामा ब्यारी न नातो मा  सासु लगदी मूसी काकी तैं समजाई, "  ए जी! जु तुम आगि झौळ तेज करदा त मी सौं घौटिक   बोल्दु बल भातन कबि बि गिल्लू नि होण   थौ.".

       उमर मा चालीस साल छुटि  कमला न बोली, " ए ददि  ! जु तू पक्युं भात तैं औंध मा धरदी त कबि बि भातन गिल्लू नि रौ ण छौ. ". 

      त कमला क बौ बिमला न पैथर किलै रौण छौ अर ब्वाल, " ए जी ! जु तुमर फूलटि   क  मुंड्याळ चोदु होंद त भातन गिल्लू नि होण छौ."   

  इनी स्याम दें तक बीसेक जानना 'जु इन होंद त तन ह्व़े जांद', 'जु उन करे जान्द त तने ह्व़े जांद ', जु वा बात वैबरी नि होंद त तन कत्तई नि होण छे   ......  याने की सौब   'फूफू क मोछ, ज्वांग, दाड़ी  होंद त फूफू काका होंदी 'क सलाह मूसी काकी तैं देकी ऐ गेन.

पण कैन इन नि सोची बल जब क्वादु चून बौणी जांद त फिर 'जु इन होंद  त तन ह्व़े जांद' , 'जु उन होंद त उन्नी ह्व़े जान्द ' जन बात कौरिक क्या फैदा !  पण हम त 'जु फूफू क जोंग-दाड़ी  होंद त फूफू काका ह्व़े जांदी ' सिद्धांत  का च्याला/चेली  छं वां  त हमन इनी बुलण.

 

         इन नी  च बल या परबिरती हमारी इ ह्वाऊ. या परबिरती हम तैं राष्ट्रीय अर अंतर्राष्ट्रीय थौळ/स्थान/स्तर पर दिखणो मिल्द .   

 

      अच्काल टी. वी चैनलूं क भरमार ह्व़े गे त कामौ  क्रिकेट कमेंटेटरूं क अकाळ पड़णो इ छौ. त कत्ति टी.वी चेनलूं मा ओ कमेन्टटेटर बि छन जौन  रणजी ट्रोफी मा कबि  बि सेंचरी बणे होली धौं पण सचिन की बल्लेबाजी पर कमेन्टरि इन करदन ," जु सचिन  अपण  बल्ला तैं एक बाई दस इंच तौळ रखदु  त शर्तिया सचिन न आउट नि होण छौ.". कति कमेंटेटर इन बि छन जौन  बारा टेस्ट खेलीन  अर बारों दें शून्य पर अर और ह्वेन , आट दें पाँच रन से जादा नि टपी सकीन वो राहुल द्रबिड , सहवाग, लक्ष्मण आदि की बैटिंग  पर इन बुल्दन , " जु राहुल अपण  फीट बलेंस पर ध्यान दीन्दा  त द्रबिड न पिचासी रन पर आउट नि होण छौ. जु द्रबिड जरा  अपण दै खुटक फिफन /एडी तैं आधा मिलीमीटर अळग  रखद अर बाएँ  खुटक पंजों तैं आधा सूत इ उठान्दो त  द्रबिड न कबि बि आउट नि होण छौ. सहवाग जु अपण मुंड तैं बाएँ ना दै घुमांद त सहवाग न आउट नि होण छौ..."

   सबी क्रिकेट कमेन्टटेटर मूसी काकी क तरां ' फूफू क जोंग हुँदा त फूफू काका होंदी' मा विश्वास करदन.   

      उनि चुनाव क विश्लेषण मा हूंद . विश्लेषक बुल्दन , " जु लालू यादव वै दिन  टी.वी चनेलूं कैमराक समणि  बाजरो रुट्टी नि खांदो अर जुंडल़ो रूटळ खांदो  त शर्तिया लालू यादव न चुनौ जीत जाण छौ किलैकि जुंडळ प्रेमी वोटर बाजरो रुट्टी देखिक भड़की गेन.

 फिर क्वी विश्लेषक बोल्दु, "  जु वै दिन सोनिया गाँधी चुनाव रैली मा नीलो रंग को दुपट्टा नि पैरदी अर हौर रंग को दुपट्टा पैरदी त मुसल्मानु  न कोंग्रेस तैं भोट दीण छौ. जु लाल कृष्ण अडवानी राम नामी च्वाल़ा पैरिक अयोध्या मन्दिर नि जांदा अर हनुमान का च्वाल़ा  पैरदा त भाजपा तैं इथगा बड़ो नुकसान नि होंण छौ . हनुमान भक्त अडवानी क राम भक्ति से चिरडे गेन अर उन मुलायम सिंग तैं वोट डे द्याई."   

 

                      मोडर्न कमेन्टटेटर , आधुनिक चुनावी विश्लेषक बि मूसी काकी क तरां 'इफ क्वींस  हैड मोस्टेचो सही वुड हैव बीन किंग' या 'फूफुक ज्वांग होंद वा काका होंदी ' जन जुमलों गुलाम छौंवां. इफ अर बट्स, अगर, जु, यदि , ऐसा होता तो तैसा हो जटा जन वाक्यों का हम अभ्यस्त ह्व़े गेवां . अर जु, अगर, यदि, इफ  का चक्कर  मा  मूसी काकिक भात ना त फरफरू पकी सकदो ., ना ही जु, अगर, यदि, इफ का फेर मा लालू यादव चुनाव जीति सकदो  अर ना ही जु, इन, इफ, यदि क कारण सौवीं सेंचरी ब णे सकदो . इफ, जु, यदि सौब फोकट की बात छन . 

               

Garhwali Satire, Garhwali Humour, Garhwali Wits to be continued ...

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Satire and Fatkar

                Whom Shall I Vote in Coming Uttarakhand Assembly Election?

                               
                                                    Bhishm Kukreti
                                           
       
                    Since last election of Uttarakhand  results were declared , M.S Mehta  of Mera pahad .com, Purnendu Chauhan of Young Uttaranchal/Uttarakhand, Chandra Shekhar Joshi of Himalay Log.com  , many newspaper journalist friends and my own friends have been asking me  whom I shall vote in the coming election of 2012. My above friends will be happy now, that I could open my silence but others will comment that I am blowing my own trumpet. Well! I am from marketing that I shall not blow other’s trumpet at all but will blow my trumpet only.
 Till yesterday, they were just reminding me but now calls are pouring to me to declare my choice of political party for Uttarakhand assembly.  Let me tell you the secret:
      I am very much confused as Anna team is confused that now, which party they should believe because from their angle of concern, all politicians are of same feathers or in clear words all politicians are black sheep.   Since, to launch  white sheep politicians (new honest political party ) or to call the real honest politicians for fighting election  is as taking the bit in the teeth, Anna team and myself have to choose better black sheep  from the herd of political  black sheep.
     My first Ghanghtol (Confusion) is whether I should vote the politician for whom politics is bread and butter or I should rely on politicians who just entered into political arena.  In both cases, both candidates have set eyes on the powerful post rather than eying on the causes benefitting the people.  Let me first clear this confusion and then I shall decide whom I should vote.  Both believe in  gold-digging  through political means.
            Second Ghanghtol (puzzlement) is whether independents are worthy to try or let them be happy by losing the election for the sake of making democracy strong or may be making mockery of democracy.
          There is always a  Ghanghtol (riddle) before election’s ‘halchal ‘ starts  whether I should go for according to my Jat (Caste) and follow our oldest and centuries old custom of ‘Kha’ aur ‘B’ ( A fight for power between Rajput and Brahmin ) of Garhwal  or I should show my snobbishness that I am  intellectual and don’t care for Brahmin-Rajput phenomenon. My Ghanghtol (enigma) would be  that if I defy the oldest tradition of Garhwal that is Kha’ aur ‘B’ (A fight for power between Rajput and Brahmin), people of my Brahmin community and even Rajput population will definitely perceive that I only write articles about protecting Garhwali culture and do not practice it. Since, I believe in ‘Mau chhodi deen pan Ganv ni chhodan’ (Leave your brother for community sake), I will not follow the intellectualism.  I always  follow the tradition and will definitely protect our cultural heritage of ‘Kha’ aur ‘B’ ( A fight for power between Rajput and Brahmin ) of Garhwal  . Therefore choice would be Brahmin for me.
    Another Ghanghtol (question) is about whether I should go for a political party or the best candidate. Well! I shall take lesions from my grandfather that a successful person should always go with winning candidate.  Since, I would like to be called a successful person I shall go for winning candidate and I heard not from horse to mouth but watched BBC for that sake and came to from CNN International news channel too that in my area, no independent candidate wins except once Shri Bhairav Datt Dhulia. Since, we believe that BBC or CNN are better news analysts than the people in my area I shall not go for best candidate but will choose from the political parties.   
              There is less Ghanghtol (problem) about Samajvadi Party in my mind. Though Vinod Barthwal is my close relative as he is eldest son of daughter of co-wife (saut) of my mothers’ fufu (father’s sister). Due to being a true Uttarakhand movement agitator, I shall never vote for Samajvadi party, though in turn, Vinod  Barthawal ‘s mother will break relationship  with my mother’s relatives who are poor .
                  Since Bahujan samajvadi party does not have any Pakka agenda for hills of Uttarakhand except changing name of Badrinath into Mahtma Budh or Kedarnath into Budhnath, I shall not think about BSP at all.
                   I came to know from a newspaper (You will not know this weekly as the said paper is published for file purpose that is the paper published only for government advertisement in ten or twelve copies) that there is a Parivartan party.  By name, the party seems to be  fair and square party and I would like to take fancy of Parivartan party but then principle taught by my grandfather (whom his grandfather taught) does not allow me to vote for Parivartan Party as there is hundred percent surety for Parivartan party not only losing the election from my area but losing deposit by its candidate too. My grandfather taught me to be with winning person and not with losing person.
     
                From political point of view I would prefer to vote and canvas for Uttarakhand Kranti Dal as UKD is my first love.  For an Uttarakhand movement agitator, Uttarakhand Kranti Dal is always first love. I heard speeches of late Dr D.D. Pant, K.S. Airi, under the banner of UKD in Mumbai I heard the false speeches of minister of Uttarakhand Divakar Bhatt in Garhwal Darshan Mumbai and supported late Arjun Singh Gusain for his election campaign as Uttarakhand Kranti Dal member of parliament candidate though in principle, I was against that late Gusain ji should take part in election.  However, Kranti dal is a party of past and not of future, though, nothing is impossible in political arena.  Therefore, I shall not vote for UKD though, it is still my first love in politics.  I shall not go for losing party as taught by my grandfather whom his grandfather taught not to be with losing side at all.
    Congress can balance every sects of India. Now the chance of my voting to Congress is very bleak because I will never encourage dynasty practices in democracy.  The democracy was chosen by people to stop dynasty provision and if I vote for Congress I shall definitely be against the basic principle of democracy. To save the principles of Democracy, I shall not vote for congress candidate who may be a Brahmin of my cast level.
   Now, there is only one political party left in the fray and that is Bhartiy Janta Party. However, I can’t think to vote Bhartiy Janta Party as its game is up about Ram Mandir and its play of double game about
‘The Party with Difference’ is also exposed after it ruled India and in many states including Uttarakhand. Bhartiy Janta Party is very poor copy of Indian National Congress party. I would never vote a party which is poor copy of Congress party.
     Therefore, I shall not go for voting but go outing and will take lunch with Patvari ji who will offer me pork killed by area farmers and various alcoholic drinks got from the agents of various political parties, of course, both would be free.

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Light Humor

                                 Things We Learn at the Time of Election

                                                           Bhishm Kukreti                    
           
                 We come to know about many important things at the time of election only.
                      Like we come to learn from election that through voting we have power to retain the same political party in power and we have power to drive away the ruling party and pave the way for opposition party to become ruling party and ruling party becoming responsible opposition party as of now, the Congress is in opposition in Uttarakhand but same party was in power before last general election of Uttarakhand.  Though, according to Bhartiya Janta Party, the Congress party in Uttarakhand never proved that Congress is a responsible political party at all as from the standard of Bhartiya Janta party, Congress had been failure to disturb and stop assembly sessions as Bhartiya Janta party had been disturbing parliament sessions very successfully.
       Though before, election we had always, wrong impression that people fight election for making wealth as A Raja or Kalmadi made wealth for themselves and for their godfathers too. However, we learn from election that people stand for assembly or parliament seats because they want to serve the country and society. We learn from election that you can’t serve your country without being a Jila Parishad member, municipal committee member or assembly member. According to those who fight election, NGOs don’t serve the society better than politicians.

              We learn at the time of election that there is a word in English dictionary ‘Manifesto’ and every political party publishes its own manifesto. We learn at the time of election that publishing ‘manifesto’ by a political party is a custom which does not have any relevancy for all political parties at the time of election and thereafter too. ‘Manifesto’ is kind of a ‘file newspaper’ of Dehradun. The  publisher/editor of a ‘File Newspaper ‘prints a couple of copies to submit in government agencies as DAVP for getting government advertisement payment , submits a couple of copies at government agency  for getting newsprint quota at cheaper rate and never  distributes the newspaper to readers. Same way, political parties publish ‘manifesto’ to show the ‘manifesto’ to media that the media does discussion on  ‘manifesto’ and political parties get little bit of publicity. We learn from election that we voters never are aware the meaning of ‘manifesto’ of a political party. We learn through media only that the election ‘manifesto’ of all political parties running the election in Uttarakhand that no political parties of Uttarakhand take Garhwali-Kumauni languages seriously.

                  We learn from election that it is not easy to get election ticket for national and strong local political parties. It is not enough to be a devoted, hardworking party worker but you should have influential horse to ride (a godfather) at high command to get ticket for you and many ladders (strong followers and chamche) below you to push party to offer you ticket. Even then you can’t get ticket if your competitors are stronger than you. It is not enough that your competitors are driven out by all your ‘Tikdam’ or manipulation but in all circumstances, you should be a winning candidate. We learn from election that even if you are a winning candidate having no black spot on your image and there is a Don/Bhai/Dada type of aspirant who does not need any help from party to win, the political party will never offer ticket to a candidate with clean image but will offer ticket to Don/Bhai/Dada type of candidate. We learn from election that political parties put their bet on winning horse or candidate and clean image is immaterial for all political parties. Otherwise, BJP would have not offered ticket to Dr. Ramesh Pokhariyal who was definitely sacked by BJP’s high command for bad image of Pokhariyal in terms of corruption. Pokhariyal is a winning candidate and corruption charges on him are immaterial for election winning capability.
 
              We learn from election that it is not easy to win an election after getting ticket of national or strong regional parties. You should have organizing power, should have  effective election management, should have a capability to weep where you need and to laugh where is demand for laughing, you should have capability to please everybody –every time till you get elected and get ministerial post. You have to have a great maneuvering ability and sense of understanding people timely and their mood before your competitors understand. We learn from election that though no politician wants to open many borders or ‘morcha’ but in election, the candidate has to fight with many opened borders to get elected and you should be competent enough to tackle wisely so many borders at a time. On top of it, you should have enough money to spend without election commission knowing the exact figures.
               We learn from election that our democracy is very strong compared to our neighboring country Pakistan. Pakistanis are not sure that whether their votes will see that any elected parliament will run its full term or there would be an army takeover. We Indians are sure that in our country, the army is not interested to take over Indian governance from politicians and Pakistanis are sure that even there is an elected Pakistani government in front as show case but the real power is in the hands of army.

                 We learn from election that all political class-worse, bad, better or good and all classes of voters-vote for caste, vote for development , vote for party, vote for regionalism, don’t get chance to vote due to ill political practices  love democracy and every Indian wants to see that our democracy live forever.
   I am sure in future, with Nagraja, Nand Devi, and Devi Jagar; we Kumauni-Garhwali will have many Jagar (religious dance and song) of Prajatantri Devi. The grandchildren of Preetam Bhartwan or Kabootari devi will sing the Jagar of Prajtantri Devi and my grandchildren   will post all Jagar of Prajatantri Devi with interpretation in English on Internet for the use of migrated Kumauni and Garhwalis.  When the grand children of Preetam Bhartwan will get chance to perform the Jagar-dance-song of Prajatantri Devi on the parade organized for the Chhabis January/republic day celebration at Delhi, the grandchildren of all folk singers of Kumaun and Garhwal will accuse grandchildren of Bhartwan that they used ‘Pava’ (manipulating agent)  in Delhi to get chance at republic day celebration in Delhi  . Every singer would like to show people that they could sing the Jagar of Prajatantri Devi better than grandchildren of Bhartwan. Very soon, the Jagar of Prajatantri Devi will be craze among youth .

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In Lighter Mood

                                   Striving For Election Ticket                                
                                                         

                                                              Bhishm Kukreti
                         

                      In politics, trying, striving is an inherent quality of a politician. Trying is an life line of a politician.
                               The habit of trying of a politician for the goal does not leave him till his pyre is ignited. There is no any human class except political class among human beings who believes more than hundred percent on trying till last point. You may recall the historical incidents of late Hemwati Nandan Bahuguna or for that sake late Yashwant Rao Blawant Rao Chauwan. Both tried their best till their death for becoming prime minister of largest democratic country.   
               The party declared first list of election candidates in Uttarakhand but did not declare any list from the constituency of Govind Prasad the minister of irrigation and energy (small dam’s projects). The media inform people of his constituency that Govind Prasad is not getting ticket for his being corrupt politician. Govind Prasad has been making every effort. Lastly, Govind Prasad called his mentor in high command and said, “Sir! You know I am the only minister who sent fund for the party and for …”.
 The mentor made him understand, “Goivind Ji! Nobody denies your best contribution for the party (and other too?) but the internal survey says that voters are against you about your corruption methodologies. I and many other fellows are trying that you get party ticket. Even if you don’t get ticket and party comes in power you will get chairmanship of irrigation and small dam projects. Don’t worry about corruption charges on you. You should not think to join opposition party as no CBI or any agency will touch you”.  Govind Prasad knew the meaning of this sentence. There is assurance of his being in corridor of power after election and there is clear cut threat that he should not join any other party. Otherwise,  the party will complaint to government agency for probing the corruption charges on Govind Prasad.  Govind Prasad did not stop his endeavoring and made his mind for calling to his stern opponent in high command for party-ticket. There is no permanent friend or foe in politics. 
                  Likewise, another minister Govind Singh is also in mental agony. He called his powerful supporter in the high command and said, “Sir! You know I have been the only honest minister in the cabinet and if I don’t get ticket, it will be against party’s image.”
    The supporter of Govind Sing answered, “Yes! Govind Sing Ji! Even your voters know that you are the only honest politician in the party. However, party requires funds to run the party and to run the election campaign. If ministers don’t arrange funds, party can’t work. We all have sympathy with you and today, party chief was telling us to shift you from state to Delhi as there is lot of work in organization for you”.   Govind Singh is aware of meaning of language and Govind Singh knew that he will not get party ticket. Politics is about to act and activate others. Govind Singh dialed the influential man in opposition party. There is no permanent loyalty or disloyalty in politics.   
                     Present assembly member Shailendra Prasad is also trying to get ticket for second chance. The party declared candidates for most of the assembly constituencies barring a couple of constituencies. Shailendra Singh called his second line mentor in high command, “Sir! This is ridiculous that I have been serving all the influential people in state and in Delhi as well and I am still unaware about my future.”
              The second line mentor said, “Shailendra Ji! Everybody in party respects your public relation with party workers in state capital and Delhi. But our internal survey says that your voters perceive that you were more seen in Delhi or Dehradun than in your own constituency. Part high command is of opinion that you should be appointed as party observer in another state election campaign as you are good to make friends in among workers.”
          Shailendra Singh knows that at this time the doors are closed for him contesting election. However, party knows that he may be dangerous to be here in state at the time of election. Shailendra Singh calls his friends in media to spread the rumors that Shailendra Singh is making mind to contest election as independent candidate. Politics is a game of continuous struggle and hoping to get result from hopelessness.   
     Present vidhayak Shailendra Prasad is in dilemma too for not his name in second list declared by high command. Shailendra Prasad calls his mentor, “Sir, I have been always with my voters in my constituency and I am still confused whether I am getting ticket or not ...”
  The mentor said harshly, “Yes! Everybody knows that you were always with the people. But when party needs you in Dehradun or in Delhi you never showed your face and now …”
  The wordings were clear that Shailendra Prasad was working among people but he did not know that he should have nurtured his relationship with influential party workers in power corridor. Shailendr Prasad called news conference and declared that he is contesting as independent candidate. Politics is cruel and politics is about taking decision instantly.


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Fictional Satire and Fatkar
                           
                                        News for Fake Election Candidature

                                                             Bhishm Kukreti              
               A few days back of election date declaration in Uttarakhand, there were miss calls from my Chandi mama from Shyampur , Rishikesh. Whenever he has his own works from me he will give miss calls and it is my birth duty that I call him back. 
              I called Chandi Mama a far relative from my mother side and he shouted like a barking dog who is annoyed on not catching a cat, “Bhishm! You forgot your responsibility. You should have called immediately after one miss call.”
 Since, it was a common practice by Chandi mama from the day he got mobile, I asked, “Mama! Tell me. What is biting you?”
             Mama responded, “You publish articles in all periodicals of Uttarakhand, Mumbai and other cities. Immediately that Chandi Prasad a very powerful social worker of Dhangu, Dabralsyun is fighting election from Yamkeshwar constituency from a national political party. Don’t forget to post me all newspapers to me”
  It was little bit surprise for me that a man whose children are studying with his sisters and whose wife is working with a small shopkeeper for daily needs is daring to fight an election. I asked, “Mama! Are you mad that you fighting election?”
              Chandi Mama yelled, “You became a grandfather but did not learn the basic etiquettes that you should not disturb the speaker. The news should be with exaggerating phrases as ‘Prasidh samajik Karykarta, Janta ka Pyara-dulara, ‘Messiah of Ironsmiths and coppersmiths’, the goldsmiths of area are behind Chandi Prasad, Rajputon ka Pratyasi and Brahmins die for him , teachers association of Dhangu-Dabralsyun has full   support to Chandi Parasad, the unionist of BPO (below poverty line) .. .”
  I interrupted,” But mama! What the hell…”
Chandi mama  was not in mood to listen me,” you got friends in Hindustan Times, Dainik Jagran, Amar Ujala, Shilvani, Dainik Jayant, Aj ka Samachar, Kal Ka Samachar, sahara, nav Bharat times even in Khabar sar, Rant Raibar, Garhwali Dhai too . You use all your relationships in media and publish the news of my jumping into the assembly election fray. The news should be so much effective that Vijaya Barthwal, Digambar Kukreti, Renu Bisht, Sarojani Kaithola, Rajni Kukreti  should feel pinch by their heart.”
I again disrupted and said, “ Are you really fighting election?”
Chandi mama did not mind interruption, “No! No! I am not fighting election at all.”
I asked, “Then?”
Mama explained, “Bhishm! As there is seasonal business in commerce, there is seasonal business at the time of any election. Crores of rupees will be spent in Yamkeshwar constituency in the form of Bugthya, chickens, Fish, various alcoholic drinks and in the form of hard cash. All these things go to people through election agents. I want to become election agent for a national political party that I earn money in this season and I may be happy for next three years till parliamentary election is due.”
 I asked, “Does the political party candidate not know who real political activists in the area are and who are fake activists and the candidate would make you chief area agent?”
Chandi mama answered, “Those who visit constituency regularly they know what is reality but in most of the cases, the political leaders don’t care to visit constituency after election is over. Even the political leaders who visit constituency regularly require an army of cunning agents and candidates pour money on cunning agents than honest agents. By my news appearing in regional news papers, definitely, a political party will bet money on me for becoming me their area election agent and I shall make money for the season.”
     Since, Cahndi mama is my mother’s first cousin’s maternal uncle’s third cousin’s son, I had e to oblige him and I had  to take obligation of my media friends.
                                xxxxxxx           xxx    xxxx    xx   x
      Today, I got a miss call from Chandi mama and I called him. Chandi Mama informed me that he is been appointed chief election agent for Malla Dhangu and hope that he would earn lot of money in the season. 

Editor and publisher’s declaration: All legal cases against the author will be settled amicably in the form of a Khassi Bugthya (Strong he Goat) and rum, whisky depending upon grievance of the case.

Copyright@ Bhishm Kukreti

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Famous Poet Girish Tiwari Ji poem on Election .
(http://newideass.blogspot.com/)

गिर्दा की चुनावी कविताः [/size]रंगतै न्यारी   [/size]     
 [/size]
 [/size]चुनावी रंगै की रंगतै न्यारी
 [/size]मेरी बारी! मेरी बारी!! मेरी बारी!!!
 [/size]दिल्ली बै छुटि गे पिचकारी-
 [/size]आब पधानगिरी की छु हमरी बारी।
 [/size]चुनावी रंगै की रंगतै न्यारी।।
 
[/size]
 [/size]मथुरा की लठमार होलि के देखन्छा,
 [/size]घर- घर में मची रै लठमारी-
 [/size]मेरी बारी! मेरी बारी!! मेरी बारी!!!
 [/size]
 [/size]आफी बंण नैग, आफी पैग,
 [/size]आफी बड़ा ख्वार में छापरि धरी,
 [/size]आब पधानगिरी की हमरि बारी।
 [/size]
 [/size]बिन बाज बाजियै नाचि गै नौताड़,
 [/size]‘खई- पड़ी’ छोड़नी किलक्वारी,
 [/size]आब पधानगिरी की हमरि बारी।
 [/size]
 [/size]रैली- थैली, नोट- भोटनैकि,
 [/size]मचि रै छौ मारामारी-
 [/size]मेरी बारी! मेरी बारी!! मेरी बारी!!!
 [/size]
 [/size]पांच साल त कान आंगुल खित,
 [/size]करनै रै हुं हुं ‘हुणणै’ चारी,
 [/size]मेरी बारी! मेरी बारी!! मेरी बारी!!!
 [/size]
 
[/size]काटी में मुतण का लै काम नि ऐ जो,
[/size]चोट माड़ण हुंणी भै बड़ी-
 [/size]मेरी बारी! मेरी बारी!! मेरी बारी!!!
 [/size]
 [/size]पाणि है पताल ऐल नौणि है चुपाणा,
 [/size]यसिणी कताई, बोलि- बाणी प्यारी-
 [/size]चुनावी रंगै कि रंगतै न्यारी।
 [/size]
 [/size]जो पुर्जा दिल्ली, जो फुर्कों चुल्ली,
 [/size]जैकि चलंछौ कितकनदारी,
 [/size]चुनावी रंगै कि रंगतै न्यारी।
 [/size]
 [/size]मेरी बारी! मेरी बारी!! मेरी बारी!!!
 [/size]चुनावी रंगै कि रंगतै न्यारी।

Bhishma Kukreti

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In Boozy Mood
                                              Living in Seasteading Cities   

                                                Bhishm Kukreti

                   My friend,  staying in a sky tower in south Mumbai called me for ‘Matimari’  cocktail party.  In his personal dream-laboratory equipped with ultra latest gadgets, the big LED TV screen was on and the screen was showing unusual structures into the ocean.
              Making Thai rice whisky ‘Lao-Khao’ pegs for both of us he said, “We shall be shifting to Seasteading cities very soon.”
         I asked after gulping the whole ‘Lao-Khao’ peg, “What  ...Seasteading ..?”
               Gulping the drink, he explained by showing some structure on LED screen,      “Seasteading colonies mean that cities on the ocean.” 
               I asked, “You mean -the floating cities or Metros on the high sea.”
          Making  two  small pegs of Ghanaian Ashanti palm wine , my friend explained, “Yes! These cities will be like on the biggest ever giant cruise liners. “ 
  Gulping Ghanaian African palm wine peg,   I jumped and said,” Oh! Then Indian will have tens of metros on Indian oceans built by in the name of MNCs by money siphoned through Swiss banks and Mauritius by our own Indian businessmen.”
            Making Brazilian Caipirinha pegs, my friend shouted,” Oh! No way! There won’t be any governments ruling these metros or cities. These sea floating cities will be built on no man’s land site of each ocean. The basic idea behind living in ocean based colonies is that we ultra rich class has our own government, our own rules fit for making us richer and richer and taxes would not be levied on us for spending our hard money earned   on comforting the poor people.”
  Knocking down the Caipirinha peg, I asked, “Is it possible to have metros on seas?”
          Making Tej peg an Ethiopian drink, my friend answered, “Yes!  The idea of living on Ocean Sea is coming true. Theil Seasteading institute is working day and night that very soon; ultra rich people live in the ocean cities of their own. “
  Hurriedly gulping the Tej an Ethiopian peg, I asked,” Will it not legal problems from governments all over the world?”            Making a Politin an Ireland’s traditional alcoholic beverage, the  friend explained, “my dearest friend! The Theil Seasteading Institute is studying country wise territorial laws and international laws. Hundred of law experts are working on the hassles making ocean cities out of any government laws.”
         Enjoying the Irish drink, I showed my apprehension, “What about all those technical aspects of cities on the sea?”
   Making a Hungarian Palinka drink, my friend explained, ‘Sir! You have already toured on large maritime structure as giant cruise liners hosting thousands of guests on lengthy voyage. Then there are hundreds of off shore oil platforms providing floating accommodation to a large work force. There is constructed sea fort in Britain’s coast called Sealand built at the time of Second World War. No doubt! These sea floating structures are very small in terms of cities where, we ultra rich will live. However, these structures are the base of three types of sea floating metro cities. “
         Finishing my Palinka , I showed my interest, “  Are there many types of models for sea floating cities ?”
  Making a Japanese cocktail  peg of Nigori, Nama and Shochu and explaining models through LED TV , my friend elucidated me, “ At present , there are three major models – Ship shaped structure, barge like forms based on pontoons and off shore platforms used in oil exploration. Now, you may see on TV screen that enthusiasts drew wide range of designs for Seasteads.”
  Gulping the Japanese cocktail, I asked, “Do you believe that you will see floating cities on the seas in your life?’
 Combining Pulque, Mezcal and Tequila Mxican drinks together and offering me too, he said, “Well! If I can’t see those Seasteadings come true, my son will live there. We rich people invest for future and not for today.”

Garhwali satire, Himalayan Wits, uttarakhandi humours to be continued........next ...

Copyright@ Bhishm Kukreti

 
 


 
 
 
 

 


Bhishma Kukreti

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Humour/Satire

चबोड़ इ चबोड़ मा भैरों!

                                              छि भै ! जनान्युं जंघड़ दिखाण मा क्यांकि सकासौरी !



                                                      चबोड्या ; भीष्म कुकरेती



               मेरी बूड ददि जैञ तैं वींक बूड ददि न बिंगाई/ समझाई छौ, वीन मीं तैं टक्क लगैक बिंगाई/ समझाई छौ बल दीन दुन्या मा बदलौ भौतिक होंद अर मनिखौ मगज /मन त उनि रौंद जन हजार बीसी बरस पैल थौ. अब द्याखो ना गाऊँ मा अब जनान्युं कुणि उन काम-काज नि रै गे जु पैल छया अब गैस ऐ गे , घर बैठ्याँ बैठ्याँ फटक्यूँ-फटक्यूँ , बीं बिंवर्यूं राशन ऐ जांदी, ड्यारम अपण कजै तैं तून दीण मा क्वी कमी बेसी रै गे त जैबरि ज्यू बुल्याओ मोबाईल मा तून दे द्याओ. अब जन की बल गौं मा मवारां/हरेक घरमा ना सै थुकाँ/मुंडीत त कम्पुटर अर इन्टरनेट ऐ इ गे. अबाक जनानी ह्युन्दों मा घाम तपद तपद बिस्कुण/ अनाज नि फटकदन बल्कण मा बड़ो स्क्रीनौ टी.वी मा इन्टरनेट मा ब्लौगी छ्वीं (चैटिंग ) लगांदन. अब द्याखो ना सी वीं बडी मौक ड़्यार जनान्यून भौत देर तलक नेट मा छ्वीं लगैन अर जब नेटौ छ्वीं से बिखल़ाण (उबना ) पोड़ी गे त सबि जनानी औफ़ लैन मा छ्वीं लगाण बिसे गेन.

वो - हाँ उन त सबी सोसल नेटवर्क एकजसी छन पण भै फेस बुक जरा सौंग/सरल च हाँ !

वा- हाँ ए जी ! तुम ठीकि बुलणा छंवां . मेरी ननी क कणसी द्युराणे जेठी फूफू क बड़ो नौनौ समदी क नाती क साडू भै क छ्वटो नौनु जु यूंक नातो मा भुला लगद अर लन्दन मा रौंद वो बि इनी बुलणो छौ बल फेसबुक को क्या बुलण. हम त वैको दगड रोजी छ्वीं लगौन्दा.

या - हाँ भै अब त ड़्यार-बैठो अकास पताळ वालोँ दगड कथगा बि कैबरी बि चैट कौर ल्याओ अर ना कैक डौर ना कैक भौ .

स्या - हे भूलि ! अच्काल वै कंपौडरौ दगड औफ़लैन छ्वीं कम ह्व़े गेन जु तु अब औन लैन बाटु जोग ह्व़े गे .

या- देख ह्यां ! या ! बिंडी नि बोल हाँ . मी बि अपण बुबा क बेटी नि होलू जु तेरी ब्व़े क्या , तेरी ननी -ददि क सौबुं क बथा नि लगौल हाँ ! फिर नि बोली कि.....

हैंकि - ह्यां ! हे निर्भाग्युं हम छ्वीं लगाणा छंवां नेटौ-चैटौ अर तुम बि कख लग्यां छंवां . फंड फूको औफ़ लैन कि बथौं तैं.

गां तौल़े की- हाँ ये जी ! तुम ठीक बुलणा छंवां . अच्काल ज्वा रौंस/मजा ऑन लैन मा च वा ऑफ़ लैन मा कख रै गे. अब स्या या कम्पोडरो दगड छ्वीं लगाली बि त क्या लगाली वी फाणु अर बाड़ी की अर जादा जादा से जादा रामजवाण चौंळऊं की!

अरे अच्काल त औन लैन मा मोडर्न छ्वीं लगदन जन की चाऊ माऊ ,पिजा कि ''

गौं मथे की- हाँ ये तौळऐ की ! तू सै बुलणि छे. ह्यां ! उन त म्यार अंग्रेजी स्कोल मा पढ़ण वाळ नौनु फाणु- बाड़ी तैं छ्व्ट लोकुं खाणक माणदो छौ पण जब बिटेन वैन फेस बुक मा जाण बल फाणु तैं मिन्सड कोरमा करी अर बाड़ी तै स्वीट्लेस पुडिंग बुले जांद त ए भै म्यार नौनु अच्काल हर दुसर दिन फाणु- बाड़ी क फरमैस करदो.

गौं क एक छ्वाड़ करैकि- म्यार इख बि यी हाल छन . पैलि मेरी नौनी कै बि घर्या ब्वालो या गंवड्या गीत (लोक गीत) ब्वालो लगाण मा इन्सलट्यांदी (इन्सल्ट महसूसना ) छे पण जब बिटेन वीन हेम पन्त की इंटरनेटी-छ्वीं बांच बल बेडुपाको डौट कौम को गुसें डा. शैलेश उप्रेती अमेरिका मा रौंद अर बेडुपाको डोट कौम से घर्या गीतुं प्रचार करदो त बेडुपाको डौट कौम की मेर्बानी से मेरी नौनी अब त सिर्फ घर्या गीत गांदी भै!

गौं क हैंकि छ्वाडे कि- अरे याँ छ्वाड़ करैंकी ! जब तलक यू शैलेश उप्रेती मनान , सोमेश्वर मा छौ त तेरी बेटी शैलेश की बात माणणे बात त राई दूर वैकी बात कतै नि सुणदी छे. अब शैलेश उप्रेती अमेरिका क्या गे कि तेरी बेटी घर्या गीतुं मा इंटरेस्ट ल़ीण लगी गे .

गौं क एक छ्वाड़ करैकि- ये ! ज्यूंरौ दगडै ज्योर जी ! मरी बेटी क बात सुणीक तुमर अंदड़ किलै म्वाट (गुस्सा होना ) हूणा छन. हाँ १

गौं क हैंकि छ्वाडे कि; ह्यां ! ये ब्वारी मी बुलणो छौं बल जब तलक क्वी गौं मा रौंद त हम वै तैं फ़िक्वाळ /मंगत्या समजदवां अर जनि वु अमेरिका ग्याई ना वी हमखुण बड़ो जादू वाळ महात्मा ह्व़े जान्दो.

वा - ह्यां मी तैं त 'हमर उत्तराखंड ' ब्लौग भलो लगद .

स्या- मी तैं त भै ,कौथिग ब्लॉग मा रौंस आन्द

वै - भै ! मेरो हिसाबन त कौथिक, कौथिग, म्यार उत्तराखंड या हमर उत्तराखंड, बुरांस, गढ़वाली कुमाउनी , कुमाउनी -गढ़वाली , सबी इकसनी इ ब्लौग छन . सौब वी हिंदी का गजल, हिंदी का कविता , हिंदी का कथा, हिंदी का जोक्स सौब कुछ हिंदी का

गौं क मथ्या की- ना कबि कबि क्वी क्वी कामै या रौन्सदार छ्वीं बि लगै दीन्दन भै !

गौं की बीचे क - अच्काल त भंगुल जम्युं च भै ! इख नेतों ऑफ़ लैन भंभ्याट, प्वींपाट अर उख इंटरनेटो ब्लौगुं मा बि नेतौं चमचौं च्यूंचाट.

गौं मुड्या की - हाँ भै ! हमन जौंक सुपिन मा नाम बि नि सुणी छौ वुंका चमचा ब्लौग मा लिखणा छन बल नेता जीन हमर क्षेत्र मा भारी भारी सामजिक काम कार बल जन बुल्यां यूँ नेतौं न हमर गाँ मा भीम शिला धौरी होलो धौं !

या- इ राम दा! मि त रोज 'खाटळी-विकास' ब्लौग बांचणो रौं की कबि ट ये ब्लौग मा नयार मैत - सिंदूरी, बीरों खाळ, या मुंबई मा बस्यां खाटळी वाळऊँ च्व्वें होली. पण कख लगाण धौं! खाटळी ब्लौग मा क्वी टीरी को केशर सिंग बिस्ट की ही छ्वीं लगदन .

हैंकि - ह्यां ! वै खुसाल सिंग न बि क्या जि करण जर्मनी- गढ़वाली शब्दकोश ल्याखल कि खाटळी ब्लौग तैं खाटळी वालूं मा प्रचार कॉरल धौं !

उखाकी - एक नामौ बान हमर जातिक ब्लॉग बि च . नाम त च ' वी आर कुकरेती' पण सौं घटणो ' वी अर कुकरेती ' ब्लॉग मा कुकरेत्यूं क्वी बि छ्वीं नि लगदन. बस नामौ कुकरेत्यूं ब्लॉग च .

इखाकी - हाँ भै! अच्काल त बिजोग इ पड़ी छन भै ओ क्वी लीड इंडिया च जो हिमालय ब्लौग मा छोर्युं फोटक दीन्दो अर बेशरम तैं द्याख्द त सै ! जनान्युं जंघड़ों फोटक दिखान्दो.

स्या - इनु तैं पुछण छौ बल दूसरों बेटी -ब्वार्युं नंगा जंघड़ दिखण/दिखाण मा यूँ तैं रौंस आन्द अर क्वी युंकी ब्व़े, बेटी अर ब्वार्युं ब्लौगूं मा नंगो फोटो दिखाला त वैबरी यूँ पर क्या बीतली.

ज्युरा दगडै कि - युंकी करतूत से त सरकार तैं इथगा बढिया प्रजातंतरौ मीडिया पर बि सेंसर लगाणो मौक़ा मिल्दो.

सबी - हाँ ज्युंरा दगड्या न ठीक इ ब्वाल



Garhwali Satire, Garhwali Humour, Garhwali Wits to be continued ...

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