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hum kyun nahi sikhate apne bacchon ka pahari

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Author Topic: Why Do We Hesitate in Speaking our Language? अपनी भाषा बोलने में क्यों शरमाते हम  (Read 43556 times)

umeshbani

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मुकेश दा ,
                अपने सही लिखा मगर वास्तव में काफी अंतर है हाँ कुछ बाते समझ जाता हूँ .......... मगर पूरा नहीं ..........
कुमाउनी भाषा में भी काफी अंतर हे ........ अगर आप देखे या सुने ...........कुछ शब्द तो सर के ऊपर से निकल जाते है .......
में यहाँ पर लहक की बात नहीं कर रहा हूँ भाषा के
मोव निकाल भे .............. ,हमारे यहाँ पर्स ................भे ..........
लफाई गयी ..........हमारे यहाँ घुरी गयी ............... इसे कई शब्द  है जिनका में अर्थ नहीं समझ नहीं पाता ........ हां कोशिस जर्रूर करता हूँ हो सकता हे जो प्रॉब्लम मेरी है वो सब की न हो ............ आप समझ सकते है कितना अन्तर है ...... ये पता रही बात कुमाउनी की फिर मै केसे केसी गढ़वाली भाई से गढ़वाली मै बात कर सकता हूँ ........... मानता हूँ कि अगर कोशिस करूं पता मुस्किल भी नहीं है .......... लेकिन सामने वाला सोचेगा कि  ............ आधा अधुरा .......... या निम्न ज्ञान .........?
ये मेरे ख्याल से सबसे बढा कारण है ..................... कि हम ....................
मानता हूँ निशंदे हमारी पहचान उत्तरांचल से है उत्त्रन्काह्ल कि भाषा से है .............. हमारी हिंदी भाषा मे भी उत्तरांचली टोन से है यानि लहक से है ,...........................

हेम पन्त

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अपनी बोली बोलने में शरम करने या झिझकने की कोई जरूरत नही... अगर आपको नही भी आती है तो कोशिश करें. गढवाली या कुमाऊंनी हिन्दी से काफी हद तक समान है.

यह सही बात है कि उत्तराखण्ड की नई पीढी, खासकर शहरों की युवा पीढी अपनी बोली भाषा से दूर होती जा रही है... लेकिन ऐसा नही है कि हमारी भाषा खत्म होती जा रही है... इन्टरनेट के माध्यम से जुङ रहे सैकङों लोग गढवाली-कुमांउनी सीखने का प्रयास कर रहे हैं.

परिवार का माहौल भाषा ज्ञान के लिये सबसे महत्वपूर्ण है, जिस घर में अभिवावक ही अपनी बोली नही बोलेंगे, या बच्चों को सिखाने की कोशिश नही करेंगे उस घर के बच्चे कैसे अपनी दुदबोली सीख पायेंगे?

"कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी" वाली बात भी कुछ हद तक सही है. लेकिन काली कुमाऊं के किसी गांव में रहने वाला आदमी अपने सोर (पिथौरागढ) या गंगोलीहाट के रिश्तेदार से तो हिन्दी में बात नही करता, जबकि तीनों जगह की बोली में कई विभिन्नतायें हैं. तो कोशिश करने पर हम किसी भी उत्तराखण्डी से अपनी ही बोली में बात जरूर कर सकते हैं. तो फिर देर किस बात की है, बेहिचक गढवाली-कुमांउनी बोली का प्रयोग करिये




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hem Da,

I full endorse your views but there are some hard facts what we have accept. I have to submit a few more facts:

   a)    During several programme, it was seen that dance & the songs are Uttarakhandi but people common language and anchor address from stage is in hindi. If he starts speanking in Kumoani or Garwali, some people from our own communit start making joke of him / her.

 b)     I have seen in many families people even do not want to teach their children in own language.




अपनी बोली बोलने में शरम करने या झिझकने की कोई जरूरत नही... अगर आपको नही भी आती है तो कोशिश करें. गढवाली या कुमाऊंनी हिन्दी से काफी हद तक समान है.

यह सही बात है कि उत्तराखण्ड की नई पीढी, खासकर शहरों की युवा पीढी अपनी बोली भाषा से दूर होती जा रही है... लेकिन ऐसा नही है कि हमारी भाषा खत्म होती जा रही है... इन्टरनेट के माध्यम से जुङ रहे सैकङों लोग गढवाली-कुमांउनी सीखने का प्रयास कर रहे हैं.

परिवार का माहौल भाषा ज्ञान के लिये सबसे महत्वपूर्ण है, जिस घर में अभिवावक ही अपनी बोली नही बोलेंगे, या बच्चों को सिखाने की कोशिश नही करेंगे उस घर के बच्चे कैसे अपनी दुदबोली सीख पायेंगे?

"कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी" वाली बात भी कुछ हद तक सही है. लेकिन काली कुमाऊं के किसी गांव में रहने वाला आदमी अपने सोर (पिथौरागढ) या गंगोलीहाट के रिश्तेदार से तो हिन्दी में बात नही करता, जबकि तीनों जगह की बोली में कई विभिन्नतायें हैं. तो कोशिश करने पर हम किसी भी उत्तराखण्डी से अपनी ही बोली में बात जरूर कर सकते हैं. तो फिर देर किस बात की है, बेहिचक गढवाली-कुमांउनी बोली का प्रयोग करिये





हेम पन्त

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मेहता जी आप एक बात पर गौर कीजियेगा... जो हमारे लोकसंगीत की प्रमुख हस्तियां हैं वो मंच से भी कार्यक्रम को अपनी बोली में ही संबोधित करते है.

और बच्चों को अपनी बोली सिखाना तो सबसे महत्वपूर्ण है. हम कितना भी अपनी बोली को प्रयोग करें. अगर अगली पीढी में अपनी बोली के प्रति इज्जत नही जगा पाये तो बोली भी हमारे साथ ही "ऊपर" चला जायेगी. अर्थात अगली पीढी में कुमाऊंनी-गढवाली बोलने वालों को ढूंढना मुश्किल हो जायेगा. हालांकि हमें विश्वास है ऐसा नही होगा.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हेम दा,

जहाँ तक मैंने देखा है नेगी जी, राणा जी और अन्य कुछ कलाकर अपना प्रोग्राम देने के पहले मे अपनी भाषा मे ही जनता को सम्भोधित करते है !

सबसे hard fact कई बार देखा गया है की लोग अपनी आप को उत्तराखंड के मूल का बताने से ही झिझकते है!

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हमें नहीं भोलना चाहिए हम उस धरती से संभंध रखते है जहाँ पर ऋषि मुनियों ने तप किया है, जहाँ पर shiv shankar ने maha sati की viyaha है !

aaaj nanda devi की कृपा उत्तराखंड के लोग आर्थिक रूप के मजबूत है तो झिझकने की कोई बात नहीं !

अंग्रेजी के साथ अपने बचो की अपनी भाषा भी हमें सिखाना चाहिए A

 


मेहता जी आप एक बात पर गौर कीजियेगा... जो हमारे लोकसंगीत की प्रमुख हस्तियां हैं वो मंच से भी कार्यक्रम को अपनी बोली में ही संबोधित करते है.

और बच्चों को अपनी बोली सिखाना तो सबसे महत्वपूर्ण है. हम कितना भी अपनी बोली को प्रयोग करें. अगर अगली पीढी में अपनी बोली के प्रति इज्जत नही जगा पाये तो बोली भी हमारे साथ ही "ऊपर" चला जायेगी. अर्थात अगली पीढी में कुमाऊंनी-गढवाली बोलने वालों को ढूंढना मुश्किल हो जायेगा. हालांकि हमें विश्वास है ऐसा नही होगा.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mr R P Chamoli ji ke is vishya par ye line.

अपणि-बोली-भाषा का बगैर न त अपणि उन्नति हवै कद और न ही समाज की। जु समाज अपणि-बोली भाषा-अर-रिती-रिवाज से शर्म करदू ऊ वैकू पतन कू सबसे बडू कारण छ।

R. P. Chamoli

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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However, some good news. During our interaction with following Uttarakhandi celebrities. They express their interest to speak in Uttarakhandi language:


-   Mir Ranjan Negi – Famous Hockey Player and Check De India Film Hero and Jhalak Dekhla Ja famous .
-   Mr Prasoon Joshi, Famous Lyrist and Add Guru
-   Mr Hemant Pandey – Actor. Theth Pahadi – He always prefers to speak uttarakhandi language with his people.
-   Ms Pratibha Naithani – Social Worker
-   Ms Spna Awasthi Singer..

So many  others…

Risky Pathak

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Let me give me my example.

Currently jha me hu yha har state ke log hai. Punjab, Sikim, Jharkhand, Maharastra, Andhra, Kerla, etc.

And aapas me baat karne me sabhi apni local language me baat karte hai.

Par ye humare rajya ka durbhagya hai ki..humare rajya ke log abhi tak apni bhasha ko wo samman nahi de paaye hai jo unhe dena chahiye.

Sikkim ke log yha per nepali bhasha ka istemaal karte hai and jaisa ki hum jante hai ki uski bhi koi apni script nahi hai.

But yha jitne bhi uttarakhandi hai.. Unhe ya to garhwali ya kumauni aati nahi hai.. ya aati hai to bolne me sharm mehsus karte hai.

So its a matter of shame for our state that people from our state have not enough confidence to say that we are from uttarakhand, we have our own language. :(

Risky Pathak

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Pratap da.. Uu yek lizik kyeki tamar office me majority pahadi nak chhu.

Hum yaa baat karnyi ki agar 2 pahadi mesh kabhe kwe bheed bhaad ilaak me mil jaal to oo pahadi bulaan me kye sharmooni...
Dear M. S. Mehta Ji

Myor bichar or anubhav  anusaar yesh ke baat nahati biradro, myor company mai 70% log pahari (Uttrakhanddi) hai, hum log sab pahari ya gharwali bhassa (language) mai baat kanu halaki ek dusrko bhassa samjan mi paresani jarur hunch par bulanu chahe phir humar samne humar sr. officer kilegna ho koi ne sarman (nobody shy)

Pratap Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thanx Himansu Ji for your views.

Can anyone suggest how this inferior complixity can be removed from our people.

Any suggestion please.

 

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