कवि गुमानी का जन्म काशीपुर में हुआ था, इनका पैतृक निवास स्थान ग्राम-उपराड़ा, गंगोलीहाट, पिथौरागढ़ था। इनका मूल नाम लोकनाथ पन्त था। कहते हैं कि काशीपुर के महाराजा गुमान सिंह की सभा में राजकवि रहने के कारण इनका नाम लोकरत्न "गुमानी" पड़ा और कालान्तर में ये इसी नाम से प्रसिद्ध हुये। गुमानी जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने चाचा श्री राधाकृष्ण पन्त तथा बाद में कल्यूं(धौलछीना) अल्मोड़ा के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी पण्डित हरिदत्त पन्त से शिक्षा ग्रहण की, इसके अतिरिक्त आपने चार वर्ष तक प्रयाग में शिक्षा ग्रहण की। ग्यान की खोज में आप वर्षों तक देवप्रयाग और हरिद्वार सहित हिमालयी क्षेत्रों में भ्रमण करते रहे, इस दौरान आपने साधु वेश में गुफाओं में वास किया। कहा जाता है कि देवप्रयाग क्षेत्र में किसी गुफा में साधनारत गुमानी जी को भगवान राम के दर्शन हो गये और भगवान श्री राम ने गुमानी जी से प्रसन्न होकर सात पीढियों तक का आध्यात्मिक ग्यान और विद्या का वरदान दिया। अपने जीवनकाल में गुमानी जी कोई महाकाव्य तो नहीं लिखा, किन्तु समकालीन परिस्थितियों पर बहुत कुछ लिखा। गुमानी जी मुख्यतः संस्कृत के कवि और रचनाकार थे। किन्तु खड़ी बोली और कुमाऊंनी में भी आपने बहुत कुछ लिखा है। संस्कृत में श्लोक और भावपूर्ण कविता रचने में इन्हें विलक्षण प्रतिभा प्राप्त थी।
गुमानी जी को खड़ी बोली का पहला कवि कहा जाता है (यद्यपि हिन्दी साहित्य में ऐसा कहीं उल्लेख प्राप्त नहीं है), ऐसा संभवतः इसलिये कि प्रख्याल हिन्दी नाटककार और कवि काशी के भारतेन्दु हरिशचन्द्र, जिन्हें हिन्दी साहित्य जगत में खडी बोली का पहला कवि होने का सम्मान प्राप्त है, का जन्म गुमानी जी के निधन (१८४६) के चार वर्ष बाद हुआ था।
काशीपुर के राजा गुमान सिंह के दरबार में इनका बड़ा मान-सम्मान था, कुछ समय तक गुमानी जी टिहरी नरेश सुदर्शन शाह के दरबार में भी रहे। इनकी विद्वता की ख्याति पड़ोसी रियासतों- कांगड़ा, अलवर, नाहन, सिरमौर, ग्वालियर, पटियाला, टिहरी और नेपाल तक फ़ैली थी।
गुमानी विरचित साहित्यिक कृतियां-
रामनामपंचपंचाशिका, राम महिमा, गंगा शतक, जगन्नाथश्टक, कृष्णाष्टक, रामसहस्त्रगणदण्डक, चित्रपछावली, कालिकाष्टक, तत्वविछोतिनी-पंचपंचाशिका, रामविनय, विग्यपतिसार, नीतिशतक, शतोपदेश, ग्यानभैषज्यमंजरी।
उच्च कोटि की उक्त कृतियों के अलावा हिन्दी, कुमाऊंनी और नेपाली में कवि गुमानी की कई और कवितायें है- दुर्जन दूषण, संद्रजाष्टकम, गंजझाक्रीड़ा पद्धति, समस्यापूर्ति, लोकोक्ति अवधूत वर्णनम, अंग्रेजी राज्य वर्णनम, राजांगरेजस्य राज्य वर्णनम, रामाष्टपदी, देवतास्तोत्राणि।
हिमालय के इस महान सपूत व कूर्मांचल गौरव की साहित्य साधना पर अपेक्षाकृत बहुत कम लिखा ग्या है। 1897 में चन्ना गांव, अल्मोड़ा के देवीदत्त पाण्डे जी ने "कुमानी कवि विरचित संस्कृत एवं भाषा काव्य" लिखा है और रेवादत्त उप्रेती ने "गुमानी नीति" नामक पुस्तकों में कवि का साहित्यिक परिचय दिया है। उपराड़ा में गुमामानी शोध केन्द्र इन पर व्यापक शोध कर रहा है।
उत्तराखण्ड की विभूतियां से साभार टंकित