Lo Jee pankaj Jee, Aapki farmaish puri karte hai... Kavita ko me Mukhdo me sunaunga
Sherdaa ki Jabaani me, 1 baar jab wo apne sasuraal pahunche
ह्युनक छी कूसा रात
और सौरासक छी बात
अन्यारपट कै मुख ले परन पड़ने पुजू सौरास
जाले कूसा स्येन्न हाल ने भैस कै घास
घर मे न्हेति म्येर छबेली
मे कै दगेड खेलु होलि
होई घमिक रे चैत मे
ओ इजा सैन लतिक रे मैत मे
कैक करू मुख लाल
कै कै लगु रंग गुलाल
कैक लूसू फूल धमेली
मी कै दगेड खेलु होलि
होली फटिक रै चैत में, सैंणी लटिक रै मैत में,
कैकी करुं मुखड़ी लाल, कै के लगुं रंग गुलाल।
हिमांशु भाई शेर दा की वह कविता भी सुनाओ, जिसमें वह ससुराल जाते हैं और वहां उनको द्स्त लग जाते हैं.....।