Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य

मेरा पहाड़ सदस्यों द्वारा रचित गढ़वाली/कुमाऊंनी कविताये,लेख व रचनाये

<< < (6/6)

हेम पन्त:
जोशी जी आपकी रचनाएं बहुत पसन्द आ रही हैं, हालांकि नेपाली भाषा में होने के कारण कुछ शब्द समझने में कठिनाइ हो रही है लेकिन पिथौरागढ व चम्पावत जिले के सीमान्त इलाकों में बोली जाने वाली भाषा और आपके द्वारा लिखी गई भाषा में बहुत हद तक समानता है... लिखते रहें.. इन्तजार रहेगा..   

Vidya D. Joshi:
हेम जी,  प्रतिक्रिया के लिए  आप को बहुत बहुत धन्यबाद !
वास्तब में यह नेपाली भाषा कि एक कहानी हैं जो मेरी नहीं है, मैने सिर्फ़ इस कहानी को नेपाल के बैतडी-दारचूला ईलाके की पहाडी बोली बैतडा बोलि में अनुवाद किया है. यह बोलि नेपाली भाषा से बिल्कुल अलग हैं जिस बजह से नेपालीभाषी लोग इसे समझ ही नहीं पाते . नेपाल में ६ लाख से ज्यादा लोग बैतडा बोलि बोल्ते हैं.

--- Quote from: हेम पन्त on July 04, 2009, 10:40:54 AM ---जोशी जी आपकी रचनाएं बहुत पसन्द आ रही हैं, हालांकि नेपाली भाषा में होने के कारण कुछ शब्द समझने में कठिनाइ हो रही है लेकिन पिथौरागढ व चम्पावत जिले के सीमान्त इलाकों में बोली जाने वाली भाषा और आपके द्वारा लिखी गई भाषा में बहुत हद तक समानता है... लिखते रहें.. इन्तजार रहेगा..   

--- End quote ---

Vidya D. Joshi:
.....सुभद्रा ले मनैमन भण्यो "तिर्थवर्त गरदु त मुइ ले ब झान्थ्यो, मेरा को छ रे ब न चेलो न चेली. उइ की उमर थी, झानी रनी. उ चेल वाला स्वानी भै, बचन हारदु नाइ सक्यो, मुइ टेक्क्न समौन के न हुन्या अनाथ, मेरी क्या की चाड़ थी. मान्स बलेइ को आगो ताप्दान. जै लाइ परमेश्वर ले ठगी राखी छ, उइ लाइ मन्स लै हेला गरदान. कठै ! दुनिया इति स्वार्थी छ." इस्यांइ सोची वरे सुभद्रा भौत देर लंग रुनाइ रै .
सुभद्रा १२ वर्ष बठे देविरमण की देल्ली लिप्द पै रै थी. यो घर सुभद्रा ई दुनिया माइ सब है प्यारो थ्यो.  इन गोरुन उसै की लालनपालन माइ बडि वरे ज्वान भया हुन . यो घर इन गोरुबाच्छान, रुख डाला सब्बै उइ का दगडिन थ्या. इनुन संग को बिछोड सुभद्रा कन्ज्यां लै सहनु नाइ सकन्थी. झान त  उ झान्थी कि नाइब झान्थी, एकै बचन लै सोद्यो भ्या वरे उ को आंश पुछीन्थ्या. तती सोद्दियो भ्या बखत माइ कतुक काम बणदे थ्यो, मनोविग्यान न जाण्यो देविरमण ई कि पत्तो भ्यो ?
खट्पट की लेखा नानो बी भ्या होइ ग्यो, जो मैका माइ  बडी बटी भयंकर रुप धारण गरन छ. इस्यांई कनाई सुभद्रा लै लछ्मी का लै जीवन माइ तिर्थ यात्रा पैतिर खट्पट हुन पस्यो . तिर्थ बठे आया पाछा दुयै नी कल हुन पसि. सुभद्रा ले सोदि ग्या लछ्मी छेड़ हाणी वरे जोबाब फर्कौन थी, कुरड़ी कुरड़ी बठे ठुल्की कल होइ झान्थी. देविरमण चुपचाप लागि वरे सुणीई रन्थ्यो. गरो के ! लछ्मी थाइ के भुण्या चेलावाली भै, सुभद्रा थाइ भुण्या धर्म लै विवेको लै हत्या. उतन्ज्या उइ को बोल्दे ताकत लै हराइ झान्थ्यो. मान्स को पन्डित्यांई अर्खान उपदेश दिन बिन्ज्या मात्तर औन्छी, आफ्नो पडी ग्या नाइ औनी. इसाई दिन्दिनै को कल बठे सुभद्राको को:लो दिल लै ओइलौन पस्यो. झेल माइ पड़्यो जनी उइ भाज्जे मौका खोज्जु पसि.


काला अन्यारा मुणि जागि जागि वरे वास्या घुघु को गट्टॊ "हुक हुक" आवाज थपी वरे झिक्क डरलाइनो लागन्थ्यो. पल्ला गौं माइ कुकुरुन भुक्दु पै रै थ्या. पीरिथिबी का मान्सौन का .................क्र म श

jagmohan singh jayara:
"पहाड़ का पंछी"

कवि ने देखा पेड़ के ऊपर,
बैठि एक हिल्वांस,
कैसे है बास रही,
हो रहा सुखद अहसास.

बांज बुरांश का जंगल है,
बह रही है बयार,
ठंडी हवा में झूम रहे,
दूर दूर देवदार.

प्रकृति का सुखद नजारा,
लग रही है ठण्ड,
चित्रण कर रहा कवि,
जहाँ हैं उत्तराखण्ड.

हिंवाळि काँठी दिख रही,
मारी आपस में अंग्वाळ,
देखना हो कवि मित्रों,
चलो कुमौं अर् गढ़वाळ.

अब बताता हूँ वो पंछी,
गा रहा मीठा गीत,
कानों में है गूँज रहा,
मधुर शैल संगीत.

कल्पना में देख रहा हूँ,
अपना प्यारा पहाड़,
"पहाड़ का पंछी" उड़ रहा,
जहाँ हैं जंगल झाड़.

शहरी जीवन भोग रहे,
मन में है एक आस,
बद्रीनाथ जी कब दूर होगा,
कठिन दुखद प्रवास.

पहाड़ प्रेम में डूबा,
कसक में कवि "जिज्ञासू"
आये याद पहाड़ की,
मत बहाना आंसू.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
28.7.2009       

"आया है धरती पर सावन"

कहाँ हो प्यारे कवि मित्रों,
आओ झूला झूलें,
आया है धरती पर सावन,
देखो उसको छू लें.

कालिदास के मेघदूत,
अल्कापुरी से आये,
खूब बरसे खूब गरजे,
आसमान में छाये.

कैसी हरियाली है छाई,
लग रही है मन भावन,
मत भूलो कवि मित्रों,
धरती पर आया सावन.

ध्यान रहे कविताओं को छोड़,
अकेले नहीं आना,
सावन के रंग में रंगकर,
उनको भूल न जाना.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
28.7.2009                 

"कवि की कल्पना"

कविवर खोये कल्पना में, घूम रहे गढ़वाल,
देखा एक पहाड़ का पत्थर, मन में उठे सवाल.

लिखने लगे लेखनी से, उस पत्थर पर बैठ,
निहार रहे गढ़वाल हिमालय, सामने पर्वत खैंट.

बुरांश था हंस रहा, गढ़वाल हिमालय को देख, 
गद-गद हुआ कवि "जिज्ञासू", लिखते हुए लेख.

हे प्रभु आपने ये प्यारी धरती, कितनी सुन्दर बनाई,
कहीं पहाड़, कहीं पत्थर, ऊंची चोटियाँ बर्फ से ढकाई.

पहाडों पर सर्वत्र हरियाली ही हरियाली, घाटियों में नदियों की माला,
हे प्रभु आप कितने महान हैं, प्रकृति को विभिन्न रंगों में रंग डाला.

नीला आसमान निहार-निहार, थक रही हैं आँखें,
प्रकृति का देख नजारा, कहाँ-कहाँ किधर झांकें.

ये सब सच नहीं है, केवल कवि की है कल्पना,
देखने का अंदाज है ये, कवि "जिज्ञासू" का अपना.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
27.7.2009                   
   

jagmohan singh jayara:
"जगदेई की कोलिण"

जैन्कु असली नौं क्या थौ, क्वी नि जाणदु,
कोसी अर् रामगंगा का, बीच कू इलाकु,
जख गोर्ख्यौन अत्याचार करिन,
वींकी बहादुरी की बात, आज भी माणदु.

जल्लाद गोर्ख्याणि जब, काळी कुमौं मा,
सल्ट की बस्तियौं मा ऐन,
लोग उन अत्याचार करिक,
तड़फैन अर् सतैन.

दूधि पेंदा छ्व्ट्टा बच्चा, जल्लाद गोर्ख्यौन,
ऊख्ल्यारा कूटिन, लोगु की सम्पति लूटिन,
ज्वान नौना नौनी ऊन, दास दासी बणैन,
कुछ बेचि थूचिन, कुछ नेपाल ल्हिगिन.

जगदेई की कोलिण कामळी बुणदि थै,
ऊंका खातिर, जू गोर्ख्यौ की डौर कु,
लुक्यां था लखि बखि बणु मा,
जान बचौण का खातिर,  कोल्यूं सारी,
जगदेई का नजिक, सल्ट क्षेत्र मा.

जगदेई की कोलिण,
जलख अर् जमणी का बीच,
अपणी झोपड़ी का ऐंच,
एक ऊंचि धार मा गै,
बदनगढ का पार, हो हल्ला सुणिक,
सल्ट जथैं उठदु धुवाँ देखिक,
ग्वर्ख्या आगीं-ग्वर्ख्या आगीं,
जोर-जोर करिक भटै.

कोलिण कू भटेणु सुणिक,
द्वी जल्लाद गोरख्या सिपै,
झट्ट वख मू ऐन,
कोलिण का कंदुड़,
नाक अर् स्तन काटिक,
अपणी राक्षसी प्रवृति का,
क्रूर कर्म दिखैन.

कोलिण का प्राण, पोथ्लु सी ऊड़िगैन,
जल्लाद गोरख्या सिपैयौन,
कोलिण की लाश, झोपड़ी भीतर धोळि,
झोपड़ी फर आग लगाई,
उत्तराखंड की महान वीरांगना,
"जगदेई की कोलिण",
राखु बणिक ऊठ्दा धुवां मा समाई.

सत्-सत् नमन त्वैकु, जगदेई की कोलिण,
तू थै उत्तराखंड की शान,
याद रख्लि जुग-जुग तक,
उत्तराखंड की धरती अर् लोग,
तेरु महान बलिदान.

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२

Navigation

[0] Message Index

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version