Mera pahad ka sabbi bhai bandhu,
Sending my two poems written on "pahad". I hope, u will get the message through these poems.
एक लंगोट्या यार बोन्न बैठि, ढुगां सरख्या मनख्यों फर भित लिख कुछ भैजि "जिग्यांसू". मैन बोलि वैकु
"हे चुचा ढुंगा न बोल" .....
"हे चुचा ढुगां न बोल" .....
अपणु एक लंगोट्या यार, बोन्न बैठि,
भैजि "जिग्यांसू",
आपन सब्बि धाणी फर लिख्यलि,
जरा ढुगां सरख्या मन्ख्यौं फर भि लिखा,
किलै नि लिखि, अजौं तक?
मेरा मुख बीटि छट छुटि,
हे लाठ्याळा यनु न बोल,
मन्ख्यौं सी गुणवान छन,
मुख्याळा अर् प्यारा ढुगां.
यार फिर बोन्न बैठि,
यनु कनुकै ह्वै सकदु,
ढुगां जैं कुंगळा होन्दा,
ता स्याळ भूखा किलै मरदा.
तब मैं बोलि सुण,
ढ़ुगौं मां छन बड़ा गुण....
चार धाम, पञ्च बद्री, पञ्च केदार,
पित्र कूड़ा, कूड़ी भांडी, पैरि पगार,
जान्दरी, ऊख्ल्यरि,डांडी कांठी,
घट्ट, देवतों का मंडुला, छान,
यथ्गा कि टीरी कू डाम,
सब ढुगौं का बणयां छन,
क्य, मन्ख्यौं फर छन यना गुण.
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
24.2.2009 को रचित
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
All the poems are published....
at
www.younguttaranchal.comYoung Uttarakhand Kavi Samelan 2009 :- Result and Award(gold)
पहाड़ का दर्द कौन करेगा दूर, जिस उत्तराखण्ड को लिया था पहाड़वासियों ने, देखो और पढो इस कविता को, उनके और अपने सपने हो रहे हैं चूर-चूर.........
"छुटदु जाणु छ"
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......
बित्याँ बीस सालु बिटि,
बारा लाख उत्तराखंडी,
पलायन करि-करिक,
रोजगार की तलाश मां,
देश का महानगरू जथैं,
अपणी जवानी दगड़ा लीक,
बग्दा पाणी की तरौं,
कुजाणि क्यौकु सरक-सरक,
प्यारा उत्तराखण्ड त्यागि,
आस अर औलाद समेत,
कूड़ी पुन्गड़ि पाटळि छोड़ि,
कूड़ौं फर द्वार ताळा लगैक,
कुल देवतौं से दूर देश,
नर्क रूपी नौकरी कन्नौ,
दूर भाग्दु जाणु छ.
बलिदानु का बाद बण्युं,
प्यारु उत्तराखण्ड राज्य,
हाथु सी छुटदु जाणु छ.....
आंकडों का अनुसार बल,
राज्य विधान सभा मां,
पलायन की परिणति का कारण,
पहाड़ की आठ घट्दि सीट,
घट्दु पहाड़ कू प्रतिनिधित्व,
हम तैं, यनु बताणु छ.
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......
खान्दि बग्त टोटग उताणि,
मति देखा मरदु जाणी,
बिंगि लेवा हे लठ्याळौं,
छौन्दा कू भि होयिं गाणि,
अब नि जावा घौर छोड़ि,
जख छ, छोया ढ़ुंग्यौं कू पाणी.
समळि जावा अजौं भी,
बग्त यू बताणु छ,
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
2.3.2009 को रचित
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
Young Uttarakhand Kavi Samelan 2009 :- Result and Award (Platinum)