Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1121815 times)

Bhishma Kukreti

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Mention of Treatments while Seeds Germinating in Kautilya’s Arthashastra

Agriculture Science in Kautilya’s Arthashastra -5
Applied Botany in Arthashastra -6
Plant Science aspects in Kautilya’s Arthashastra -10
Botany History in Maurya Period -11
BOTANY History of Indian Subcontinent –65
By: Bhishma Kukreti M.Sc. {(Botany), B.Sc. (Honours in Botany), Medical Tourism Historian)
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 Kautilya, Chanakya or Vishnugupta took care of each process in cropping in Arthashastra. In 34th paragraph of 24th chapter of 2nd book, Kautilya suggests that there should be supply of compost after seeds germination of the above crops. The compost should be of small fishes and milk. (1). Further, Kautilya explains that by applying the above, there is protection from insects.
                     Snake Repellent 
 In 35th paragraph of 24th chapter (Seetadhyaksha) of 2nd book (Adhyaksha Prachar), Kautilya states that if snake skin and cotton are burnt in the farm, the snakes would not appear up to the area where smoke was there. This is snake repellent method (1).
 In 36 Paragraph of 24th chapter of 2nd book, Kautilya suggested that the soil is to be mixed with the seeds before sowing and Kautilya suggested a Mantra for chanting at the time of seed sowing in 37 paragraph of 24th chapter of 2nd book.(1)
 By the above analysis it might be said that the agriculture science was well developed in Kautilya period (300 BC to 200 AD). The agriculture science   scholars had knowledge of each stages of cropping in India and Kautilya compiled that scattered knowledge in one book. There was system of gathering the knowledge from farmer’s experiences in India.  Agriculture was very important economic activity in India in Kautilya time.

References
1-Kautyaliya Arthashastra (Hindi) Translated by Prof Udayveer Shastri) Publihser- Mehrachandra , Lakshmandas Adhyaksha , Lahore, August 1925 p 265
Copyright@ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com , Mumbai India, 2020 

Bhishma Kukreti

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बुरांसी (लंगूर )  के अर्जुनदेव डोबरियाल के भवन की लौह लोक कला

लंगूर,   गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  men  अंकन कला -2 
House Wood  Carving  Art of  Langur Patti  -2 
Traditional House Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
पश्चिम लैंसडाउन तहसील /गंगा सलाण (ढांगू , उदयपुर, डबराल स्यूं , अजमेर , लंगूर , शीला ) गढ़वाल  हिमालय में  तिबारी , निम दारी भवन  कला  व लोक कलाएं
-गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   )  अंकन लोक कला ( विशेष -तिबारी अंकन )  - 49
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -  49
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संकलन - भीष्म कुकरेती

    लंगूर गढ़ी या भैरव गढ़ी एक ऐतिहासिक स्थल है जहां गोरखा सेना को बारह साल तक गढ़वाली प्रजा से युद्ध से जूझना पड़ा।  इसी गढ़ी के निकटवर्ती गाँव है बुराँसी।  बुराँसी , प्राचीन ढाकर मार्ग (डाडा मंडी - बांघाट ) में द्वारीखाल , रजकिल , बरसुडी के निकट का गांव है।  रजकिल की भाँती इस गाँव में डोबरियाल बहु संख्या में हैं।  व बुरांसी रजकिल पंचायत का ही भाग है।  बुरांसी  का सीधा सीधा अर्थ है जहां बुरांश अधिक हों याने ऊंचाई वाला गाँव। 
  पलायन एक चिंतन के टीम सदस्य दिनेश कंडवाल, मुकेश बहुगुणा व मनोज इस्तवाल ने अर्जुन देव डोबरियाल के निमदारी  की सूचना भेजी , बुराँसी के अर्जुन देव डोबरियाल की निमदारी में काष्ठ जंगला  नहीं अपितु पहले मंजिल पर लौह जंगला  है और बारीक स्तम्भ /छड़ी भी लौह के हैं ,  मुकेश बहुगुणा ने सूचना दी कि  अर्जुन देव डोबरियाल  की निमदारी  का निर्माण 1936  में हुआ था व कुल  रु 200   में लौह जंगला  तैयार हुआ था।  जंगले  की विशेषता है कि  बिन जोड़ के यह जंगला  है (मुकेश बहुगुणा की सूचना )
   अर्जुन देव डोबरियाल की  निम दारी  की एक अन्य  विशेषता है कि 12 घरों का बड़ा मकान है और आज भी पक्का है याने बास्तु कला में ड्यूरेबिलिटी का नमूना है।
  अर्जुन देव डोबरियाल की इस निमदारी की बड़ी विशेषता है कि  लौह जंगले  का निर्माण स्थानीय कलाकारों /मिस्त्रियों ने किया।  अतः   अर्जुन देव डोबरियाल की निमदारी   गंगा सलाण  की लोक कला का अभिनव नमूना है।  निमदारी मेके जंगल में लौह के छः छड़ियाँ व छः जालीदार भाग हैं /
   पुरातन शैली का यह एक नमूना है।  लैंसडाउन तहसील के इस ऐतिहासिक जंगले के बारे में अन्य जरूरी सूचनाओं का डॉक्युमेंटेसन आवश्यक है
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सूचना व फोटो आभार :  दिनेश कंडवाल , मुकेश बहुगुणा , मनोज इष्टवाल                                       
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  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

Bhishma Kukreti

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दिवागी ( उदयपुर ) में सोहन सिंह बिष्ट की निमदारी  में  भवन काष्ठ कला -अलंकरण
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साइकलवाड़ी /दिवांगी  में भवन काष्ठ कला /अलंकरण -2

उदयपुर  संदर्भ में गढ़वाल  , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर भवन काष्ठ अंकन कला - 9
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
 दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल ,स्यूं  अजमेर , , लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार भवन   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( अलंकरण motifs )  -  50
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 
 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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    दिवागी /साइकलवाड़ी वास्तव  में  किमसार (उदयपुर पट्टी , दक्दषिण  पश्चिम गढ़वाल  ) के ही भाग हैं।  साइकलवाड़ी /दिवागी से जण द्वीएक तिबारी व निम दारी की सूचनाएं मिली हैं व फोटो आनी बाकी है।  अभी दिवागी (साइकलवाड़ी ) के  सोहन बिष्ट की निम दारी  की सूचना फोटो सहित हरीश कंडवाल ने भेजी है। 
दिवागी के सोहन सिंह बिष्ट की  निमदारी  कला दृष्टि से नहीं अपितु बृहद भवन आकर की दृष्टि से भव्य है और अपने क्षेत्र में उच्च श्रेणी  में रखी  जाती रही है।  भवन में पहली मंजिल में काष्ठ जंगला कसा  गया है जिसमे 12 कमरे से अधिक।   भवन तिभित्या   अंदर व एक कमरा  बाहर  शैली में है। 
ऊपरी मंजिल के सभी कर्मों को बांधे  काष्ठ जंगला है।     काष्ठ जंगल  तीन ओर से बंधा हुआ व  पूरी जंगले  में 19 से अधिक काष्ठ स्तम्भ है व फिर आधार पर दो फिट के ऊपर रेलिंग है।  जंगले का आधार थांत पट्टी नुमा याने  bat blade  नुमा है व फिर सीधे  ऊपर छत से शीर्ष /मुण्डीर है।  स्तम्भ की पट्टी सपाट है याने कोई   मानवीय व प्राकृतिक अलंकरण दृष्टिगोचर नहीं होते है।  केवल ज्यामितीय कला के दर्शन होते हैं। 
   ऐसी जंगले दार निम दारी  निर्माण का समय 1970  से पहले ही रहा है।  उदयपुर  ढांगू , शीला में 1970  के बाद मैदानी भवनों की शैली आने लगी थी।
  सोहन सिंह बिष्ट की निम दारी   प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण हेतु  नहीं याद की जाएगी बृहद आकर हेतु याद की जाएगी व एक समय क्या आज भी सोहन सिंह बिष्ट की निमदारी  दिवागी व साइकलवाड़ी को बृहद बड़ी निम दारी हेतु पहचान (Recognition ) दिलाने में सक्षम है। 

सूचना व फोटो आभार : हरीश   कंडवाल साइकलवाड़ी
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संसोधित गटकोट  (मल्ला ढांगू ) की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार

Bhishma Kukreti

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Children of King Sudarshan Shah

General Characteristics of Sudarshan Shah Administration -18
History of King Sudarshan Shah of Tehri Riyasat – 145
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 145 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1379       
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
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 King Sudarshan Shah had a daughter from queen Sirmour ji. She was married with Mahendra Singh the prince of Bushehar. He had another daughter who was married with prince of Bilaspur (Himachal) Kingdom. Sudarshan Shah did not have any issue from queens Bamorji and Kangara princesses (1)
   Khanot ji had a son with Sudarshan Shah but he died at 8 years. That means Sudarshan Shah did not have any son from authorized queens .
  However, Sudarshan Shah had 8 sons when he died from Khavas or mistresses ( 2) The names of sons of Sudarshan Shah were Bhavani Singh (Shah  ) Sher Singh, Badridas Singh, Sovan Singh, Uttam Singh, Fateh Singh and Keshar Singh (20)
   It is said that  The name of mother of Bhavani Shah (Khvasan) was Gunkali or Gundevi (she was from Katoch family Kangra)  (3)
Dabral writes that (3) when Sudarshan Shah died he had four –five queens, seven eights Khavasan , eight sons, a couple of daughters and a dozen of grandchildren
 
   
References
1-Raturi , hari Krishna , Garhwal ka Itihas, Pundir Prakashan Tehri Page 320
2- Minya Prem Singh , Guldast tavrikh – 170
3-Dabral S.P , Tehri Garhwal Rajya ka Itihas bhag 1 (new edition) , Veer Gatha Press, Dogadda  , (1999  )page  147

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गटकोट  के जोत  सिंह - जितार  सिंह रावत की जंगलेदार निमदारी में काष्ठ  कला
गटकोट  (मल्ला ढांगू ) में भवन काष्ठ उत्कीर्ण कला  -अलंकरण  - 4
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला - 25
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर  , लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  51
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -51   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 गटकोट से तिबारियों व जंगलेदार निमदारियों की सूचना उत्साहवर्धक रही है।  अभी इस लेख में एक आम जंगलेदार निम दारी  की विवेचना की जायेगी जिसकी सूचना साहित्यकार व अध्यापक विवेका नंद जखमोला ने भेजी है।  (गटकोट की लोक कलाओं व तिबारियों आदि की सूचना में पहले ही गटकोट वर्णन आ चूका है )
गटकोट (ढांगू ) में  जोत सिंह रावत -जितार सिंह रावत की यह जंगलेदार  निमदारी ने अवश्य ही गटकोट  को एक गर्वयुक्त पहचान दी थी।  आज भी जोत सिंह - जितार सिंह रावत की 12  कमरों की जंगलेदार निमदारी यद् दिलाती है कि 1900 - 1970  तक ढांगू   में तिबारी , डंड्यळी , जंगलेदार निम दारी गाँव को एक गर्वयुक्त पहचान दिलाते थे।   इस लेखक का अनुमान है पहले तो पूरे गढ़वाल (उत्तरकाशी छोड़ कर ) में मिटटी पत्थर से सुसज्जित पहली मंजिल निर्माण 1890 के पश्चात ही शुरू हुआ होगा व संभवतया प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही तिबारियों का प्रचलन बढ़ा होगा। 
    गटकोट (मल्ला ढांगू )  में जोत सिंह जितार सिंह रावत की निम दारी में  पहली मंजिल पर काष्ठ  जंगला बंधा है जिसमे दस  काष्ठ हैं  जो लकड़ी के छज्जों पर टिके हैं व सीधी ऊपर छत की पट्टिका याने शीर्ष /मुण्डीर  पट्टिका से मिलते  हैं ।   प्रत्येक स्तम्भ के आधार पर दो फिट तक  पट्टियां लगाकर स्तम्भ आधार को  वृहद होने या मोठे आधार  होने की छवि प्रदान की गयी  है , दो फिट ऊंचाई तक रेलिंग व लकड़ी के जंगल हैं।  स्तम्भ व रेलिंग व जंगल स्पॉट ज्यामितीय ढंग से काटे गए हैं।  लकड़ी के छज्जे  व छत के दास भी सपाट आयताकार रूप में लगे हैं।  खिड़कियों पर ज्यामितीय अलकंरण  या कटान  . कहीं  भी  प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण के चिन्ह नहीं मिलते हैं।
ढांगू या पश्चिम -दक्षिण गढ़वाल में जंगले दार मकान का प्रचलन सन 1940 के बाद ही अधिक बढ़ा तो कहा जा सकता है यह  जंगलेदार निम दारी  स्वतंत्रता के पश्चात ही निमृत हुयी होगी व स्थानीय ओड व बढ़ई रहे होंगे। 
  अंत में कहा जा सकता है कि जोत सिंह -जितार सिंह की जंगलेदार निमदारी में ज्यामितीय कला उभर कर आयी है।  मकान में बड़ी होने या वृहद रूप होने से भव्यता आयी है।   

सूचना व फोटो आभार: विवेका  नंद जखमोला
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  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

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Painful Last Five months of King Sudarshan Shah  

General Characteristics of Sudarshan Shah Administration -18
History of King Sudarshan Shah of Tehri Riyasat – 145
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 145 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1379       
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
              Death of Sudarshan Shah
 The First Tehri Riyasat King experienced five very painful months  before his death.  As per Their Kingdom court archives (Register no 2, notes 10/1 ) , Sudarshan Shah died on 6th June 1859.  Queen or Khavasan Khaneti  ji had total control on Sudarshan Shah and palace. Without her permission , nobody could meet the ailing King.  Sudarshan Shah declared Bhavni singh (Shah) as his heir but could not find a perfect manger. Khavanis or queen Khaneti ji never accepted the will of King for declaring Bhavani Shah as future King . Khaneti  ji had affiliation towards Sher Singh and she wanted to coronate Sher Singh and not Bhavani Shah  after death of Sudarshan Shah (1)  .  Kaneti  Ji only allowed Sher Singh to meet ailing King and not Bhavani Singh (1)

1-Dabral S.P , Tehri Garhwal Rajya ka Itihas bhag 1 (new edition) , Veer Gatha Press, Dogadda  , (1999  )page  148

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ग्वील में वाचस्पति कुकरेती ('शिवजी ')  की भव्य तिबारी

      (जो अब ध्वस्त हो चुकी है)

ग्वील (ढांगू )  में तिबारी , निमदारी , जंगला काष्ठ कला /अलंकरण व लोक कलाएं -2
  House Wood carving (Tibari, Kwatha Bhitar , Nimdari, dandyal)  art of Gweel  -2

ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला - 26
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  52
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    52
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   ग्वील आर्थिक दृष्टि से तब भी समृद्ध स्थल /उर्बरक भूमि वाला स्थल था जब यहां गाँव नहीं बसा  था।   ब्रिटिश शासन स्थापित होने के बाद  सम्भवतया चार भाई जसपुर से ग्वील बसे (चक्रधर कुकरेती की कुकरेती वंशावली से अनुमान ) . जसपुर ग्वील में भूमि बंटवारे से भी लगता है कि  कम से कम चार भाई जसपुर छोड़ ग्वील बसे होंगे, एक ही भाई जसपुर रहा  व कुछ ग्वील वालों की जमीन जसपुर में फिर भी जमीन बची रही होगी जो उन्होंने बहुगुणाओं    को दान में दी , जखमोलाओं व खमण से आये  कुकरेतीयों  को बेचीं या दी। 
 ग्वील पानी के हिसाब से भाग्यशाली गाँव है छहों दिशाओं में  जल ही जल है तो समृद्धि होनी ही है।  टंकाण  स्कूल 1870 या आसपास खुलने से ग्वील , जसपुर व बड़ेथ व मल्ला ढांगू में शिक्षा प्रसार अन्य क्षेत्रों से पहले शुरू हुयी . ग्वील बड़ेथ के शिक्षित व्यक्ति सरकारी विभागों  व सेना में प्रवेश लिया याने  ग्वील में \भूमिगत समृद्धि के अतिरिक्त सरकारी नौकरी से भी समृद्धि आयी व  समृद्धि प्रतीक में ग्वील में कई भवन , तिबारी , निमदारी निर्मित हुए , ग्वील का क्वाठा भितर तो पूरे इलाके में प्रसिद्ध रहा है , आज भी।  चित्रमणि कुकरेती का तिपुर /तीन मंजिल , सफेद कूड़ तो भवनों में प्रसिद्ध रहे है हैं।  कुछ तिबारियों की सूचना व फोटो भी मिली है।  कुछ तिबारी /जंगले  कालग्रसित हो गए हैं उनकी जानकारी अब लोक कथाओं में ही रह गयी हैं।  राकेश कुमार या भूतपूर्व प्रधानध्यापक बिनोद कुकरेती जैसे सुधि जनों के कारण कुछ फोटो व सूचनाएं मिली हैं जो ग्वील  के भवनों की कला का डॉक्युमेंटेशन में कारगर सिद्ध होंगे। 
 इस लेख में यह लेख उस तिबारी की विवेचना करेगा जो खत्म ही हो चुकी है। भजन राम बन्धु ने यह तिबारी निर्मित कराई थी .  राकेश कुकरेती (पौत्र सदा नंद कुकरेती , मुख्त्यार जी ') va viml kukreti का कार्य - फोटो व सूचना जुटाना वास्तव में स्तुतीय है कि तिबारी तो न बच सकेगी पर डॉक्युमेंटेसन तो हो ही जाएगा।   तिबारी  वाचस्पति कुकरेती की है।  संभवतया तिबारी 1925 के बाद निर्मित  हुयी होगी। मकान तो सौड़  के शेर सिंह , बणवा सिंह परिवार ने ही निर्मित किया होगा किन्तु तिबारी उत्कीर्ण कलाकार बाहर के ही रहे होंगे।
    मकान तिभित्या /तीन भीत /दीवाल याने एक कमरा अंदर व एक बाहर शैली में है।  पहली मंजिल पर दो कमरों के मध्य दीवार नहीं है अपितु बरामदा बनता है और इसी बरमदा के बाहर  तीन खोळी /द्वार /मोरी वाली तिबारी है।  चार स्तम्भों की तिबारी के स्तम्भ पाषाण छज्जे के ऊपर टिके  हैं।  प्रत्येक स्तम्भ/ सिंगाड़ / column   पाषाण देहरी के ऊपर पत्थर चौकोर डौळ  के ऊपर टिके हैं।  स्तम्भ /सिंगाड़ का आधार याने कुम्भी या पथ्वड़  आकृति उलटे कमल दल पंखुड़ियों से बना है।  उल्टे कमल दल के आधार पर डीला /धगुल याने round  wood plate है जहां से उर्घ्वगामी कमल दल शुरू होता है।  कमल दल  के बाद स्तम्भ /सिंगाड़  का शाफ़्ट /कम मोटा स्तम्भ कड़ी  है जिसकी मोटाई ऊपर की ओर  कम होती जाती जय और जब सबसे कम  मोटाई आती है तो वहां पर दो डीले /धगुले  round wood plate उत्कीर्णित है और उन wood plates  के मध्य कमल पंखुड़ी आकृति उत्कीर्ण हुयी है।  ऊपरी डीले /धगुले  से उर्घ्वगामी कमल दल  शुरू होता है व बगल में मेहराब /तोरण /चाप arch का अर्ध मंडल शुरू होता है जो दूसरे  स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर चाप बनाता है।  चाप पट्टिका तिपत्ति  (trefoil) नुमा है मध्य में ही  तीखी है।  तोरण  बाह्य पट्टिका के किनारों पर फूल गुदे हैं फूलका केंद्र गणेश का प्रतीक है ,  जैसे पूजा में गोबर का गणेश बनाया जाता है।  तोरण  बाह्य पट्टिका पर वानस्पतिक कलाकृति गोदी गयी है।     तोरण शुरू होती है तो स्तम्भ   फैलता है  ( थांत पट्टिका /Blade जैसे ) . वास्तव में इस भाग पर ब्रैकेट /दीवारगीर लगे थे।   ग्वील , सौड़ में ऐसे दीवार गीरों /  ब्रकेट्स में प्राकृतिक कला उत्कीर्ण के अतिरिक्त मानवीय (पशु व पक्षी चित्रण ) हुआ है तो  वाचस्पति कुकरेती की तिबारी में भी सौड़ के शेर सिंह नेगी जिअसे ही कुछ पक्षी या पशु चित्रित हुए रहे होंगे (अनुमान )
  स्तम्भ ऊपर चौखट शीर्ष /मुण्डीर की दो भू समांतर पट्टिकाओं से मिलते है , जो छत की पट्टिका से जुड़ते हैं।  शीर्ष या मुंडीर पट्टिका पर पत्तियां या  प्राकृतिक  कला चित्रित /उत्कीर्ण हुयी है।
 वाचस्पति कुकरेती की तिबारी आखरी साँस ले रही है व मुझे आश्चर्य हो रहा है कि अभी तक लोग लकड़ी चोरी कर   नहीं ले गए हैं अन्यथा जब इस प्रकार के मकान  बिन देख रेख ध्वस्त होते है तो पत्थर , लकड़ी आदि लोग ऐसे ही उठा लेते हैं।
   वाचस्पति कुकरेती की तिबारी भी भव्य तिबारी रही होगी व  प्राकृतिक , मानवीय व ज्यामितीय कला अलंकरण  हुआ है।  आवश्यकता है ऐसी तिबारियों का संरक्ष्ण हो व सर्वेक्षण तो हो ही।     
सूचना व फोटो आभार : राकेश कुकरेती , ग्वील
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  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

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हथनुड़ (बिछला ढांगू ) की बिष्ट परिवार की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण

House Wood Carving (Tibari )  art , Motifs  of  Hathnur/Hatnur   (Bichhla Dhangu )  Garhwal
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला - 27
  Traditional House wood Carving Art /Motifs of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   -27
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  53
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   53
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 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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      हथनुड़  बिछला ढांगू (निकट सिलोगी , द्वारीखाल ब्लॉक , लैंसडाउन  तहसील, पौड़ी गढ़वाल ) का एक उर्बरक , कर्मठ लोगों का गाँव है जिसके निकटवर्ती गाँव हैं , अमोला , दाबड़ , कुठार , तैड़ी , किनसुर आदि गाँव हैं व  है। 
    उर्बरक व कर्मठ कृषकों के गाँव होने से समृद्ध गाँवों की श्रेणी में आता है हथनुड़ ।  किम्बदन्ती है कि  गोरखा काल से पहले हथनुड़ जसपुर के तहत वाला गाँव था।  भौगोलिक व तार्किक दृष्टि  लोक कथा को सच नहीं मानती है ।  किन्तु बहुगुणा गुरुओं  की पारम्परिक जजमानी हथनु ड़  में होने से साफ़ जाहिर है कि कभी भूतकाल में हथनु ड़  अवश्य ही जसपुर का हिस्सा रहा होगा।  राजनैतिक  व सामजिक सरंचना क्या रही होगी का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। 
     हथनुड़ से अभी  तिबारी की सूचना मिली है।   बिष्ट  परिवार की यह तिबारी अवश्य ही तब की  है जब तल घर में मंजिल में गौशाला का रिवाज अधिक प्रचलित था।  यद्यपि बिछला ढांगू में तल मंजिल में पशु व पहली मंजिल पर मानव का वास आज भी पस्चालन में है किंतु मल्ला ढांगू में अधिकतर गाँवों में गौशाला व घर अलग अलग ही हैं।  हथ नुड़  के बिष्ट परिवार की यह तिबारी अधिकांश रूप से दाबड़ में  विवरणित  तिबारियों जैसे ही है। 
 मकान तिभित्या याने  तीन दीवार अर्थात   एक कमरा अंदर व दूसरा  कमरा बाहर।  पहली मंजिल के दो कमरों  के  न हो बरामदा निर्मित है व इनके बहार काष्ठ  तिबारी  निर्मित या बिठाई गयी है।  तिबारी चार स्तम्भ वाली तिबारी है व ये चार स्तम्भ /सिंगाड़ /खम्भे /columns तीन विशिष्ठ /मोरी द्वार /खोळी  बनाते हैं।  किनारे के दो स्तम्भ दीवार से एक एक कड़ी (पट्टिका ) क ेमाध्यम से जुड़े हैं।  जोड़ू  कड़ी में वानस्पतिक या प्राकृतिक  अलकंरण  (कला )  उत्कीर्ण हुआ है।  जोड़ू  कड़ी के शीर्ष में संभवतया  काष्ठ   दीवारगीर (wood bracket ) लगे थे।  व इन दीवारगीरों  में प्राकृतिक , पर्तीकात्मक व् अमानवीय अलंकरण था।
   प्रत्येक स्तम्भ पाषाण छज्जे के ऊपर बिछाए  पाषाण देहरी (देळी ) में बिछे चौकोर पाषाण डौळ (Stone Base ) पर टिके हैं।  स्तम्भ के कुम्भी /पथ्व ड़  अधोगामी कमल दल /पंखुड़ियां से बने हैं व जहां से  अधोगामी तीखी है। 
कमल दल शुरू होता है वहां स्तम्भ पर गोलाकार डीला /धगुल है (Round Wooden Plate ) .  डीले या धगुल  से उर्घ्वगामी कमल दल /पंखुड़ियां शुरू होती हैं।  कमल दल के बाद फिर ढीला है व  स्तम्भ मोटाई में कम होता जाता है (Shaft ) जहां से  स्तम्भ कड़ी (Shaft )  सबसे कम मोटा होता है वहां  पर डीले /धगुले  हैं फिर उर्घ्वगामी कमल दल शुरू होते हैं यहीं से शाफ्ट की मोटाई बढ़ती ही व् ऊपर  कमल दल   है।  जब कमल दल समाप्त होता है वहीं से स्तम्भ से अर्ध मंडल /अर्ध चाप /half arch पट्टिका शुरू होती है  व दूसरे स्तम्भ की अर्ध मंडल क पट्टिका से मिलकर सम्पूर्ण तोरण / अर्ध मंडल बनाने में सक्षम है।  तोरण अर्ध मंडल या arch तिपत्ती  नुमा है हाँ मध्य की arch
  चाप पट्टिका के बाहर किनारे पर फूल हैं व अनुमान लगाया जा सकता है कि  इस  कोई ब्रैकेट था व उसमे आम प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय  अलंकरण हो सकता है।
 स्तम्भ तोरण शीर्ष ऊपर भू समांतर पट्टिका है जो छत के आधार काष्ठ पट्टिका से मिलती हैं।  शीर्ष पट्टिका में प्राकृतिक अलंकरण की पूरी गुंजायश है। 
 कहा जा सकता है हथनुड़  की यह तिबारी  भव्य किस्म की रही होगी व पाने गाँव को व क्षेत्र को अवश्य  विशिष्ठ पहचान  रही होगी जैसे आज भी है।   
सूचना व फोटो आभार : रश्मि कंवल , e -uttranchal .com
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Bhishma Kukreti

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छुणक्याली दथुड़ि ( गीत )
Musical shackle

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प्रकृति बिम्ब पैदा करती गढ़वाली गीत
कवित्री – प्रेमलता  सजवाण
A Garhwali lyric of Nature Images
By Premlata sajwan
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भाना, ऐ जा तू सरासरि घास कटणा कु झम्म
छमाछम बजै दे स्या, छुणक्याली दथुड़ि झम्म।
रूढ़ प्वडि़ डांडि, सुख्यीं सारि, कख आणे झम्म
छुणक्याली दथुड़ि का छुणका टुटि गैनि झम्म।
स्यों बाना तू अफ म राखि बौण ऐ झट झम्म
मेरी तिसलि रुझ्यिं आँख्यु , तीस बुझै दे झम्म।
दथुड़ि मेरी खूण्डि हुयीं च,पल्योण त दे झम्म
कैबे नि कैर,आँख्यु म सुरमा लगाणि दे झम्म।
आख्युं सुरमा लगैकि नि ऐ त्वै सौं मेरी झम्म
दिन दुपरि राति ह्वै जाण,स्यू बाघे डैर झम्म ।
त्वे दगड़ मेरि पल्येईं दथुड़ि, गीत सुणालि झम्म
टुट्यां छुणकों थै दथुडि़ फर, गठ्याणि दे झम्म।
देर- अबेर मि सै ल्युलु,तू टक्क लगै कि ऐ झम्म
माया कि पुंगड़ि बयीं धर्यी,"प्रेम" बीज ब्वै दे झम्म।
प्रेमलता सजवाण..

 

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