Author Topic: दुदबोलि : एक वार्षिक पत्रिका  (Read 14985 times)

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
पिछले सप्ताह "दुदबोलि" नामक एक वार्षिक पत्रिका पढने का मौका मिला. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होती है. साथ ही इसमें गढवाली तथा नेपाली भाषा में भी सामग्री होती है. बडे जतन से इसके संपादक श्री मथुरा दत्त मठपाल जी विगत 7-8 सालों से सामान्य जनमानस के बीच कम प्रयुक्त होती जा रही कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं.

लेकिन अर्थाभाव के कारण इस त्रैमासिक पत्रिका को वार्षिक करना पडा. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है. आप पत्रिका के संपादक से निम्नलिखित पते पर सम्पर्क कर सकते हैं.

दुदबोलि
संपादक- श्री मथुरा दत्त मठपाल
पम्पापुरी, रामनगर
नैनीताल उत्तराखण्ड


आप का सहयोग कुमाउंनी भाषा के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा.

Rajneesh

  • MeraPahad Team
  • Sr. Member
  • *****
  • Posts: 335
  • Karma: +31/-0
Very good Info Bhai ji

पिछले सप्ताह "दुदबोलि" नामक एक वार्षिक पत्रिका पढने का मौका मिला. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होती है. साथ ही इसमें गढवाली तथा नेपाली भाषा में भी सामग्री होती है. बडे जतन से इसके संपादक श्री मथुरा दत्त मठपाल जी विगत 7-8 सालों से सामान्य जनमानस के बीच कम प्रयुक्त होती जा रही कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं.

लेकिन अर्थाभाव के कारण इस त्रैमासिक पत्रिका को वार्षिक करना पडा. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है. आप पत्रिका के संपादक से निम्नलिखित पते पर सम्पर्क कर सकते हैं.

दुदबोलि
संपादक- श्री मथुरा दत्त मठपाल
पम्पापुरी, रामनगर
नैनीताल उत्तराखण्ड


आप का सहयोग कुमाउंनी भाषा के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा.


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
Kya information khoj ke laaye ho Bhai +1 karma aapko.

पिछले सप्ताह "दुदबोलि" नामक एक वार्षिक पत्रिका पढने का मौका मिला. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होती है. साथ ही इसमें गढवाली तथा नेपाली भाषा में भी सामग्री होती है. बडे जतन से इसके संपादक श्री मथुरा दत्त मठपाल जी विगत 7-8 सालों से सामान्य जनमानस के बीच कम प्रयुक्त होती जा रही कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं.

लेकिन अर्थाभाव के कारण इस त्रैमासिक पत्रिका को वार्षिक करना पडा. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है. आप पत्रिका के संपादक से निम्नलिखित पते पर सम्पर्क कर सकते हैं.

दुदबोलि
संपादक- श्री मथुरा दत्त मठपाल
पम्पापुरी, रामनगर
नैनीताल उत्तराखण्ड


आप का सहयोग कुमाउंनी भाषा के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Hem Da,

This is god news for all of us. A effort by the magazine to promote our language.

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
दुदबोलि-2006 से साभार
लेखक- श्री बहादुर बोरा ग्राम गढतिर, बेरीनाग (पिथौरागढ)


तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक, गाड खेत
क्वै चौड चकाल, क्वै चार हात एक बैत
आहा कस अनौख लागनीं?

ग्यौं, जौं, सरच्यंक पुडांड
मडुवा, इजर, धानाक स्यार
कै में भट-गहत
कैमें चिण-गन्यार
अहा! कस रंग-बिरंग छाजनीं?

किल्ल-महलाक जास,
खुटकण, शिवज्यू मन्दिराक जास सीढि
काला क दिन बै कायम
खानदान जास पीढि-दर-पीढि!
अहा! देख बेरि मन में स्वीण जामनीं!!

लेकिन यो खालि खेतै न्हैतिन
यो स्मारक छ, यादगार छन!
एक-एक कांध मेहनत कि काथ
और संघर्षकि व्याथा बाँचनी!

तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक गाड खेत
आहा कस अनौख लागनीं?

Meena Pandey

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 138
  • Karma: +12/-0
aha ke bhal kumauni kavita likh rakhi  Bora jew.......dhanyavad hem jew
दुदबोलि-2006 से साभार
लेखक- श्री बहादुर बोरा ग्राम गढतिर, बेरीनाग (पिथौरागढ)


तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक, गाड खेत
क्वै चौड चकाल, क्वै चार हात एक बैत
आहा कस अनौख लागनीं?

ग्यौं, जौं, सरच्यंक पुडांड
मडुवा, इजर, धानाक स्यार
कै में भट-गहत
कैमें चिण-गन्यार
अहा! कस रंग-बिरंग छाजनीं?

किल्ल-महलाक जास,
खुटकण, शिवज्यू मन्दिराक जास सीढि
काला क दिन बै कायम
खानदान जास पीढि-दर-पीढि!
अहा! देख बेरि मन में स्वीण जामनीं!!

लेकिन यो खालि खेतै न्हैतिन
यो स्मारक छ, यादगार छन!
एक-एक कांध मेहनत कि काथ
और संघर्षकि व्याथा बाँचनी!

तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक गाड खेत
आहा कस अनौख लागनीं?


पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
पिछले सप्ताह "दुदबोलि" नामक एक वार्षिक पत्रिका पढने का मौका मिला. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होती है. साथ ही इसमें गढवाली तथा नेपाली भाषा में भी सामग्री होती है. बडे जतन से इसके संपादक श्री मथुरा दत्त मठपाल जी विगत 7-8 सालों से सामान्य जनमानस के बीच कम प्रयुक्त होती जा रही कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं.

लेकिन अर्थाभाव के कारण इस त्रैमासिक पत्रिका को वार्षिक करना पडा. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा को बचाने का एक सशक्त माध्यम बन सकती है. आप पत्रिका के संपादक से निम्नलिखित पते पर सम्पर्क कर सकते हैं.

दुदबोलि
संपादक- श्री मथुरा दत्त मठपाल
पम्पापुरी, रामनगर
नैनीताल उत्तराखण्ड


आप का सहयोग कुमाउंनी भाषा के उत्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा.


हेम दा,
      मठपाल जी का कोई दूरभाष नंबर हो तो अवगत करा दें, ताकि उनसे व्यक्तिगत संपर्क हो सके। साथ ही इसके सदस्यता शुल्क के बारे में भी अवगत करा दें।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

interesting one. !!!

दुदबोलि-2006 से साभार
लेखक- श्री बहादुर बोरा ग्राम गढतिर, बेरीनाग (पिथौरागढ)


तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक, गाड खेत
क्वै चौड चकाल, क्वै चार हात एक बैत
आहा कस अनौख लागनीं?

ग्यौं, जौं, सरच्यंक पुडांड
मडुवा, इजर, धानाक स्यार
कै में भट-गहत
कैमें चिण-गन्यार
अहा! कस रंग-बिरंग छाजनीं?

किल्ल-महलाक जास,
खुटकण, शिवज्यू मन्दिराक जास सीढि
काला क दिन बै कायम
खानदान जास पीढि-दर-पीढि!
अहा! देख बेरि मन में स्वीण जामनीं!!

लेकिन यो खालि खेतै न्हैतिन
यो स्मारक छ, यादगार छन!
एक-एक कांध मेहनत कि काथ
और संघर्षकि व्याथा बाँचनी!

तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक फैंली
म्यार गौंक गाड खेत
आहा कस अनौख लागनीं?


हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
'दुदबोलि' बटि कुछ कविता आजि... लेखक छन श्री ज्ञान पन्त ज्यू... हमार जस पहाड़ छोड़ि -छाड़ि आइनाक 'प्रवासी" ना क दिल कि बात गज्बै लेख राखी...

दै मोटरा S S S S S!          
त्यार् ख्वार् बज्जर पड़ि जौ          
घर बटि लखनौ त            
नजीक बँणै देछ, मगर            
लखनौ बटि घर            
त्वीलि कत्थप पुजै देछ         
-----------------------------------
कौ सुवा - के हाल छन्          
कस मानी रौ पिंजाड़ भितेर?          
के हाल बतूँ भुला             
आपणैं जस समझ ल्हे!          

----------------------------------

डबल - बैड.......!              
म्यार लिजि त             
यैक मतलब             
आजि लै 'डबलै' भै..            

सचिन......!                   
त्वीलि कमाल करौ यार          
यां त ‘हाफ सेंचुरी’ मैंयी          
गाव्-गाव् ए गे!            
-------------------

पहाड़ में               
जिन्दगी छ!            
शहरन् में               
जिन्दगी ' पहाड़ ' छ!            
---------------------------------------


हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
मैने उपरोक्त पंक्तियों का हिन्दी में अनुवाद करने की कोशिश की है...

अरी ओ मोटर!
तेरे सर पर बिजली गिरे
घर से लखनऊ तो
नजदीक पहुंचा दिया, लेकिन
लखनऊ से घर
तूने कितनी दूर पहुंचा दिया
-----------------------------------
कहो सुवा (तोता) - क्या हाल हैं?
कैसा लग लग रहा है पिंजरे में?
क्या हाल बताऊँ भाई
अपने जैसे ही समझ लो!

----------------------------------

डबल - बैड.......! 
मेरे लिये तो
इसका मतलब
अब भी  ‘डबल’ (पैसा) ही है
-----------------------------------
सचिन......!      
तूने तो कमाल कर दिया
यहां तो ‘हाफ सेंचुरी’ में ही
हालत खराब हो गयी
-------------------

पहाड़ में
जिन्दगी है
शहरों में
जिन्दगी 'पहाड़ ' है

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22