कुमाऊं के प्रेम चंद कहे जाने वाले महान साहित्यकार स्व. शैलेश मटियानी को उनकी ग्यारहवीं पुण्यतिथि पर साहित्यकारों ने भी भुला दिया। पिछले 10 वर्षों तक आठ-दस लोग बैठकर उनके नाम पर बैठक कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते थे लेकिन इस बार उन्हें याद करने की जहमत किसी साहित्यिक संगठन ने नहीं उठाई।
शैलेश मटियानी ने अपने साहित्य में पहाड़ की पीड़ा को दुनिया के सामने रखा। देश के महान साहित्यकारों में शुमार स्व. मटियानी की पत्नी सरकारी उपेक्षा के चलते बेबसी का जीवन जीने को मजबूर हैं लेकिन उनको सहारा देने के लिए भी साहित्यकार आगे नहीं आए। साहित्यकारों को चाहिए था कि शैलेश के साहित्य को उत्तराखंड में प्रकाशित कर उसे विद्यालयों, महाविद्यालयों में लगाने की पहल की जाती ताकि उनकी पत्नी को भरण पोषण का एक आधार तो मिल जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बाड़ेछीना के एक छोटे से कस्बे से निकले इस साहित्यकार ने देश के महान साहित्यकारों में स्वयं को स्थापित किया। इसके बावजूद वह हमेशा मुफलिसी में जिये। उनको किसी भी सरकार ने तवज्जो नहीं दी। साहित्य सृजन के क्षेत्र में काम करने वाले मटियानी के नाम पर शुरू किया गया पुरस्कार भी शिक्षा के क्षेत्र में दिया जा रहा है जबकि इसे साहित्य के क्षेत्र में दिया किया जाना चाहिए था।
स्थानीय साहित्यकार दिवाकर भट्ट, दिनेश कर्नाटक और प्रयाग जोशी स्व. मटियानी के नाम पर कोष शुरू कर उनके परिवार की माली हालत को बचाने की बात तो करते हैं लेकिन वह स्वयं पहल करने के बजाए सरकार से इसकी पहल करने की बात कहते हैं। आज मंगलवार को उनकी ग्यारहवीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए किसी भी साहित्यकार ने पहल नहीं की।
Source: Amar Ujala