Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य

Satire on various Social Issues - सामाजिक एवं विकास के मुद्दे और हास्य व्यंग्य

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dosto,

We have various esteemed Guest writer, blog writers, poet, young & creative poets here who have been writing various satire on social development and other issues.

We are inviting you all to write satire on any bad practice, systems and development issues here but in decent language. Hope this way you can convey your message on any issue and the people.

Regards,

M S Mehta

geetesh singh negi:
ब्वे की खैर :पलायन फर आधारित एक गढ़वाली व्यंग कथा


एक खाडू और एक खडूणी दगडी छन्नी का स्कूल मा पडदा छाई, धीरे-धीरे दुयुं मा प्यार व्हेय ग्याई ,सौं करार व्हेय ग्यीं की अब चाहे कुछ भी व्हेय जाव  पर जोड़ी दगडी नी  तोड़णी, साहब धूम धाम से व्हेय ग्या  बल ब्यो खाडू और  खडूणी कु , और कुछ साल मा व्हेय ग्यीं उन्का जोंल्यां नौना लुथी और बुथी |

अब साहब लुथी और बुथी  रोज सुबेर डांड जाण बैठी ग्यीं खाडू और  खडूणी दगडी चरणा खूण ,हूँण लगीं ग्यीं ज्वाँनं दुया ,

 लुथी और बुथी  छोटम भटेय देख्दा आणा छाई , दिक्का दद्दी थेय ,बिचरी सदनी खैरी का बीठगा ही उठाणी राई ,लुथी और बुथी सदनी वीन्का आंखों मा अस्धरा ही देख्दा अयं पर बिचरा कब्भी वींकी खैर नी समझ  साका आखिर उंल अब्भी सरया दुनिया देखि भी ता नी छैयी ,उंनकी दुनिया त बस गुठियार भटटी रौल और डांड तक ही बसीं   छाई |
 
एक दिन लुथी ल  बडू जिकुडू कैरी की खडूणी मा पूछ ही देय की माँ या बुडढी दद्दी  क्वा  च और सदनी रुन्णी ही किल्लेय  रेंद यखुली यखुली ?

खडूणी ब्वाल म्यार थौला व  दिक्का बोडी चा  ,हमरा सो-सम्भल्धरा ,दिक्का  बोडी कु एक नौनु चा ,जेथेय बोडी ल भोत ही लाड प्यार से भोत खैर खैकी की सैंत पालिकी अफ्फु भूखु रैकि अप्डू गफ्फ़ा खिल्लेकी  बडू कार,फिर अपड़ी कुड़ी पुंगड़ी धैरी की, कर्ज -पात कैरी की पढ़ना खूण दूर प्रदेश भ्याज़ ,नौनु पड़ी लेखी की प्रदेश मा साहब बणी ग्या और प्रदेश मा ही ब्वारी कैरी की वक्खी बसी ग्या ,पर माँ या मा रुणा की क्या बात चा या ता दिक्का दद्दी   खूण खुश  हुण की बात चा  ?  बुथी ल खडूणी म ब्वाल ,

ऩा म्यार थौला तिल पूरी बात नी सुणि मेरी अब्भि ,नौनु ब्वे थेय मिलण खूण आई छाई एक बार और बोलण  बैठी ग्या बोडी खूण " ब्वे त्यारू नौनु आज बडू साहब व्हेय ग्या प्रदेश मा और तू  छेई की आज भी यक्ख  घास कटणी ,मुंडम पाणि कु कस्यरा ल्याणी छेई और मोल लिप्णी छेई,कुई द्याखलू ता मेरी बड़ी बेज्ज़ती  हूण या  ,तू  चल मी दगडी प्रदेश म़ा छोडिकी ये कंडण्या पहाड़ थेय,अब येल तिथेय कुछ नी दिणु ,ठाट से रैह प्रदेश म़ा अपडा नाती -नतिणु  दगडी "

 बोडी गुस्सा मा पागल सी व्हेय  ग्या और एक झाँपट नौना पर लगाकि बोलंण बैठ "अरे  निर्भगी जै धरती ल त्वे सैंति-पाली की ,लिखेय पड़ेय  की  यु दिन दिखाई आज त्वे वीन्ही धरती खूण  ब्वे बुलंण मा भी शर्म चा आणि ,ता भोल तिल मेरी क्या कदर करण ? थू तेरी और थू च  तेरी  अफसर-गिरी खूण और थू  च  तेरी वीन्ही पडेय खूण जैंल त्वे  थी थेय यु नी सिखाई की ब्वे सिर्फ और सिर्फ ब्वे हुन्द "

बस व्हेय का बाद भट्टेय बोडी गौं मा छेंदी -कुटुंब दरी मा यखुली रैन्द ,नौनु छोड़ी दियाई पर घार नी छ्वाडू,अप्डू पहाड़ नी छ्वाडू , धन्य हो बोडी और बोडी कु पहाड़ प्रेम

लुथी और बुथी चम् -चम् जवान हुणा छाई फिर बहुत दिनों बाद एक दिन  खडूणी ल खाडू खूण ब्वाल " जी बुनेय आज यूँ थेय पल्या छाल कु बडू डांड दिखाई द्यावा , वक्ख खाण  -पीणा की भी खैर नी चा ,और यूँ थेय सिखणु खूण भी सब्भी धाणी की सुबिधा रैली "

बस इतगा बात सुणिकी लुथी और रूण लग्गी ग्यीं और बुथी ल ब्वाल  " माँ हम नी चाह्न्दा की प्रभात   हम दुया भी दिक्का दद्दी  का नौना जन व्हेय जौं र तू दिक्का दद्दी जन  धरु धरु म़ा रुन्णी रै,माँ हम खूण ता हमर यु छोटू और रौन्तेलु डांड ही स्वर्ग बराबर चा और हमर गुठियार ही सब कुछ चा ,जख हमल जलंम   धार ,दुसरा का डांड जैकी अपड़ी माँ थेय बिसराणं से ज्यादा हम अपडा ही डांड म़ा भूखी मोरुण पसंद करला "

बस इतगा सुणि की खडूणी  और खाडू खुश व्हेय ग्यीं और लुथी- बुथी और खडूणी  और खाडू  सब दगडी मा प्यार प्रेम से फिर से रैंणं लगी ग्यीं |



रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित  )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड 

Source:         म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व  " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित
                   ( http://geeteshnegi.blogspot.com )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
from   Parashar Gaur <parashargaur@yahoo.com>
t
parashargaur@yahoo.com
प्रिय गितेश,
   मैं तेरी लिखी द्वी कथा १-  क्या फटीच ,  अर २ - कुकरो   इन्साफ   पड़नी ! कथानक   बहुत सुंदर छना  !  आप यूँ  तईi  व्यंग छा बुना पर व्यंग वाली कुई बात  यख़म   सपष्ट नि दिखिणी छ !एक मुहावरा थै आपन   हरेक करेक्टर से अच्हो इस्तेमाल कोरी बुलाई,    जू एक आम बात  जरुर च  पर   दगड़ा दगडी बात सटीक भी छ ! उन वे पर ज्यादा लिखन लेक्म इनु कुछ नि न , पर
प्रयाश सुंदर छ ! एक बात वो क्या छ की कभी  कभी बातो थै सम्बोलिक तौर से भी बोली जै सकद बजाय बार बार वे सब्द  थै  रिपीट कैकी !  गद्वालिमा जब आप लिखदि ता    ज्यादा से जय्दा सब्द गड्वाली कै ह्विनी  अर  उकु ही प्र्यौग  किये जा   अछु होलू ,   बनस्पत हिंदी का. !    उदाहरन का वास्ता  "  कुकरो कु इन्साफ  "  अगर आप इन्साफ   की जगह   "   न्यौ  ' भी हवे सकुदु छो जू मेरा ख्याल माँ  कटक का हिसाब से  और  पाठगण का हिसाब से भी उपुक्त छ ! उन इन्साफ बहुत सै और साफ़  सबद च  यमा कवी द्वी राया निन    जू अपणी बात  कु  मतलब  बतौन्द !   पे सै को च गड्वाली का हिसाब से य दिखणी वाली बात च !  इनी कई जगह छन  जख हिंदी का सब्दो की जगह अपनी माँ बोली का सब्द लिखे जय सक्दन  या सकदा छा !
नी पौल की नई पवाणी ( कथा  /गीत/कबिता ) गितिश  आप कु स्वागत छ ! आप से पहाड़ बहुद उमीद करद/कनु छ की आणि वाली पीडी माँ कवीत  वीकी  सुध लीं ण वालू छा !
पराशर गौर
 कनाडा

geetesh singh negi:
गढ़वाली व्यंग कथा : कुक्करा कु इंसाफ


नयार का पल छाल ,बांज ,बुरांश और कुलाँ की डालियुं का छैल एक भोत ही सुन्दर और रौंत्यलू  गौं छाई | गौं की धार मा देबता कु एक मंदिर भी छाई|उन् त गौं मा पंद्रह -बीस कुड़ी छाई पर चलदी बस्दी मौ द्वि- तीन ही छाई एक मौ छाई दिक्का बोडी की जू छेंद नौना ब्वारी का हुन्द भी गौं मा यखुली दिन कटणी छाई और ज्वा रोग से बिलकुल हण-कट बणी छाई , दूसरी मौ छाई पांचू ब्वाडा की ,बिचरा द्वी मनखी छाई कुल मिला की ,बोडी और ब्वाडा ,आन औलाद त भगवान्  उन्का जोग मा लेख्णु ही बिसरी ग्या छाई और तीसरी मौ छाई जी बल झ्युन्तु काका की  की जू रेंदु छाई काकी और अपड़ी नौनी दगड मा |

अब साब किल्लेय  की गौं मा मनखी  त भोत की कम छाई इल्लेय दिक्का  बोडी ल एक कुक्कर पाल द्ये छाई , बोडी ल स्वाच कि एक त  कुक्कर धोक्का नी द्यालू  ,दुसरू येका बाना फर द्वि गफ्फा  रौट्टा का मी भी खौंलूँ   |
अब साहब कुक्कर थेय भी आखिर कैकू दगुडू चैणु ही छाई तब ,कुई नी मिलु त वेल मज़बूरी मा बिरलु और स्याल  थेय अप्डू दगड़या बणा देय,अब कैल बोलुणु भी क्या छाई अब ,सब अप्डू अप्डू मतलब से ही सही पर कुल मिल्ला कि  कटणा छाई अपड़ा अपड़ा दिन जन तन कैरी की  |

अब साहब दिक्का बोडी ल  भी  अपड़ी सब खैरी -विपदा का आंसू  भोटू कुक्कर मा लग्गा ही याली छाई ,बिचरु भोटू बोडी थेय अपड़ा नौना से भी जयादा मयालु लगदु छाई |

गौं कि धार मा देबता बांजा कि डाली मा अपड़ी खैर लगाणु छाई कि देख ले कन्नू  ज़मनू  आ ग्याई ये पहाड़ मा, ये  गौं मा ,कभी सूबेर शाम आन्द -जांद मनखियुं कु धुदरट ह्युं रेन्दु  छाई धार मा ,सूबेर शाम लोग- बाग़ मंदिर मा आन्दा जांदा छाई ,अपड़ा  सुख -दुःख ,खैरी -विपदा मी मा लगान्दा छाई ,मी भी सरया दिन मस्त रेन्दु  छाई | खूब आशिर्बाद-प्रेम दींदु छाई उन्थेय पर अब त मी भी अणमिलु  सी व्हेय ग्यु ,सालौं व्हेय ग्यीं मिथेय  भी यकुलांश मा ,मनखियुं थे देख्यां |

इन्नेह  बांजा कि डाली भी अपड़ी जिकड़ी कि खैर लगाण लग्गी  ग्या देबता मा  और वक्ख  ताल  पंदेरू भी तिम्ला कि डाली क समणी टुप- टुप रुण लग्युं छाई| बिचरू अपडा ज्वनि का वू दिन सम्लाणु छाई जब वेक ध्वार नजदीक गौं की ब्वारी - बेटीयूँ की सुबेर शाम कच्छडी लग्गीं रेंदी छाई और एक आजकू दिन च  की  कुई  बिरडी की भी नी आन्दु वे जन्हे ? क्या कन्न यु दिन भी देख्णु रह ग्या छाई वेक भी जोग मा ?

अचांणचक से द्वि दिन बाद दिक्का  बोडी  सदनी खुण ये गौं और भोटू थेय छोडिकी परलोक पैट्टी ग्या  छाई|

अब साब बिरलु ठाट से डंडली मा ट्वटूगु व्हेय कि आराम से स्याल दगड गप ठोकणू  छाई पर भोटू कुक्कर दिक्का बोडी की मौत से बहोत दुखी छाई आखिर बोडी की खैरी -विपदा भोटू  से ज्यादा गौं मा और जंणदू  भी कु छाई ?
अचांणचक से भोटू ल भोकुणु शुरू कैर द्या | बिरलु थेय भारी खीज उठ ,वेक्की निन्द  ख़राब जू हुणी छाई,आखिर वेल कुक्कर खूण  ब्वाल - क्या व्हेय रे निर्भगी ,किल्लेय   भोकुणु  छाई सीत्गा जोर से  ?
स्याल और मी त त्यारा दगडया  व्हेय ग्योव अब ,और इन् तिल क्या देखि याल पल छाल भई की खडू व्हेय की गालू चिरफड़णू छेई तू ?

कुक्कर ल  ब्वाल-  यार तू  भंड्या चकडैती ना कैर मी दगड  मिल एक  मनखी सी  द्याखू छाई पल छाल अब्भी
बिरलु और स्याल  चड़म से उठी की कुक्कर क समणी आ ग्यीं और पल छाल देखण लग्गी ग्यीं
बिरोला ल थोड़ी देर मा कुक्कर का कपाल  फर खैड़ा की एक चोट मार और ब्वाल - अरे छुचा क्या व्हेय गया त्वे थेय ?
मी और स्याल  त जाति का ही चंट  छोव पर निर्भगी तू  त कुक्कर छै कुक्कर ,कुछ त शर्म लिहाज़  कैरी  दी ,और कुछ ना त बोडी का रौट्टा की ही सही कुछ त एहसान मानी दी | जैखुंण तू भुक्णु क्या छै वू बोडी कु ही नौनु च रे , सैद  बोडी की खबर सुणीक घार बोडिकी आणु च बिचरु

इत्गा सुणीक स्याल  भी रम्श्यांण लग्गी ग्या ,सैद कुक्कर ल स्याल  मा कुछ दिन पैली बोडी की खैरी ठुंगा याली छैय,  स्याल  ल ब्वाल अगर जू  मी दानु नी हुन्दु त सेय थेय आज गौं मा आणि नी दिंदु  ,पर क्या कन्न ?

बस जी फिर क्या छाई इत्गा  सुणीक कुक्कर ल जोर जोर से भुक्णु शुरू कैरी द्याई

स्याल  ल स्यू-स्यू ब्वाल और कुक्कर धुदरट कैरी की बोडी का  नौना का जन्हे अटग ग्या ?



रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित  )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड 

Source:         म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व  " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित
                   ( http://geeteshnegi.blogspot.com )

geetesh singh negi:
गढ़वाली लेख (व्यंग ) : हल्या नी मिलदु
झंकरी बोडी  कु नौनु प्रदेश भट्टेय बाल-बचौं दगडी १० साल बाद  गढ़वाल घूमणा  कु अन्यु  छाई , कुछ दिन खुण इन्न लग्णु छाई की जन्न बोडी फर फिर से  जान आये ग्ये व्होली ,नाती नतिणयु दगडी बोडी  खुश दिखेणी छाई और  नौना -बाला   भी पहली बार स्यारा-पुन्गडा खल्याण , नयार,बल्द-बखरा  और सुन्दर हैरा-भैरा डांडा देखि की भोत ही खुश हुन्या छाई,
बुना छाई - दादी त्या  अब हम यक्खी लहेंगे ?
हाँ नौना की ब्वारी जरूर अन्गरौं  की सी खईं सी लगणी  छाई ?
नौनल बवाल ब्वे अब ती खुण गढ़वाल मा क्यां की खैर च ? सड़क -पाणि,बिज़ली ,राशन -पाणि की दूकान ,डिश -टीवी ,फ्रिज ,गाडी सब्भी ता व्हेय  गिन गौं मा अब | आराम ही आराम चा त्वे खुण ब्वे अब त़ा

बस ब्बा बाकी त़ा सब ठीक चा पर अज्काल गढ़वाल मा "हल्या नी मिलदु " अब
बोतल देय की भी ना

रचनाकार  :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित  )
अस्थाई निवास:  मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी:     ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
                   पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड 

Source:         म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व  " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित
                   ( http://geeteshnegi.blogspot.com )

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