Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1123401 times)

Bhishma Kukreti

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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-66
 

   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

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Pious,पवित्र =  आज कख रै गे यु शब्द
Pizza ,पीजा = मेंहगो च तो क्या ह्वाइ , छ तो भर्युं इखड़ रुटळ  इ  ना !
Pithless ,निस्सार = राहुल गांधी भाषण
Plagiarism,साहित्यिक चोरी = उन  त वेदों बिटेन  हूणी च पर इंटरनेट का बाद  भौत बढ़ गे
Plan, योजना = सरकारी पूरी नि हूंदी , व्यक्तिगत पूरी ह्वे जांद
Plantation रोपण = भररत म भ्रस्टाचार को एक माध्यम
Plough हौळ = हूंद  तो कबि
Pocket,खीसा =  आम जनता का छुट किन्तु सरकारी मुलाजिमों अर मंत्रियों बड़ हूंदन
Pol son पोल्सन (मक्खन का एक प्रसिद्ध पुराणो भारतीय ब्रैंड ) = कबि चमचागिरी को पर्यायवाची शब्द
Populationजनसंख्या = भारत म मुस्लिम -हिन्दू तै बंटणो शब्द

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Copyright@ Bhishma Kukreti
गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,Garhwali  South Asian Satire , भारतीय सभ्य हंसी व व्यंग्य


Bhishma Kukreti

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ढांगू , हिमालय की  पाषाण उत्कीर्णन कला व कलाकार

ढांगू गढ़वाल संदर्भ में हिमालय की   लोक कलाएं व लोक कलाकार श्रृंखला - 10
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 प्रस्तुति -  भीष्म कुकरेती
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 ढांगू पट्टी , पच्छिमी , दक्षिण पौड़ी गढ़वाल (हिमालय ) में कुछ समय पहले तक कई तरह की पाषाण संबंधी कलाएं  जीवित थीं व कुछ आज भी विद्यमान हैं। 
  ढांगू पट्टी , पच्छिमी , दक्षिण पौड़ी गढ़वाल (हिमालय ) पाषाण शिल्प व कलाओं के बारे में निम्न ब्यौरा प्राप्त हुआ है
         ढांगू (हिमालय ) के घरेलू पाषाण पात्र या उपरकरण
पाषाण पयळ/गहरी थाली  - भूतकाल में स्वतन्त्रता से  कुछ समय पहले तक रसोई संबंधी पात्र जैसे पाषाण थाली (पयळ ) भी  ढांगू (हिमालय ) में  निर्मित होते थे। पळयो आदि रखने हेतु पयळ सही पात्र होता था। इसके अतिरिक्त मवेशियों को पींड (भोजन ) आदि खिलने हेतु भी पयळ सही पात्र था।  पयळ  के कलाकार वे ही होते थे जो सिल्ल बट्ट , दास (टोड़ी ) या छज्जा निर्माण करते थे. या छत पत्थर के कलाकार भी पयळ उत्कीर्ण कर सकते थे।
  पाषाण ओखली (उरख्यळ )  निर्माण -  अधिकतर प्रत्येक गांव में प्रत्येक परिवार की पाषाण ओखली या काठ की ओखली होती थी।  पाषाण ओखली हेतु पत्थर  छत के पत्थर व छज्जे के दास की खानों से ही मिलता था और वही कलाकार होते थे जो पत्थर निमाकलने व उत्कीर्ण के कलकार होते थे।
सिल्ल बट्ट - पाषाण काल से चले आ रहे इस उपकरण का महत्व आज भी है यद्यपि मिक्सर गरिन्द्र से सिल्ल बट्ट प्रयोग पर प्रभाव अवश्य पड़ा है किन्तु महत्व है ही।  सिल्ल बट्ट हेतु पत्थर खान (पख्यड़ खांडि ) लगभग वही खाने होतीं थी जो ओखली , दास (टोड़ी ) , छज्जे के पत्रों हेतु होती थीं और सिल्ल बट्ट निर्माण के व्ही कलाकार होते जो अन्य पाषाण उपकरण उत्कीर्ण करते थे। यही कलाकार बाद में खरल व मूसल के चिकने होने पर छीलते भी थे। 
    खरल या इम्मा दस्ता (Mortar ) प्रयोग - ढांगू में ठंठोली , गडमोला , नैरूळ -कैन्डूळ ,  वाड़ , गैंड ,झैड़ , मित्रग्राम -कठूड़ आदि गाँवों में वैद्य होते थे जिन्हे आयुर्वेदीय औषधि पीसने या मिश्रित करने हेतु पाषाण खरल की आवश्यकता पड़ती थी।  पाषाण खरल निर्माता भी वही होते थे जो सिल्ल बट्ट , ओखली का उत्कीर्णन करते थे या छज्जा  निर्माण कलाकार। 
  पाषाण चक्कियों का  प्रयोग -  कुछ समय पहले ढांगू  के प्रत्येक घर में एक जंदुर /चक्की का होना आवश्यकता थी।  अनाज पीसने हेतु एक आवश्यकता थी व अधिकतर  रसोई घर में चक्की बिठाई जाती थी। इसी तरह जहां गधेरे हों वहां पनचक्की भी आवश्यकता थीं।  पन चक्कियां अधिकतर पधान, सामाजिक उत्तरदायित्व  के तहत एक चक्की निर्मित करवाते थे व चक्की चलाने हेतु किसी चक्कीवान परिवार को दे देते थे जो चक्की की देखरेख , मरम्मत भी करता था व पिसाने वालों से आटा लेकर आजीवका चलता था।  बहुत से व्यक्ति स्वयं भी गदन तट  पर चक्की निर्माण करते थे व चक्की को आजीविका साधन बनाते थे।  अब दोनों प्रकार की छक्के अप्रासंगिक होती जा रही हैं।  अधिकतर चक्की के पाटे  , ओखली व और छज्जा  खान से उत्कीर्ण होते थे अतः चक्की /पनचक्की के पाट निर्माता भी वही होते थे जो छज्जा , ओखली व  सिल्ल बट्ट निर्माता होते थे।  चक्की बैठने का कार्य वही करते थे जो भवन निर्माण करते थे (मिस्त्री या ओड ) . हाँ चक्कियों को बाद में छिलाई हेतु स्थानीय कारीगर या कलाकार होते थे। 
  ढांगू (हिमालय )  में पत्थर की तकली - बहुत बार  काठ की तकली के स्थान पर  पत्थर की तकली भी प्रयोग होती थी।  पाषाण तकली हेतु कड़क पत्थर का प्रयोग होता था और अधिकतर भवन निर्माता कालकर पाषाण तकली बना देते थे। 
 ढांगू (हिमालय )  में  उड़्यार  /गुफा में लेखन - यद्यपि कम ही उड़्यार /गुफा के पत्थरों में लेख मिले हैं हाँ कई उड्यारों  में शिक्षा प्रसार के बाद उड्यारों के पत्थर पर बच्चे या शिक्षित अपना नाम या कुछ भी उत्कीर्ण कर देते थे या करते हैं।  उड्यार पाषाण पर उत्कीर्ण हेतु पत्थर या , कूटी आदि से लिखाई की जाती है। 
 ढांगू (हिमालय )  में पाषाण देव प्रतिमाएं - पाषाण देव प्रतिमा जो भी होंगे वे प्राचीन या कम से कम सौ डेढ़ सौ साल पहले की प्रतिमाएं या प्रतीक होंगे।  किन्तु ढांगू (हिमालय ) में इसका उल्लेख कम ही किया जाता कि फलां देव स्थल में पाषाण प्रतिमा लगाई गयी आदि।  गोल ढुंग रखकर देव मूर्ति (प्रतीक )  समझी जाती थी।  कहीं कही किसी गाँव में भैरव जैसे क्षेत्रपाल की पाषाण प्रतिमा दीवाल पर लगी हैं।  इस दिशा में खोज की अति आवश्यकता है।
    धार /मगर - कूल से पानी को नियम से गिराने हेतु   ढांगू में भी  पत्थर के धार या मगर का प्रयोग होता है।  जहां तक अभी तक इस लेखक को जो भी सूचना मिली है उसके अनुसार  ढांगू (हिमालय )  में पाषाण धार या पाषाण मगर  गढ़वाल से बाहर से ही मंगाए गए हैं।  जो धार लगवाता था (दान में ) वह धार के नीचे पत्थर पर शिलालेख भी उत्कीर्ण करवाता था उदाहरणार्थ जसपुर में मथि धार के धार को  स्व लोकमणि  बहुगुणा ने लगवाया था और शिला पर  कुछ या उनका नाम उत्कीर्ण था (संस्कृत में ) . यह खोज का विषय है कि शिलालेख भी बाहर ही खुदवाया गया था या किसी  स्थानीय कलाकार ने लेख खुदाई की थी।
 वास्तु शिल्प हेतु पाषाण प्रयोग - गढ़वाल की भाँति ही ढांगू में भी मकान निर्माण हेतु  कई प्रकार  के पत्थरों की आवश्यकता पड़ती थी
 छत के पत्थर हेतु सिलेटी पत्थर - ऐसे पत्थरों हेतु खाने होतीं थी और उन खानों से पत्थर निकालने वाले व उन्हें अकार में काटने का कार्य विशेष कलाकार करते थे।
छज्जे - छज्जे की खाने ढांगू में कम ही थीं याने उपयोगी पथ्हर न थे तो छज्जे  व चक्की पाषाण हेतु पैडलस्यूं पर निर्भरता थी।
छज्जे के दास या टोड़ी हेतु तथर - अधिकतर छत के पटाळ की खानों से ही दास मिल जाया करता था अन्यथा पैडळस्यूं पर निर्भर।
 मकान चिनाई हेतु पत्थर - मकान चिनाई में कई तरह के पत्थरों की आवश्यकता पड़ती है।  पत्थरों हेतु   मकान वाला अपने  खेतों में विद्यमान पत्थर खान या  किसी अन्य से मांगकर पत्थर खान से उपयोगी पत्थर निकलते थे।  पत्थर निकलने वाले भी कुछ ना कुछ हिसाब से ट्रेंड ही होते थे।
 पहाड़ी खेतों की दीवाल या अन्य दीवालों आदि हेतु भी पत्थरों का उपयोग करते थे। 
कभी कभी पाषाण कलाकार बच्चों हेतु पत्थर से खिलोने भी बनाते थे।  किन्तु कम प्रचलन था। 
 
   कहा  जा सकता है कि ढांगू पाषाण कला के मामले में हिमलाई क्षेत्र की पाषाण कला समझने हेतु  एक सही उदाहरण है।  ढांगू में वे सभी पाषाण कलाएं मिलती हैं जो कलाएं हिमालय के अन्य स्कूटरों में मिलते हैं।   
 
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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
Stone Carving Folk Arts of Dhangu Garhwal ,Folk  Stone Artisans of Dhangu Garhwal ;   Himalayan Stone Folk Art, Himalayan Stone Folk Artists ढांगू गढ़वाल की लोक कलायें , ढांगू गढ़वाल के लोक कलाकार

Bhishma Kukreti

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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-68 
 
   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

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Rabbit खरगोश = साहित्यकारों , चित्रकारों  द्वारा हिरण से  कम  प्रयोग कर्युं उपमा
Rabble, भीड़ = जेएनयू अर जामिया विश्वविद्यालय
Rant, बकबास/बड़बोल  = नेताओं  आश्वासन
Ration,रासन = छैं च , भरपूर च फिर बि लोग भूकन  मरदन
Recovery, वसूली =  जु राष्ट्रिय बैंकुं  अधिकारियों तै नि आंद 
Reform, सुधार = overused /अति प्रोयग कर्युं शब्द
Riddle,पहेली = राहुल गंदगी कु  राजनीति म आण
Ruin  बर्बाद हुयुं  (मकान ) = UKD राजनैतिक दल  का रूप म 
Rupee रुपया = जु  मथि  नि आंद , जैमा उछाला नि आंद
Ruse,छल , धोका = राजनीति
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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Roasting Garhwali satire , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,Garhwali  South Asian Satire , भारतीय सभ्य हंसी व व्यंग्य

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 ढांगू , हिमालय में बांस आधारित  कलायें  व कलाकार
 
ढांगू गढ़वाल संदर्भ में हिमालय की   लोक कलाएं व भूले बिसरे लोक कलाकार श्रृंखला - 11
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 प्रस्तुति -  भीष्म कुकरेती

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बांस भारत की संस्कृति का अंग सदियों से रहा है।  ढांगू  (पौड़ी गढ़वाल ) हिमालय में भी बांस एक महत्वपूर्ण लकड़ी है जिसके दसियों उपयोग होते थे ा कई कलाओं में बांस का हाथ था.  ढांगू , हिमालय में बांस आधारित कला अपने स्वयं के उपयोग हेतु व  रोजगार या आय साधन में भी बांस आधारित कला का उपयोग सदियों से होता ा रहा है।  अब ढांगू , हिमालय में बांस का उपयोग काम होता जा रहा है क्योंकि कृषि में कमी आने से कई कलाएं भी नष्ट होती जा रही हैं।
   ढांगू (पौड़ी गढ़वाल,  उत्तराखंड )  हिमालय में बांस  आधारित  कलाएं व उपयोग निम्न तरह से था (कम से कम 1970 तक ) -
बाड़ - खेतों की बाड़ या फियंसिंग हेतु बांस के लट्ठे ढांगू में सदियों से इस्तेमाल होते थे।
टाट - जब पशुओं को गोठ में बांधा जाता था तो पशुओं की रक्षा हेतु बांस के टाट बनाये जाते थे जो चलती फिरती बाड़ का काम कार्य करते थे।  टाट बनाने हेतु बांस के लट्ठे को दोफाड़ कर खड़े व पड़े में चार पांच पंक्तियों में बांस डंडे उपयोग होते थे।  बांस के इन फाड़े डंडों को बाँधने का कार्य माळु की रस्सी उपयोग  की जाती थी।  सर्यूळ ब्राह्मणों को छोड़  लगभग प्रत्येक मर्द टाट बनाने की कला जानता था। गोठ संस्कृति ह्रास होने से टाट संस्कृति भी समाप्ति के कगार पर है। सरकारी व्यवधान (बांस की कटाई मनाही थी ) से भी टाट संस्कृति को धक्का लगा है।
पल्ल व नकपलुणी निर्माण - ढांगू  (हिमालय ) के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर सब जगह गोठ संस्कृति (मवेशियों को खेतों में बांधना /रखना न कि  गोशालाओं में )   विद्यमान थी।  गोठ के सुरक्षा व्यक्ति को गुठळ  कहा जाता है।  गुठळ पल्ल के नीचे सोता या विश्राम करता है व मवेशियों को  पल्ल की बाड़ के अंदर बांधे जाते हैं।  पल्ल याने चलता फिरता कैम्प।  पल्ल दो होते हैं मुड़ेट (खेत की दीवाल पर खड़ा किया ) एक कम ऊंचाई का व आठ दस हाथ लम्बा होता है।  मथेट पप्ल  मुड़ेट पल के मुकाबले बड़ा होता है ( लम्बाई व ऊंचाई में भी )  और मथेट पल्ल को मुड़ेट पल के ऊपर रख कर टेम्पोरेरी कैम्प बनाया जाता है किनारे /साइड  में नकपलुणी खड़ी की जाती है जो ऊंचाई में मुड़ेट पल्ल के बराबर होती है किन्तु लम्बाई कम होती है आधी।   पल्ल बनाना भी एक कला है  और तकरीबन प्रत्येक परिवार पल्ल बनाते थे।  पल्ल का ढांचा /कंकाल बांस के आधे फाड़े डंडो को लिटाकर , खड़ा क्र बनाया जाता है जैसे टाट और संध्या स्थल में माळु की रस्सी से बाँधा जाता है।  फिर तछिल व माळु के पत्तों से छाया जाता है। 
दबल /दबली/नरळ  (पेरू /पेरी ) - अनाज भनगरीकरण हेतु ढांगू (हिमालय ) निवासी बांस के भंडार (दबल , दबली , पेरी , पेरू ) उपयोग में  लाते  थे।  बांस के दबल या दबली बड़े बड़े व् छोटे छोटे होते थे।  दबलों का ढांचा पंस की बारीक फट्टियों से बनाये जाते थे व गोबर व लाल मिटटी से लीपे जाते थे।  दबल या दबली के ढक्क्न टोकरीनुमा होते थे व बांस के ही बनाये जाते थे।  अधिकतर देखा गया था कि बांस के दबल निर्माता शिल्पकार परिवार के होते थे यद्यपि कोई पक्का नियम न था। 
टोकरियां - विभिन्न साइज व आयत की टोकरियां /कंडी भी ढांगू, (हिमालय  में निर्मित की जाती थीं वर्तमान में भी।  कई टोकरियों में ढक्कन होते थे कोई बिन ढक्कन के होते थे।  ढांगू , हिमालय में पीठ पर घास या लकड़ी लाने का रिवाज न था अतः पिट्ठू कंडी नहीं निर्मित होतीं थीं। 
कंगल  /कंघियां  - बादी जाति परिवार वाले बांस की कंघियां /कंगल   निर्माण के विशेषज्ञ होते थे। हालांकि अन्य बांस कला कलाकार भी कंघियां  निर्मित कर लेते थे। 
हुक्का - बांस से बंसथ्वळ  (हुक्का ) भी निर्मित होते थे व कोई भी तकननीसियन हुक्का बना सकता था।  हुक्के की नाई /नली भी बनाई जाती थी। 
हिंगोड़ - हॉकी नीमा खेल हिंगोड़ की स्टिक भी बांस से निर्मित होती है और जटिल कला नहीं है।
कलम - बांस व रिंगाळ से कलम बनाई जाती थीं व सभी इस कला के जानकार थे।
जल नल /water canal - कभी कभी जब कम पानी को किसी छोटे गधेरे से ले जाना हो तो दो  धारों के मध्य बांस के नल से पानी ले जाया जाता था किन्तु कम ही।  यह भी  जटिल कला न थी। कभी धार की जगह बांस की नली से धार बनाया जाता था।
बांसुरी व पिम्परी - बांस से बांसुरी व पिम्परी जो शहनाई या मुश्कबाज में प्रयोग होती है भी ढांगू , हिमालय में बनतीं थीं।  दोनों के निम्रं में विशेष कला व तकनीक की आवश्यकता पड़ती थी।
छट्टी /बारीक डंडी - बांस को छील कर बारीक डंडी बनाई जाती थी जो धान ताड़ने /rice thrashing के काम आती थी। 
मुणुक -  बारिश से बचने हेतु  पहाड़ों में छाता बनाया जाता था जो पीठ पर लटकाया जाता था व आधुनिक छाता नुमा भी होते थे, जिन्हे मुणुक कहते हैं ।  दोनों के ढाँचे निर्माण में बांस की छट्टियाँ /पतली डंडी उपयोग में ली जातीं थी।  और ऊपर से माळु के पत्तों से ढांचे को छाया  जाता था व माळु से बनधने का काम होता था।  कुशल कारीगर /कलाकार इन मुणकों को बनाते थे।
  अर्थी - सारे भारत, नेपाल , श्रीलंका  जैसे ही  ढांगू , हिमालय में भी   मृतक को बांस की अर्थी में श्मशान घाट ले जाया जाता है।  अर्थी बनाने हेतु कच्चे   बांस की डंडियां प्रयोग में आते हैं।  प्रत्येक गांव में  दो तीन अर्थी बनाने व मृतक शरीक को अर्थी में बाँधने के विशेषज्ञ होते ही  है।

संसार के अन्य भागों की भांति ढांगू में बांस एक बहुपयोगी वनस्पति है व इसके कई उपयोग हैं जिसके वस्तु निर्माण हेतु ढांगू , हिमालय में विशेषज्ञ कलाकार हुआ करते थे। 


-Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
Bamboo based  Folk Arts of Dhangu Garhwal ,Folk  Bamboo based Artisans of Dhangu Garhwal ;   Himalayan Bamboo based  Folk Art, Himalayan Bamboo based  Folk Artists ढांगू गढ़वाल की लोक कलायें , ढांगू गढ़वाल के लोक कलाकार


Bhishma Kukreti

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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-69   
 
   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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Sabotage,धोका = नितीश कुमार , चंद्र बाबू नायडू बढ़िया उदाहरण छन
Sacrifice, त्याग = ज्वा राजनीति म  नि दिखेंद
Sadism, पर पीड़न रति = अधिसंख्य प्रबंधकुं  सुभाव 
Salable, Always , सदा विक्री हेतु उपलब्ध = निर्दलीय सांसद,  विधायक , नगर सेवक
Scandal लोक भगार -= स्वतंत्र भारत की संस्कृति
Scare , डरण।  डर = गठबंधन सरकार म मुख्यमंत्री  की रोजाना की भावना कि पता नि दुसर पार्टीक क्या करदन धौं
Scheme स्कीम = नेताओं कुण जनता बौगाणो खिल्वणी
School, स्कूल = बच्चों तै सभ्य शैतान बणानो  कारखाना
Serpent गुरौ = अब मनुष्य बि
Sewage = गंडो नाला = सफाई कर्माचार्युं  मरणो जगा
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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Roasting Garhwali satire , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,Garhwali  South Asian Satire , भारतीय सभ्य हंसी व व्यंग्य , South Asian satire


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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B - 70 

 (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती   

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Terrorism , आतंकवाद =अपण गुस्सा वूं पर निकाळण
जौं तै पता नि तुमर असल समस्या छ क्या च। भैंस क गुस्सा मकड़ा पर
अर शायद यी निरीह प्राणी समस्या का जुम्मेबार हूंद बि नि  छन
Test,परीक्षा = कै तै असफल दिखणो माध्यम या कै तै  लज्जाणो माध्यम
Textbook,पाठ्यपुस्तक = मंहगी किताब जु तुम खरीददवा फिर धेला म बेच दींदा
अर पुस्तक विक्रेता कै हैंक विद्यार्थी तै मूंड दींदन
Thankless , अकृतज्ञ = कु नी ?
Thanksgiving, कृतग्यता = एक हरचदी संस्कृति
Thermal, ताप संबंधी = जड्डूं  म इ याद औंद
Thermometer  ,थर्मामीटर = डाक्टरों पास  इन यंत्र  जु  बतांद तुमर जेब कथगा कटण
Thesis,थीसिस = कै ना कै  तै भ्रमित करणो ग्रंथ 
Thick,गाढ़ो /म्वाटो =  नेताओ कि चमड़ी
Thickheaded ,मोटि बुद्धि वळ = राहुल गांधी

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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Roasting Garhwali satire , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,Garhwali  South Asian Satire , भारतीय सभ्य हंसी व व्यंग्य , South Asian satire, Mid Himalayan  satire,


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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B - 70 

 (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती   

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Terrorism , आतंकवाद =अपण गुस्सा वूं पर निकाळण
जौं तै पता नि तुमर असल समस्या छ क्या च। भैंस क गुस्सा मकड़ा पर
अर शायद यी निरीह प्राणी समस्या का जुम्मेबार हूंद बि नि  छन
Test,परीक्षा = कै तै असफल दिखणो माध्यम या कै तै  लज्जाणो माध्यम
Textbook,पाठ्यपुस्तक = मंहगी किताब जु तुम खरीददवा फिर धेला म बेच दींदा
अर पुस्तक विक्रेता कै हैंक विद्यार्थी तै मूंड दींदन
Thankless , अकृतज्ञ = कु नी ?
Thanksgiving, कृतग्यता = एक हरचदी संस्कृति
Thermal, ताप संबंधी = जड्डूं  म इ याद औंद
Thermometer  ,थर्मामीटर = डाक्टरों पास  इन यंत्र  जु  बतांद तुमर जेब कथगा कटण
Thesis,थीसिस = कै ना कै  तै भ्रमित करणो ग्रंथ 
Thick,गाढ़ो /म्वाटो =  नेताओ कि चमड़ी
Thickheaded ,मोटि बुद्धि वळ = राहुल गांधी

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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Roasting Garhwali satire , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,Garhwali  South Asian Satire , भारतीय सभ्य हंसी व व्यंग्य , South Asian satire, Mid Himalayan  satire,


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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B - 71   

 (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती 
 
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Thickness= गाढ़ोपन = जीन की सूजन
Thinking =सोच = मस्तिष्क को एक काम जु तब बंद  ह्वे जांद जब मस्तिष्क म thickness बिंडी  ह्वे जांद
Tourist यात्री = चुस्सू
Toupee , नकली बाल = मर्द द्वारा अफु तैं  बेवकूफ बणाणो  माध्यम
Town Council , नगरपालिका = कुछ गैर जिम्मेवार मूर्ख लोगुं  सभा
Town Hall , टाउन हाल = जख मथ्याक  गैर जुम्मेवार बैठदन
Town People , नागरिक = जौं तै सबसे मथ्याक बेवकूफ बणांदन
Toxic विषैला = हमर अधा से ज्यादा भोजन
Tradition परम्परा = हमेशा ही अच्छू  ही नि हूंद
Tragedy,त्रासदी = अर्णव गोस्वामी या रबीश कुमार को टीवी शो दिखण 

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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Roasting Garhwali satire , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,Garhwali  South Asian Satire , भारतीय सभ्य हंसी व व्यंग्य , South Asian satire, Mid Himalayan  satire,


Bhishma Kukreti

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झैड़  तल्ला   ढांगू , हिमालय की तिबारी काष्ठ  कला

झैड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल, हिमालय   की तिबारियों पर अंकन कला -2
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  हिमालय की भवन काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 2
H
ouse Wood Carving Art of Dhangu region, Himalaya -
चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

Curtsy - Devendra Gokuldev Maithani , Jhair
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 जैसा कि पहले अध्याय में सूचना दी चुकी  है कि गंगा तटीय झैड़ गाँव ढांगू क्षेत्र  में कर्मकांड , वैदकी हेतु एक महत्वपूर्ण   गाँव है।  देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी ने  झैड़  हिमालय संबंधी कई सूचनाएं इस लेखक को दीं।  देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी ने सूचना दी कि झैड़ में 2000 से पहले चार या पांच तिबारियां थीं।  तिबारी वास्तव में भवन के ऊपरी मंजिल का नक्कासी युक्त काष्ठ द्वार युक्त बरामदे को कहते हैं।  बरामदे के अंदर भाग में कम से क दो कमरे होते हैं और नीचे मंजिल में भी चार (अंदर  व बाहर X 2 ) कमरे होते हैं याने तिबारी (बरामदा ) तल (ground flour ) के बाहरी दो कमरों के ऊपर होती है व यदि ऐसी तिबारी पर काष्ठ या पाषाण नक्कासी /उत्कीर्णन न हो तो उसे डंड्यळ कहते हैं और ऐसे कमरों को या मकान को दुभित्या मकान यानेआगे पीछे  दो कमरे भी कहते है । 
 झैड़  में आज एक भी तिबारी साबुत नहीं बची है।  गोकुल देव मैठाणी की भी तिबारी थी जो गोकुलदेव मैठाणी  के पिता ने निर्माण करवाई थी।  चित्रमणि मैठाणी की तिबारी थी जो अब अंग भंग /समाप्त हो गयी है।  अब केवल  तिबारी काष्ठ के दो स्तम्भ ही बच गए हैं आसा है कोई इन्हे बचाने हेतु आगे आएगा क्योंकि आने वाले समय में यह इतिहास हेतु आवश्यक वस्तु होगी। देवेंद्र मैठाणी ने चित्रमणि की तिबारी के दो स्तम्भों के  चित्र इस लेखक को व्हट्सप माध्यम से भेजे। 
   देवेंद्र मैठाणी अनुसार गोकुलदेव (देवेंद्र के पिता ) की तिबारी व चित्रमणि मैठाणी  की तिबारियां क्षेत्र में भव्य तिबारियों में गिनी जाती थीं।  चित्रमणि मैठाणी की तिबारी में चार स्तम्भ थे याने तीन मोरी (द्वार , खिड़की , empty space for entry ) थीं व किनारे के दो काष्ठ स्तम्भ मिट्टी  पत्थर की दीवार से लगीं थीं व सभी चारों काष्ठ स्तम्भों निम्न आधार पत्थर के छज्जे में स्थापित थीं. छज्जों के नीचे पत्थर के दास (टोड़ी ) लगे थे।  एक तिबारी  लगभग 24  फ़ीट X 10  फ़ीट की ही होंगी व तिबारी स्तम्भ लगभग 6 फ़ीट के ऊपर रही होंगी।
     जिन तकरीबन बर्बाद होते काष्ठ स्तम्भों के छाया चित्र देवेंद्र मैठाणी ने भेजे हैं उनकी चमक सर्वथा समाप्त ही है अन्यथा जब बनी होंगी तो चमकदार काली भूरे रंग के नक्कासी युक्त संरचना रही ही होंगी। 
दोनों स्तम्भ एक जैसे हैं और उनकी कलाकृति में एक सेंटी मित्र का भी अंतर् नहीं है।  छज्जे पर टिकने वाला  स्तम्भ आधार  बाहर से सुंदर कलाकृत है।  स्तम्भ आधार  पर उल्टा कमल खुदा है जो अलंकृत है व कमल पत्तियां साफ़ झलकतीं है।  ऐसा लगता है कि स्तम्भ के भाग एक लकड़ी के लट्ठे पर नहीं खड़े किन्तु अलग अलग अलंकृत स्तम्भ आपसे में जोड़े गए हैं।  आधार से कुछ ऊपर स्तम्भ में जोड़ है , इस जोड़ में वृत्त का  डायमीटर /व्यास स्तम्भ के व्यास के छोटा है और जोड़ स्थल में गुटके याने नक्कासी युक्त काष्ठ के गोल नुमा टुकड़ों से चारों तरफ सजे हैं।  जोड़ की नकासी आनंद दायी है। 
   प्रत्येक जोड़ के ऊपर फिर से ऊपर की ओर खिलते कमल की पंखुड़ियां हैं व जैसे ऊपर न्य जोड़ आता है सके नीचे उल्टे लटके कलम पुष्प की  पंखुडिया दिखाई देती है व कभी कभी चीड़ के फल की पंखुड़ी का आभास भी देते हैं।  फिर जोड़ आता है व फिर जब छत के लकड़ी का नेहराब /धनुषाकार आर्च /arch आता है तो भी कमलाकर आकृतियां दिखाई देतीं है।  प्रत्येक जोड़ व कलम पंखुड़ियों के मध्य धारी अंकलकरण /fluting है याने बेल बूटे वाला उत्कीर्णन साफ़ दिखयी देता है.
   देवेंद्र मैठाणी ने सूचना दी कि जब उसकी तिबारी व चित्रमणि मैठाणी की तिबारी सही सलामत थीं तो arch , मेहराब में नयनाभिराम नक्कासी थी।  देवेंद्र मैठाणी की बाचीत से इस लेखक को लगा कि झैड़ की तिबारियों में वानस्पतिक  चित्रकारी हर जगह थी व छत व स्तम्भ को लगने वाली पट्टी पर कुछ रोचक चित्रकारी थी।  हां कहीं भी पशु या पक्षी न थे।  देवेंद्र मैठाणी ने बताया कि  प्रत्येक  तिबारी में ऊपरी भाग (arch ) कोलगते हुए स्तम्भ पर चक्राकार फूल थे व बीच केंद्र में गणेश की चित्रकारी थी।  गणेश का अर्थ है जो पूजा समय गोबर से अंडाकर एक गोल मूर्ति सी बनाई जाती है और इसी आकृति गोल अंडाकार , चक्राकार च पुष्प के मध्य आकृति उत्कीर्ण थी। 
जहां तक स्तम्भ अध्यन  का प्रश्न है  यह स्तम्भ  कलाकारी लगभग ढांगू की काष्ठ तिबारियों में पायी गयी हैं कुछ अंतर् हो सकता है किन्तु बहुत बड़ा अंतर् नहीं दिखाई पड़ता । 
जहां तक तिबारी काष्ठ उत्कीरण  कलाकारों का सवाल है इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल प् रहा है झैड़ में भी कहा जाता है तिबारी निर्माण कलाकार श्रीनगर या गंगापार या मथि मुलक (उत्तरी गढ़वाल ) से आये थे।  भवन निर्माण  निर्माता स्थानीय ओड ही थे और मंजोखी के ही होंगे
प्रश्न  यह भी है कि झैड़  वाले इन स्तम्भों के अवशेष ही सही बचा पाएंगे ?
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आभार छाया चित्र व    सूचना - देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी , झैड़
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House Wood Carving Art of, Jhair  village , Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की काष्ठ कला , हिमालय की  काष्ठ कला


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झैड़  तल्ला   ढांगू , हिमालय की तिबारी काष्ठ  कला

झैड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल, हिमालय   की तिबारियों पर अंकन कला -2
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 जैसा कि पहले अध्याय में सूचना दी चुकी  है कि गंगा तटीय झैड़ गाँव ढांगू क्षेत्र  में कर्मकांड , वैदकी हेतु एक महत्वपूर्ण   गाँव है।  देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी ने  झैड़  हिमालय संबंधी कई सूचनाएं इस लेखक को दीं।  देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी ने सूचना दी कि झैड़ में 2000 से पहले चार या पांच तिबारियां थीं।  तिबारी वास्तव में भवन के ऊपरी मंजिल का नक्कासी युक्त काष्ठ द्वार युक्त बरामदे को कहते हैं।  बरामदे के अंदर भाग में कम से क दो कमरे होते हैं और नीचे मंजिल में भी चार (अंदर  व बाहर X 2 ) कमरे होते हैं याने तिबारी (बरामदा ) तल (ground flour ) के बाहरी दो कमरों के ऊपर होती है व यदि ऐसी तिबारी पर काष्ठ या पाषाण नक्कासी /उत्कीर्णन न हो तो उसे डंड्यळ कहते हैं और ऐसे कमरों को या मकान को दुभित्या मकान यानेआगे पीछे  दो कमरे भी कहते है । 
 झैड़  में आज एक भी तिबारी साबुत नहीं बची है।  गोकुल देव मैठाणी की भी तिबारी थी जो गोकुलदेव मैठाणी  के पिता ने निर्माण करवाई थी।  चित्रमणि मैठाणी की तिबारी थी जो अब अंग भंग /समाप्त हो गयी है।  अब केवल  तिबारी काष्ठ के दो स्तम्भ ही बच गए हैं आसा है कोई इन्हे बचाने हेतु आगे आएगा क्योंकि आने वाले समय में यह इतिहास हेतु आवश्यक वस्तु होगी। देवेंद्र मैठाणी ने चित्रमणि की तिबारी के दो स्तम्भों के  चित्र इस लेखक को व्हट्सप माध्यम से भेजे। 
   देवेंद्र मैठाणी अनुसार गोकुलदेव (देवेंद्र के पिता ) की तिबारी व चित्रमणि मैठाणी  की तिबारियां क्षेत्र में भव्य तिबारियों में गिनी जाती थीं।  चित्रमणि मैठाणी की तिबारी में चार स्तम्भ थे याने तीन मोरी (द्वार , खिड़की , empty space for entry ) थीं व किनारे के दो काष्ठ स्तम्भ मिट्टी  पत्थर की दीवार से लगीं थीं व सभी चारों काष्ठ स्तम्भों निम्न आधार पत्थर के छज्जे में स्थापित थीं. छज्जों के नीचे पत्थर के दास (टोड़ी ) लगे थे।  एक तिबारी  लगभग 24  फ़ीट X 10  फ़ीट की ही होंगी व तिबारी स्तम्भ लगभग 6 फ़ीट के ऊपर रही होंगी।
     जिन तकरीबन बर्बाद होते काष्ठ स्तम्भों के छाया चित्र देवेंद्र मैठाणी ने भेजे हैं उनकी चमक सर्वथा समाप्त ही है अन्यथा जब बनी होंगी तो चमकदार काली भूरे रंग के नक्कासी युक्त संरचना रही ही होंगी। 
दोनों स्तम्भ एक जैसे हैं और उनकी कलाकृति में एक सेंटी मित्र का भी अंतर् नहीं है।  छज्जे पर टिकने वाला  स्तम्भ आधार  बाहर से सुंदर कलाकृत है।  स्तम्भ आधार  पर उल्टा कमल खुदा है जो अलंकृत है व कमल पत्तियां साफ़ झलकतीं है।  ऐसा लगता है कि स्तम्भ के भाग एक लकड़ी के लट्ठे पर नहीं खड़े किन्तु अलग अलग अलंकृत स्तम्भ आपसे में जोड़े गए हैं।  आधार से कुछ ऊपर स्तम्भ में जोड़ है , इस जोड़ में वृत्त का  डायमीटर /व्यास स्तम्भ के व्यास के छोटा है और जोड़ स्थल में गुटके याने नक्कासी युक्त काष्ठ के गोल नुमा टुकड़ों से चारों तरफ सजे हैं।  जोड़ की नकासी आनंद दायी है। 
   प्रत्येक जोड़ के ऊपर फिर से ऊपर की ओर खिलते कमल की पंखुड़ियां हैं व जैसे ऊपर न्य जोड़ आता है सके नीचे उल्टे लटके कलम पुष्प की  पंखुडिया दिखाई देती है व कभी कभी चीड़ के फल की पंखुड़ी का आभास भी देते हैं।  फिर जोड़ आता है व फिर जब छत के लकड़ी का नेहराब /धनुषाकार आर्च /arch आता है तो भी कमलाकर आकृतियां दिखाई देतीं है।  प्रत्येक जोड़ व कलम पंखुड़ियों के मध्य धारी अंकलकरण /fluting है याने बेल बूटे वाला उत्कीर्णन साफ़ दिखयी देता है.
   देवेंद्र मैठाणी ने सूचना दी कि जब उसकी तिबारी व चित्रमणि मैठाणी की तिबारी सही सलामत थीं तो arch , मेहराब में नयनाभिराम नक्कासी थी।  देवेंद्र मैठाणी की बाचीत से इस लेखक को लगा कि झैड़ की तिबारियों में वानस्पतिक  चित्रकारी हर जगह थी व छत व स्तम्भ को लगने वाली पट्टी पर कुछ रोचक चित्रकारी थी।  हां कहीं भी पशु या पक्षी न थे।  देवेंद्र मैठाणी ने बताया कि  प्रत्येक  तिबारी में ऊपरी भाग (arch ) कोलगते हुए स्तम्भ पर चक्राकार फूल थे व बीच केंद्र में गणेश की चित्रकारी थी।  गणेश का अर्थ है जो पूजा समय गोबर से अंडाकर एक गोल मूर्ति सी बनाई जाती है और इसी आकृति गोल अंडाकार , चक्राकार च पुष्प के मध्य आकृति उत्कीर्ण थी। 
जहां तक स्तम्भ अध्यन  का प्रश्न है  यह स्तम्भ  कलाकारी लगभग ढांगू की काष्ठ तिबारियों में पायी गयी हैं कुछ अंतर् हो सकता है किन्तु बहुत बड़ा अंतर् नहीं दिखाई पड़ता । 
जहां तक तिबारी काष्ठ उत्कीरण  कलाकारों का सवाल है इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल प् रहा है झैड़ में भी कहा जाता है तिबारी निर्माण कलाकार श्रीनगर या गंगापार या मथि मुलक (उत्तरी गढ़वाल ) से आये थे।  भवन निर्माण  निर्माता स्थानीय ओड ही थे और मंजोखी के ही होंगे
प्रश्न  यह भी है कि झैड़  वाले इन स्तम्भों के अवशेष ही सही बचा पाएंगे ?
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