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मेरा पहाड़ सदस्यों द्वारा रचित गढ़वाली/कुमाऊंनी कविताये,लेख व रचनाये

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jagmohan singh jayara:
Mera pahad ka sabbi bhai bandhu,

Sending my two poems written on "pahad".  I hope, u will get the message through these poems.

एक लंगोट्या यार बोन्न बैठि, ढुगां सरख्या मनख्यों फर भित लिख कुछ भैजि "जिग्यांसू".  मैन बोलि वैकु
"हे चुचा ढुंगा न बोल" .....

 "हे चुचा ढुगां न बोल" .....

अपणु एक लंगोट्या यार, बोन्न बैठि,
भैजि "जिग्यांसू",
आपन सब्बि धाणी फर लिख्यलि,
जरा ढुगां सरख्या मन्ख्यौं फर भि लिखा,
किलै नि लिखि, अजौं तक?

मेरा मुख बीटि छट छुटि,
हे लाठ्याळा यनु न बोल,
मन्ख्यौं सी गुणवान छन,
मुख्याळा अर् प्यारा ढुगां.

यार फिर बोन्न बैठि,
यनु कनुकै ह्वै सकदु,
ढुगां जैं कुंगळा होन्दा,
ता स्याळ भूखा किलै मरदा.

तब मैं बोलि सुण,
ढ़ुगौं मां छन बड़ा गुण....

चार धाम, पञ्च बद्री, पञ्च केदार,
पित्र कूड़ा, कूड़ी भांडी, पैरि पगार,
जान्दरी, ऊख्ल्यरि,डांडी कांठी,   
घट्ट, देवतों का मंडुला, छान,
यथ्गा कि टीरी कू डाम,
सब ढुगौं का बणयां छन,
क्य, मन्ख्यौं फर छन यना गुण.

जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
24.2.2009  को रचित
दूरभाष: ९८६८७९५१८७
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)


All the poems are published....

at www.younguttaranchal.com

Young Uttarakhand Kavi Samelan 2009 :- Result and Award(gold)


पहाड़ का दर्द कौन करेगा दूर, जिस उत्तराखण्ड को लिया था पहाड़वासियों ने, देखो और पढो इस कविता को, उनके और अपने सपने हो रहे हैं चूर-चूर.........

"छुटदु जाणु छ"

लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......

बित्याँ बीस सालु बिटि,
बारा लाख उत्तराखंडी,
पलायन करि-करिक,
रोजगार की तलाश मां,
देश का महानगरू जथैं,
अपणी जवानी दगड़ा लीक,
बग्दा पाणी की तरौं,
कुजाणि क्यौकु सरक-सरक,
प्यारा उत्तराखण्ड त्यागि,
आस अर औलाद समेत,
कूड़ी पुन्गड़ि पाटळि छोड़ि,
कूड़ौं फर द्वार ताळा लगैक,
कुल देवतौं से दूर देश,
नर्क रूपी नौकरी कन्नौ,
दूर भाग्दु जाणु छ.

बलिदानु का बाद बण्युं,
प्यारु उत्तराखण्ड राज्य,
हाथु सी छुटदु जाणु छ.....
   
आंकडों का अनुसार बल,
राज्य विधान सभा मां,
पलायन की परिणति का कारण,
पहाड़ की आठ घट्दि सीट,
घट्दु पहाड़ कू प्रतिनिधित्व,
हम तैं, यनु बताणु छ.
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......

खान्दि बग्त टोटग उताणि,
मति देखा मरदु जाणी,
बिंगि लेवा हे लठ्याळौं,
छौन्दा कू भि होयिं गाणि,
अब नि जावा घौर छोड़ि,
जख छ, छोया ढ़ुंग्यौं कू पाणी.

समळि जावा अजौं भी,
बग्त यू बताणु छ,
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू,
हाथु सी छुटदु जाणु छ......
   
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
2.3.2009  को रचित
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७

Young Uttarakhand Kavi Samelan 2009 :- Result and Award (Platinum)



jagmohan singh jayara:
 "पहाड़ी गाँव"

प्रकृति का आवरण ओढे,
सर्वत्र हरियाली ही हरियाली,
प्रदूषण से कोसों दूर,
कृषक हैं जिसके माली.
 
पक्षियों के विचरते झुण्ड,
धारे का पवित्र पानी,
वृक्षों पर बैठकर,
निकालते सुन्दर वानी.

घुगती घने वृक्ष के बीच बैठकर,
दिन दोफरी घुर घुर घुराती,
सारी के बीच काम करती,
नवविवाहिता को मैत की याद आती.

सीढीनुमा घुमावदार खेत,
भीमळ और खड़ीक की डाळी,
सरसों के फूलों का पीला रंग,
गेहूं, जौ की हरियाली.

पहाड़ की पठाळ से ढके घर,
पुराणी तिबारी अर् डि़न्डाळि, 
चौक में गोरु बाछरु की हल चल,
कहीं सुरक भागती बिराळि.

आज देखने भी नहीं जा पाते,
लेकिन, आगे बढ़ते हैं पाँव,
कल्पना में दिखते हैं प्रवास में,
अपने प्यारे "पहाड़ी गाँव"

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(23.4.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७   

Anubhav / अनुभव उपाध्याय:
Kya baat hai Jagmohan ji bahut hi badhiya kavitaen hain aapki.

jagmohan singh jayara:
प्रिय अनुभव उपाध्याय जी,

प्रतिक्रिया एवं उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद.  विषय वस्तु मेरी पहाड़ की ही होती हैं.  जन्मभूमि का कर्ज कैसे चुकाऊँ, कल्पना में खोकर कलम से लिखता जाता हूँ, सोचता हूँ ये एक कदम हो सकता है जन्मभूमि का कर्ज चुकाने का.

जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
 

jagmohan singh jayara:
"पर्वतों ने घेरा"

कवि उत्तराखंड भ्रमण पर थे,
पर्वतों की सुन्दरता रहे निहार,
कहीं पक्षियों का कोलाहल,
बह रही हवा की ठंडी बयार.

बांज, बुरांश और काफल के पेड़,
खूब सूरत हरियाली आच्छादित वन,
स्वर्ग जैसा सुखद अहसास,
प्रफुल्लित हो रहा चंचल मन.

दूर दिखती बहती अलकनन्दा,
लग रही जैसे हरी टेढी मेढ़ी लकीर,
कवि जिग्यांसू को हो रही अनुभूति,
देवभूमि में जन्म लिया धनी है तकदीर.

सब कुछ जो था पहाड़ पर,
ने मन को कुछ इस कदर मोहा,
संवाद हुआ पत्थरों से भी,
पहाड़ की पगडंडियौं को जोहा.

इधर उधर सर्वत्र मेरे था,
प्रिय पर्वतों का घेरा,
मूक हैं फिर भी इशारों से,
पूछा हाल चाल मेरा.

कहा जाओगे जब दूर दिल्ली,
प्रवासी उत्तराखंडियौं को कहना,
आशीष हमारा तुम सबको है,
आपस में मिलजुलकर रहना.

हो सके कभी कभी,
उत्तराखण्ड अपने गाँव आना,
हम आपके अपने ही हैं,
ऐसा न हो भूल जाना.

जिस पथ से होकर आप गए थे,
सड़क मार्ग में बदल गया है,
विकास के आगोश में,
आज सब कुछ नयाँ नयाँ है.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
२५.५.२००९

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