ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में कालिका प्रसाद बडोला के जंगले दार मकान में काष्ठ कला व लौह कला, अलंकरण
ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में लोक कला (तिबारी , निमदारी , जंगला ) कला -4
ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya 37
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण 37
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 63
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 63
( लेख में श्री , जी नहीं लगे हैं )
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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मकान निर्माण मनुष्य की समस्या आदिकाल याने गुफा काल से ही रही है। मकान निर्माण हेतु संसाधन , निरंतर आय व तकनीक सुलभता की आवश्यकता गुफा काल में भी थी और आज भी।
गढ़वाल में सन 1890 तक लगभग तल मंजिल मकान या झोपड़े (उबर ) ही थे। बिरलों के सिलेटी पत्थर की छतदार मकान होते थे या रहे होंगे (जौनसार में कुछ अपवाद छोडकर ) . गोरखा या उससे पहले गढ़वाली राजाओं के समय मकान पर बहुत अधिक कर लगने के कारण मकान ऊपर मंजिल की और न बढाकर भू समांतर बढ़ाये जाते थे। आधे से अधिक परिवार तब गोठ में ही सोते थे। जैसे जसपुर के कुछ परिवार पल्ल के नीचे ग्वील में सोते थे व जाड़ों में ऊपर जसपुर आ जाते थे।
एक मंजिला मकान की परम्परा ब्रिटिश काल में तब शुरू हुआ जब संसाधन बढ़े व तकनीक- तकनीशियन व उपकरण (पत्थर तोड़ने , मिटटी खोदने ) सुलभ होते गए।
तिबारी निर्माण लगभग 1910 के पश्चात ही शुरू हुआ होगा। जंगलेदार मकान को प्राचीन शैली नहीं कहा जा सकता अपितु आधुनिक ही कहा जायेगा (लगभग 1940 के बाद ) । वास्तव में जंगलेदार मकान वे ही निर्माण करते थे जिन्हे पाषाण छज्जे की समस्य हेलनि पड़ती थी अथवा नौकरी की वजह से जो मैदान व ब्रिटिश शैली से कुछ प्रभावित होते थे।
जैसा कि पहले भी चर्चा की गयी थी कि ठंठोली में सब प्रकार के मकान थे जैसे तिबारियां , निमदारियां , काष्ठ युक्त जंगलेदार मकान , लौह के जंगलेदार मकान (जैसे शेखरा नंद , सुदंर लाल कंडवाल का पैतृक मकान ) . काष्ठ जंगलेदार मकानों की शृंखला में आज ठंठोली के कालिका प्रसाद बडोला के काष्ठ जंगले में कला विवेचना होगी।
कलिका प्रसाद बडोला वर्तमान में मुंबई में निवास करते हैं। कलिका प्रसाद बडोला का चार कमरों वाले जंगलेदार मकान में पहली मंजिल पर लकड़ी का छज्जा , लकड़ी के दासों पर टिका है और जंगले में लकड़ी के छज्जे पर T आकृति के स्तम्भ है। T आकर के स्तम्भ ही इस भवन के जंगले को ढांगू के अन्य जंगलेदार मकान से अलग कर देते हैं। स्तम्भ के ऊपरी भाग याने ऊपर टी T अकार आकृति छत आधार की कड़ी से जोड़े गए हैं । स्तम्भों के ऊपरी भाग में T आकृति जंगके को तोरण नुमा छवि प्रदान करती है और यही है ठंठोली में कलिका प्रसाद बडोला क ेजंगले की विशेष्ता।
जंगल के स्तम्भों को भू समांनांतर लौह पट्टिकाओं या सरियाओं से जोड़ा गया है जो मकान की छवि वृद्धि में कामयाब है। ठंठोली के कालिका प्रसाद बडोला के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला में केवल ज्यामितीय अलंकरण के दर्शन होते हैं कहीं भी प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण के दर्शन नहीं होते हैं।
कालिका प्रसाद बडोला का जंगलादार मकान में काष्ठ कला , अलंकरण दृष्टि से दक्षिण गढ़वाल में अन्य जंगलेदार कला युक्त जंगला जैसा ही ही किन्तु स्तम्भ के शीर्ष में T अकार ने इस जंगल को अलग दर्जा दे दिया है। टी आकर कम ही मिलता है .
मकान सन 1958 में निर्मित हुआ था ।
सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती कठूड़ व मुकेश बडोला
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