गढ़वाली शब्दकोष -भीष्म कुकरेती द्वारा
August 23 at 5:32pm ·
कुमाउंनी भाषा में संधि
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मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -14
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सम्पादन : भीष्म कुकरेती
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कुमाउंनी भाषा में संधि
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संधि दो ध्वनियों का जुड़ कर एक हो जाना है.
कुमाउंनी में दो तरह की संधियाँ पाई जाती हैं -
अ- स्वर संधि
ब- व्यंजन संधि
स्वर संधि के उदहारण
१- आन , इन, उन आदि का प्रयोग
च्याला = आन = च्यालान (आ+ आ = आ)
चेलि + इन = चेलिन (इ+ ई = ई )
गोरु = उन = गोरून (उ + ऊ = ऊ )
२- औट का प्रयोग
ओ + ओ = औ
तलौटो ( तलो + औ + ओ )
डलौटो ( डलो +औट +ओ )
व्यंजन संधि के उदाहरण
१- यदि पहले पद का ग् हो और दूसरा पद आदि ध्वनि ह् हो तो ग् और ह् = घ
आग् + हाल्नो = अघानो
२- लघु रूपता
अ- रुपिमिक अवस्था से प्रतिबंधित के पूर्णांक गणनात्मक संख्या वाचक रुपिमो के परस्पर जुड़ने पर -
तीन + बीस = तेईस
चार = बीस = चौबीस
ब- महाप्राण 'ठ' के पश्चात ह्रस्व ह आने से जोड़ शब्द में ह लोप हो जाता है
कांठा +हाल्नो = कांठान्नो
स- पहले पद का द्वित व्यंजन के दुसरे व्यंजन के आदि नजन के जोड़ में कभी कभी द्वी तत्व नही रह जाता है
अन्न +जल = अंजल
द- नासिक्य स्पर्श युक्त संख्या वाचक विशेषणों में विशेषण व्युत्पादक पर प्रत्यय अथवा स्वतंत्र रु से जुड़ने पर नासिक्य का लोप हो जाता है
तीन + बीस = तेईस
तीन + तीस =तैंतीस
ध- पूर्णांक गणनात्मक संख्या के साथ -गुण प्रत्यय जुड़ने से ध्वनि लोप है या कहीं ह्र्स्वी करण विद्यमान रहता है
१- तीन +गुनो= तिगिनो
चार + गुनो = चौगुनो
२- सात + गुनो =सतगुनो
आठ +गुनो = अठगुनो
न-- दो स्वतंत्र रूपिम समीप आंयें तो जुड़ने पर पहले के अन्त्य स्वर का लोप हो जाता है
गाड़ा+ ख्याता = गाड़ख्याता
गोरु + बकरा = गोरबकरा
ठुला + नाना = ठुल्नाना
प- यदि पहले पद का व्यंजनान्त और दुसरे पद का आदि व्यंजन समान हों तो तो एक का लोप हो जाता है
नाक = कटि =नकटि
नाक =कटो = नकटो
फ- ह्र्स्वीकरण और प्रतिस्पथान में लाघुरुप्ता हो जाती है
सात +ऊँ = सतूं
तेरा = ऊँ = तेरुं
भ- व्यंजन का अंत प्रतिपादक के उपरान्त यदि प्रत्यय आदी व्यंजन हो तो संयोग में प्रतिपादक व्यंजन ह्रस्व हो जाता है
कम + नि = कम्नि
म- ध्वनात्मक समानता -
रुपिमिक अवस्था से प्रतिबंधित सीमा में गणनात्मक संख्यावाचक प्रतिपादक जैसे चालीस, तीस पहले उन जुड़ने से परवर्ती व्यंजनध्वनि लोप हो जाती है
उन + चालीस-= उन्तालिस (उनचालीस)
गं - विस्तार
योगिक क्रिया में विस्तार हो
द्वि + सरो = दुसोरो
तीन + सरो = तिसोरो
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