मेरा जन्म मुम्बई मे हुआ और मेरा बेटा लन्दन मे काम कर रहा है. हमारा पूरा परिवार गढ़वाली भाषा मे ही संवाद करता है.
भाषा की लय तथा विभिन्न प्राचीन शब्दों को मैने अपने पिताजी को सुनते सुनते ही सिखा.
मेरे विचार मे यदि अपनी भाषा व संस्कृति बचाए रखना हो तो उस भाषा का उयोग करना चाहिए, इसमें शर्माने की क्या बात है? चीनी, जापानी, रुसी, तमिल, मराठी, गुजराती, इत्यादि कभी भी नहीं शर्माते हैं.
कोई भाषा सिखाना तो बिल्कुल भी कठिन काम नहीं है. उदाहरण के रूप मे 'सोनिया गाँधी' को देखें.
हम सभीने अंग्रजी सीखी है, उसका रोज उपयोग करके उस भाषा पर अपनी पकड़ मजबूत करते हैं. मैने अपना आधा जीवन मुम्बई मे गुजरा और फराठेदार सहित्य-शुद्ध मराठी बोल लेता हूँ व वहाँ के लोगों से अत्यधिक सम्मान मिलता है. भाषा सम्मान दिलाती है. पर याद रखें भाषा आपकी पहचान है.
इस विषय को हमे सकारात्मक रूप से देखना चाहिए. बाकी जैसी जिसकी इछ्या, सब स्वतंत्र हैं.
विषय छेड़ने के लिए धन्यवाद.
अपनी भाषा सीखें व सिखाएं. यदि भाषा मे सुधार चाहते हैं तो उसका बराबर उपयोग करें. हर सुधार धीरे धीरे ही तो होता है, जैसे आपने अपनी अंग्रजी सुधारी. गलतियों से न घबराएँ. गलतियां सिखने की पहली सीडी है
Please take this subject positively, learn and teach your own language to retain your 'Indentity'; it is quite easy. You can improve your laguage gardually only with its frequent use.
Best Regards,
- Vinod Kala (Village Sumadi, Paudi Garhwal) now staying permanently in Bangalore. +91 99801 69649