Author Topic: उत्तराखण्ड यात्रा वृत्तांत  (Read 5801 times)

jagmohan singh jayara

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जिंगोली-तोली, भनोली, अल्मोड़ा भ्रमण

जिंदगी के सफर में हमारी न जानें किन किन सज्जनों से मुलाकात होती है। फेसबुक एक ऐसा माध्यम है जहां बहुत से लोगों से संपर्क होता है।  फेसबुक मित्रों में से एक मेरे मित्र हैं श्री मनोज तिवाड़ी।  जब उनसे परिचय हुआ तो उन्होंने मुझे बताया मेरे पिताजी तब स्वर्गवासी हो गए थे, जब मैं बहुत छोटा था।  प्रेमवश मनोज मुझे चाचा कहने लगा और पिता समान आदर देने लगा। 

जनवरी, 2019 में उसने मुझे बताया, चाचा 22 फरवरी को मेरी शादी है और आपको जरुर शादी में आना है।  मैंने वादा किया मैं जरुर शादी समारोह में शामिल होऊंगा।  कारणवश शादी को दिन 22 फरवरी के बजाय 24 फरवरी को निर्धारित हुआ।  मनोज नें मुझे बताया, चाचा आप हल्दवानी आ जाना।  वहां से मेरे गांव के लिए सीधी जीप सेवा है।  मैं ड्राईवर को बता दूगां, वो आपको हल्दवानी से मेरे गांव सीधे पहुंचा देगें।  मैंने मनोज को बताया मैं 22 फरवरी सांय दिल्ली से प्रथान करुगां।  मनोज ने मुझे ड्राईवर का मोबाईल नंबर दे दिया था और कहा, हल्दवानी पहुंचने से पहले आप ड्राईवर से संपर्क कर लेना।

      22 फरवरी, 2019 को सांय कार्यालय से छुट्टि होने के बाद मैं रिंग रोड़ हयात होटल के सामने पहुंचा।  वहां से मैंने आनंद विहार के लिए 543 नंबर बस पकड़ कर प्रस्थान किया।  लाजपत नगर फ्लाईओवर पर काफी जाम लगा हुआ था।  मैं चाह रहा था मुझे आनंद विहार में ज्यादा इंतजार न करना पड़े।  लगभग आठ बजे मैं आनंद विहार पहुंचा। हल्दवानी के लिए छोटी बस लगी हुई थी जिस पर लिखा था, हल्दवानी लामगड़।  कंडक्टर ने बताया यह बस हल्दवानी तक जा रही है।  मैंने एक टिकट हल्दवानी का खरीदा और अपनी शीट पर बैठ गया।  बस नें लगभग 9.30 पर हल्दवानी के लिए प्रस्थान किया।  रात्रि का सफर वैसे तो सुगम लगता है, क्योंकि रात्रि में जाम की समस्या नहीं होती।  बस गढ़गंगा, रामपुर, अमरोहा होती हुई सुबह रुद्रपुर पहुंची।  वहां हाईवे का विस्तारीकरण होने के कारण गाड़ी हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ रही थी।  23 फरवरी को लगभग चार बजे बस हल्दवानी बस अड्डे पहुंची।  ठंड बहुत थी, मैं रोडवेज बस अड्डे पर गया और जीप ड्राईवर राजू जोशी जी से संपर्क किया।  उन्होंने बताया हम अभी थोड़ी देर में आते हैं। 

      बस अड्डे पर मुझे एक महिला पुरुष संवाद करते हुए दिखाई दिए।  मैं ड्राईवर के फोन की इंतजार में था।  कुछ देर बाद ड्राईवर का फोन आया, आप बाहर आ जाओ, हमारी बोलेरो गाड़ी का नंबर 0862 है।  मैं तुरंत बाहर की ओर गया और मुझे जीप दिख गई।  मैंने अपना परिचय दिया और ड्राईवर ने मुझे जीप के अंदर बैठने को कहा।   थोड़ी देर बाद जिस महिला को मैंने बस अड्डे पर देखा था वो जीप के पास आई और आगे की शीट पर बैठ गई।  कुछ देर बाद मेरा संवाद उन महिला से हुआ तो उन्होंने मुझे बताया मनोज मेरे देवर हैं। हम भी शादी में शामिल होने जा रहे हैं।   कुछ देर बाद जीप ड्राईवर ने गाड़ी को रुद्रपुर की ओर मोड़ा।  मैं समझ रहा था यहां से हो सकता है जाने का रास्ता हो।  कुछ देर बाद मुझे पता लगा वे सवारी लेने के लिए जा रहे थे।  सवारी लेने के बाद हम फिर बस अड्डे के पास पहुंच गए।  दिल्ली से मनोज के स्टाफ के दो लड़के आ रहे थे।  उनकी इंतजार में लगभग सुबह के सात बज गए।  जब वे लड़के पहुंचे तो हमने भीमताल की ओर प्रस्थान किया।  इस रुट पर मैं पहले भी आ चुका था।  गाड़ी तेज गति से भीमताल की ओर भाग रही थी।  भीमताल पहुंचने पर मुझे भीमताल झील को निहारने का मौका मिला।  सोच रहा था, इतनी ऊंचाई पर इतनी सुंदर झील कितनी मनमोहक है।

      भीमताल, खाटुनि से हमारी गाड़ी दायीं ओर मुड़ गई।  कुछ चढ़ाई के बाद हम अब पदमपुरी की तरफ जा रहे थे।  घना जंगल, सुंदर खेत और होटल मोटल रास्ते में नजर आ रहे थे।  पहाड़ का सौंदर्य मनोहारी होता है।  मुझे तो पहाड़ घूमने का बहुत शौक है। जब मौका मिलता है, चल देता हूं। पुल पार करने के बाद गाड़ी चढ़ाई रही थी और रास्ते में लाल सुर्ख बुरांस खिले हुए नजर आ रहे थे।  धारी को पार करने के बाद हम धानाचूली पहुंचे।  वहां से विराट हिमालय बहुत मनोहारी लग रहा था।  रास्ते में सेब के सूखे पेड़, हरे भरे खेत और लाज, होटल नजर आ रहे थे।  रास्ता लगभग उतराई का था।  मैं ड्राईवर से पूछ रहा था अभी कितना सफर है।  रात्रि के सफर में नींद न आने के कारण सिर में कुछ दर्द सा हो रहा था।  सफर जारी था और मैं पहाड़ की वादियों में अपने को दर्द भरी दिल्ली से दूर खोया हुआ अहसास कर रहा था।  लगभग 11 बजे हम सैर फाटा पहुंचे।  वहां पर चाय पीने के बाद जैंती की ओर प्रस्थान हुआ।  हमारी गाड़ी उतराई की ओर अग्रसर थी।  कई पहाड़ उतरने के बाद गाड़ी पनार पुल पर पहुंची।  वहां से हम भनोली तहसील की तरफ जा रहे थे।  ईलाका हरा भरा कम था और अहसास हो रहा था यहां बहुत गर्म होता होगा।  एक जगह पर हम उतर गए, ड्राईवर पास ही अलग रोड पर सवारियों को छोड़ने गया।

      कुछ देर बाद गाड़ी लौटी और हम उसमें बैठ गए। लगभग चार किलोमीटर चलने के बाद भनोली बाजार आया।  वहां रुककर चाय पानी का दौर चला।  बाजार में बहुत चहल पहल थी।  एक बरात वहां पर ठहरी हुई थी।  बराती शराब के ठेके पर घिरे हुए थे।  लगभग एक घंटा रुकने के बाद हमारी गाड़ी नें जिंगाली तोली के लिए प्रस्थान किया।  सड़क घुमाव दार थी, रास्ते में कई गांव थे। लगभग तीन बजे हम भनोली पहुंचे।  मनोज तिवाड़ी से मुलाकात हुई और उनके घर में शादी की चहल पहल नजर आ रही थी।  मनोज की माता जी से मुलकात हुई।  मैंने पहले स्नान किया और कमरे में आराम करने लगा।         

      शादी की तैयारियां चल रही थी। शाम को मेंहदी का कार्यक्रम था।  मनोज के परिजनों से परिचय हो रहा था।  ठंड काफी थी, दिन में धूप सेकनें का अनंद लिया।  मैं चहु ओर परबतों का निहारते हुए प्रकृति का आनंद ले रहा था।  शाम को मेंहदी समारोह का आनंद लेते हुए मेहमानों से संवाद हुआ।   काफी देर रात तक चहल पहल रही और बात में मैं सो गया। बरात दिन दिन की होने के कारण बरात को सुबह प्रस्थान करना था।

      सुबह जागने पर मैंने देखा, पिथौरागढ़ की तरफ से सूर्योदय हुआ और सूर्य की सुनहरी किरणें परबतों के माथे पर फैल रही थी और पनार नदी घाटी में शांति का वातावरण था।  पक्षियों का कोलाहल, गेहूं के हरे भरे खेत, सगोड़ियों में पालक, मूली, राई उगी हुई थी।  इधर बरात प्रस्थान की तैयारियां चल रही थी।  मैंने सुबह स्नान किया और तैयार होकर नाश्ता किया।  लगभग नौ बजे सुबह बरात ने प्रस्थान किया ।  बरात जब भनोली पहुंची तो वहां पर कुछ देर रुकी रही।  कुछ देर रुकने के बाद बरात ने सिमलखेत को प्रस्थान किया।  उतराई का रास्ता था, सामने दन्यां बजार धार के ऊपर दिख रहा था। जब हम सिमलखेत पहुंचे तो गाड़ियों ने गाड की तरफ बनी कच्ची रोड पर चलना शुरु किया।  मैं सोच रहा था, आगे सड़क होगी।  पनार नदी के तट पर पहुंचने के बाद गाड को पार करते हुए गाड के किनारे, कभी गाड़ को पर करते हुए हमारी गाड़ियां चल रही थी। ये जिंदगी में मेरा पहला अनुभव था, कि हम गाड में चलती हुई गाड़ी में बैठकर सफर कर रहे थे।  गाड़ के तट पर ही दुल्हन का घर था।  पूछने पर पता लगा हम अब पिथौरागढ़ जिल्ले में हैं।  गाड के तट पर जलपान की व्यवस्था थी।  फरवरी का महीना होते हुए भी गाड के किनारे गर्मी का अहसास हो रहा था। 

      कुछ देर बाद बरात दुल्हन के घर पहुंची।  एक तरफ शादी की रस्में चल रही थी और दूसरी ओर भोजन का दौर।  जिस खेत में भोजन की व्यवस्था थी उस खेत के कच्चे गेहूं उखाड़ दिए गए थे।  सामने परबत इतने ऊंचे थे गरदन पीठ की तरफ घुमाने पर भी ऊंचे दिख रहे थे।  गाड के पार एक सड़क थी जो लोहाघाट से पिथौरागढ़ के लिए जा रही थी।  संध्या का समय हो चुका था।  मैं बरात के साथ ही आया, कुछ लोग पहले ही गांव के लिए प्रस्थान कर चुके थे।  बरात ने वापसी के लिए प्रस्थान किया। 

     अब हम पनार गाड को पार करके सामने के पहाड़ पर बनी सड़क पर गाड़ी से चढ़ते जा रहे थे।  नीचे खाई नजर आ रही थी और डर का अहसास भी हो रहा था। कुछ समय बाद हम सिमलखेत पहुंचे।  सिमलखेत में सिंचित खेत नजर आ रहे थे।  बहुत ही रमणीक जगह है सिमलखेत।   बरात की गाड़ियां दौड़ रही थी, आगे चलने पर एक सड़क सीधी पिथौरागढ़ की तरफ जा रही थी।  हमारी गाड़ी ने ऊपर भनोली तहसील की सड़क पर प्रस्थान किया।  भनोली में रुकने के बाद गाड़ियों ने जिंगोली तोली मनोज तिवाड़ी के गांव के लिए प्रस्थान किया।  लगभग रात्रि 9 बजे बरात जिंगोली तोली पहुंच गई। 

     हम मनोज के ऊपरी तल वाले घर में बैठ गए। थकावट का एहसास हो रहा था।  मेहमानों की चहल पहल और भोजन का दौर चल रहा था।  हमनें भोजन लगभग रात्रि 11 बजे किया।  दिन का भोजन लेने के कारण भूख कम ही थी।   बातचीत का दौर खत्म होने के बाद मैं सो गया। 

   24 फरवरी सुबह उठने के बाद मैंने स्नान किया। स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था।  मुझे कुछ अपच ओर पेचिस की शिकायत हो गई थी।  आसमान में बादल होने के कारण ठंड काफी थी।  जिंगोली तोली के पास कुछ ऊंचे टीलेनुमा पहाड़ी थी।  सोच रहा था वहां जाकर चहुंओर का दृष्य देखूं पर चाहत पूरी न हो सकी।  दिन कब कट गया पता ही नहीं चला।  मनोज की शादी के बहाने मुझे कुमाऊं का ये क्षेत्र देखने को मिला।  सोचा एक पंथ दो काज हो गए।  25 फरवरी सुबह मुझे दर्द भरी दिल्ली के लिए प्रस्थान करना था।  रात्रि में भोजन करने के बाद मैं सो गया।

     25 फरवरी सुबह उठने पर मैं अपने को कमजोर महसूस कर रहा था।  प्रस्थान से पूर्व मुझे तीन चार बार पेचिस हो चुकी थी ।  कुछ भी खाने का मन नहीं कर रहा था।  सुबह 6 बजे हमनें दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। जिस गाड़ी से मैं आया था उसी गाड़ी से लौट रहा था।  गाड़ी ऊंचाई की तरफ भाग रही थी।  सैरफाटा पहुंने पर गाड़ी रुकी ।  राजू ड्राईवर और अन्य लोगों ने भोजन किया।  मुझे तो भूख लग ही नहीं रही थी।   सोच रहा था दिल्ली पहुंचकर ही आराम मिलेगा।  धानाचूली में बर्फ पड़ी हुई थी, दूर दूर तक बर्फ से ढ़के पहाड़ नजर आ रहे थे।  लगभग बारह बजे हम हल्दवानी बस अडडे पहुंचे।   तुरंत ही मुझे दिल्ली की गाड़ी मिल गई। 

     लगभग सात बजे मैं दिल्ली पहुंचा ।  शरीर काफी थकावट महसूस कर रहा था।  किसी भी क्षेत्र की यात्रा करने पर मन को खुशी का अहसास होता है।  मुझे खुशी थी कि मैंने कुमाऊं का एक अलग क्षेत्र का भ्रमण किया।   उत्तराखण्ड के हर भू भाग को निहारने की मेरी तमन्ना रहती है।   नौकरी में इतनी स्वतंत्रता नहीं होती कि लगातार भ्रमण किया जा सके।  यात्राएं करने से मन को सकून मिलता है।  दिल्ली जैसे महानगर की प्रदूषण एवं जंजाल भरी जिंदगी जिंदगी से दूर पहाड़ पर जाना मेरा सौभाग्य होता है।  मेरा प्रयास है, संपूर्ण पहाड़ का भ्रमण करते हुए जिंदगी का आनंद लूं।   

जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 26/2/2019   
दूरभाष: 9654972366

jagmohan singh jayara

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पतरोळ की थाती तक हम यायावरों का भ्रमण

मेरे प्रिय मित्र से मुझे संदेश मिला, आप एक जुलाई को अंजनीसैण आ जाओ।  वहां पर एक शूटिंग होगी और आपको एक किरदार निभाना है।  सुरेन्द्र सिह रावत(सुरु दा) से मैंने संपर्क किया और कार्यक्रम अनुसार दिनांक 29.7.2016 को हम दोनों अंतराज्यीय बस अडडा, दिल्ली में रात लगभग ग्यारह बजे रात को मिले। हमनें रात बारह बजे ऋषिकेश के लिए प्रस्थान किया। उमस बहुत हो रही थी, बस की खिड़की से आती हुई हवा से कुछ राहत मिल रही थी। ड्राईवर गाड़ी को रफ्तार से चला रहे थे।  रास्ते में खतौली में हमारी गाड़ी रुकी तो वहां पर हमनें जलपान किया।  लगभग आधा घंटे के बाद बस नें ऋषिकेश के लिए प्रस्थान किया।  रास्ते कुछ झपकी लेते हुए हम हरिद्वार पहुंचे।  हरी की पौड़ी रोशनी से जगमग थी।  हमारी गाड़ी जैसे ही ऋषिकेश के पास लगभग 5 बजे सुबह पहुंची तो ठंड का अहसास होने लगा। पहाड़ श्याम रंग में नजर आ रहे थे। ऋषिकेश में बस से ऊतर कर हमनें पहाड़ को पहाड़ प्रेम में प्रणाम किया।  आसमान में बादल मंडरा रहे थे और  मौसम बहुत ही सुहावना लग रहा था।  हमनें वहां मुंह हाथ धोए और गरम गरम चाय का आनंद लिया।

   ऋषिकेश से हमनें छ बजकर तीस मिनट हिंडोलाखाल नई टिहरी की बस से प्रस्थान किया।  हमनें रौडधार तक की टिकट ली और तय किया कि रौडधार से पैदल चंद्रवदनी जाएगें।  हमारी बस देवप्रयाग की ओर सरपट दौड़ रही थी।  गंगा में पानी मटमैला दिख रहा था और बहाव भी तेज था।  बस में हम झपकी ले रहे थे।  पहाड़ की ठंडी हवा हमें सकून प्रदान कर रही थी। रास्ते में ब्यासी से पहले हल्की बरखा हो रही थी और हम आनंद की अनुभूति कर रहे थे।  गंगा के किनारे और हरे भरे जंगल देखकर आंखों को सुखद अहसास हो रहा था।  लगभग नौ बजे हम देवप्रयाग पंहुचे।  सुरु भुला ने कहा मुझे एक चार्जर लेना है।  देवप्रयाग टिकट घर के पीछे हमें अलकनंदा भागीरथी के संगम की ओर जाती हुई एक गली में मोबाईल की दुकान दिखाई दी।  वहां पर हमनें पता किया तो अस्सी रुपये में चार्जर मिल गया।  हम चार्जर के पैसे दे ही रहे थे, तभी एक बाबा वहां पर आ गए।  उनके हाथ में टेमरु का सोट्टा था।  वहीं पर एक लड़का बांसुरी की तान छेड़ रहा था।  मुझसे रहा नहीं गया और मैनें उसक लड़के से बांसुरी मांगी और बजाने लगा।  सुरु भुला ने मोबाईल से रिकार्डिंग शुरु की।  सुरु भुला ने मौके का फायदा उठाते हुए वहां पर अपना मोबाईल चार्ज किया।  कुछ समय बाद ड्राईवर बस की ओर जाने लगा, जिस पर हमारी नजर थी।  बस के कंडक्टर ने मुझे बताया, आप सुंदर बांसुरी बजाते हैं।  उसने टिकट घर की पिछली खिड़की से मुझे बांसुरी बजाते देख लिया था। 

   देवप्रयाग में मुझे दोस्त का फोन आया।  जिज्ञासु जी आप देवप्रयाग में ही रुक जाओ ।  अब देवप्रयाग में ही शूटिंग का कार्यक्रम है।  मैंने उन्हें बताया हमनें रौडधार की टिकट ले रखी है और हमारा चंद्रवदनी मां के दर्शन करने का कार्यक्रम है।  मित्र ने बताया आप शाम को देवप्रयाग आ जाओ।  हमनें अपनी सहमति दी और नौ बजकर तीस मिनट पर प्रस्थान करती हुई अपनी बस में बैठ गए।  बस से हमनें देवप्रयाग को निहारा।  भुवनेश्वरी मंदिर, डिग्री कालेज का मैदान, अलकनंदा के पार दिखती सर्पीली सड़कें नजर आ रही थी।  महड़ स्कूल के पास बैंड पर मैंने सुरु भुला को एक मंदिर दिखाया जो सड़क निर्माण के दौरान मिला।  हमारी बस हिंडोलाखाळ की तरफ भाग रही थी।  सुरु भुला को मैं गांवो का परिचय करवा रहा था।  हिंडोलाखाळ के बाद व जामणीखाळ से पहले मैंने सुरु भुला को नागेश्वर मंदिर बस की खिड़की से दिखाया।  जामणीखाळ पहुंचने पर हम वहीं उतर गए।

   हम फरशुराम भट्ट जी की दुकान पर गए और सुरु भुला का उनसे परिचय करवाया।  मान्यवर भट्ट जी फौज से सेवा निवृत्त होकर शब्जी उत्पादन, बुरांस, माल्टा का जूस, पुदने का जूस, तिम्ले का अचार इत्यादि उत्पाद स्वयं बनाकर अपनी दुकान के माध्यम से बेचते हैं।  जिस दिन वे कश्मीर से सेवा निवृत्त होकर आए तो वहां से एक चिनार का पौधा साथ लाए जिसका रोपण उन्होंने भुवनेश्वरी महिला आश्रम, अंजनीसैण में किया है।  मैंने उनसे पूछा पेड़ अब कितना बड़ा हो गया है।  खुश होकर उन्होंने बताया पेड़ खूब बड़ा हो रहा है।  उत्तराखंड की धरती पर शायद यहा अकेला चिनार का पेड़ होगा जिसे मैंने रोपा है।  सुरु भुला ने भट्ट जी से विस्तृत जानकारी ली। सुरु भुला ने पूछा, आपने प्रशिक्षण लिया है।  भट्ट जी ने बताया मैंने भुवनेश्वरी महिला आश्रम के सौजन्य से तीन महीनें का प्रशिक्षण प्राप्त किया है।   भट्ट जी ने हमें अपने हाथों से बनाया पुदीने का जूस पिलाया।  हमनें भट्ट जी से पूछा, चंद्रवदनी जाने के लिए कोई वाहन मिल जाएगा। पास ही कोळा काण्डी गांव के एक सज्जन ताश खेल रहे थे। भट्ट जी ने उन सज्जन को कहा इन मित्रों को चंद्रवदनी भ्रमण हेतु ले जाओ।  हमें कहा इन्हें चार सौ रुपये देना। 

   बारह बजे के लगभग हमनें चंद्रवदनी के लिए प्रस्थान किया।  चढ़ाई के रास्ते पर गाड़ी दौड़ रही थी और मैं सुरु भुला को अपनें गांव ईलाके से परिचित करवा रहा था।  चंद्रवदनी जाना हो तो अक्टूबर से लेकर मार्च तक का साफ मौसम होने के कारण गढ़वाळ हिमालय मनोहारी दिखता है।  हिमालय पहाड़ पर लगे कोहरे के कारण नजर नहीं आ रहा था।  कुछ समय बाद हम नैखरी पहुंचे।  वहां पर हमनें छायाकारी की फिर चंद्रवदनी मंदिर की ओर बढ़ गए।  पार्किग स्थल पर पहुंचकर हमनें चहुं ओर निहारा और पैदल मार्ग की ओर सुरु भुला की इच्छानुसार नंगे पांव प्रस्थान किया। चंद्रवदनी पंहुचने पर हम श्री चंडी प्रसाद भट्ट जी की दुकान पर गए।  सुरु भुला का उनसे मैंने परिचय करवाया और कुछ तस्वीरें ली।  पास ही खिले हुए बुरांस मनमोहक लग रहे थे।  भट्ट जी ने बताया ये बुरांस अब खिल रहे हैं।  मौसम परिवर्तन का प्रभाव है ये।  भट्ट जी से हमनें पूजा की सामग्री ली और मंदिर में गए।  वहां पर पुजारगांव के ढ़ोली ढ़ोल बजा रहे थे।  उनकी मंदिर में ड्यूटी लगती है।  मंदिर की ओर आने जाने वालों की हलचल थी।  पंडित जी ने मंदिर के भीतर पूजा की, हमें प्रसाद दिया और मां भगवती के बारे में बताया। हमनें ढ़ोली को समर्थानुसार कुछ रुपये दिए।  पास ही मेरे अमेरिका प्रवासी भुला जगमोहन सिंह जयाड़ा द्वारा बनवाया लक्ष्मी नारायण मंदिर है।  वहां पर एक पट्टिका पर हमारे दादा जी स्व. बद्री सिंह जयाड़ा, सरोप सिंह जयाड़ा, गोकल सिंह जयाड़ा और दादी जी स्व. पाखू देवी जी का नाम अंकित है। हमनें दर्शन करने के बाद श्री चंडी प्रसाद भटट जी को मिलते हुए जामणीखाळ के लिए प्रस्थान किया। हमें दोपहर दो बजकर तीस मिनट पर जामणीखाळ पंहुचना था, क्योंकि देवप्रयाग जाने वाली अंतिम बस इसी समय मिलती है।  अब हम पैदल मार्ग से होते हुए पार्किंग स्थल की ओर आने लगे।  रास्ते में मैंने पथरी की जड़ी कामळिया को देखा, जो पथरी के ईलाज में कारगर होती है और सुरु भुला को भी दिखाई।  कार में बैठकर हमनें जामणीखाळ के लिए प्रस्थान किया और दोपहर दो बजकर तीस मिनट के लगभग जामणीखाळ पहुंच गए।  सुरु भुला ने फरशुराम भट्ट जी से पुदीने का जूस, सेब का जैम लिया।  थोड़ी देर में बस आई और हम उसमें बैठे और देवप्रयाग के लिए प्रस्थान किया। 


   देवप्रयाग हम लगभग चार बजकर तीस मिनट पर पहुंचे।  मित्र को फोन मिलाया उन्होंने कैमरा मैंन का नंबर दिया।  मैंने जब संपर्क किया तो कैमरा मैन ने बताया, कार्यक्रम बदल गया है इसलिए आप बादशाही थौळ आ जाओ।  पैरौं से जमीन खिसक गई, न रहे घर के और न घाट के।  बहुत देर तक देवप्रयाग में उलझन की स्थिती में रहे।  जोशीमठ जाने वाल एक बस आई और हम उसमें बैठकर बग्वान में ऊतरे।  हमनें तय किया अब अपने समधोळा ललथ चलते हैं।  सौभाग्य से एक जीप ललथ के पास जा रही थी।  हम उसमें बैठकर ललथ गांव से पहले ऊतर गए।  सड़क से हम शार्टकट खेतों से होते हुए ललथ के पास सड़क पर पहुंचे।  जामणीखाळ में श्री अंकित भटट जी ने मुझे कुछ देशी आम दिए थे।  मैंने सुरु भुला को कहा इन आमों को चूस लेते हैं, कुछ प्यास का अहसास हो रहा था। हम आम चूस रहे थे, सामने से समधि जी श्री मोहन सिंह बिष्ट जी आ रहे थे।  उनके हाथ में कुछ आम थे।  उन्होनें आम हमें दिए और हमनें उन खटटे मीठे आमों को चूस डाला।  कुछ देर बाद हमनें अपने समधि जी के आवास की तरफ प्रस्थान किया।

   बग्वान से मैंने फोन करके बहु के दादा जी को अपने आने की सूचना दे दी थी।  जब हम समधोळा पहुंचे तो बहु के दादा दादी जी ने हमारा स्वागत किया।  मेरे समधि जी तो सपरिवार देहरादून प्रवासी हैं। बहु के दादा दादी जी नें हमारी आवाभगत की।  बातचीत का दौर चला, सुरु भुला का मैंने उनसे परिचय करवाया।  पिछली रात भलि भांति नींद न लेने के कारण हमें नींद आ रही थी।  हम भोजन करने के बाद सो गए।

   सुबह छ बजे हमारी आंख खुलि।  हमनें चाय पी और प्रस्थान करने का विचार बनाया।  ललथ से प्रस्थान करने के बाद हम गांव के नीचे गए।  सोच रहे थे जामणीखाळ जाने के लिए कोई ट्रक मिल जाए तो सही रहेगा और हम नई टिहरी जल्दि पहुंच जाएगें।  बहुत इंतजार के बाद दो ट्रक आए पर उन्होंने हमें बिठाया नहीं।  पास ही एक आम का पेड़ था, वहां पहुंच कर हमनें पके आमों का रस्वादन किया।  सुरु भुला की ऊपर की ओन एक तिबारी पर नजर गई।  भुला ने कहा चलो तिबारी की तस्वीरें लेते हैं।  तस्वीरे लेने के बाद हम ललथ बैंड पर पहुंचे।  मूसलाधार बरखा लग गई।  काफी समय तक सुबह नौ बजे श्रीनगर जाने वाली बस आई और बस में बैठकर हमनें मलेथा का टिकट लिया।  सोचा मलेथा में हमें नई टिहरी जाने की बहुत सी बसें मिल जाएगीं। 

जब हमारी बस मलेथा पहुंची तो हम वहां पर ऊतर गए।  पास ही एक दुकान पर गए और उनसे पूछा कुछ जलपान की व्यवस्था हो जाएगी।  होटल वाले ने बताया परोंठे मिल जाएगें।  हमनें कहा जल्दि बनाओ।  कुछ देर इंतजार के बाद होटल वाले नें हमें गरम गरम परोंठे परोसे।  पेट पूजा करने के बाद हम माधो सिंह भण्डारी जी के स्मारक की ओर चल दिए। रास्ते में हमें स्टोन क्रेशर स्थल दिखाई दिया, जो हिमालय बचाओं आन्दोलन के श्री समीर रतूड़ी जी और मलेथा ग्राम वासियों के भीगीरथ प्रयास से बंद पड़ा हुआ है। पंद्रह मिनट पैदल चलने के बाद हम स्मारक पर पहुंचे।  स्मारक स्थल रमणीक जगह पर मलेथा की कूल के ठीक ऊपर है।  सुरु भुला बता रहे थे, देखो स्मारक तो बना दिया पर उचित देखभाल की कोई व्यवस्था नहीं।  उमस बहुत थी, कुछ तस्वीरें लेने के बाद हम सुरंग के मुहाने पर गए।  सुरंग में अथाह पानी जा रहा था।  माधो सिंह भण्डारी जी के महान त्याग के कारण हमनें उन्हें याद किया।  सन् सोलह सौ पैंतीस में सुरंग बन जाने के बाद पानी सुंरग से पास नहीं हुआ।  माधो सिंह व्यथित थे, भगीरथ प्रयास बेकार हो गया। बताते हैं उनके स्वप्न में देवी आई और बताया।  माधो सिंह तुम्हें सुरंग पर नर बलि देनी होगी, तभी पानी सुरंग के पार जाएगा।  भण्डारी जी इस कारण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए।  अंत में उन्होंने अपने पुत्र गजे सिंह की वहां पर बलि दी।  आज मलेथा गांव उनके इस त्याग के कारण हरा भरा है।  मलेथा के लोग भी उन्हें याद करते हैं और उनकी याद में जनवरी माह में मेला आयोजित किया जाता है।  कवि हूं इस कारण मैंने मलेथा पर रचना की है।  रचना का एक अंश इस प्रकार से है:-
आमू का बग्वान मलेथा, लसण प्याज की क्यारी,
कूल बणैक अमर ह्वैगि, भड़ माधो सिंह भण्डारी...

कूल का खातिर करि माधो, त्वैन नौना कू बलिदान,
आज अमर ह्वैगि माधो सिंह, उत्तराखण्ड की शान....(कवि जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू)

   कुछ समय बाद हम स्मारक स्थल से ऊपर सड़क पर आ गए।  प्यास बहुत लगी थी, पास ही सड़क पर कार्यरत महिलाओं से हमनें पानी मांग कर अपनी प्यास बुझाई।  बस का हम इंतजार कर रहे थे, बहुत देर बाद साढ़े बारह बजे दिन में हमें बस मिलि।  अब हम डांगचौंरा की ओर बढ़ रहे थे, गाड के पास सिंचित खेतों में धान की रोपाई हो रही थी।  मैंने सुरु भुला को बताया, हमारे स्व. रामू बाद्दी का गांव यहीं हैं।  मेरे बाल्यकाल के दौरान सर्दियौं के मौसम में स्व. रामू हर साल हमारे गांव आता था।  रात को गांव वाले उनके पास बैठते और पारंपरिक गीत सुनते थे। गीत की कुछ पंक्तियां इस प्रकार से है:-

1.   गिरमपति गिरजा टीरी नरेश, चिरंजीव रान तेरु गढ़देश.....
2.   हरसिंग पटवारी की थै घूत्तू चौकी, वे बाग मान्न की इच्छा थै जौंकी....
3.   कमला तू रोई ना....   
4.   द्वी हजार आठ भादौं का मास, सतपुलि मोटर बगिन खास....
5.   रात घनाघोर मांजी रात घनाघोर.......   

चढ़ाई का मार्ग था और हमारी गाड़ी सरपट कांडीखाळ की ओर जा रही थी।  अमोली गांव आने पर मैंने सुरु भुला को बताया, ये विजय बुटोला का गांव है। काण्डीखाळ के बाद हमारी बस मगरौं की तरफ जा रही थी। घाटी मनोहारी लग रही थी। वहां पर हमनें सड़क मार्ग से गुजरते हुए नवोदय विद्यालय परिसर देखा जो काफी भव्य था।  पौखाळ के बाद हम जाखदार पहुंचे जहां से एक सड़क घनसाली की ओर जाती है।  टिहरी डाम की विशाल झील नजर आ रही थी।  आगे हमें पीफळ डाळी का पुल दिखाई दिया।  डाम में पानी मटमैला दिख रहा था और डूबे हुए गांवों के अवशेष झील मा जल स्तर कम होने के कारण नजर आ रहे थे। जब हम टिहरी डाम के निकट पहुंचें तो नई टिहरी व डाम की दीवार नजर आ रही थी।  कुछ समय बाद हम भगीरथपुरम पहुंचे और वहां पर बस से ऊतर गए।  प्रस्थान से पहले पतरोळ जी(श्री कुम्मी घिल्डियाळ) से हमारी बात हुई थी ओर उन्होंने कहा था आप भगीरथ पुरम ऊतर जाना।  पतरोळ जी का कार्यालय वहीं पर है।  हमनें फोन करके बताया हम पहुंच चुके हैं।  मैंने कैमरा मैन को फोन किया हम भगीरथपुरम पहुंच गए हैं।  कैमरा मैन ने बताया हम चंबा पहुंच गए हैं और देहरादून जा रहे हैं।  मैंन उनको यात्रा मंगलमय हो कहा।  अब मैं सकून में था क्योंकि अब हमें बादशाही थौळ नहीं जाना था।  पतरोळ साहब अपनी कार से आए और हमारे गले मिले। बातचीत का दौर चला, पास ही शहीद की मूर्ति लगी थी।  पतरोळ जी ने बताया देखो स्मारक तो बना देते हैं लेकिन कोई देखभाल की व्यवस्था नहीं।  पतरोळ जी हमें टिहरी डाम के गेस्ट हाऊस ले गए और कहा आप यहां विश्राम करो, फिर शाम छ बजे मैं तुम्हें अपने घर पर ले जाऊंगा।  हमनें स्नान किया और आराम करने लगे।

लगभग छ बजे पतरोळ जी आए और हमें टिहरी डाम के परिसर में बने पार्क में घुमाया।  पतरोळ जी कह रहे थे आपके दिल्ली में क्या पार्क हैं।  देखो ऐसे पार्क है दिल्ली में।  वहां पर हमने पार्क में तस्वीरें ली।  कुछ समय बाद पतरोळ जी हमें अपनी कार में बिठाकर नई टिहरी को चल दिए।  रास्ते में दो मील के पत्थर लगे थे जिनमें टिहरी चार और पांच किमी लिखा था।  पतरोळ जी ने बताया मित्रों देखो।  एक जगह स्मारक द्वार बना हुआ था और उसमें लगी टाईल निकली हुई थी।  पतरोळ जी ने बताया इसे भी देखो, बना तो देते हैं देखभाल नहीं करते।  कुछ समय बाद हम नई टिहरी पतरोळ जी के घर पर पहुंचे।  सुरु भुला पहले पतरोळ जी के घर आए हुए थे।  मैं नव आगंतुक था।  पतरोळ जी ने कहा आप बाहर ही रुको।  मैंने सोचा पतरोळ साहब कहीं प्रवेश से पहले हम पर पिठांई तो नहीं लगा रहे।  कुछ समय बाद पतरोळ जी ने कहा अंदर आ जाओ।  पतरोळ जी ने अपने अस्त व्यस्त ड्राईगं रुम को सुव्यवस्थित किया।  मैंने कहा पतरोळ जी मैंने सोचा आप घर में प्रवेश करते हुए हम पर पिठांई लगाने का विचार कर रहे हैं।

पतरोळ जी का परिवार दिल्ली में प्रवासी है।  अकेलेपन के कारण हमारे आने पर उन्हें अथाह खुशी का अहसास हो रहा था।  हम उनके प्रिय मित्र ठहरे और हमारी तरह उन्हें भी पहाड़ और संस्कृति प्रेम है।  कहते हैं मुझे पहाड़ से दूर का प्रवास कतई अच्छा नहीं लगता।  शुरुआत के दिनों में उन्होंने फरीदाबाद में प्रवास का जीवन बिताया है।  टिहरी डाम में नौकरी लगने की बात हमें बताई और कहा यहां तो स्वर्ग है।  एकाकीपन मुझे थोड़ा सताता जरुर है।  पतरोळ जी अपनी रसोई में गए और हमें चाय पिलाई।  हम मित्र के घर मेहमान की तरह अहसास नहीं कर रहे थे।  हमनें जिस प्रकार हो सके भोजन व्यवस्थ और अन्य कार्यो में हाथ बंटाया।  स्नान करने के बाद भोजन की व्यवस्था हुई।  भोजन करने के बाद सुरु भुला और पतरोळ जी यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड और अन्य रिकार्डिंग देखने में व्यस्त हो गए।  मैं तो सो गया और वे चार बजे रात तक जगे रहे।  सुरु भुला और हम खराटे लेते हैं इसलिए पतरोळ जी ऊड्यारनुमा कमरे में ऊपर की मंजिल में सो गए।

दो जुलाई सुबह मेरी नींद खुली तो परदा हटाकर देखा तो टिहरी डाम की झील और खैट पर्वत और धारमंडळ वाला क्षेत्र मनोहारी लग रहा था।  कोहरा पहाड़ पर इधर उधर भाग रहा था।  मैंने खूबसूरत नजारों को अपने कैमरे में कैद किया।  पतरोळ जी और सुरु भुला भी जाग चुके थे।  हमनें स्नान किया और पतरोळ जी ने गरम गरम परोंठे बनाएं।  तैयार होकर हमनें पंराठे चाय के साथ खाए।  कुछ देर बाद हम पतरोळ जी की कार में बैठकर भगीरथपुरम के लिए चल दिए।  वहां से पतरोळ जी ने श्री बलबीर सिंह तोपाळ जी को साथ लिया और हमनें घनसाली के लिए प्रस्थान किया।  हल्की बरखा लगि हुई थी और हम घनसाली की ओर जा रहे थे।  पतरोळ जी ने हमारा परिचय तोपाळ जी से करवाया।  मैंने तोपाळ जी से कहा आप लोग राजशाही के दौरान अतीत में तोप चलाते थे।  तोपाळ जी ने बताया तोप तो राजशाही के साथ चलि गई है और अब हमारे पास बंदूक ही रह गई है।  टिपरी पहुंचने पर पतरोळ जी ने कहा यहां पर माछा भात खाते हैं।  हमनें कहा रहने दो आगे कहीं भोजन कर लेगें।  पीफळ डाळी पर पहुंचने पर फिर पतरोळ जी ने माछा भात खाने की इच्छा जाहिर की लेकिन तय हुआ घनसाली में ही भोजन करेगें।  हमारा कार्यक्रम जग्दि गाड, मालगांव तक जाने का था।  विदेश में रहने वाले गणेश प्रसाद बडोनी जी ने श्रीमती पूनम नेगी का परिचय दिया था। मुझे बताया वे गढ़वाळि गाने लिखती हैं और पेड़ से गिरने के कारण रीढ़ की हडडी टूटने के कारण अपाहिज भी हैं। पूनम को मैंने आपने आने की सूचना दी।  वे बता रही थी कि यहां बहुत बरखा हो रही है।  हमनें सोचा घनसाली से पास ही होगा। 

कुछ समय बाद हम घनसाली पहुंचे।  वहां पर मेरे एक फेसबुक दोस्त फोटोग्राफर श्री शिव सिंह रौथाण जी रहते हैं।  मन में अभिलाषा थी उनसे मिला जाए।  सोचा घनसाली में पूछकर पता लग जाएगा।  लेकिन मेरी डायरी में उनका फोन नंबर था जो दिल्ली में ही छूट गई थी।  मैंने दिल्ली फोन करके अपने घर में बताया जरा डायरी देखो और शिव सिंह रौथाण जी का नंबर दो।  परिजनों ने बताया जिस डायरी का आपने जिक्र किया उसमें उनको नंबर नहीं है।  फेसबुक के माध्यम से मैंने रौथाण जी को संदेश दिया था, हम घनसाली आ रहे हैं। पतरोळ जी का नंबर भी दिया।  बरखा के कारण संचार व्यवस्था ठीक न होने के कारण या आनलाईन न होने के कारण उनको कोई संदेश नहीं मिला।  घनसाली पहुंचकर दो तीन फोटोग्राफर से हमनें पूछा पर रौथाण जी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलि।  बरखा लगि हुई थी, इस कारण हमनें घनसाली में दो तीन रंगीन छाते खरीदे और पनगोला से प्रभावित बेहड़ा गांव गए। 

बेहड़ा, श्याम नगर पहुंचने हमनें मलबे का आया सैलाब देखा।  प्रभावितों ने बताया हमारी सिंचित भूमि 1975 में बह गई थी। बेहड़ा गांव के लोहार होने के कारण ग्राम वासियौं की संस्तुति पर तब हमें यहां पर सरकार ने जमीन दी थी। 28 मई, दोपहर दो बजकर तीस मिनट पर ऊपर से मलबा और पानी आया और हमारे घरों में घुस गया।  किसी तरह हमनें अपनी जान बचाई।  हिमालयन न्यूज के लिए सुरु भुला ने उनको साक्षात्कार लिया और पतरोळ जी ने कवर किया।  बहुत ही भावुक अंदाज में वे अपनी व्यथा जाहिर कर रहे थे।  कुछ समय बाद हम पास ही मान्यवर तोपाळ जी की ससुराल बेहड़ा गए।  उनकी ससुराल में भी वही हाल था।  मलबा उनके घरों के बीच से गाड की तरफ तक आया हुआ था।  सड़क से उनके घर को आता हुआ रास्ता क्षतिग्रस्त था।  हम किसी प्रकार उतरकर उनकी ससुराल में पहुंचे।  चाय पानी का दौर चला, उनके ससुर जी शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हैं।  वहां पर फिर सुरु भुला ने सभी से घटना की जानकारी ली और पतरोळ जी ने आपदाग्रस्त क्षेत्र को कवर किया।  कुछ देर बाद हम वापिस तोपळ जी के ससुर जी के घर पर आए।  तोपाळ जी के ससुर जी को मैंन अपनी प्रिय गढ़वाळि कविताएं सुनाई।  कविताएं सुनकर तोपाळ जी के ससुर बहुत खुश हुए।  भोजन का दौर चला और हमनें नई टिहरी के लिए प्रस्थान किया।

घनसाली से आगे बढ़ते हुए हमें निमार्णाधी घोंटी पुल के पास पहुंचे।  पतरोळ जी ने वहां पर गाड़ी रोकी और बताया इसे हम टाईगर बैंड कहते हैं।  कुछ समय पहले हमारे टाईगर दोस्त की कार खाई में गिरने से दर्दनाक मौत हो गई थी।  पतरोळ जी बता रहे थे सोच रहा हूं यहां पर मैं पत्थरों से पैराफिट बनाऊंगा।  हमनें स्वर्गवासी टाईगर जी का नमन किया और एक बीड़ी जगाकर उन्हें भेंट की।  वहां से आगे चलने पर हम उस स्थान पर रुके जहां पर टिहरी डाम में लगे पत्थरों को निकाला गया था।  वहां पर एक लोहे का पुल था और स्थान का नाम आसीना है।  कुछ तस्वीरें लेने के बाद पतरोळ जी ने नेगी जी के एक गाने पर सुरु भुला की एक विडियों क्लिप बनाई जो जिसे फेसबुक पर अभी तक लगभग छ हजार से भी ज्यादा लोग देख चुके हैं।  कुछ आगे चलने पर समधोळा का द्वी दिन समळौण्या रैगिन गीत पर मेरी भी विडियो क्लिप बनाई जिसे फेसबुक पर दो हजार से भी ज्यादा लोग देख चुके हैं।  पास ही एक आम का पेड़ था जिस पर पत्थर चलाकर मैंने चार आम झाड़ लिए थे।  लगभग छ बज चुके थे और हम नई टिहरी की ओर जा रहे थे।  लगभग आठ बजे हम पतरोळ जी के आस पर पहुंचे।

पतरोळ जी के आवास पर पहुंचकर हमनें भोजन व्यवस्था की।  पतरोळ जी ने कहा राजमा धुर्च कर बनाते हैं।  गरम गरम रोटी बनाने का मुझे सौभाग्य मिला।  तस्वीरों के माध्यम से पतरोळ जी के घर पर हमारी गतिविधियों को आप निहार रहे होगें।  भोजन के बाद विडियो रिकार्डिंग और तस्वीरों को पतरोळ जी ने कंप्यूटर पर डाला।  सुरु भुला सो चुके थे और हम इस कार्य में रात के चार बजे जगते हुए सो गए।

तोपाळ जी ने सुबह चाय बनाकर हमें पिलाई।  पतरोळ जी अपने उड्यारनुमा कमरे में सो रहे थे।  पतरोळ जी के ड्राईगं रुम से सतेश्वर मंदिर, टिहरी आवासीय परिसर और डाम की झील बहुत ही मनोहारी लग रही थी।  उसके बाद पतरोळ जी हमें साथ लेकर तोपाळ जी को छोड़ने भगीरथपुरम गए।  दिल्ली लौटने का हमारा कार्यक्रम था, बाद में हमनें तय किया रात की बस से दिल्ली जाएगें।  पतरोळ जी ने हमें बताया स्व. सेमवाळ स्मृति वन पिछले समय से रविवार के दिन सत्यमेव जयते टीम द्वारा साफ किया जा रहा है।  लोगों ने उसमें कूड़ा डाल दिया था और स्मृति वन देख भाल के आभाव में बुरे हाल में था।  देखो सभी छात्र उस काम में लगे हैं।  मैं आज वहां जा नहीं सका, इसलिए वहां चलते हैं।  पतरोळ जी हमें कार से वहां ले गए।  स्मृति वन के गेट पर ऊतर कर हमनें देखा, गेट के पास ही एक कूड़ादान रखा हुआ है।  नीचे उतरने पर हमनें देखा सभी छात्र उसकी सफाई में व्यस्त थे।  सुरु भुला ने स्मृति वन के बारे में सभी छात्रों का साक्षात्कार लिया।  उन्होंने बताया सभी लोग कूड़ा यहां डालते हैं लेकिन इस कार्य में हमारे साथ कोई सहयोग नहीं कर रहा है।  नगर पालिका की तरफ से भी कोई सहयोग नहीं मिल रहा है।  हम चाहते हैं हमारा नगर साफ सुथरा रहे।  हम इस स्मृति वन की सफाई करने के बाद यहां पर पेड़ लगाएगें।  पतरोळ जी से हमनें इसकी सफाई के बारे में बताया।  पतरोळ जी ने कहा दिखावे के लिए एक दिन यह काम नहीं करना।  हर रविवार को इसकी सफाई होगी और इसे हरा भरा बनाने तक लगातार काम चलता रहेगा।  पतरोळ जी को हमनें कहा हम नीचे सड़क पर जा रहे है और आप कार को नीचे ले आओ।  नीचे जाने के बाद हमनें उनकी बहुत इंतजार की लेकिन वे नहीं आए।  हमें लगा वे सभी छात्रों की भोजन पानी की व्यवस्था में व्यस्त हो गए हैं।  हम पतरोळ जी के आवास पर लौट गए।  कुछ देर बाद पतरोळ जी भी वापिस अपने घर पर आ गए।

भोजन की व्यवस्था की गई और हमनें भोजन किया। भोजन करने के बाद पतरोळ जी ने सुव्यवस्थित तरीके से मेरी गढ़वाळि कविताओं की रिकार्डिंग की अर उसके बाद हम आराम करने लगे।  लगभग छ बजे सांय हमारी नींद खुलि।  हाथ मुहं  धोकर हम तैयार हुए ।  पतरोळ जी ने कहा मैं तुम्हें चंबा तक छोड़ देता हूं।  पतरोळ जी ने हमें समूण के रुप में धनोल्टी के आलू दिए।  कार में बैठकर हम चंबा के लिए चल दिए।  नई टिहरी नगर, उसके बाद घने चीड़ का वन और बादशाही थौळ बहुत हीं रमणीक लग रहा था।  कार की खिड़की से मैंने देखा, चंद्रवदनी मंदिर की चोटी बहुत ही मनोहारी लग रही है।  चलते चलते मैंने दृश्य अपने कैमरे में कैद किया।  चंबा की तरफ जाते हुए दूर से चंबा और सुरकंडा की चोटी मनमोहक लग रही थी।  पतरोळ जी को मैंने रुकने के लिए कहा क्योंकि हमें चंबा की तस्वीरें लेनी थी।  पतरोळ जी ने गाड़ी रोकी और हमनें चंबा को अपने कैमरे में कैद किया।  चंबा पहुंचने पर एक जीप ऋषिकेश के लिए खड़ी थी।  हमें पतरोळ जी ने उसमें बिठाया।  बैठने से पहले सुरु भुला नें एक सेल्फी ली और पतरोळ जी से गले मिलकर हम जीप में बैठ गए।  भावुक छण था, पतरोळ जी भी भावकु थे।  दुनियां का मायाजाल है ये, अपनी मंजिल को हमें जाना था। पहाड़ पर आने की ऊमंग अनोखी होती है।  लौटने पर यादें मन में बस जाती है और ऊदासी सी छा जाती है। 

कुछ देर बाद जीप स्टार्ट हुई और हम ऋषिकेश के लिए चल दिए।  खाड़ी होते हुए हम आगराखाळ पहुंचे।  रास्ते मे झरने बह रहे थे और ठंडी हवा बह रही थी।  कुंजापुरी के पास हमें कोहरे ने घेर लिया।  ठंड लगने लगि थी और मैं सोच रहा था अब हमें ऋषिकेश से गर्मी और उमस का सामना करना ही होगा।  नरेन्द्र नगर को निहारते हुए हम अब ऋषिकेश के निकट पहुंचने वाले थे।  एक जगह आने वाले दो ट्रक रुके हुए थे और हमारी जीप आग बढ़ रही थी।  एक सांप सड़क पार नीचे की तरफ जा  रहा था जो हमारी जीप से कुचलते हुए बच गया।  जीप आगे निकल चुकी थी, मैंने पीछे देखा तो एक सांप सड़क के किनारे की तरफ जा रहा था।  उसक सिर तो नजर नहीं आया परंतु पीछे का हिस्सा लगभग सात हाथ का दिखा। 

लगभग आठ बजे सांय हम ऋषिकेश पहुंचे तो उमस बहुत हो रही थी।  ढालवाला पर जीप से ऊतर कर हम पैदल बस अडडे पहुंचे।  वहां पर कुछ देर में दिल्ली के लिए एक बस लगी और हमनें टिकट ली।  बस को दस बजे प्रस्थान करना था इसलिए सामनें एक होटल में हमने पेट पूजा की।  लगभग दस बजे बजे बस ने दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।  ड्राईवर साहब बस को धीरे अंदाज में चला रहे थे।  हम सोच रहे थे दिल्ली हम साढ़े तीन बजे के लगभग पहुंच जाएगें।  सफर पूरा हुआ और हम पौने पांच बजे दिल्ली बस अडडे पहुंचे।  बस से ऊतर कर हम मोरी गेट गए, जहां सुरु भुला ने अपनी स्कूटी पार्क की हुई थी। पार्किंग से स्कूटी में बैठकर हमनें अपने घर के लिए प्रस्थान किया और छ बजे हम संगमविहार अपने आवास पर पहुंचे।  चाय पीने के बाद मैंने स्नान किया और सुरु भुला ने अपने आवास बदरपुर के लिए प्रस्थान किया।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 6.7.2016
 

jagmohan singh jayara

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गुमखाळ की डांड्यौं तक....
12-2-16 बिटि 14-2-16
मनखि यीं दर्द भरी दिल्ली मा पिंजड़ा कू पंछी बण्युं रंदु। मैं जनु मनखि मौका खोज्दु छ कब जौं अपणा मुल्क प्यारा उत्तराखण्ड जथैं। श्री शोबन सिंह महर जिन मैकु बताई, जयाड़ा जी मेरी नौनि कू ब्यो् दिनांक 12.2.2016 कू कोटद्वार मा होण। आप सादर आमंत्रित छन अर आपकु कार्ड श्री सुनील नेगी जी मु दिन्युं छ। मैंन बोलि भैजि मैं जरुर औलु।

दिनांक 11.2.2016 कु मैंकु श्री सुनील नेगी जी कू फोन आई, आप 12 फरवरी कू श्री विनोद नौटियाळ जी का कार्यालय मा सुबेर 10 बजि तक पौंछि जैन। नौटियाळ जी दगड़ि भी मेरी बात ह्वै। कार्यक्रम का अनुसार मैं 12 फरवरी कू मैं नौटियाळ जी का कार्यालय मा पौंछ्यौं। कुछ देर बाद नौटियाळ जी कार्यालय मा ऐन अर मेरी ऊंका दगड़ि सेवा सौंळि ह्वै। नौटियाळ जी का कार्यालय मा बैठिक मैकु अपणापन कू अहसास होणु थौ। मैंन अपणा मन मा चिंतन करि कि या सौभाग्य की बात छ, मान्यवर नौटियाळ जी मेरा पहाड़ का चिरपरिचित उद्यमी छन। थोड़ा देर बाद मान्यवर सुनील नेगी जी भी पौंछिग्यन। नेगी जी अर नौटियाळ जी दगड़ि मेरु परिचय फेसबुक का माध्यम सी थौ। कवि सम्मेलन, सामाजिक अर सांस्कृतिक कार्यक्रम का दौरान मेरी समय समय फर ऊंसी मुलकात होंदि थै। आज मेरु सौभाग्य थौ कि मैं कोटद्वार द्वी दगड़यौं दगड़ि जाण लग्युं थौ।

12 बजि हम्न कोटद्वार जथैं प्रस्थांन करि। नौटियाळ जी अपणि गाड़ी चलौण लग्यां था। छ्वीं बात्त कू दौर शुरु ह्वै। नौटियाळ जिन नौकरी सी ल्हीनक उद्यमी तक कू वृत्तांत सुणाई। हम ऊलार मा था अर मंजिल की तरफ सड़क मार्ग सी गतिशील गाड़ी मा जाण लग्यां था। रस्ता मा हम एक जगा रुक्यौं अर रोठ्ठी पाणी खैन। वीं जगा का ओर पोर आम का डाळा, हरा भरा पुंगड़ा, फूल्यां लय्या का फूल मनमोहक लगण लग्यां था। कुछ देर बाद हम्न कोटद्वार की तरफ प्रस्थान करि। सड़क का धोरा प्रकृति का नजारा हम्तैं लुभौण लग्यां था। आज बंसत पंचमी कू दिन थौ। विनोदि स्वभाव का नौटियाळ जिन आई पंचमी मौ की....गीत सुणाई अर वेका अलावा पांरपरिक गीत भी। भौण सुरीली थै अर आनंद कू अहसास चल्दि गाड़ी मा होण लग्युं थौ। पता भी लगि कि नौटियाळ जी गीत भी गांदा छन भलि आवाज मा।

लगभग सात बजि रात हम कोटद्वार गणेश वेडिंग प्वााईंट फर पौंछ्यौं। हमारी शोबन भैजि अर गणमान्य मनख्यौं सी मुलकात ह्वै। जनार्दन बुड़ाकोटी जी, तन्नु पंत जी सी मुलकात ह्वै जू पुष्प हार की व्यवस्था का खातिर बजार जाण लग्यां था । सब्बि लोग व्यवस्था मा मा व्यस्त था। श्री सुभाष त्रेहान, श्री समीर रतूड़ी जी दिल्लीि बिटि देर सी ऐन किलैकि त्रेहान जी मुबंई बिटि औणा था अर समीर जी ऊं तैं ल्हीक ऐन। रात लगभग 10 बजि समीर जी विवाह स्थल फर पौंछ्यन। श्री कुलदीप धस्माणा, श्री योगबंर रावत जी, श्री राजेन्द्र सिंह राणा जी, दीनदयाल सुन्दरियाल " शैलज" जी, श्री रतन सिंह असवाळ जी, सुरेन्द्र सिंह भण्डारी जी सी मेरी विवाह समारोह का दौरान यादगार मुलकात ह्वै। मैकु ख्याल औणु थौ यूं सज्जनु दगड़ि मैं गढ़वाळि कविता लेखन का माध्याम सी परिचित छौं अर आज साक्षात मुलाकात भी ह्वैगि। छ्वीं बात कू दौर चलि, कुछ हैंसण खेलण कू भी।

बरात कू आगमन ह्वै हम सब्बि लोग बरातियौं का स्वागत का खातिर स्वागत द्वारा फर गयौं। सम्मानित बरातियौं कू पुष्प हार सी स्वागत ह्वै। एक बालिका दुगड़ि ल्हीक स्वागत द्वार फर खड़ि थै। रिब्बन काटण कू दौर थौ। सब्बि नौनि संवाद मा व्यवस्थ थै। कुछ देर बाद बरात टेंट फर पौंछि अर मंच फर फोटो लेण कू दौर शुरु ह्वै। विडियोग्राफर हर एंगल बिटि घराति अर बरातियौं कू छायांकन कन्न लग्यां था। कुछ देर बाद हम सब्बि दगड़यौंन भोजन करि अर विश्राम स्थल याने कमरा फर प्रस्थान करि। बांस की बणि हट्ट मनमोहक लगणि थै। मेरा मन मा विचार औणु थौ उत्तराखण्ड का बांजा पुंगणौं मा किलै न बांस रोपण करिक बांस उत्पादन करे जौ। उत्तराखण्ड भूकंपीय क्षेत्र छ येका कारण वख बांस का मकान बणैये जौन।

देर रात तक हम सब्बि बिज्यां रयौं, छ्वीं बात लगैन अर कुछ देर बाद सेग्यौं अर कुछ मनखि बिज्यां भी रैन। निंद कबरि आई पता हि नि लगि। सुबेर मा मेरी निंद बिजि वेका बाद सेणु असंभव ह्वैगि किलैकि मेरा प्रिय सुनील भैजि घुन्न लग्यां था। हम सब्बिि लोग नहेण धुयेण का बाद दुल्हन की विदाई मा शामिल होयों। नास्ता कन्न का बाद हम सिद्धबलि की तरफ गयौं अर वख हम्न पार्क मा बैठिक मूंगफळि खैन। कुछ देर वख बैठिक प्रकृति का नजारा देखिक वापिस ऐग्यौं। नौटियाळ जिन बताई आज ब्याख्ना हम गुमखाळ जौला।

लगभग 5 बजि 13 फरवरी कू हम्न गुमखाळ कू प्रस्थान करि। दुगडडा की तरफ जांदु सड़क्यौं का घूम हरा भरा जंगळ मनमोहक लगण लग्यां था। मैकु ख्याल आई अर मैंन नौटियाळ जी सी पूछि कि शहीद चंद्रशेखर आजाद जी भी दुगडडा ऐ था। नौटियाळ जिन बताई जै डाळा फर ऊन गोळी चलौण कू अभ्यास करि थौ ऊ डाळु आज भी मौजूद छ अर मेरु देख्युं छ अर वा जगा सड़क मार्ग सी कुछ दूर छ। दुगडडा का बाद टेढा मेढा घूम फर गाड़ी हिंचकोळा खाणि थै। हमारु ज्यु कुछ कबलाण भी लग्युं थौ। मैकु जग्वाळ थै कुलैयौं कू बण कब आलु किलैकि सन 2004 का लगभग मैंन पैलि बार गुमखाळ की ऊकाळ देखि थै। कुळैंयौं कू बण शुरु ह्वै अर हमारी गाड़ी भी बथौं बणिक गुमखाळ जथै भागण लगिं थै। यनु थौ लगणु जन गाड़ी गुमखाळ देखण कू हमसी भी ज्याादा ऊलार मा हो। जब हम गुमखाळ का न्यौड़ु पौछ्यौं त जख मू लैंसडाऊन की सड़क जांदि वख बिटि हम्तैं प्यारा गुमखाळ का दर्शन ह्वैन। ठंड भौत थै, बथौं कू फफराट होणु थौ अर बजार का पास धार मा नयार घाटी बिटि कुरेड़ु भाबर की तरफ भागण लग्युं थौ। बजार पार करिक हम साधना होटल पौंछ्यौं। गाड़ी बिटि सामान निकाळिक हम होटल मा पौंछ्यौं। होटल मालिक रावत जी दगड़ि नौटियाळ जी की सेवा सौंळि ह्वै जौं दगड़ि ऊंकू पूर्व परिचय थौ। चाबी ल्हीक हम्न अपणु कमरा खोलि कमरा भीतर भी भारी ठंड कू अहसास होणु थौ। कमरा का भैर बरामदा मा खड़ु ह्वैक हम्न तराई भाबर की तरफ अर गुमखाळ की डांड्यौं फर नजर दौड़ाई। ठंड का कारण हम भौत देर तक खड़ु नि रै सक्याैं अर कमरा का भीतर बैठिग्यौं। नौटियाळ जिन वेटर तैं चाय अर भोजन कू आदेश दिनि। हम्न तब चा पिनि अर थोड़ा देर बाद भोजन करि। भोजन कन्न का उपरांत हम सेण पड़िग्यौं । रात मा सेयां मा यनु अहसास होणु थौ कि बरखा होणी छ। मन मा ख्याल औणु थौ सैत बर्फबारी भी हो।

रात खुन्न वाळी थै मेरी निंद बिजि। नेगी जी घुन्न लग्यां था तब निंद औण कू सवाल हि नि थौ। रात खुन्न का बाद हम सब्बि खड़ु ऊठ्यौं अर हात मुक्क धोण का बाद हम्न चा पिनि। थोड़ी देर मा समीर जी कू फोन आई कि मैं गुमखाळ सी पैलि एक किलोमीटर की दूरी फर छौं। मैं तुरंत बजार की तरफ गयौं अर दूर बिटि समीर जी की गाड़ी देखिक मैंन ऊं तैं सनकाई यथैं अवा। समीर जी गाड़ी बिटि उतरयन अर वेका बाद हम्न काफी कू रस्वादन करि। कुछ देर बैठण का बाद हम भ्रमण का खातिर सड़क की तरफ चलिग्यौं । हम सड़क मार्ग फर गुमखाळ बिटि ऋषिकेश की तरफ वाळा छोड़ जथैं गयौं अर वख फुंड हम्न प्रकृति का सुंदर नजारा, नयार घाटी जथैं लग्युं कुयेड़ु देखि अर यादगार तस्वीर भी लिन्यन। वेका बाद हम गुमखाळ बजार अयौं अर वख चा समोसा कू आनंद लिनि। बजार मा कोदु, झंगोरु, दाळ, जख्याल, भांग का बीज की दुकान नजर आई। हम सब्यौंन जख्याा,दाळ कोदा कु आटटु खरीदी। मन मा खुशी होणि थै हमारा पहाड़ कू मनखि पहाड़ का उत्पाद बेचिक आजीविका चलौणु छ। कुछ देर बाद हम साधना होटल अयौं अर वेका बाद समीर जिन श्रीनगर गढ़वाळ कू प्रस्थान करि किलैकि ऊन श्री संदीप रावत जी का कविता संग्रह(लोक का बाना) विमोचन समारोह मा शामिल होण थौ।

कुछ देर होटल मा बैठण का बाद हम पैदल बजार जथै गयौं अर वख बिटि घुम्दुो घुम्दु लैंसडाऊन वाळी ज्व सड़क जांदि वख तक छायाकारी करदु, छ्वीं लगौंदु पौछ्यौं। घाम खूब ऐगे थौ चौतरफ डांडी भौत स्वााणि लगणि थै। सड़क मा एक पंडित जी सी मुलकात ह्वै, नौटियाळ जिन अपणा अंदाज मा ऊंदगड़ि छ्वीं लगैन। पंडित जी निमाणा अंदाज का लगणा था अर कखि बिटि ब्योा मा शामिल ह्वैक औण लग्यां था। अब हम वापिस बजार जथैं अयौं अर वेका बाद एक जगा फर पौंछ्यौं। वख मु एक बोडि बैठिं थै। एक भुला गाड़ी कू टैर बदन्न लग्युं थौ। नेगी जिन मैकु बोलि जयाड़ा जी एक कविता सुणावा। कविमन मा कविता पाठ कन्न कू ऊलार होंदु याने कवि चांदु अपणि कविता का माध्यम सी जन जन तक अपणु संदेश पौंछौं। नेगी जी की बात कू सम्मान करदु मैंन बोडि जी तैं अपणि कविता तीन पराणि अर बुढ़ड़ि सुणाई। बोडि अर सब्बि उपस्थित सज्जन कविता सुणिक भौत खुश ह्वैन। नेगी जिन मैकु बोलि जयाड़ा जी आपकी कविता जन सरोकारों सी जुड़ि छन ये वास्ता जन जन तक पौंछैक आप जनकवि बणि सक्दा छन। मैंन भी बोलि नेगी जी यू मेरु सौभाग्य‍ होलु।

अब हम होटल की तरफ गयौं। नौटियाळ जी कू भोजन कू आदेश दिन्युं थौ अर भोजन तैयार थौ। दाळ भात का दगड़ा राई की भूज्जिी भौत सवादि लगणि थै। याने हमारु भोजन होटल का अंदाज मा न बणै घरया अंदाज मा बण्युं थौ। भोजन का उपरांत कमरा फर पौंछिक हम्न अपणु सामान उठाई अर गाड़ी की तरफ चलिग्यौं। दिन की बारह बजिगे थै अर तब हम्न कोटद्वार की तरफ प्रस्थाअन करि। दिल्ली बिटि औन्दि। बग्तर हमारा मन मा ऊलार थौ पर वापसी मा हम थ्यागल्च सी होयां था। गुमखाळ की डांडी अर कुळैं की डाळी हम्तैं बाई बाई कन्न लगिं थै। हम मन मा सोचण लग्यां था गुमखाळ हम त्वैमु फिर बौडिक औला कबरयौं। दुगडडा पौंछिक हम्न धारा कू पाणी पिनि अर कोटद्वार की तरफ जाण लग्यौं। नेगी जी कुछ अळस्यां सी होयां था अर ऊं तैं निंद सी ऐगे थै। जब हम मेरठ का नजिक पौंछयौं त चर्चा ह्वै, जांदी बग्त कनु ऊलार थौ हमारा मन मा। मैंन बोलि पहाड़ अपणा मुल्क जांदि बग्त हमारा मन मा अथाह ऊलार रंदु। औंदि बग्त वा बात नि रंदि। लगभग 6 बजि हम नौटियाळ जी का आवास का नजिक शालीमार गार्डन पौंछ्यौं। हमारी आपस मा विदाई ह्वै, नेगी जी अर मैं ई रिक्शाि मा बैठिक दिल्ली जथै ऐग्यौं । मैंन दिल्ली बार्डर पौंछिक आनंद विहार की बस पकड़ि अर वख पौंछण का थोड़ा देर बाद 469 नंबर बस पकड़िक खानपुर कू प्रस्थांन करि।

अब मैकु अहसास होण लग्युं थौ कवि ‘जिज्ञासु’ अब तू पिंजणा फर ऐक पिंजणा कु पंछी बणिग्यैं ।
गुमखाळ की डांड्यौं की याद मन मा बसीं थै। हमारु पहाड़ सच मा स्वर्ग का समान छ। पहाड़ जवा घर कूड़ी कू श्रृंगार करा। वख रै नि सक्दा त साल मा तीन चार बार जरुर वख जवा। प्रकृति का हमारा खातिर गाड, गदना, जंगळ, पंछी, डाळा, बुटळा अर फूल बणैयां छन। परदेश मा अपणु रोजगार करा पर अपणा पहाड़ सी प्यार करा। गुमखाळ की डांड्यौंन मेरा मन तै सकून दिनि अपणु सौंदर्य दर्शन कराई। यात्रा वृतांत का माध्याम सी मैंन आपतैं भी काल्पनिक भ्रमण कराई। मेरा कविमन की आस छ आपतैं भलु अहसास होणु होलु।

-जगमोहन सिंह जयाड़ा ‘जिज्ञासू’
दिनांक 15.2.2016
दूरभाष: 0654972366

jagmohan singh jayara

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यायावरों के साथ: ऊफरैंखाळ, शशिखाळ, मौलेखाळ, चित्तौंड़खाळ, लखोरा घाटी


भुला सुरेन्द्र सिंह रावत, श्री गोबिन्द भारद्वाज और मैं बीस मई-2016 की रात को दिल्ली से ठीक बारह बजे अपनी गाड़ी से ऊफरैंखाळ भ्रमण की तरफ निकले। भारद्वाज जी गाड़ी चला रहे थे सुरु रावत और मैं सफर का आनंद ले रहे थे। लगभग एक बजे हम गढ़गंगा पहुंचे तो वहां बुद्व पूर्णिमा पर स्नान पर्व होने के कारण भारी भीड़ थी और लंबा जाम लगा हुआ था।

लगभग तीन घंटे हम जाम में फंसे रहे। कुछ समय बाद जब जाम खुला तो हमारी गाड़ी हवा से बात करते हुए रामनगर की ओर चल दी। एक जगह भारद्वाज जी को नींद आने लगी तो गाड़ी रोक कर उन्होंने आधा घंटा नींद ली। फिर सफर शुरु हुआ और हम लगभग नौ बजे सुबह 21 मई को रामनगर पहुंच गए।

रामनगर में हमनें कुछ समय विश्राम किया। वहां से श्रीमती कौशल पाण्डेय, लोक गायिका हमारे साथ गई। रामनगर से हमने गर्जिया माता की तरफ प्रस्थान किया। भारद्वाज जी ने गाना प्ले किया। गीत श्री जनार्दन नौटियाळ जी ने गाया था। गीत के बोल सुनकर मुझे अति आनंद का अहसास हुआ।

ऊंचि निसि डांड्यौं मा,
गैरि गैरि घाट्यौं मा,
ऐगे बसंत हपार.......श्री जनार्दन नौटियाळ जी द्वारा गया

कुछ समय बाद हम गर्जिया पहुंचे, वहां पर श्रद्वालुओं की बहुत भीड़ थी। हमने एक जगह आपनी गाड़ी पार्क की। पार्किंग वाला पचास रुपये मांग रहा था। सुरु भुला ने कहा, हम पहाड़ के लोग हैं और तू हमें पहाड़ पर ही लूट रहा है। मुझे भी दुख का अहसास हुआ। अभी तो शुरुवात है, एक दिन हमें अपने पहाड़ पर पराया होने का अहसास भी होगा। बाहरी लोग वहां पर दिन दिन कब्जा करते जा रहे है और हमारा पहाड़ हमारे लिए पराया होता जा रहा है। हमने नदी में स्नान का अानंद लिया। माता के दर्शन कर पाना मुमकिन नहीं हुआ, वहां पर अथाह भीड़ होने के कारण दर्शन कर पाना संभव नहीं था। कुछ देर बाद हमने मर्चुला की तरफ प्रस्थान किया।

जंगल का क्षेत्र शुरु हो चुका था। चेतावानी लिखी थी जंगली जानवरों से सतर्क रहें। रमणीक ईलाका मनोहारी लग रहा था। कुमाऊं क्षेत्र भ्रमण की मेरे मन में जिज्ञासा थी। एक नदी पर पुल पार करने के बाद मर्चुला बाजार आया, वहां पर रुक कर हमनें भोजन किया। पहाड़ी रास्ता शुरु हो चुका था और हमारी गाड़ी तरंग में पहाड़ चढ़ने को आतुर थी।
शशिखाळ, मौलेखाळ रमणीक जगह थी। वहां विकास की झलक दिख रही थी। विकास की झलक दिखनी ही थी, क्योंकि मुख्यमंत्री जी के सलाहकार श्री रंजीत सिंह रावत जी उस क्षेत्र से हैं। सड़क धार ही धार सराईंखेत की तरफ जा रही थी। कसपटिया में गाड़ी रोक कर हमनें एक पहाड़ की चाय की दुकान पर चाय का आनंद लिया। चूल्हें पर कितलि चढ़ी थी। हमनें वहां पर तस्वीरें ली और मुझे कितलि पर अपनी कविता याद आ रही थी।

कितलि....
ऊंचि धार मा,
बेशर्म बणि बैठिं छैं,
दुकानदार का चुल्ला ऐंच,
पिलौणि छैं अपणु,
यौवन रुपी रस.........कवि जिज्ञासू की कल्पना

कुछ समय रुकने के बाद हमनें सराईंखेत की तरफ प्रस्थान किया। चित्तौंड़खाळ, लखोरा घाटी मनमोहक लग रही थी। चित्तौंड़खाळ के बाद एक जगह रुक कर श्री भारद्वाज जी ने एक नींद की झपकी ली। हम बेबस थे क्योंकि हमें गाड़ी चलाना नहीं आता। सुरु भुला को मैंने कहा भुला तू जरुर गाड़ी सीख ले। भविष्य में सफर की साथी को कौन चलाएगा। आधा घंटा रुकने के बाद हमने आगे के लिए प्रस्थान किया। एक दिन पहले सराईंखेत से तीन किलोमीटर पहले सुरु भुला के जेठू जी की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। वहां पर हमनें गाड़ी रोकी और सुरु भुला ने नीचे जाकर गाड़ी का निरीक्षण किया। गाड़ी पूर्ण रुप से क्षतिग्रस्त हो रखी थी। सौभाग्य सभी लाेग बच गए। उस स्थान पर ये पांचवीं घटना थी। न जाने वहां पर ऐसा क्या प्रभाव है जो गाड़ी दुर्घटना ग्रस्त हो जाती हैं।

आगे प्रस्थान करने के बाद हमें दूर से सराईंखेत का क्षेत्र दिखा। सांय के लगभग चार बज रहे थे। सराईंखेत पर एक रोडवेज की गाड़ी खड़ी थी। लंबे चौड़े खेतों के बीच एक गाड बह रही थी। सुरु भुला का पैत्रिक मकान बाजार से ऊपर था। कुछ समय रुकने के बाद हमनें ऊफरैंखाळ के लिए प्रस्थान किया। सड़क कच्ची थी और बांज के जंगल के बीच से गुजर रही थी। ऊंचे स्थान से सफर करना पहाड़ में बहुत अच्छा लगता है, अहसास भी हो रहा था। कुमाऊं गढ़वाळ की सीमा का क्षेत्र जो ठहरा। ऊफरैंखाळ पहुंचने पर कुछ सज्जनों ने हमारा स्वागत किया । श्री जनार्दन नौटियाळ जी से मेरी पहली मुलकात हुई। बाद में हम मुख्य बाजार से आगे चल दिए। क्षेत्र के प्रसिद्व पर्यावरणविद श्री सच्चिदानन्द भारती जी का घर पास ही था। वहां पर हमने रुककर चाय पी और जंगल से काफळ लाती हुई कुछ महिलाओं के दिए काफलों का रस्वादन किया। सुरु रावत जी के जेठू जी मकान बंद था। सुरु भुला ने ताला तोड़कर हमारी रात्रि विश्राम की व्यवस्था की।
कुछ समय बाद बादल गिड़गिड़ाने लगे। हवा बहुत तेज से चल रही थी। तेज बरखा हो शुरु हुई और हमें ठंड लगने लगि। दर्द भरी दिल्ली के गर्म मौसम से दूर हमारे तन बदन को सकून मिल रहा था। सफर की थकी हमारी गाड़ी पहाड़ पर बरखा में स्नान करने लगी। बरखा रुकने के बाद हम मुख्य बजार में गए और वहां हमने रात्रि भोजन किया और वापिस लौटकर थके हारे हम बेसुद्ध सो गए।

वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली जी के गांव मासौं का भ्रमण
22 मई, 2016 सुबह जब हम उठे तो मौसम बहुत सुहावना था। ऊफरैंखाळ में मंद मंद हवा बह रही थी। सुरु भुला ने कहा चलाे गढवाली जी के गांव मासौं का भ्रमण करके आते हैं। उस दिन ऊफरैंखाळ इंटर कालेज का स्वर्ण जयंती समारोह भी था। हमें कार्यक्रम में शामिल होने के लिए एक बजे तक लौटना था। हम जल्दी तैयार हुए और भरणौ होते हुए एक घंटे में जगतपुरी पहुंचे। वहां पर मासौं गांव की एक माता जी से मुलकात हुई। माता जी ने पूछा मुझे मासौं जाना है। हमने कहा माता जी चलो हमारे साथ। माता जी कहने लगी मेरे बुढ्या सामने चक्की पर गए हैं, उन्हें भी साथ लेना है। थोड़ी देर में बोडा जी आए और गाड़ी में बैठ गए। बोडि जी कड़वे तेल के पीपे का विशेष ध्यान रख रही थी। मैंने कहा बाेडि चिंता मत करो, तेल गिरेगा नहीं। हमनें बोडा बोडि जी से संवाद किया। बोडि जी ने अपना नाम पार्वती और बोडा जी ने पदम सिह बताया। बता रहे थे जब हमारी शादी हुई तो बोडा जी की उम्र ग्यारह साल और मेरी उम्र नौ साल थी। हमारे पांच लड़के आैर पांच लड़कियां हैं। तेरह हमारे नाती पाते हैं।

जिज्ञासा वश हमनें उनसे वीर चन्द्र सिंह गढवाळि जी के बारे में पूछा। उन्होंने बताया बेटा उनके पुरातन मकान का नामो निशान नहीं है। उनके लड़के कोटद्वार बस गए है। उन्होंने बताया गढवाली जी लंबे चौडें थे और रंग में सांवले। इससे ज्यादा जानकारी उनसे प्राप्त नहीं हुई। बोडा बोडी मासौं बाजार आने पर ऊतर गए। हमने बाजार से चन्द्र सिंह गढ़वाली जी का गांव देखा। पुरातन मकान की जगह एक सगोड़ी सी नजर आ रही थी। हमें ताज्जुब हुआ, ऐसे महान व्यक्ति के पुरातन घर के अवशेष तक मौजूद नहीं हैं। वहां पर स्मृति के रुप में कुछ तो होना ही चाहिए था। गढवाली जी के सुपुत्र श्री आनंद सिंह और कुशाल सिंह भी स्वर्गवासी हो चुके हैं। पहाड़ के गांधी स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी के गांव जैसा हाल भी यहां का था। नाम बड़ा पर विकास की झलक नहीं।
मासौं बजार में रुकने के बाद हम पीठसैण के लिए चल दिए। सड़क उबड़ खाबड़ थी। दूर कहीं ऊंची जगह पर एक हस्पताल बना हुआ था। लगता नहीं यहां कोई ईलाज की व्यवस्था होगी। चढ़ाई का मार्ग था गाड़ी किसी प्रकार हमारे प्रिय भारद्वाज जी चला रहे थे। कुछ समय चलने के बाद हम मैखुरी नामक जगह पर रुके। एक सज्जन वहां पर हमें मिले। हमनें जंगल की ओर निहारा जो मनमोहक लग रहे थे। कुछ तस्वीरें लेने के बाद हमनें पीठसैण के लिए प्रस्थान किया। आस पास को क्षेत्र सौंदर्य पूर्ण था। कुछ पुरातन मकान बंजर से दिख रहे थे जिन्हें खर्क कहते हैं। वर्तमान में वहां गोरु बाखरौं की झलक नजर नहीं आ रही थी। एक जगह हाट मिक्स प्लांट चल रहा था। सारे लोग परदेशी से लग रहे थे। बेचारे हमारे उत्तराखंड की सड़कों के निर्माण में व्यस्त। पीठसैंण पहुंचने पर एक विशाल मैदान नजर आया। वहां पर कृषि विभाग के एक अधिकारी की जीप नजर आई, जो बिंसर भ्रमण पर गए थे।

जिंदगी में पहला मौका था जब गढ़वाली जी की मूर्ति देखने का मौका मिला। उनकी जीवनी मैं पढ़ चुका था। जीवन के अंतिम दिन उनके ऐसे ही बीते। खास मान सम्मान उनको नहीं दिया गया। वर्तमान में उनके नाम पर योजनाएं भी चल रहीं हैं। मूर्ति के पास जाकर हमनें उनको नमन किया। पेशावर कांड के उनके साठ साथियों के नाम वहां पर अंकित हैा।
हमें कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जल्दि लौटना था। उतराई का सड़क मार्ग था। थोड़ी देर बाद हम मासौं बाजार पंहुचे तो रुकने पर एक सज्जन ने बताया आपकी गाड़ी पेंचर हो गई है। जल्दी से हमनें गाड़ी का टायर बदला और ऊफरैंखाळ के लिए प्रस्थान किया। लगभग बारह बजें हम ऊफरैंखाळ पहुंच गए।
कालेज का स्वर्ण जयंती समारोह शुरु हो चुका था। अपार जन समूह दिख रहा था। ऊंचा स्थान होने की वजह से हवा खूब चल रही थी। स्कूल के वर्तमान और पुराने छात्र मौजूद थे। सेवानिवृत्त अध्यापकों को कार्यक्रम में बुलाया गया था और उनका मान सम्मान किया जा रहा था। सरस्वती वंदना शुरु हुई और सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरु हुए। श्री जनार्दन नौटियाल जी ने "ऊंचि नीसि डांड्यौं मा" गीत गाकर दर्शकों का मन मोह लिया। गजेंद्र सिंह राणा जी ने अपने चिरपरिचत अंदाज में गीत गाए। मुझे भी कविता पाठ का मौका मिला, मैंने अपनी कविता बुढ़ड़ि और तीन पराणि का काव्य पाठ किया। सांय के सात बज चुके थे कार्यक्रम समाप्ति की ओर था। उसके बाद हम एक सज्ज्न के घर गए जिनका ना श्री मोहन सिह रावत था। उनके घर पर भोजन करने के उपरांत हम अपने कमरे में चले गए।

ऊफरैंखाळ में कश्मीरी लाला के नाम की चर्चा हो रही थी। मैंने सोचा कश्मीर को होगा। मेरा यात्रा वृतांत पढ़कर श्री रवीन्द्र रावत जी ने जानकारी दी वो बहुत समय तक कश्मीर में रहा इसलिए उनको कश्मीरी लाला कहते हैं। ऊफरैंखाळ में पवन उर्जा सयंत्र लगा है पर काम नहीं करता। उसकी पंखुड़ियां गायब हैं। दुबारा उसे चालू करने का प्रयास नहीं किया गया। पास ही मैंने देखा गधेरे में पानी की तल्लैया बनाई गयी हैं, जिनमें वर्षा जल संग्रहित था। श्री सच्चिदानंद भारती जी के प्रयास से इन्हें बनाया गया होगा। पास के जंगलों में आग से जले बांज के वृक्षों को देखकर बहुत ही दुख हो रहा था। मन में सवाल उठ रहे थे ऐसा क्यों करते हैं लोग। ऊफरैंखाळ से कुमाऊं और गढ़वाळ की खूबसूरत पहाड़ियां नजर आती हैं।

सुरु भुला को दिल्ली अपने जेठू जी को देखने लौटना था। जबकि हमारा कार्यक्रम गरुड़ तक अपने पड़ोसी श्री प्रताप सिंह नेगी, फलांटी गांव की पुत्री के शादी समारोह में शामिल होने का था। मन मसोस कर मुझे भी लौटना पड़ा। 23 मई.2016 सुबह आठ बजे हमने बैजरौं की तरफ प्रस्थान किया। मेळधार में रुककर हमनें कुछ तस्वीरें ली। नीचे की तरफ भगवती तलैया मंदिर दिख रहा था। घाटी बहुत ही रोमाचंकारी लग रही थी। कुछ समय रुकने के बाद हम चौखाळ होते हुए कनेरा जहां पर श्री उपेन्द्र पोखरियाळ जी का प्रयास संगठन के माध्यम से बनाया सामुदायिक भवन है वहां पहुंचे। उससे आगे हम स्यूंसी बजार गए और वहां पर चाय पी। कुछ देर रुकने के बाद बैजरौं आकर हमने भोजन किया। श्री जनार्दन नौटियाळ जी को बीरोंखाळ अपने गांव जाना था। श्री नौटियाळ जी वहां से अपने गांव के लिए बस में बैठ गए। भोजन करने के बाद हम सतपुलि की तरफ चल दिए। जाने का विचार तो हमारा नैनी डांडा होते हुए दुगडडा जाने का था पर श्री भारद्वाज जी को सतपुलि के पास मलेठी गांव जाना था।

मार्ग में हमें फरसाड़ी, खळधार, वेदीखाळ, घण्याखाळ बाजार दिखाई दिए। पोखड़ा से पहले हमनें रुककर पोखड़ा की कुछ तस्वीरें ली और आगे चल दिए। जिनौरा गांव के पास गुजरते हुए सुरु रावत ने बताया वो बिमल कंडारी जी का घर है। हमनें उनके घर की तस्वीरें ली और स्वर्गवासी कंडारी जी को यादि किया जो एक साहित्यकार थे। कुछ समय बाद हम रीठाखाळ पहुंचे। रीठाखाळ के बाद सुरु रावते ने एक पहाड़ी ओर इशारा किया । बताया ये पहाड़ गणेश जी जैसा दिखता है। कोई इसे शिवलिंग भी बताते हैं। वहां पर नयार नदी का मोड़ हैं और पहाड़ की धार नदी को छूती है। जो दिखने में हाथी की सूंड की तरह लगती है। तस्वीरें लेने के बाद हमने आगे प्रस्थान किया। कुछ समय चलने के बाद सतपुलि से पहले हम मलेठी गांव में रुके और वहां पर भोजन किया। हल्की बरसात की बूंदे गिर रही थी। पूर्वी और पश्चिम नयार की घाटी और बांघाट का क्षेत्र नजर आ रहा था। मौसम भी सुहावना हो गया था। कुछ समय बाद हमनें कोटद्वार की तरफ प्रस्थान किया।  गुमखाळ की ऊकाळ, भैरों लंगूरगढ़, बांज, चीड़ के पेड़ हमारा अभिवादन कर रहे थे।  पहाड़ से दूर दर्द भरी दिल्ली जाने का मन नहीं कर रहा था।  बेबसी थी नौकरी, जिसे पापी पेट के खातिर उसकी जकड़न में जाना ही होता है।  उत्तराखण्ड जब बना, सोचा था अब पहाड़ लौटूगां।   लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मेरे प्यारे पहाड़ के गांव जहां हमारा मन बसता है, राज्य बनने के बाद वीरान हो गए।  बहुत दु:ख होता है, पहाड़ पर यदि रोजगार, स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध होती तो हर पर्वतजन प्रवास से पहाड़ अवश्य लौटना चाहता। 

जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
23/05/2016
दूरभाष: 9654972366
हरिभूमि पर प्रकाशित
https://www.haribhoomi.com/lifestyle/delhi-to-ufrankhal-excursion

 

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