Author Topic: उत्तराखंड पर लिखी गयी विभन्न किताबे - VARIOUS BOOKS WRITTEN ON UTTARAKHAND !  (Read 130118 times)

suchira

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Saraswati : The River that Disappeared
K.S. Valdiya.
Hyderabad, Universities Press, 2002, 116 p., $11.
ISBN 81-7371-403-7.

Contents: Preface. 1. The land without rivers. 2. Physiographic layout and geological setting of the Saraswati-Sindhu land. 3. Tracing the course of the river Saraswati. 4. Peoples of the land of the Saraswati. 5. Disappearance of the Saraswati, submergence of Dwarka. 6. Aftermath of Saraswati’s tragedy. 7. River Saraswati and Harappan civilization in ancient literature. Glossary. References. Index.

"This book is about the river Saraswati that vanished more than 2000 years ago. Written in simple language shorn of technical jargon, it explores the existence of a mighty, snow-fed river, traces its course from the foothills of the Himalayas to the shores of the Arabian Sea. It also outlines the history of human settlements along this river from the beginning of the stone age through the glorious period of the Harappan Civilization, to the commencement of the historical times.

"The author examines this scenario within the framework of geological parameters and evaluates inferences rigorously on the anvil of geodynamics. The book finally highlights the geological events that overtook the land leading to the disappearance of the river that was once the lifeline of the people that inhabited its floodplain. The text is lavishly illustrated in both color black and white."

This book is available from:
Vedams eBooks (P) Ltd.
Vardhaman Charve Plaza IV,
Building # 9, K.P Block, Pitampura,
New Delhi 110 034, India
Fax: 91-11-27310613
e-mail: vedams@vedamsbooks.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Studies on Kumaun Himalaya -   

The area and population of Uttarakhand is about 17.4 percent and 4.3 percent of the area and population of the total state respectively

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Of Myths and Movements: Rewriting Chipko Into Himalayan History

 by Haripriya Rangan

suchira

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Namaskar Suchira ji,

Can you please append following information in thread.

The book History of Uttaranchal,you can also get a preview reading from books.google.com in below url

http://books.google.com/books?id=7_Ct9gzvkDQC&pg=PA208&lpg=PA208&dq=history+of+haldwani&source=web&ots=fWmxoy5FkV&sig=meQiVbdyPyQ3tw4qxNcMWCypJ_M&hl=en#PPP1,M1

OR

go to books.google.com and search for History of Uttaranchal.

Regards,

Girish

पंकज सिंह महर

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श्री आनन्द बल्लभ उप्रेती जी ने एक किताब लिखी है, शीर्षक थोडा अटपटा है, लेकिन किताब यथार्थ से परिपूर्ण है:
           "उत्तराखण्ड आन्दोलन में गधों की भूमिका और उनका भविष्य"
उत्तराखण्ड आन्दोलन का यह सच्चा और जीवन्त दस्तावेज है,इस इतिहास को लेखक ने अपनी पीडा और निराशा के आवेग में आद्मोपान्त बांच दिया है, अपनी सच्चाई और आद्मोपान्तता के कारण यह ऎसी पुस्तक बन गयी है, जिसे हर उत्तराखण्डी को अपने सिरहाने पर रखना चाहिये और उसे पढकर अपने आपको अपने ही आइने में देखना चाहिये.
कुछ बानगी " बहुत कुछ दे गया है यग राज्य बहुतो को, जिन्हें कुछ नही मिलना चाहिये था! छीन लिया है गया है उन बहुतों का, वह सब कुछ, जिसके लिये वे घर द्वार छोडकर सड़कों पर उतर आये थे"     "रड़ना और बहना ही इस उत्तराखण्ड की तकदीर में लिखा है"
इस किताब में "गधा" आम आदमी को कहा गया है, वास्तव में लेखक की जो पीडा है वही शायद हम सब की भी है....................

प्रकाशक : पिघलता हिमालय प्रकाशन, शक्ति प्रेस, कालाढूंगी रोड, हल्द्वानी, नैनीताल.
मूल्य - 150.00

shailesh

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उत्तराखंड के दर्द समेटे है गांव- गांव मेंपहाड़ी गांवो वाला राज्य। ऐसा राज्य जो जल, जंगल, जमीन, जड़ी-बूटी, समृद्ध सांस्कृति जैसी तमाम विशेषताओं के बावजूद विकास से कोसों दूर है। हाशिए पर, सौतेले बच्चे की तरह उपेक्षित। लंबी लड़ाई के बाद हासिल इस राज्य के हालात में बदलाव कहीं कुछ नहीं। राज्य के इन्हीं हालातों की पड़ताल करती है प्रभात कुमार उप्रेती की पुस्तक गांव- गांव में। प्रभात जी ने कुछ सामाजिक कार्य करने के उद्देश्य से आइए अपने से शुरु करें अभियान चलाया। इसके लिए उन्होंने उत्तराखंड के विभिन्न गांवों का भ्रमण किया। वे जिन-जिन गांवों में घूमे और वहां की समस्याओं के लिए जो प्रयास किए तथा इनको करते हुए जो अनुभव हुए उसी को उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा। इस पुस्तक में शामिल गांव और पात्रों के माध्यम से पता चलता है कि सभी गांवो की समस्याएं एक जैसी ही हैं। इस पुस्तक में उन पात्रों को शामिल किया गया है जो इतिहास में कभी शामिल नहीं होते या उनपर कभी चर्चा नहीं होती लेकिन उन्ही के दम पर यह दुनियां चलती है और टिकी है। यह पुस्तक सफाई अभियान के दौरान लोगों की मनोस्थिती को दर्शाती हैं, जहां सफाई करने के लिए आगे बढ़े लोगों घृणित टिप्पणियां सुननी पड़ती हैं, तो यह पुस्तक महिला अस्पताल की नारकीय यात्रा भी कराती है। ऐसा सरकारी अस्पताल जो ग्रामीण, गरीब महिलाओं का एकमात्र आसरा है और यहां दूर-दूर तक गंदगी का साम्राज्य है। साथ ही पुस्तक में पॉलीथिन अभियान पर अल्मोड़े का एक मुस्लिम कवि भी यह कहता मिलता है कि हमारी लड़कियों ने कागज की थैलियां बनाकर ग्रेजुएशन किया। पॉलीथिन हटने से दसों को रोजगार मिलता है। आपका अभियान इंसान को मशीन बनने देने का है, इसे समझिए और हमारी दुआएं आपके साथ हमेशा रहेंगी। टिहरी रियासत के अत्याचार की खिलाफत करते हुए शहीद होने वाले श्रीदेव सुमन को बिसराए हुए लोग और सरकारी जीओ पर सुमन दिवस मनाने की विडंबना का प्रसंग मन में अजीब सी आह भर देता है। पुस्तक में लेखक अपने पात्रों के माध्यम से आम लोगों के प्रति अपने प्रेम को, पीड़ा को जैसा महसूस किया उसे व्यक्त करने में प्रभावी रहे। इससे यह भी समझने में मदद मिलती हैं कि गड़बड़ी कहां है। यदि कोई आगे भी इस क्षेत्र में काम करना चाहे तो उसे इस पुस्तक के माध्यम से सामाजिक मनोविज्ञान समझने में मदद मिलेगी। गांव-गांव पुस्तक में ज्यादातर पिथौरागढ़ के आस-पास के गांव को शामिल किया गया है। हालांकि अल्मोड़ा और नैनीताल का भी वर्णन इसमें मिलता हैं। पुस्तक में गांव की ओर, पैदल होने का मतलब, बरसाती पानी पीकर जीते हैं लोग, भूतों का गांव: माफियाओं के लिए रिजर्व हो गया पहाड़, विषखोली: विचारों का प्रवाह: एनजीओ के बहाने जैसे अध्यायों में गांव और लोगों की जिंदगी की बदतर स्थिती को और उसको सही करने के बहाने पैसा बनाने वालों का सटीक चित्रण किया गया है। वहीं पत्यूड़ी जैसे वीआइपी गांव की बदहाली, लेलु गांव के बहाने महिलाओं की दर्दनाक स्थिति को बयां करती यह किताब पाठक को भी इस ओर सोचने को भी मजबूर करती है। प्रभात जी के अनुभवों में जो उन्होंने इस पुस्तक में बांटे हैं, में राज्य में मौजूद भेड़चाल और विरोधाभास स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं। यह पुस्तक बताती है कि एक तरफ तो जहां ग्रहों की सैर है तो दूसरी तरफ गांव में सड़क नहीं, बिजली नहीं, शिक्षा नहीं हैं। राज्य के गांवों को माफियाओं, मल्टीनेशलन को बेचने की साजिश खुल्ला खेल फरूक्खाबादी है। विज्ञान उन लोगों के लिए ही है जिनके पास किसी भी तरह की सत्ता है। पानी का अभाव, बदलता मौसम, बेरोजगारी इस युग के मूल्य है। आने वाली पीढ़ी इस चकाचौंध को समझ नहीं पा रही है, क्योंकि उन्हें इस अंधी दौड़ में दौड़ने के लिए बचपन से ही प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस सब पर कलम चलाना और इन स्थितियों से लड़ने के लिए कोई भी अभियान चलाना आज के युग में आसान नहीं है। लेखक के शब्दों में मैंने अपने आंगन में यहां -वहां कुछ फूल उगाएं हैं/ शायद उनकी भाषा हवाओं तक पहुंचे/ और हवाएं शायद दिशाओं तक/ उसने सोने चांदी के पहाड़ पर बारूद के पेड़ लगाए है/ जिनकी विषाक्त सांसों से झुलस गई हैं हवाए/ ऐंठ गई है वनस्पियां/ टूट गए हैं चिडि़यों के पंख../ मैं इस भयावह हकीकत के बीच फूल उगा रहा हूं..।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के दर्द समेटे है गांव- गांव मेंपहाड़ी गांवो वाला राज्य। ऐसा राज्य जो जल, जंगल, जमीन, जड़ी-बूटी, समृद्ध सांस्कृति जैसी तमाम विशेषताओं के बावजूद विकास से कोसों दूर है। हाशिए पर, सौतेले बच्चे की तरह उपेक्षित। लंबी लड़ाई के बाद हासिल इस राज्य के हालात में बदलाव कहीं कुछ नहीं। राज्य के इन्हीं हालातों की पड़ताल करती है प्रभात कुमार उप्रेती की पुस्तक गांव- गांव में। प्रभात जी ने कुछ सामाजिक कार्य करने के उद्देश्य से आइए अपने से शुरु करें अभियान चलाया। इसके लिए उन्होंने उत्तराखंड के विभिन्न गांवों का भ्रमण किया। वे जिन-जिन गांवों में घूमे और वहां की समस्याओं के लिए जो प्रयास किए तथा इनको करते हुए जो अनुभव हुए उसी को उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा। इस पुस्तक में शामिल गांव और पात्रों के माध्यम से पता चलता है कि सभी गांवो की समस्याएं एक जैसी ही हैं। इस पुस्तक में उन पात्रों को शामिल किया गया है जो इतिहास में कभी शामिल नहीं होते या उनपर कभी चर्चा नहीं होती लेकिन उन्ही के दम पर यह दुनियां चलती है और टिकी है। यह पुस्तक सफाई अभियान के दौरान लोगों की मनोस्थिती को दर्शाती हैं, जहां सफाई करने के लिए आगे बढ़े लोगों घृणित टिप्पणियां सुननी पड़ती हैं, तो यह पुस्तक महिला अस्पताल की नारकीय यात्रा भी कराती है। ऐसा सरकारी अस्पताल जो ग्रामीण, गरीब महिलाओं का एकमात्र आसरा है और यहां दूर-दूर तक गंदगी का साम्राज्य है। साथ ही पुस्तक में पॉलीथिन अभियान पर अल्मोड़े का एक मुस्लिम कवि भी यह कहता मिलता है कि हमारी लड़कियों ने कागज की थैलियां बनाकर ग्रेजुएशन किया। पॉलीथिन हटने से दसों को रोजगार मिलता है। आपका अभियान इंसान को मशीन बनने देने का है, इसे समझिए और हमारी दुआएं आपके साथ हमेशा रहेंगी। टिहरी रियासत के अत्याचार की खिलाफत करते हुए शहीद होने वाले श्रीदेव सुमन को बिसराए हुए लोग और सरकारी जीओ पर सुमन दिवस मनाने की विडंबना का प्रसंग मन में अजीब सी आह भर देता है। पुस्तक में लेखक अपने पात्रों के माध्यम से आम लोगों के प्रति अपने प्रेम को, पीड़ा को जैसा महसूस किया उसे व्यक्त करने में प्रभावी रहे। इससे यह भी समझने में मदद मिलती हैं कि गड़बड़ी कहां है। यदि कोई आगे भी इस क्षेत्र में काम करना चाहे तो उसे इस पुस्तक के माध्यम से सामाजिक मनोविज्ञान समझने में मदद मिलेगी। गांव-गांव पुस्तक में ज्यादातर पिथौरागढ़ के आस-पास के गांव को शामिल किया गया है। हालांकि अल्मोड़ा और नैनीताल का भी वर्णन इसमें मिलता हैं। पुस्तक में गांव की ओर, पैदल होने का मतलब, बरसाती पानी पीकर जीते हैं लोग, भूतों का गांव: माफियाओं के लिए रिजर्व हो गया पहाड़, विषखोली: विचारों का प्रवाह: एनजीओ के बहाने जैसे अध्यायों में गांव और लोगों की जिंदगी की बदतर स्थिती को और उसको सही करने के बहाने पैसा बनाने वालों का सटीक चित्रण किया गया है। वहीं पत्यूड़ी जैसे वीआइपी गांव की बदहाली, लेलु गांव के बहाने महिलाओं की दर्दनाक स्थिति को बयां करती यह किताब पाठक को भी इस ओर सोचने को भी मजबूर करती है। प्रभात जी के अनुभवों में जो उन्होंने इस पुस्तक में बांटे हैं, में राज्य में मौजूद भेड़चाल और विरोधाभास स्पष्ट रूप से दिखायी देते हैं। यह पुस्तक बताती है कि एक तरफ तो जहां ग्रहों की सैर है तो दूसरी तरफ गांव में सड़क नहीं, बिजली नहीं, शिक्षा नहीं हैं। राज्य के गांवों को माफियाओं, मल्टीनेशलन को बेचने की साजिश खुल्ला खेल फरूक्खाबादी है। विज्ञान उन लोगों के लिए ही है जिनके पास किसी भी तरह की सत्ता है। पानी का अभाव, बदलता मौसम, बेरोजगारी इस युग के मूल्य है। आने वाली पीढ़ी इस चकाचौंध को समझ नहीं पा रही है, क्योंकि उन्हें इस अंधी दौड़ में दौड़ने के लिए बचपन से ही प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस सब पर कलम चलाना और इन स्थितियों से लड़ने के लिए कोई भी अभियान चलाना आज के युग में आसान नहीं है। लेखक के शब्दों में मैंने अपने आंगन में यहां -वहां कुछ फूल उगाएं हैं/ शायद उनकी भाषा हवाओं तक पहुंचे/ और हवाएं शायद दिशाओं तक/ उसने सोने चांदी के पहाड़ पर बारूद के पेड़ लगाए है/ जिनकी विषाक्त सांसों से झुलस गई हैं हवाए/ ऐंठ गई है वनस्पियां/ टूट गए हैं चिडि़यों के पंख../ मैं इस भयावह हकीकत के बीच फूल उगा रहा हूं..।

Shailesh Ji,

You have really given a very good information about this book. (1 karama to you - (point)  ) for this.   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  Traveller's Guide to Uttarakhand by K. S. Fonia INDIA




हेम पन्त

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Outlook Traveller - Uttarakhand
« Reply #88 on: January 28, 2008, 03:53:23 PM »
Uttarakhand (Outlook Traveller Getaways) 

"Discover the Himalayan state of Uttarakhand in the pages of this book, which provides comprehensive holiday planning information on popular destinations such as Mussoorie, Nainital, Rishikesh & Haridwar. Also unveils hidden gems such as Pokhri, Kodiya, Sonapani and Darma Valley. Everything you need to know for a pulsating yet peaceful holiday. Be it about places to stay. eat, shop or even where to find the wildlife safari or river rafting camp, is provided in each destination.

The Garhwal, Kumaon and Pilgrimages sections are signposted with route and tourist guides, highlighting road routes and tourist attractions in the bigger destinations. The Wildlife section has tourist guides of each sanctuary. The Adventure section has trekking guides for each trek.

The special section presents some of the best wellness getaways in the state & delightful reads on the cultural and culinary heritage of Uttarakhand. It also features essays that offer insights into the Uttarakhand ethos.

A comprehensive back-of-the-book section has 32 pages of accommodation listings, 10 pages of travel agents listings, important numbers for transport planning and contact numbers for Uttarakhand’s GMVN and KMVN tourism offices."
 
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http://shopping.indiatimes.com/ism/faces/tiles/product.jsp?productID=1453914&catalogueID=20375432&categoryID=&parentCategoryID=&bid=&prc=75-236&sid=&q=uttarakhand&k1=&k2=&k3=&k4=&k5=&k6=&k7=&k8=&k9=&k10=&k11=&k12=

हेम पन्त

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आजकल एक किताब पढ रहा हूँ.. श्री राम सिंह जी द्वारा लिखित "सोर (मध्य हिमालय) का इतिहास".  बहुत ही ज्ञानवर्धक किताब है... विशेषकर पिथौरागढ के इतिहास से संबन्धित जानकारी के लिये यह बहुत अच्छी किताब है. राम सिंह जी ने एटकिंसन व अन्य इतिहासकारों के द्वारा इस क्षेत्र के बारे में लिखी गयी कई बातों को गलत सिद्ध किया है. इस किताब से यह भी जानकारी मिलती है कि उत्तराखण्ड में मानव सभ्यता का इतिहास 'हडप्पा' के समकालीन है..
इस किताब से संबन्धित अन्य जानकारियां आपको पहुंचाने की कोशिश करता रहूंगा...

 

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