Humour/Satire
हौंस हौंस मा चबोड़ !
भितर-ग्वडै (सुहाग रात ) की कथा
भीष्म कुकरेती
म्यार दगडा क दड्या, दोस्त अपण भितर-ग्वडै याने सुहाग रातै कथा रस ल़े लेकी सुणान्दन.
ये मेरी भीना ! दगड़यों भितर ग्वडे क कथा मा उन्माद, राति, आवेग, मद, रोमांच उलार
क्या क्या नि होंद, ज्यू बुल्यांद सरा राती दगड्यों क भितर-ग्वडै कथा बार बार सुणणु रौंउ . अर
जब मेरी पांति (बारी ) भितर-ग्वडै कथा सुणाणो आन्द त मी ऐं बें देखिक बात टाळी दींदु.
गढवाळ मा भितर-ग्वडै शब्द द्वी जगा प्रयोग होंद एक जब कै तैं अड़ाणो बान भितर गव्वाड़ी क मर्चुं
धुंआं दिए जान्द या जब सुहाग रातौ बान मर्द अर जनानी तैं भितर ग्व़ाडे जान्द . ठीक इ शब्द च भितर ग्वडै'
द्वी इ घटनों मा कै ना कै तैं अडये जांद. उन अमतौर पर भितर ग्वडै क प्रयोग तब जादा होंद जब
कै द्यूर तैं रंडोळ भौज क दगड ब्याओ बान गां गौळ की रजामंदी से भितर ग्वडे जांद.
अब जब म्यार ब्यौ होई त भितर-ग्वडै नामक सांस्कृतिक रसम बि उनि ह्व़े जन की हौर रसम को निभाण
जख मा ब्योला-ब्योली तैं क्वी मौका इ नि मील की दुयूं मादे कैकी बि चलि जाव
उन मीन मुबई का अपण सबि सुहाग रात ना हनी मून विशेषग्य दगड्यों से पक्की ट्रेनिंग बि ल्याई . हमर टैम
पर हनी मूनौ बान क्वी फौर्मल ट्रेनिंग स्कूल नि छ्या ना ही इन्टरनेट की क्वी खबर छे त अनुभवी दगड्यों
की मौ मदद इ मानदंड छौ.
अब जब ब्यौ गां मा होलू त बथाणो जरूरत नी च बल भितर -ग्वडे नाम को सांस्कृतिक रसम बि पवित्र हिमालय
क खुकली याने हिमालय की गोद मा ह्व़े. हौरुं खुणि हनी-मूनौ बान हिमाला जाण एक रति, श्रृंगारिक भाव वाचक
घटना होंदी होली मेखुणि भितर -ग्वडे हिमाला मा मनाण एक मजबूरी छे. हमर टैम पर हनी-मून भैर मनाण संस्कृति भंजक
मनिखों काम छौ अर मी अर म्यार ड़्यार वाळ अबि तलक निसयेंदु गरु (असह्य बोझ) संस्कृति तैं मुंड मा उठाण मा प्राउड फील
करदन. त इन बुले सक्यांद म्यरो भितर -ग्वडे की पवाण गां मा लग याने मधुचंद्र की शुरुवात हिमाला की गोद मा ह्व़े .
अब जब हम बम्बई बिटेन गां जयां छ्या त यो बि जरोरी च गां मा खूब झर फर से जीमण जामण होली. आज बि अर तैबरी बि
गां मा इन समजे जांद बल बम्बै मा गढ़वाळी रूप्या हगदन. त म्यार ब्यौ मा गां वाळ से जादा भैराक पौण छ्या. अब म्यार बुबा जी
बम्बै का प्रवासी छ्या त मतबल बम्बै का सेठ छ्या. अर जब तथाकथित बम्बै क सेठौ नौनो ब्यौ ह्वाऊ त पौणु/मेमानुं मा लकड ददा,
पकड़ ददा , झड़ ददा , पड़ ददा से लेकी अपण ब्व़े-बाबौ क रिस्तेदारुं तैं न्यूत दीण जरूरी छौ. निथर कैन मनण थौ बल म्यार बुबा जी बम्बै रौंदन.
उन बात बि सै च हम मुबई वाळ बौंबै मा क्वी जीमण जामण कै फाईब स्टार होटल मा कौरी बि द्योंला त क्या ह्व़े गे . अरे जख टाटा, बाटा
बिरला , अम्बानी समोदर मा क्रूज या याट मा जीमण-जामण करदा ह्वावन उख फाईब स्टार होटल की क्या बिसात ! त
हम बौंबै वल़ा इख बॉम्बे मा त कुछ दिखाई नि सकदवां त हम बौंबै वल़ा गां मा औकात से जादा खूब झर फर करदवाँ अब चाहे झर फर
दिखाण मा धौणि इ टूटी जाव धौं पण झर फर करण जरूरी च.
त जब बरात बौड्याइ होई त वैदीन भितर -ग्व्ड़े (सुहाग रात) क सुचण इनी छौ जन बुल्यां बिरळऔ औंर खुज्याण या
तिमलौ फूल खुज्याण. गां मा कै बि मौ क इक तिल धरणे जगा नि छे बचीं त ब्योला क इख त जगा क क्या बुन ! त
वै दिन सौरी! वीं रात मून हनी नि ह्व़े बल्कण मा मून (मेरी ब्योली) पौणु/मेमानु पिपड़करू मा दिख्याई इ नी च
दुसर दिन द्वी चार इन पौण हमर घौर से इलै बिदा ह्वेन जौंक कूड इखुली जगा मा छौ निथर स्ब्युंन अपण बेटी क सौं घटीन
बल कूड गां से भैर नि होंद च त गौ बुरी चीज वो जांदा.
त पौण दिवता जन (अतिथि देवो भव ) क वजै से दुसरी रात बि हनी मून की रसम रिवाज या रिचुअल अनसीन सरकमस्टांसेज से
ना डिसाइडेड डिसीजन क तहत पोस्टपोन्ड करे गे.
पण जन गढ़वाळ मा जन आपदा-प्रबंधन/ डिजास्टर मनेजमेंट च इनी हमर इख आपदा प्रबंधन की बैठक ह्व़े . राति बारा बजी
कुछुं तैं याद ऐ बल अरे जांक बान यू इथगा ताम झाम (याने बारात आदि ) ह्व़े बल वांको त कुछ ह्वाई नी च. अर जकता सगती (आनन फानन)
मा म्यरो भितर ग्वडे क इंतजाम करे गे.
ब्योली हनी मून को बान नी पुळयाई/खुस ह्वाई बल्कण मा इलै पुळयाई बल हनी-मून को सुख
मीलो या नी मीलो दस बाई दस की कोठड़ी मा जख दस जनानी छया , वै गैस चेम्बर से निजात त मीलली.उ त भलो
छौ बल सबि जनान्युं न इक्सनी खाणक खयूँ छौ जां से सब्युन्क मानव जनित नेचुरल गैस को फ्लेवर एकी छौ. हाँ ! गैस प्रोडक्सन
हॉउस को आउटलेट से जब गैस भैर दुनया मा कदम धरदी छे त अलग अलग आवाज मा , बिगळी बिगळी भौण मा गैस खुसी जतांदी छे.
या सैत च गैस अपण आणो खबर अवाज गाडीक दीणी छे . गैस प्रोडक्सन आउटलेट से पैदा हूण वळी ख़ास आवाज छे
ठुस-ठुस , फुस-फुस , प्वां प्वां . प्वीं, प्वीं, , पर्र -पर्र , पूर्र, पुर्र अर भ्वां, भ्वां ...
अब जो काम जकता-सगती मा ह्व्वाऊ उखमा विधि विधान , पूर्व नियोजित काम को क्या काम ? म्यार लयां
काजू, किसमिस, छ्वारा बदाम अर फाईब स्टार की चौकलेट, परफ्यूम्स, टेप रिकौर्डर म्यार सूटकेस जोग इ रै गेन. भितर -ग्वडे या सुहाग राति कुणी
दूध को इंतजाम सिरफ़ फिल्मुं मा ही होंद. हम गढ़वाळी फोर्मलिटी मा विश्वास नी करदां . अरे जब अस्कदी/ आशाबंद/प्रिगनेंट
जनानी तैं दूध नी दिए जांद छौ बल्कण जै कौम मा सदियों से बाड़ी, झंग्वर अलुण गरम पाणी मा खाणो दिए जान्द छौ
वीं कौम मा भितर-ग्वडे मा दूध सेवन की बात घड़ये/सुचे इ नी सकेंद .
हम दुयूं ब्योल़ा-ब्योली तैं कुछ कुछ अद्बिज्यां हालात मा एक कुठड़ी मा धकये ग्याई. अदरातिक डिजास्टर मनेजमेंट
क हिसाब से यें कुठड़ी से बढिया कुठड़ी आज की रात त मिली नी सकदी .असल मा डिजास्टर मनेजमेंट न मेरो भितर -ग्वडे
क प्रोग्राम इ तब बणाइ जब अदा राति मा कै तैं खयाल आई बल या कुठड़ी भौत बडी गलती से खाली रै गे अर पौण बिहीन च
. अर गां क एक बुड्या जी (जु डिजास्टर मनेजमेंट का सदस्य बि छया) न रस लेकी, दांत कीटिक, द्वी ऊँठूँ तैं मिलैकी इन अवाज गाड
जन बुल्यां बुड्या जी न खटो लिम्बू खैइ होलू , मी तैं बताई बल यीं कुठड़ी से एक फ़ायदा च बल कुठड़ी गां क छ्वाड़/किनारों
पर च त उफंदरी/उत्पाती बच्चों क क्वी डौर नी च, अर चूंकि कुठड़ी क बगल मा गौं क गुदनड़/ गुज्यर ( ओपन ट्वाइलेट) च
त डिस्टरबेंस की क्वी गुन्जैस बि नी च. निथर अजकालौ बच्चा त ...
भितर ग्वडे से पैलि बुड्या जी न हिदैत दे बल कुठड़ी की खिड़की नी खुलण किलैकि गुदनड़ बिटेन गंध ऐ सकदी .
अर मेरी ब्योली तैं बाटो दिखाण वळी बुडड़ी जी न ब्वाल बल रात कैं बि हालत मा द्वार खुली नी रखण , कुज्याण गुलदार/
ढीराग/बाग़, चिनखों बान इखी पुण लुक्युं ह्व्वाव त ?
जब हम ब्योला-ब्योली कुठड़ी भितर ह्व़े गेंवां त बुड्डी जी न द्वार बन्द करदा ब्वाल "ह्यां सांकळ/ कुण्डी लगै दियां
नव्हां बाग़...' अर मीन पैल काम कार द्वारौ सांकळ ठीक से लगाई.
मैं तैं पता इ नी छौ की हमर स्वागत का वास्ता यीं कुठड़ी मा ख़ास बन्दोबस्त च . एक चिमनी छे ज्वा सैन/संकेत
करणि छे बल बस कुच्छ इ देर की मेमन होली किलैकि चिमनी क तेल खतम होण इ वाळ छौ अर सैत च डिजास्टर मनेजमेंट वाल़ून
सोची होलू की चिमनी कखी हनी मून मा डिस्टरबेन्स कारली त वूंन चिमनी क तेल की चिंता इ नि कार.
मीन फिल्मुं मा कथगा द्फैं देखी छौ (अर म्यार दगड्यों न बि बतै छौ) बल गरीब से गरीब की
भितर-ग्वडे/सुहाग रात/हनी मून मा एक चौरस/चौडो, बड़ो भारी पलंग होंद, पलंग मा गुलाब का फूल होन्दन,
पलंग का चर्री तरफ फूलों झालर होन्दन आदि आदि . पण मेरो भितर-ग्वडे मा पलंग नी छौ . एक ग्वाठ मा को
झिल्लू खटला छौ. हिंदी फिलमुं मा मीन देखी छौ बल गरीब से गरीब की सुहाग रातौ पलंग मा साफ़, सुन्दर ,
गदगदो गद्दा होंद, अर गद्दा मा होंद एक रेशमी चादर . पण इख त झिलो खटला मा एक टल्लयुंन बण्यु
क्वी चीज-बस्तर छे जो गदेला क याद दिलाणो छौ. इन मा चदरो उमेद करणो मतबल बौळयापन/पागलपन.
फिल्मुं मा मीन देखी छौ कि गरीब से गरीब की सुहाग राति क पलंग मा द्वी सुफेद साफ़ सुथरा हृदय का चित्रुं से
चित्रित/ एम्ब्र्वाइडेड द्वी तकिया होन्दन. इख मेरो भितर -ग्वडे मा तकिया त नी छ्या पण हाँ सिरवणी/तकिया जगा एक पुराणो
खप्युं-खुप्युं जोळ/पाटा कु टुकड़ा बुलणोक/ तथाकथित गदेली क तौळ जाणि बूजिक धर्युं छौ कि लुकयुं छौ यि त भगवान इ जाण धौं !.
मी तैं म्यार दगड्यों न बि बथै थौ अर मीन फिल्मुं मा बि देखी छौ कि गाँव हो या शहर , गरीब होऊ या अमीर
ब्योला/बर पलंग मा बैठ्यु रौंद अर जनि ब्योली मधु-चन्द्र/हनी मून कक्ष मा भितर छिरकदी /प्रवेश करदी त ब्योला उठिक
सने-सने, धीरे-धीरे ब्योली तैं दर्वज बिटेन पलंग का तरफ लांद अर ब्योली तैं बड़ो उलार, जतन, प्रेम, उमंग,हर्स,
रोमांच , चपलता,लड्योण (लाड प्यार) से पलंग मा बिठान्द . मी येही मकसद से खटला मा झम से बैठु अर मेरी ब्योली क समज
मा बि आई गे छौ कि मी कै मकसद से खटला मा बैठणु छौ त वा खड़ी राई कि मी (ब्योला) खटला से उठल़ू
अर वीं तैं लौलु. पण जनी मी झम से खटला मा बैठूं कि जन बुल्यां सरा कुठड़ी मा भ्युंचळ या प्रलय ऐ गे होलू.
खटला तौळ बखर-ढयबरों का चिनखों चिल्लाहट शुरू ह्व़े अर फिर हुर्स्या-हुरसी/देखादेखी /नकल मा कुठड़ी का
सबि चिनखा-चिनखी चिल्लाण लगी गेन अर मेरी ब्योली डौरन किराई अर लतडक, ढम से खटला मा
गिरी गे. मेरो जु सुच्युं छौ वो मीम इ रै गे. अर भैर थ्वडा दूर बिटेन बुडड़ी क आवाज आई "ये नर्भाग्युं ! इन बि क्या च !
सबर त कारो . सरा रात तुमारि इ च." सैत च अबि बुड्डी गौळ बि नि लांगी ह्वेली . अबि तलक हम दुयूंन मधु-चन्द्र क
रौंस मा देखी नि छौ कि कुठड़ी मा हौर बि जीवन छन. अब हम दुयूं न चिमनी क पिंगल़ो उज्यळ मा कुठड़ी क
भितर हेर/हयार/द्याख त हनी -मून क बीच मा ज्वा रस्म होण छौ वो रस्म पैलि होण बिसे गे
याने कि हम दुयूं क रंग बदरंग/वैवर्णय/चेंज ऑफ़ कलर ह्व़े गे. हनी-मून श्रृंगार रस को एक ज्वलंत
उदहारण च अर श्रृंगार रस प्राप्ति मा मुखौ रंग बदरंग/वैवर्णय/चेंज ऑफ़ कलर होई जांद पण हमारो मुखौ
रंग बदरंग संयोग- श्रृंगार रस प्राप्ति से नि ह्वेई बल्कण मा यि देखिक ह्वाई की हमारो भितर-ग्वडे/मधुचंद्र/सुहाग रात/हनी-मून
क गवाह बारा तेरा बखर-ढयबरों का चिनखा छया, चारेक त पांच छै या दस बार दिन का होला अर सब्बी फुच्ची छ्या कुछ खटला तौळ
छया बकै इन उना कूण्यों जोग छ्या . अब इ सीन त महमूद या राजेन्द्र नाथ की फिल्मुं मा बि नि द्याखी छौ त इन सीन
की कल्पना म्यार हनी-मून ट्रेनर दगड्यों न क्या करण छौ ! सबि शहरी छ्या. मेरी समज मा नि आई की इन परिस्थिति
मा हनी-मून को अगलो कदम क्या होण चयेंद .
मी तैं या मेरी ब्योली तैं अफिक अगला कदम उठाणे मेनत करणे जरूरत इ नि पोड़.हम दुयूं क कदम असमानों
तरफ जाण लगी गेन. हम द्वी खटला मा बैठी छ्या पण खटला इथगा झिल्लो छौ कि हम दुयूं क पश्च भाग जमीन से
चिपटा चिपटी करण मा अपण अहोभाग्य समजणा छया अर दुयुंक चर्री टंगड़ा अस्मान मा कुठड़ी क बौळी , बलिँडों तैं
लौंफ्याणो एक हैंको दगड छौम्पा दौड़ी करण मा अग्ल्यारी ल़ीणा छया. म्यार दगड्यों न मी तैं अड़ाइ छौ बल हनी-मून
कि राति कन ब्योली तैं पलंग मा बिठाये जांद अर फिर लड्योड़ (लाड -प्यार से ), प्रेम से कनो बात अगनै बढ़ये जांद पण
इख बैठण इ कठण छौ त दगड्यों सिखयूँ सौब भेळ जोग क्या गुदनड़ जोग इ ह्वेई .
अर हाँ दगडड्यों न ख़ास बोली थौ बल द्वी तीन किस्मौ इतर/परफ्यूम जरुर ल़ी जै. जब ब्योली कम्ररा मा आली त वां से
इतर/परफ्यूम कमरा मा खासकर पलंग मा जरुर छिड़क दे सब्युंक बुलण थौ बल परफ्यूम कि सुगंध सुहाग रात तैं रंगीन बणाण मा
चमचों से बि जादा सहायक होन्दन. दगड्यों न ज्ञान बढ़े छौ बल इतर-परफ्यूम्स से जनानी जात मर्दों से आकर्षित जल्दी होंद.
अब क्या बुलण इतर परफ्यूम्स त सूटकेश मा इ रै गे छौ. पण कुठड़ी मा गंध सुगंध कि क्वी भौंकी कमी नि छे उलटं
इन गंध ना त ब्योली न सूंगी छे ना इ मीन. चिनखों बकर्वळ की अलग इ गंध छे अर चिनखों मूत की चिराण एकजोटिक छे
कि उत्तेजक छे यां पर तीस साल ह्व़े गेन हम द्वी झणो मा एकमत नि ह्व़े सौक. हाँ एक बात छे कि चिनखों चिराण
हुर्सेणि/ चिरडाणि जरुर छे बल गां मा याने हिमाला-क-खुकली (गोद) मा हनी-मून मनाण मा कुछ त नै गंध मीलली ई.
उनां चिमनी कैबरी बुजी जाओ यांकी बि फिकर छे . किलैकि दगड्यों बतयीं कथगा ई रस्म अबि बाकी छे .अर हरेक
रस्म प्रकाश मा हूण जरुरी छे
अब जन कि बैठीक एक हैंका दगड प्रेम से छ्वीं लगाण से सुहाग रात की शुरुवात करणे बात त असम्भव ही ह्व़े गे छे . किलैकि
जन क़ि पैलि बथाई याल बल झिल्लो खटला मा बैठण कठण ई ना असम्भव ई छौ. त दोस्तों क बतायूँ अग्वाड़ी को स्टेप कि बारी छे.
अगलो स्टेप मा हम द्वी नव विवाहित्यूं तैं पलंग मा दूर दूर पोड़ण छौ , संगीत लगाण छौ अर फिर धीरे धीरे इके कैरिक
प्रेम ग्रन्थ का पन्ना पढ़ण थौ. जख तक संगीत को सवाल थौ मी एक पॉकेट टेपरिकौर्डर लेकी बि अयूं छौ अर द्वी तीन प्रेम से
छळबळ/लबालब भर्याँ गाणो टेप बि लै छौ जु सूटकेश मा इ झुल्लों, इतर आदि तैं गाणा सुणाणा होला . उन हमर
हनी-मून रूम मा म्युजिक कि क्वी कमी नि छे. चिनख बनि बनि (तरह-तरह) कि आवाज से वातावरण तैं
संगीतमय बणाणे कोशिश करणा इ छया . बाकी जो कमी रईं छे जन कि सितार जन स्ट्रिंग म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट
की त सितार की कमी तैं पुरा करण मा झांझु/मच्छरों न कुठड़ी मा सौब जगा अलग अलग सैकड़ों कन्सर्ट की कछेडी
लगाण शुरू करी याल छे. इन लगणो छौ बल जन बुल्यां झांझु/ मच्छरों हरेक झुण्ड मा संगीत की क्वी आल इंडिया कम्पीटीसन
चलणि ह्वाऊ .
सुहाग राति क अगला स्टेप क अलावा अब कवी हौरी स्टेप हम निभै नि सकदा छ्या त हम दुई खटला मा पोड़ी गेवां.
दोस्तुं न दस दें रटाई छौ बल पलंग मा द्वी झणो तैं दूर दूर छ्वाड़/किनारा पर पड़न/लेटना चएंद . अर फिर धीरे धीरे
ब्योली-ब्योला/दुल्हा-दुल्हन तैं एक हैंको नजीक आण चयेंद. ये दौरान श्रृंगार रस का भौत सी रीति निभाण छौ जन कि
एक हैंका कि घर द्वार की बात पुछण, हौब्बीज कि जानकारी हासिल करण, एक हैंको शारीर से छेड़खानी करण ,
चुहुलबाजी, दुल्हा तैं दुल्हन की मन माफिक बात करण आदि दसियों रस्म छे जु मै तैं अर ब्योली तैं पड़याँ- पड़याँ
निभाण छे. आकर्षण पैदा करणों वास्ता दूल्हा याने मी तैं रति विषयक, हास सम्बन्धी, रोमांच बढ़ाण वळ छ्वीं या करतब,
चपल सम्वाद , आवेग आदि क रसम निभाण छे फिर धीरे धीरे कौरिक एक हैंको नजीक आण छौ अर संयोग श्रृंगार
को अंतिम पडाव से पैलि घंटो तक स्यूं झुल्लों क एक हैंकाक गात/ शरीर से चिपक्युं रौण थौ.
हाँ त जब हम खटला मा दूर दूर पड़णो खातिर खटला मा पोड़वां त दूर दूर हूणो जगा हम एक हैंका
क नजीक इ नि आणा बल्कण मा एक हैन्काक अळग पोड़णे कोशिश करण बिसे गेवां. अर हम या एक
हैंकाक अळग पोड़णे कोशिश क्वी प्रेमातीत आकर्षण का कारण नी करणा करना छ्या , या अफिक
जोर नी लगाणा छ्या बल्कि झिल्लो खटला क कारण गुरुत्वाकर्षण का बसीभूत ह्वेका हम दूल्हा-दुल्हन
एक हैंकाक अळग पोड़णा छ्या. दगड्यों हिसाबन भितरग्वडे मा एक हैंकाक गात/बदन पर चिपटण त
संयोग श्रृंगार क्रिया से थोडा पैलाकी क्रिया छे पण जै हो झूलेलाल नुमा खटोला की जैन विधियुं क स्टेपुं
मा इथगा उलटफेर करै दे. खैर हम फिर बि बचणा छया कि गात/बदन चिपकणो क्रिया से दूर इ रौवां पण
खटला क झिलोपन जन्मित गुर्त्वाकर्षण हमारी कोशिश पर भारी पोड़नू छौ .
दोस्त अर रतियुगीन कवियुं जन कि विहारी क कवितौं क असीम कृपा से मी तैं ज्ञान छौ बल
भितर ग्वडे मा चुनगी दीण या दान्तुं न खास खास शरीरो भाग जन कि ऊंठ, गल्वडों पर दांत
चुभाण भितर-ग्वडे विधान क एक प्रमुख क्रिया-प्रतिक्रया होंद. भगवान् की असीम कृपा अर डिजास्टर मनेजमेंट
की हपड़ -दपड़ मा लियुं आपातकालीय पर समयगत निर्णय की कृपा से हम दुयूं तैं दांत बि नि खुलण पोडेन
अर हम द्वी झणो तैं भितर ग्वडे जन एक दैवीय दत प्रक्रिया मा एक हैंका पर चुनगी दीणे जरोरत इ नि पोड़.
चुनगी अर दांत कटणो काम पैल त झांझुं न बखूबी निभाई अर बाकी थकी जु कमी बेसी रयिं बि छे
वो उप्पनो न कार्य संपादन कार. प्रेम मा या श्रृंगार रस मा एक भाव होंद जै तैं असूया या जळण, ईर्ष्या, इनवे
बुले जान्द बि उत्पन होंद. हम द्वी झणो तैं झांझ/मच्छरूं अर उप्पनूं से डाह हूण, ईर्ष्या होण लाजमी छौ की यि सौब
बगैर हम तैं पुछ्याँ ओ काम करणा छन जो हमन करण छौ. झांझुं न अर उप्पनू न हम दुयूं तैं इन इन जगा काट जौं
जगा की बात ना त म्यार दगड्यों न बथै छयी ना ही रतिकालीन कै कवि न इन जगों कल्पना करे छे.
अब दोस्तुं क बताईं एकी बात बकै रईं छे अर वा छे कि दूल्हा दुल्हन की भुक्की प्याओ याने चुम्मा ल्याओ याने
ब्राइडग्रूम शुड टेक किस ऑफ़ ब्राइड . फिर दुल्हा तैं दुल्हन तैं इनकरेज करण चयेंद बल वा बि किस्सिंग मा शामिल
ह्व़े जाओ. पण चिनखो न सैत च रत्यां कबि मनिख नि देखी छ्या अर वो प्रेमाभूत ह्वेका मेरी दुल्हन का खुट अर मुंड
चाटण लगी गेन. दुल्हन याने नौली ब्योली तैं झिड़झिड़ी लग अर मै तैं भौत क्या भौत जादा इ बुरु लग बल मेरो इ
समणी क्वी मेरी ब्योली तैं चाटणु च. बस हमारो सुहाग रात मनाणो कार्यक्रम रद्द करण पोड़.
हम द्वी इ उठा अर चुपचाप उखी ऐ गेवां जख हम पैल सीणे छंवां.
त हमारो भितर-ग्वडे/मधुचंद्र/ सुहाग-रात याने हनो-मून हिमाला क खुकली मा नि सम्पन ह्व़े.
क्या ! आप जणण चाँदवां की फिर हमन हनी-मून कख मनाई ? द्याखो म्यार बूड-खूड बताई गेन बल
इन बात कै तैं नि बताये जान्द बल. हनी-मून बिलकुल व्यक्तिगत बात होंद त ये सांस्कृतिक कार्यक्रम
तैं सार्वजानिक नि करण चएंद.
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