Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 725520 times)

Bhishma Kukreti

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          उत्तराखंड  परिपेक्ष में  लिसोड़ा , लसोड़ा    की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan Indian Cherry or Glue Berry , Cordia dichotuma   in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 33

                                     History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -   33                       
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   74

                     History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -74
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Cordia dichotoma
सामन्य अंग्रेजी नाम -Indian Cherry or Glue Berry
संस्कृत नाम - बहुवारा , सेलु
हिंदी नाम -लसोड़ा , लसोड़ा टेंटी ,गुंदा
नेपाली नाम -लसूरा , लसूड़ा
उत्तराखंडी नाम - लिसोड़ा , लसोड़ा
वृक्ष - लिसोड़ा , लसोड़ा , गुंदा  का पेड़ मध्य ऊंचाई वाला पेड़ है। इसकी ठूंठ 25 -50 सेंटीमीटर की होती है और ऊंचाई 10 मित्र तक हो जाती है।  पत्तियों से यह छत जैसा दीखता है।  भूरे रंग की छाल   वाला पेड़ है। इसके फूल  सफेद होते हैं और केवल रात को ही। लिसोड़ा , लसोड़ा , गुंदा के  फल पहले गुलाबी पीले होते हैं जो पककर काले हो जाते हैं।
जन्मस्थल संबंधी सूचना -लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा की जन्मभूमि दक्षिण पूर्व चीन , भारत , हिमालय , हिन्द चीन आदि स्थल।  इससे जाहिर होता है कि लसोड़ा उत्तराखंड में हजारों साल से पाया जाता है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - सुश्रुता ने लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा के औषधीय उपयोग के बारे में उल्लेख किया है।  वाल्मीकि रामायण में उडालकास पेड़ का  उल्लेख है जो शायद लसोड़ा हो सकता है। महाभारत में भी उड्डालका का  है। महाभारत सेल्समातका  का उल्लेख है जो Cordia myxa   हो सकता  है।  Cordia myxa को उत्तराखंड में लसोड़ा  ही कहा जाता है।
 जानवर औषधि - लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा मवेशियों की ल्यूकोरहोइया , मुंह और पैर की बीमारियां उपचार हेतु  लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा का उपयोग  होता है।
चारा - जानवरों को पत्तियां  व फल चारे हेतु उपयोग होता है।
मनुष्य औषधि -उपयोग  -लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा के कई भागों का कीड़ों  के काटने पर घाव सफाई, छाल का रस दस्त व अन्य पेट की बीमारी हेतु , पाचन  वृद्धि , फल रस शरीर में जलन उपचार , फल रस कफ , बलगम साफ़ करने हेतु उपयोग होता है
लकड़ी - कृषि उपकरण  बनाने में उपयोग
 
--------लसोड़ा की सब्जी -
जितनी सब्जी बनानी हो उतने कच्चे फलों को अलग कर दीजिये।
फिर इन फलों को 10 मिनट तक उबालें।  पानी निथार कर ठंडा होने दीजिये।
फिर चाकू से लसोड़े की टोपी छील  दीजिये।   और दो से चार टुकड़ों में काट लीजिये। गुठली  दीजिये।
अब जैसे उबले आलू के गुटके दार  जाती है वैसे  छौंका लगाकर , नमक , मसालों के साथ भूना जाता है और 4 से 5 मिनट तक पकाया जाता है।
मुख्यतया लसोड़ा उप सब्जी होती है।
-------लसोड़ा , गुंदा का अचार -
गुंदा का अचार भी बनाया जाता है।




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Bhishma Kukreti

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Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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बन, पाव अर रस से गिच्चाभेंट
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 गिच्चाभेंट  करदार    :::   भीष्म कुकरेती   

 बन अर पाव एकि मुंडीतक द्वी खाद्य पदार्थ छन पर हिसाब किताब अलग अलग जन निशंक अर खंडूरी जी ।  बन्स नार्थ इंडिया की पहचान च त पाव पश्चिम भारत खासकर मुंबई की पहचान च। रस अर
टोस्ट मा नामौ फरक च बाकी क्वी फरक नी जन कोशियारी अर तीरथ सिंह रावत मा नामौ फरक च बकै द्वी कन्फ्यूज्ड चीफ मिनिस्टर की कैटेगरी म ही आंदन।
    जब मि तै गढ़वाळम रस  की याद आंद त सिलोगी बजाराम सुर्रा लाला की याद ऐ जांद।  सुर्रा लाला बड़ा बड़ा पितळौ गिलास पर चाय अर रस का बान पूरा ढांगू मा प्रसिद्ध छा। अहा वो अधा लीटर चा अर कुमरण्या रस को स्वाद मि आज तक नि बिसर।  इंटरवल मा चा मा डुबयां रसकु स्वाद ! अहा ! बतावो सन 67 मा दर्जा आठम, चा मा डुबैक खयां कुमरण्या रसौ कुमराण अबि बि मेरी नाक अर जीबम इन बसीं च कि मि वीं कुमराण पाणो बान जै बि शहरम जांदु उख एक रस जरूर चखुद।  पर हाय रे !  सुर्रा लालाक रस ! अब इथगा डबखण अर इतना रस खाणो बाद बि वा कुमराण कखि नि मील।
  लक्ष्मण विद्यालय , देहरादूनम आण पर रस त छैं इ छा पर एक नयो नास्ता से गिच्चाभेंट ह्वे अर वो खाद्य पदार्थ छौ- बन।  बन याने मिठ।  लक्ष्मण विद्यालय अर गुरुराम राय कॉलेज का मध्य प्रभाती लाला की चाय की दुकान माने बन या रस।  बन से अधिक रस मा मि तैं अधिक रस आंद छौ।
   फिर धरम पुर शिफ्ट हों तो उख उनियाल बंधुओं चा क दुकान छे अर उखम बन बि अर रस द्वी मिलदा छा।  अब उनियाल बंधुऊं बड़ व्यापार ह्वे गे -उनियाल बेकरी का मालिक।  असलम मि तै बन अर रस से अधिक उनियाल भायुं मृदु स्वभाव अधिक याद आंद।  मि तै सोळ अन भर्वस च कि उनियाल भाई इथगा बड़ उद्यमी  बणिन त अपण मृदु स्वभाव का कारण बणीन।
   देहरादून म बन अर रस द्वी खूब चलदा था तब।
मुंबई मा बि रस की रस्याण खूब चलदी।  रस तैं मुंबई मा टोस्ट बुल्दन।  हाँ इक सामान्यतया रस छुट हूंदन।  सिलोगी या देहरादून से चौथाई अर अदा।  बड़ रस बि मिल्दन किंतु कम प्रचलन च।
 फिर जब मि सन 63 मा मुंबई औं त द्वी अन्य किस्मौ बन्स से गिच्चाभेंट ह्वे। एक छौ पाव अर दुसर कड़क पाव।  कड़क पाव अर   सादा पाव मा इनि अंतर हूंद जन मोदी जी अर राहुल जी मा।  एक तपयूं अर हैंक गदगदो मुलायम।
   मुंबई का सादा पाव अर देहरादून का बन मा मुख्य अंतर च बल देहरादून का बन मिठु हूंद अर मुंबई का सादा पाव कु क्वी स्वाद नि हूंद।  देहरादून का पाव की शादी केवल चाय या दूध का साथ ही हूंद त मुंबई का पाँव कैक बि दगड़ खप जांद -रियल सेक्युलर खाद्य पदार्थ।  सादा पाव की शुरुवात पुर्तगाली लोगुंन गोवाम शुरु कार छौ अर पाव संस्कृति सरकिक मुंबई क्या आयी आज तक पाव बगैर मुंबई की कल्पना नि करे सक्यांद।  क्रिश्चियनुं कुण त पाव वळ बुले जांद।  बड़ा पाव त वर्ल्ड फेमस खाद्य पदार्थ ह्वे गे।  पाव मटन रस्सा , चिकन रस्सा , सूखा चिकन , सूखा मटन का अलावा विभिन्न कीमा , ऑमलेट, अंडा भुर्जी मा बि मजे से खाये जांद।  शाकाहार्युं कुण बि पाव वर्ज्य नी च अर पाव विभिन्न पकोड़ी , विभिन्न सब्जी , जाम , चटनी का साथ त खाये ही जांद किन्तु एक एक्सक्लूजिव डिश हूंद जो सबसे अधिक प्रचलित च मुंबई मा अर वा च -पाव -भाजी।  मक्खन लगायां पाव अर  विभिन्न भुज्युं  भुर्ता बणयिं पंद्यरि भुज्जी।  भुज्जी मथि बटर , कट्युं प्याज , लिम्बु आदि का साथ।  बटाटा बड़ा अर पाव -भाजी स्टाल मुंबई की शान छन।
      फिर एक हैंक पाव हूंद जै तैं कड़क पाव बुल्दन।  कड़क पाव याने वास्तव मा कड़क, दरदरा  सादा बन ।  कड़क पाव की विशेषता या च कि बेक हूणो तीन चार घंटा का अंदर घुळण जरूरी च निथर यी मुलायम पड़ जांदन।  हम लोग त कड़क पाव चाय सीमित रखदां किंतु क्रिश्चियन , मुस्लिम कड़क पाव मटन -चिकन शुरुवा मा खूब खांदन।  जब ईरानी होटल संस्कृति बचीं छे तो मीन बि कथगा दैं कड़क पाव अर खीमा खायुं च।  स्वाद ? गुड़ का स्वाद नि एक्सप्लेन करे सक्यांद त उनि मि कड़क पाव अर खीमा कु स्वाद नि बतै सकुद।  सवादी ! सवादी ! खैक बतैन कबि।
 जब तक पाव या रस लकड़ी चुल्लों पर बेक हूंदा छा यूंका स्वाद कुछ हौर हूंद छ तब क्वीलाण (कोयला की सुगंध ) बि आंद छे पर अब इलेक्ट्रिक ओवन म बणन वळ पावों स्वाद बिलकुल अलग हूंद।
   अर एक  खासियत हौर च मुंबई का पाव रस की।  वा च कि पाव , रस या अन्य कॉन्फेक्शनरी घरेलू उद्यम  पर मुस्लिमुं  एकाधिकार च। 

 
   
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27 /1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

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    ----- आप  छन  सम्पन गढ़वाली ----
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    उत्तराखंड  परिपेक्ष में  गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan  Common Cockscom, Celosia argentea  in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 34

        History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -    34                   
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   75

          History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -75
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Celosia argentea
सामन्य अंग्रेजी नाम -Common Cockscom, Quail    Grass
संस्कृत नाम -सीतावर्क

नेपाली नाम -सिताभारका
उत्तराखंडी नाम - गदिरा
पौधा - वास्तव में यह एक खर पतवार है जो एक क्षेत्र में फ़ायदाबंद होता है तो दूसरे क्षेत्र में फसल के लिए आक्रमणकारी खर पतवार सिद्ध हो जाता है। 1000 मीटर  , 1600 मीटर  (नेपाल व उत्तराखंड ) से 3000  मीटर ऊंचाई वाले स्थानों में पाया जाता है। अफ्रीका में इसे खेतों के मींडों में अन्य परजीवियों से बचाने लगाया जाता है।  गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका बहुशाखीय पौधा 40 से 200 सेंटीमीटर ऊँचा हो सकता है।  गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका चटकीले लाल या गुलाबी फूलों से पहचाना जाता है।  सफेद फूल भी चटकीले आकर्षक होते हैं।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - वनस्पति -
वनस्पति शास्त्रियों में जन्म स्थल के बारे में एक मत नहीं है। कोई अफ्रीका को और कोई भारत  व भारतीय उपमहाद्वीप को गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका जन्मस्थल मानते हैं. प्राचीन चीनी भेषक साहित्य मेंगदिरा /सीतावर्क /सिताभारका वर्णन मिलता है। प्राचीन चीनी पुस्तकों में   गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका को भुकमरी का खाद्य पदार्थ में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
यह पौधा सभी महाद्वीपों में पाया जाता है । अफ्रीका के कई देशों में खेती की जाती है। 
औषधीय उपयोग - गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका के भिभिन्न भागों से फोटोफोबिया , सरदर्द , त्वचा , घाव , दस्त , श्वेत प्रदर बीमारियों में औषधि उपयोग होता है। डाइबिटीज उपचार हेतु बीजों से दवाई बनाई जाती है
 भोजन उपयोग -
गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका में कैल्सियम , फॉस्फोरस
गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका की पत्तियों व डंठल से स्वादिष्ट , पौष्टिक तरकारी व सूप , फाणु , कपिलू बनाया जाता है जो पौष्टिक होता है।  फूलों से भी तरकारी बनती है।

गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका से हरी  सब्जी , फाणु , कपिलू  ऐसे ही बनाया जाता है जैसे कि पालक या मर्सू से बनाया जाता है। गदिरा /सीतावर्क /सिताभारका को  अन्य सब्जियों के साथ भी पकाया जा सकता है।


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सरसु  संघार दैंत संघार से बि कठिन काम हूंद
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 युद्ध पुराण व्यास    :::   भीष्म कुकरेती   

 
 दैंत संघार कु गीत , जागर त भौतुंन सूण ह्वलु  पर सरसु  संघार कविता भौत कम कवियोंन सूण ह्वेलि।  सरसु  संघार कविता दुनिया का 207   महान कवियों मादे एक कवि स्व कन्हैयालाल डंडरियाल की प्रसिद्ध कविता च।  यीं कविता पढ़िक मि तैं लग डंडरियाल जीन हमर गाँव मा हमर डिंडळम हुयीं  घटना देखिक या कविता लेखी होली।  फिर वेक बाद मै याद नी कि कै गढ़वळि साहित्यकारन सरसु  संघार पर कलम चलाई ह्वेलि।
                        अथ: मतकण: (सरसु ) संहार अध्याय प्रारम्भ
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                सरसु संघार कौंळ , विद्या , स्किल हरेक भारतीय तै आण जरूरी च इख तक कि मुकेश अम्बानी , अडानी अर असुद्दीन  ओवैसी  तैं बि।  जी हाँ ! यूं बड़ आदिमुं तैं सरकारी ऑफिसक कुर्सी म बैठण पड़दि ह्वाल त सरसु , खटमल या बेडबगुं से पूठाभेंट त करणी पड़द ह्वेलि कि ना ? सरकारी दफ्तरक कुर्सी याने सरसुं दगड़ पूठाभेंट की सर्वोत्तम जगा। 
            हमर युग याने घी युग , याने डीडीटीबिहीन युग याने सरसुं , खटमलुं स्वर्णिम युग। तब हम तै पाटी दिखावो या ना दिखावो पर लिखल संघार , जूं संघार अर सरसु युद्ध अवश्य सिखाये जांद छा अर पारम्परिक  शिक्षक  ना तो नाळी लींद छा, ना सरकार से सब्सिडी लींद छा अर ना इ घमंड करदा छा।  असल मा तब ब्वे बाब अपण बच्चों तै शिक्षा दीणम सरकार से मुवाजवा नि मंगद छा।  तब जूं संघार व सरसु संघार की शिक्षा एक कर्तव्य माने जांद छौ।
     तब सरसु संघार कृत्य आवश्यक छौ.  आज बि रेल यात्रा , बस यात्रा इख तलक कि हवाई जाज यात्रा मा सरसु संघार आवश्यक च। तब यदि तुमर घौर नागराजा -ग्विल की कृपा से सरसु ,  खटमल , बेड बग राज खतम बि ह्वे गे हो तो हौर मौ -थोक मा सरसु अंडा ही काफी हूंद छौ  कुछ दिन मा आतंकबाद फैलाणो कुण।  लकसरे तोयबा या तालाबीनी आतंकबाद से तो क्वी बि लौड़ सकुद किन्तु खटमली आतंकबाद का समिण ट्रम्प का ट्रम्प कार्ड बि फेल हूंद।
    सरसु संघार कु सबसे नायब हथियार हूंद छौ हस्तशस्त्र। हस्तशस्त्र कबि बि , कखिम बि प्रयोग करे जाण वळ शस्त्र हूंद छौ जैकी औपचारिक ट्रेनिंग नि दिए जांद छौ अर छै सालक बच्चा बि हस्तशस्त्र चलाणम पारंगत ह्वे जांद छौ।  मि तैं लगद  सरसुं संघार का वास्ता हस्तशस्त्र चलाणै कौंळ प्रकृति जन्य गुण  होलु।  सरसु दिखदी तर्जनी अंगुळी बगैर कै बि सेनापति की आज्ञा से अफिक चार्ज ह्वे जांद छे अर तब तक चार्ज ही रौंदि छे जब तक मतकुण रुधिर (खटमल खून ) से हस्त प्रक्षालण नि ह्वे जावो।  मतकुण रुधिरौ  हस्त प्रक्षालणसे योद्धा कु जोश वृद्धि ह्वे जांद छौ अर जोधा खटमलुं रुधिर दिखणो वास्ता सहस्त्र मतकण हत्या हेतु त्यार ह्वे जांद छौ।  यदि सरसु कवि हूंदा त ऊंक कवितौं मा पाळी पर लगीं मतकण रुधिर पिठाइ कु करुणामय वर्णन हूंद। जैक पाळ यूं पर जथगा अधिक खटमल रुधिर टीका वो उथगा बड़ो सरसू मार माने जांद छौ।
     कुछ आयुर्वैदिक याने हिंसाहीन या ग्रीन विपन्स बी प्रयोग हूंद था।  जन कि खटला की चौक मा कुटळजड़  से थिंचाई -पिटाई।  यां से सरसु सेना मा भगदड़ मच जांदी छे अर सरसू सेना भ्यूं गिर जांद छा।  कुछ सरसू चरण चक्र से धरासायी करे जांद छा त कुछ हस्तशस्त्र से कचाये जांद छौ।  काळरात्रि जन माहौल चौक मा बण जांद छौ अर पाद रुधिर प्रलाक्षण व हस्त रुधिर प्रलाक्षण की लालिमा दिखण लैक हूंद छौ।  कुछ बीर जांबाज  सरसू छुपाछुपी रणनीति का तहत छुपिक कखि चल जांद छा।
    एक हैंक  ग्रीन बग किलिंग सरमनी, रुधिर हीन  हत्त्या याने  आयुर्वैदिक हत्या ब्यूंत बि सरसू संघार का वास्ता प्रयोग हूंद छौ।  याने खटला कु गरम गरम पाणी से स्नान। या रुधिर बिहीन हत्त्या सर्वाधिक कारगार युद्ध छौ किलैकि गरम पाणी से कूड़ जळो  या नि जळो खटमलुं अर खटमल अंडौं जड़नाश   ह्वे जांद छौ किन्तु न्यार कमजोर ह्वे जांद छौ।
     फिर पर्यावरण विरोधी हथियार आयी जैक नाम छौ मिट्टी तेल याने कैरोसिन ऑइल।  मिट्टी तेल से बि खटलाौं तै नवाणो रिवाज भौत सालुं तक राई।
    फिर आयी एक हैंक पर्यावरण विरोधी अस्त्र।  ये अस्त्र कु नाम छौ -डीडीटी या फ्लिट।  कई दशकों से यु हथियार अबि बि प्रयोग हूंद हाँ अब नया अवतार मा येकुण हिट बुले जांद।
   एक बात मेरी समझ मा अबि तक नि आयी कि चरक , शुश्रुता या भाव प्रकाश सरीखा वैद्याचार्योंन विभिन्न सहस्त्रों आयुर्वैदिक औषधि खोज करिन किन्तु मतकुण , खटमल या सरसु संघारक औषधि किलै अन्वेषित नि कौरी होली ? चलो यी अन्वेषक त क्षमा लैक छन किन्तु पिछ्ला द्वी सहस्त्र वर्षों मा कैन बि हर्बल बग किलिंग औषधि किलै अन्वेषित नि कौर ह्वेलि ? अब बाबा रामदेव या श्री श्री रवि शंकर से अपेक्षा च कि मान तै इन हर्ब या हर्बल मेडिसिन खोजिक द्यावो जु पर्यावरण का वास्ता भी सर्वोचित हो।  उन यचुरी अर राहुल बाबा तैं त यूं  से उम्मीद नी च पर मैं तैं उम्मीद च कि अगला द्वी सालुंम हिट की जगा हर्बल औषधि अवश्य मार्केट मा ऐ जाल।
इति मतकुण: हत्या प्रकरण : अध्याय समाप्त ।

 

 
   


25/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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  उत्तराखंड  परिपेक्ष में   कंडारा   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan Wallich's Thistle  , Cirsium walichii in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 35

              History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -      35                 
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   76

   History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -76
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Cirsium walichii
सामन्य अंग्रेजी नाम -Wallich's Thistle
संस्कृत नाम -
हिंदी नाम - बूंगसी
नेपाली नाम -थकाल , काँटा
उत्तराखंडी नाम -कंडारा
यह पौधा हिमालय में अफगानिस्तान से भूटान व चीनी हिमालय में पाया जाता है।  इसका असहय निकलता है कि कंडारा का जन्मस्थल हिमलाय है।
  कंडारा एक बहुशाखीय पौधा है जो 4 से 10 फ़ीट तक ऊंचा तक जाता है। पत्तियों के किनारे  कंटीली होती हैं कंडारा 1200 से 3300 मीटर ऊंचे  स्थलों में उगता है।
---------कंडारा का भोजन उपयोग -
      कंडारा की जड़ों/ ट्यूबर  को छीलकर सब्जी बनाई जाती है जैसे अरबी या पिंडालू की सब्जी बनाई जाती है.
इसके फूलों से सेपल , पेटल निकालकर फूल के आधार को भूख में जंगलों में खाया जाता है



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 ( उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )



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Best  of  Garhwali  Humor , Wits Jokes , गढ़वाली हास्य , व्यंग्य )
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छांच  छुळण खाणौ काम नी च
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 छांच छुळै , मंथन     :::   भीष्म कुकरेती   

 
छांच  छुळण सरा दुनिया म हूंद पर भारत म कुछ जादा ही हूंद तबि त जौन सबसे अधिक संविधानै  धज्जी उड़ैन वी विरोधी पार्टी मोदी की छांच  छुळणौ बान 26 जनवरी कुण संविधान बचाओ रैली करदन।
   भारत मा छांच  छुळण अलग इ संस्कृति च जब कि हौर देसुँ मा  घी ना चीज की अहमियत च त उन्नादेसूं मा छांछ छुळणै बिगळीं संस्कृति च।  भारतीयूं इथगा बड़ी जिकुड़ी च बल भारतीय दिबता त समोदर की बि छांच छोळ दींद छा। दही , दही छुळण बतांद बल भारत एक च।
   गढ़वाळम बि छांच छुळे जांद अर ड्याराडूण , डिल्ली  क्या मुंबई मा बि गढ़वळि अबि बि पारम्परिक रीति से छांच छुळदन याने ऐल्युमिनियम की रै मथनी से दै कर्ड चर्निंग या दही छुळदन।  कुछ इलेक्ट्रिक ब्लेंडर बि अजमांदन पर इन बुल्दन बल इलेक्ट्रिक ब्लेंडर से घी ठीक से नि बणद।  मि तैं डाउट च , किलैकि चूँकि हम टेक्नॉलोजी विरोधी छंवां त ठीक से मट्ठा नि छोळ सकदा त बिजली पर भगार लगै दींदा जन विरोधी पार्टी जब जितद नी च त ईवीएम मशीन पर दोषारोपण कर दींदन।
     पर कुछ सत्य बि च कि इलेक्ट्रिक ब्लेंडर से  घी उन नि बणदु जन हाथ छुळै से बणद किलैकि दही मा बैक्टीरिया हूंदन त वु हम मनुष्यों तरां मसीनौ गुलाम थुका छन कि हमर मशीन चलाण पर हमर आज्ञा मानी जावन।
    खैर मुंबई बात जाणि द्यावो गढ़वाल की बात करे जावो।  जख तक छांच छुळणो बात च , गढ़वाळम खस संस्कृति या वां से पैल छांच चमड़ा थैलों मा छुळे जांद छे।  फिर लखड़क पर्या , रै अर नेतण की सहायता से छांच छुळयाण शुरू ह्वे।  किंतु पर्या , रै बणाण कठिन ही छौ तो सैकड़ों साल तक चमड़ा  थैलाऊँ म छांच छुळे  गे होली।  ऋग्वेद मा नेतण लगीं रै अर पर्याक वर्णन च।  कौटिल्य अर्थशास्त्र मा त कॉमर्शियल छांछ छुळै बात बि च।   हम हिंदुस्तान्यूं तैं  गर्व च कि हमन पिछ्ला तीन या चार हजार साल से अपण छांच छुळणो संस्कृति मा क्वी छेड़ छाड़ नि कार।  हम संस्कृति प्रेमी  जि छंवां  त किलै तकनीक बदलला।  फिर कु कार इथगा खटकर्म ?  जब मेनत करणो कुण जनानी छैं छन त किलै तकनीक मा बदलाव की सुचे जाव।
    जी दही जमाण से लेकि , छाच छुळण , घी गळाण सब कुछ हमर इक जनानी करदी छै।  गढ़वाळम जमण जन शब्द नि मिल्दो किलैकि हमर डखुळ  (जख पर दही जमाये जांद ) जब सौ साल तक ठीक से धुये नि जाल त जमण की आवश्यकता पोड़ी नि सक्यांद।  इलै इ झड़ददा से लेकि पड़ नाती तक परिवार मा पळयो या दही कु एकी स्वाद चलदो।  इलै त गाँवुं  मा पळयो चखिक पता चल जांद बल छांच कैं मौकी होली।
   छांच छुळणो बगत अधिकतर रात भोजनो परांत ही हूंद छौ।  सुबेर त कुटण -पिसणो बगत हूंद।  दिन मा त पुंगड़ -पटळ , घास -लखड़ुं बगत जि हूंद।  जै परिवार मा दिन मा छांच छुळे जावो वै परिवार मा गरीबी ही हूंदी छे।
    छांच खते नि जयांदि अपितु बंटे जयांदि अर अर एक हैंकाक छांच खाणम जजमान -बामण , छुट बामण -सर्युळया बामण या दुघर्या -तिघर्या जनानी क भेद नि हूंद। 
   गढ़वाळम मीन नि सूण कि क्वी ब्वाल बल पळयो पकाई या पकावो।  पळयो थड़काये जांद याने पळयो पकाण सरल च।  हां झुळी पकाये जांद ना कि थड़काये जांद।  किलै इ शब्दांतर होलु , पता नी।
    बगैर आलणो पळयो नि सुचे जांद।  हमर मुख्य आलण छा - झंग्वर , चूनु , मुंगरड़ी , जौक आटो।  हूंद त चौंळ , कौणी , ओगळौ आटु , पर कम।  झुळळी पर तो झंग्वरौ एकाधिकार छौ। गढ़वाळम मिठि झुळळी इतिहास शहद से शुरू ह्वे छौ फिर शीरा , गुड़ तक पौंछ अर अब त चिन्नी ही झुळी दगड्याणी च जी। उन अब चूंकि  चून, मुंगेरड़ी , झंग्वर दिबतौं भोजन ह्वे त अब बेशन ही एकमात्र आलण रै गे।
 हां  बिंडी छांच ह्वे जाव तो खट्ट्या बणाणो रिवाज बि भौत छौ।  अब त भौतुं तै पता बि नी खट्ट्या कै मरजौ नाम च।  खट्ट्या मतलब जन दूध तैं खिटैक  खोया बणाए जांद तनि छांच तैं खिटैक खट्ट्या बणाये जांद मसलुं का साथ।
   अब जब पळयो छ्वीं हो अर लूणौ बात नि ह्वावो तो पळयो बेसवादी ही माने जाल ।  दिखे जावो तो पळयो स्वाद अपण आप मा कुछ नी अपितु पळयो असली स्वाद तो लूण निर्धारित करद।  लूण का साथी छा -मिर्च , ल्यासण , धणिया , आदु , हल्दी , भंगुल , जीरु , अजवैण , पोदिणा , भंगजीरु , मुंगण्या , पद्या , पितकुट  (सुकयीं मेथी )टिमरु ,  तिल , राई , दालचीनी , जम्बू , हींग अर पता नी क्या क्या मसल छा पुरण जमन मा.  अर हम तै गर्व च कि हमम गढ़वाल का मसालों इतिहास नी पता।
 बरसातम पळयो -झुळी मा ककड़ी डाळे जांद।
   पळयो रात नि खाये जांद छौ अर अमूनन कल्यो मा  हौळ,  ग्वाठम या यात्रा मा पळयो नि लिजये जांद छौ। मीन कबि नि सूण कै गुठळन ग्वाठम पळयो थड़कै हो।
    एक हैंक खासियत गढ़वाळ की राई कि हमन तीन हजार साल से पळयो की रेसिपी नि बदल। 
 
   


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    उत्तराखंड  परिपेक्ष में   बन पिंडालू , पापड़ी , जंगली अरबी   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan  Gonatanthus  pumilus in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 36

              History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -  36                     
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   77

       History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -77
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Gonatanthus pumilus
सामन्य अंग्रेजी नाम - Dwarf Gonatanthus

हिंदी नाम -जंगली अरबी
नेपाली नाम -पतरकच
उत्तराखंडी नाम - बण पिंडाळू , पापड़ी /पपड़ी
जन्मस्थल संबंधी सूचना - हिमालय में जनस्थल है।
  बन पिंडालू बिलकुल पिंडालू जैसे ही होता है किन्तु इसके पत्तियों का रंग अधिक गहरा और पत्तियां हृदय नुमा , अधिक तिकोनी।  पत्तियां 8 -15 सेंटीमीटर लम्बी व 5 से 10 सेंटीमीटर चौड़ी होती हैं व लम्बे डंठल से जड़ या कंद जुडी होती है. पानी के नजदीक ही पाया जाता है।
 औषधि उपयोग - पत्तियों  को मानव घाव व जानवरों के घाव पर एन्टीबायटिक रूप में लगाया जाता है।  जड़ों का उपयोग छाती दर्द उपचार में उपयोग होता है। कैंसर के इलाज हेतु भी उपयुक्त माना जा है।

------------पत्तों से से गुंडळ ----
बन पिंडालू का गुंडळ या पत्यूड़ बनाने में उपयोग होता है - पत्तों को काटकर उसमे आलण  (छोला हुआ बेसन , मकई का आटा आदि ) नमक , मसाले मिलाकर  प्रेसर कूकर , अथवा बड़ी पत्तियों के अंदर डालकर तवे में या गरम राख में पकाकर केक बनाया जाता है।  फिर केक को काटकर गुंडळ के टुकड़ों को तेल , भांग के छौंके के साथ गरम किया जाता है।  ठंडा ही परोसा जाता है।
  ----पत्तियों की सब्जी --
बन पिंडालू की पत्तियों से अलग या या अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर सब्जी बनाई जाती है।
    ----कंद उपयोग -
कंद का उपयोग भी घरेलू पिंडालू जैसे ही कई भाजी बनाई जाती हैं , सुखी , थिंचोणी , तरीदार आदि।  मिश्रित सब्जी भी बनाई जाती हैं।
 चूँकि बन पिंडालू अधिक चरचरा होता है तो धीरे धीरे बन पिंडालू का उपयोग घट रहा है


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कलजुग मा पाषाणजुग
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 पत्थर दिल इनसान :::   भीष्म कुकरेती   

 ना ना मि करणी सेना , भरणी सेना या आरक्षण का आकांक्षी पाटीदार सेनै छ्वीं नि छौं लगाणु।  ना ही भरपेट पुटुक भर्यां जाट आरक्षण की क्वी बात करणु छौं मि त पुट कलियुग याने सन 60 -70 का करीब पहाड़ुं मा पत्थर उपकरणुं छ्वीं लगाणु छौं जी।  जी कलियुग मा पाषाण युगीन उपकरण।
    कुछ उपकरण नि बदल्दन।  जन कि ल्वाड़।  कलियुग ना 100 % चिप्स युग बि ऐ जावो तो ल्वाड़ुं उपयोग बंद नि ह्वे सकद।
    अब ल्वाड़ कखम प्रयोग नि हूंद अज्युं तक।  रुस्वड़ कु ल्वाड़ -सिल्वटै बात बाद म करलु।  पैल एक साधारण ल्वाड़ै बात करे जावो। ल्वाड़ याने घण उपयोग। जरा याद कारदि।  हर कमरा मा क्या एक या द्वी ल्वाड़ लोड़ी नि धर्यां रौंद था ? जि छुटि हो बड़ी हो लोड़ि -ल्वाड़ बगैर काम आज बि नि चलद।  पुंगड़म , जंगळम , हिटद दैं पता नि कथगा दैं हम तैं ल्वाड़ -लोड़िक जरूरत पड़दि छे धौं।  अर हमन कबि बि ल्वाड़ -लोड़ी की महत्ता नि समज।
  कमरों मा सैकड़ों दैं ल्वाड़ै जरूरत पड़दि किन्तु समाज शास्त्र्यूं न ल्वाड़ -लोड़ि तैं उ स्थान नि दे जु घौण , हथोड़ी या हथोड़ा तैं दे।  अफ़सोस ! हम पल पल का साथी की कदर नि करदा।  अच्छा क्या लोड़ि या घंटी गौर बौड़ाण , गूणी -बांदर भगाणो , चखुल उडाणो काम नि आंद तो फिर हम ये तैं उपकरण किलै नि मणदा ? फल तुड़णो कुण  क्या घंटी -पत्थर काम नि आंद ? आंद छन पर हम यूं तैं उपकरण की संज्ञा नि दींदा।
    यी ल्वाड़ कील घटणम त काम आंदि च त आरोग्य उपचारम बि काम आंद।  कनो गरम ल्वाड़न शरीरौ सेकन नि हूंद ? अर बल्दूुं बधियाकरण केन हूंद छौ भै ? प्रसव का समय बि लोड़ि -ल्वाड़ पास रखे जांद जी।
 अब जब मेडिकल उपचार की बात आयी गे तो वैद जी इथगा दवा पिसणो बान त आज बि पयळ -लोड़ी (खरल ) की ही जरूरत पड़दि जी।
    चपड़ पत्थर याने खपटणा जन पत्थर त चौकम पस्वा क पास अज्युं बि कीच साफ़ करणो धर्युं रौंद।  अर कुल्यांद दैं चपड़ पत्थर कथगा उपयोगी हूंद , हमन ध्यान नि दे। पाषाण युग कु फाळौ उपयोग आज बि उनी हूंद जन पाषाण युग मा हूंद छौ।  ग्वाठम या पुंगड़म र्याड़ फिड़नो काम बि चपड़ पत्थर काम आंद।
     जखम बसूला उपलब्ध नि हो उखम बि चपड़ किंतु पैनो पत्थर ही काम आंद।  अर गुस्सा मा कैक घुंड लछ्याण हो तो इनि पत्थर काम आंद।
     अग्यल   याने लोहा और राड़ा पत्थर।  अब त खैर अग्यलौ प्रयोग नि रै गे किन्तु एक समय छौ हर तमख्या अर गुठळ अग्यल कीसा उन्द धरदु छौ।
  अर पळेंथर बि त पत्थरौ कु  ही हूंद भाई साब।
   एक समय छौ जब पयळ हर घर की शान छे जी शान।  पयळ याने पत्थर की गैरी थाळी।
  अर ढुंगळ संस्कृति म त आटु उलणो बान चपड़ी पटाळ अर तवा की जगा पत्थर ही काम आंद छौ अर आज बि।
   जंदर , सिल-वट , उरख्यळ , घट -घराट तो आज बि पाषाण युग की याद दिलांदन जी।
      खेल मा बि पत्थर उपकरण जरूरी छा जी।  बाग़ बखरी , गार खिलण , गुच्छी खिलण या पत्थरूं ढेर फोड़ू खेल तो पत्थर जनित ही छन कि ना ?
     
     चलो मान लींदा बल चिप्स युग मा पत्थर की बिलकुल जरूरत नि पोड़ली किन्तु बहिन जी ! पितर्वड़ धरणो त लोड़ी की ही आवश्यकता पोड़ल कि ना। 

 
   


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ब्वार्युं भजण-भगण याने कुल कलह पुराण
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 कखला बखली पंडित   :::   भीष्म कुकरेती   

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  भजण , भजाण अर बिपदा मा भजन गाण मनुष्यौ  नियति च। कुल कलह याने मुख्यतया सास-ब्वार्युं तनातनी।  पैल जब तीन तलाक जन विषयों पर पंडित , पादरी अर मौलवी कुछ नि बुलण दींद छा त सास की धौंस औंसी दिन बि चल जांद छौ अर ब्वारी औंस क्या भाई खव्वा दिनौ कुण बि मैत अटक जांदी छे।
    मि जब तक गाँव जाणु रौ त क्वी मैना इन नि रै होलु जब अडगैं (क्षेत्र ) मा कैं ब्वारिक भजणो या कै बेटिक भाजिक मैत आणो सूचना नि मिलदी हो धौं।  अब सास भगण चांदन पर बिचारिक ब्वे बाब त रौंद नीन अर भाई लोग बैणी अर्थ रक्छा बंधनौ कुण मनी ट्रांसफर का अलावा कुछ नि जाणदन त इन मा सास जगा की जगा जमीं रौंद।
    हमर जिना एक छे डौळी बौ।  वींक अर वींक सासु बीच  तून खूब लगद छा जन संसद मा कम्युनिष्ट अर भाजपायूं लगदन।  जन भाजपा वळ बोल द्यावो कि इजरायल से सीमा सुरक्षा बान द्रोण खरीदणैन त कम्युनिष्ट बाबल मचै दींदन बल द्रोण खरीदे जाल त चीन की सीमा का क्या ह्वाल।  कम्युनिष्ट चीन की चिंता मा इथगा पागल ह्वे जांदन  कि कॉंग्रेस संसद कुंवां मा ऐ जांदी।  संसद अध्यक्षम एकी विकल्प बचद कि संसदै कार्यवाही ही बर्खास्त करे जाव  . इनि डौळी बौ अर भिरंग्या बोडीम तून इन मा बि लग जांद छा कि डौळी बौ कै डीलु लेकि पंद्यरम /धरड़म जावो।  इनमा डौळी बौम मैत भजणो अलावा विकल्प नि हूंद छौ।
     मंथा दादि अर बिंदरा काकी याने सासू -ब्वारी की कथा  कळकळी ना अपितु  ओज  भरीं च।  दुयुं क मैत  एकि जि छौ।  द्वी सास ब्वार्युं म जब झगड़ा हूंद छौ त गाँव वळुं तै इतिहास की नई नई जानकारी मिलदी छे।  सास ब्वारीक मैत की महा पोल खोलदी छे त ब्वारी सासुक मैत की हुईं या निसुणी सब घटनाओं ब्यौरा देकि सासु तै इथगा शर्मशार करदी छे कि सास बि हीनग्रंथि शिकार ह्वेक सुचण लग जांदी छे कि इन परिवार म जनम लीण से बढ़िया तो जनम नि हूंद त ठीक छौ।  दुयुंमा एक हैंक तैं बगैरकपड़ा उतार्यां  नंगा करणो छौंपा दौड़ हूंद छे। अर जब सास ब्वारिक झड़ददी तैं दुघर्या ना तिघर्या सिद्ध कर दींदी छे त ब्वारिम मैत सटकणो अलावा कुछ विकल्प नि बचद छौ।  फिर एक द्वी दिन बाद ददा या काका अपण ससुरास जांद छा अर बिंदरा काकी तै वापस लांद छा।
    एक दिन त हद ह्वे गे।  सुबेर सुबेर घाम आणो कुछ देर बाद मंथा ददि अर बिंदरा काकी मध्य झगड़ा छज्जा मा ही शुरू ह्वै गे अर छज्जा ही कुरुक्षेत्र बण गे छौ । चौक मा दादा न्यार बटणम व्यस्त त काका निसुड़ लछ्याणम व्यस्त छा।  द्वी महान योगियों तरां ये कलह संसार से बिरक्त छा।  अर   दादिन फिर से सिद्ध कर दे कि बिंदरा काकीक झड़ददि तिघर्या छे।  अब ब्वारी से नि सये गे वींन बि सिद्ध कर दे कि सासु  क पड़ददा कै नजीबाबादी घुड़ैतौ जण्यू छौ।
 
   मंथा दादी  कुलपोल खुलण नि सै साकी अर वा  गुस्सा मा दाथी लेकि कखि अटकी गे।  ब्वारी तै बि गुस्सा आयी अर वा बि थमळि लेकि कखि अटकी गे।  स्याम दैं पता चौल कि मंथा दादी अर बिंदरा काकी मैत भाजी गेन।  सन्यासी बाप बेटान वैदिन अपण चिनख मार अर यीं दुखद घटना तैं  सुखद घटना म बदल दे।  दुसर दिन द्वी सास ब्वारी दगड़ी ड्यार ऐन अर दुयुंन स्वतः  निर्णय ले कि चुल्ल अलग हूण आवश्यक च।  बस तब बिटेन वा काकी कबि बि मैत नि भागी।
    फूंदी बौक मैत नयार किनारा छौ याने माछुं गां।   वींक अर सासु मध्य खूब झगड़ा हूंद छौ।  एक दिन गृह युद्ध विश्व युद्ध म बदल गे।  याने सास -ब्वारी मध्य कहासुनी हाथापाईम बदल गे।  ब्वारी मल्ल्युद्ध मा हारी गे।  तो फूंदीन उठायी एक धोती एक बिलौज  अर बुल्द बुल्द चल गे बल मि मैत जैक कै हैंका कुण बैठ जौलू पर ते रांडक मुक नि दिखण।  ब्वारी मैत भाजी गे।  थोड़ा देर बाद ब्वारी क्या दिखदि कि सास बि नै धोती अर नै अंगुड़  पैरिक ब्वारी क पैथर पैथर आणि छे।  ब्वारिन कुटबाग ब्वाल , " ये रांड ! धौळी मा फाळ मारणै जादि।  क्या छे म्यार पैथर आणि ?"
   अर सासुक बचन सूणी त ब्वारी लक्ष्मण पत्नी उर्मिला ह्वे गे याने सासु भक्त ह्वै गे ।  सासून जबाब दे , " हूं ! तू अपण बूबा की सैणी ! मैत जैली अर अफिक माछ खैली हैं ? मीन बि माछ खाणो त्यार मैत आण।  " द्वी दगड़ी ब्वारिक मैत चली गेन।  खैर इन घटना त सैकड़ों मा एक ही हूंदी छे।
   अच्छा एक बात आपन बि नोट करि ह्वेलि कि ब्वारी मैत तबि तलक भजदी छे जब तक ब्वारी माँ नि बण जा।  माँ बणी ना अर ब्वारी मैत नि भजदी छे।
   अजकाल ब्वारि  मैत नि भगदन , अर यदि भाजी बि गे त पैथर बिटेन तलाक अर बहू प्रताड़न कु नोटिस ऐ जांद।
  अचकाल बेट्यूं भजणो घटना जि बढ़ गेन बल चाहे देस हो या परदेस।
 


29/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,

*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।
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    ----- आप  छन  सम्पन गढ़वाली ----
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Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  परिपेक्ष में सफेद मूसली      की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan  Safed Musli ,  Chlorophytum borivilianum in Uttarakhand context

उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 37

    History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand - 37                       
         
  उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --  78

       History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -78
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Chlorophytum borivilianum
सामन्य अंग्रेजी नाम - Safed Musli, Safed Moosli
संस्कृत नाम -मुशाली:
हिंदी नाम -सफेद मूसली
नेपाली नाम -मूसली
उत्तराखंडी नाम -मूसली
 उत्तराखंड में पहाड़ों में व घाटियों में जंगलों में मिलता है और अब उगाया भी जाने लगा है।  डेढ़ फ़ीट ऊँचे पत्तीदार पौधे के ेजदें दस इंच गहरे भी जाती हैं।  फूल सफेद होते हैं।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - भारत
------------औषधि -----------------
सफेद मूसली की जड़ों के सत का प्रयोग यौन शक्ति वृद्धि , बांझपन दूर करने , सम्भोग शक्ति वृद्धि के अतिरिक्त  अन्य पौधों के आठ मिलाकर 100  से अधिक आयुर्वेदिक दवाई निर्माण में प्रयोग होता है।
 ------------------ धार्मिक महत्व ----------
राहु ग्रह  शांति में , देवी पूजन व नेपाली समाज में कुछ उतसवो में मूसली का प्रयोग होता है।
----------- पत्तियों की सब्जी -------
उत्तराखंड में भी अन्य स्थानों की तरह दवाई में प्रयोग होता है किन्तु पहले अकाल व सब्जी की कमी के समय पत्तियों की सब्जी बनाई जाती थी।  अब भी कभी कभी सब्जी बनाई जाती है।
 सब्जी बनाने के लिए पहले पत्तियों को उबाल लेते  निथार कर अलग रख दिया जाता है।

फिर कढ़ाई में तेल गरम कर प्याज , अदरक, जीरा , जख्या को भूरे होने तक भूना जाता है।  फिर उबली पत्तियों को कम मिश्रित  मसाले व नमक के साथ 5 मिनट तक पकाते हैं।  भीगी दाल जैसे चना व गहथ के साथ भी  सब्जी बनाई जा सकती है . फाणु, कपिलु हेतु भी मूसली पत्तियां प्रयोग की जा सकती है किन्तु शक्ति वर्धक दवाई होने के कारण लोग सब्जी कम ही प्रयोग करते हैं .



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