Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1117483 times)

Bhishma Kukreti

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Judiciary,Police system and Treasurer in Tehri King Pratap Shah period
H
istory of Tehri King Pratap Shah Period – 4
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 17
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1415     
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
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 There were four divisions in judiciary -  Deewani, Faujdari, Srasari and Collecotry from Sudarshan Shah Period. The British Indian courts used to us Persian language for judiciary,. Saklan Jagirdar also used to use Urdu or Persian.  Bhavani Shah changed his seal by Urdu and below that Devnagari name.  The Tehri courts started working in Urdu language too. Pratap Shah used to give decisions on important matter. His brother Kumwar Bikramshah used to look after Chhoti Diwani or lower court as Judge. (1)
  Pratap Sah appointed Shankar Datt Dyundi as Senior Najir or Inspector and Fatte Singh Butola as Chhota Nazir or junior Inspector. There used to be two soldiers standing at Court gate. Pratap Shah  instructed to deliver decision within a month. (10
 Barring murders, Jagirdar or Pahdhan used to actas judiciary judge for crimes in rural region.
          Police management:-
The King Pratap Shah appointed Shiv Datt Dangwal and his brother Devi Datt dangwal as Kotwal for keeping law and order in the capital and in the state.  Later on the King appointed Shiav Datt as Thanedar of Ravain region.
The stae was divided into four Thana region – Ravain, Taknour, Chula, and Devprayag,.There used to be a Thanedar , a couple of soldiers and a couple of  assisting staff in each Thana.(1).
 Apointmet of Treasurer:-
 Ram Prasad Khatri was treasurer of Kingdom in Bhavani Shah Period.   Ram Prasad started using corrupt methods and showed dishonesty (2) . King Pratap Shah changed him and appointed his younger brother Chhote Lal  as treasurer.  Chhote Lal also started indulging in corrupt practices and dishonest practices. Then Pratap Shah appointed Badari lal  the son of  Ram Prasad as treasurer. Badri lal also became corrupt and the King handed over Treasurer key to Shankar Datt Nazir.  Chhote Lal and Badri  Lal have to spend their life in Dehradun in poverty.
References
1-Dabral S.P, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 180 
2- Minya Prem Singh, Guldasat -E-Tavariksh page 214
Copyright@ B.C .Kukreti, bckukreti@gmail.com
History of Pratap Shah the Tehri King will be continued …

Bhishma Kukreti

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CEO should have  Caring behavior and not Cruel nature

Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 58
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)
आनृशंस्यं  परो धर्म:   सर्वप्राण   भृतां यत:  I
त्समाद्राजा  अअनृशंस्येन पालयेत्कृपणम  जनम्  II(159)
नहि स्वसुखमन्विच्छन् पीडयेत्कृपणम   जनम् I
 कृपण: पीड्यमान: स्व्मृतुना हंति पार्थिवम्    II (160)
(  Shukra Niti  Rajkrityadhikar Nirupan,159-160  ) 
 Translation:-
The king should raise the weaker section by kind heart. Kind behaviour (no cruelty) is the ultimate religion.   The king should not harass weak people for his self-benefit. Because, the death  or injury to  weak person harms the King.
(  Shukra Niti  Rajkrityadhikar Nirupan,159-160  ) 
 CEO must have caring behaviour for running the organization competitively-:
 The CEO should care for weaker section by kind heart and not by cruel heart.
The kindness inspires people to work for CEO.
References
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 36
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020



Bhishma Kukreti

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खमण में  'बम्बै क  सेठुं' याने भोला दत्त  कुकरेती बंधुओं की भव्य निमदारी   में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन

खमण  में तिबारियों  , निमदारियों  में काष्ठ  कला , अलंकरण उत्कीर्णन भाग -5

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 101   

(लेख   अन्य पुरुष में है इसलिए जी , श्री का प्रयोग नहीं हुआ )

 संकलन - भीष्म कुकरेती

खमण कृषि ही नहीं  उन्ना  देस (भैर  देश ) नौकरी  में भी एक समृद्ध  गाँव है।  प्रस्तुत    स्व भोला दत्त कुकरेती , स्व  कृष्ण दत्त कुकरेती बंधुओं की  निमदारी इस बात का साक्षी है कि पलायन के  शुरुवाती दिनों या समय में प्रवासियों ने प्रवास में  अपने रहने खाने में निवेश न कर  अपने पहाड़ी  गाँवों में मकान आदि  में निवेश किया।  उदाहरण सामने है कि स्व भोला दत्त   कुकरेती व स्व  कृष्ण दत्त कुकरेती रेलवे  में नौकरी करते थे किन्तु उन्होंने मुम्बई या देहरादून में पहले अपने रहने खाने की चिंता न कर खमण में भव्य निमदारी पर निवेश किया।  स्व  कृष्ण दत्त कुकरेती ने सन 1968  के लगभग ही मुम्बई में अपने लिए रहने हेतु भवन फ़्लैट खरीदा, किन्तु पहले पहल खमण में निमदारी निर्मित की।

  'बम्बै क  सेठुं' याने  भोला दत्त कुकरेती  बंधुओं की निमदारी  काफी भव्य है व अपने समय में खमण  में  नहीं अपितु आस पास के गाँवों में ' बम्बै क सेठुं  जंगला ' कहलाया जात्ता था।  बरात आदि का स्वगत इसी ' बम्बै क सेठुं जंगलेदार  निमदारी '  में होता था।  खमण में 'बम्बै का  सेठुं जंगला '  एक लैंडमार्क था व एक विशेष पहचान था।  दो मंजिली जंगलेदार  निमदारी  का बिस्तार काफी है , आंगन भी क़ाफी बड़ा है।    तल व पहली मंजिल में  संभवतया दस कमरे हैं। ढांगू , डबरालस्यूं क्षेत्र जैसा ही मकान की पहली मंजिल में पाषाण छज्जा है जिसके आधार  भी पाषाण दास /टोड़ी हैं। पाषाण छज्जे के बाहर काष्ठ  छज्जे  की कड़ी जोड़ी गयी है जिस पर 16 लगभग काष्ठ  स्तम्भ  स्थापित हैं।

  बम्बै क  सेठुं याने भोला दत्त बंधुओं की निमदारी के स्तम्भों  की विशेषता है कि  आधार से कुछ ऊपर (2 फ़ीट करीब ) कटान से  डीला नुमा व घुंडी नुमा वा आकृति अंकित है व फिर कुछ ऊपर  अधोगामी पद्म दल , डीला  व ऊपर उर्घ्वगामी पद्म  दल  उत्कीर्णित है जहां से स्तम्भ का थांत  (bat  blade  type ) आकृति बनती है तो दूसरी ओर  दोनों दिशाओं में  काष्ठ तोरण /मेहराब / चाप /arch का आधा भाग निकलता है जो दुसरे स्तम्भ के आधे चाप भाग से मिलकर तिपत्ति  नुमा मेहराब बनाते हैं।  काष्ठ तोरण /चाप /मेहराब arch  निमदारी की सुंदरता वृद्धि में बहुत अधिक सहायक भूमिका निभाने में सहायक हुए हैं।  एक तरफ स्तम्भ का थांत  (bat blade type wood plate ) मकान के छत आधार काष्ठ पट्टिका से मिलता है तो मेहराब /तोरण शिरा (मुरिन्ड ) भी  पट्टिका स   मिलते  हैं।

 मकान के कमरों के दरवाजों पर कोई विशेष उल्लेखनीय  नक्कासी के दर्शन  नहीं होते हैं।   मकान 1947  के बाद ही निर्मित हुआ होगा। 

निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि  'बम्बै  क सेठुं'   याने स्व भोला दत्त कुकरेती बंधुओं  की निमदारी  में ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्णित हुए हैं और मानवीय अलंकरण नहीं हुआ है।  अपने बड़े होने से  'बम्बै  क सेठुं'   याने स्व भोला दत्त कुकरेती बंधुओं  की निमदारी  भव्य लगती है और आज भी भव्य है।   

सूचना व फोटो आभार : राजेश कुकरेती , बिमल कुकरेती

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020

  ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला   

 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   

  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला  -

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   

  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

 

Bhishma Kukreti

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जाजर (पाताल भुवनेश्वर)  में  गणेश सिंह रावल की बखाई में काष्ठ कला , अलंकरण

उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बखाई , मोरी , छाज   ) की  काष्ठ अंकन लोक कला    श्रृंखला  - 102

 संकलन - भीष्म कुकरेती

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  जैसे कि  ग्रामीण उत्तराखंड भवनों के सर्वेक्षणों   व दस्तावेजी करण    से साफ़ पता चलता है कि ब्रिटिश  शासन में गढ़वाल में तिबारी भवन संस्कृति  पली तो कुमाऊं में बखाई संस्कृति जो वास्तव में चंद राजाओं के समय से चली आ  रही भवन संस्कृति का दूसरा या समृद्ध रूप है।
 आज जाजर  में गणेश सिंह रावल के भव्य तिपुर  (तल +2  मंजिल) बखाई  पर चर्चा की जाएगी।  जाजर  गाँव पिथौरागढ़  बेरीनाग  नाग ब्लॉक में भुवनेश्वर पंचायत का हिस्सा है। 
गणेश सिंह  रावल की तिपुर शैली की बखाई में  विवेचना हेतु हमें  पहली मंजिल में तीन बड़ी खोलियों , दूसरी मंजिल में पांच बड़ी खोलियों , दूसरी या सबसे ऊपरी मंजिल में तीन तोरण  या मेहराब नुमा खिड़कियों  में काष्ठ  कला  का अध्ययन आवश्यक है।  मकान में छज्जा बिलकुल छोताहै जो द्घवाल में छज्जा संस्कृति से बहुत ही छोटा है।
  सभी  मोरियों में तकरीबन दोनों किनारों के स्तम्भ/सिंगाड़   वास्तव में  दो दो नक्कासीदार  स्तम्भों के जोड़ से बने  हैं। स्तम्भ के आधार में अधोगामी व उर्घ्वगामी कमल पुष्प व डीले हैं जो सुंदर छवि प्रदान करते हैं , आधार के  सबसे ऊपर का उर्घ्वगामी  कमल दल समाप्त होता है तो स्तम्भ सीधा होकर स्तम्भ शीर्ष या मुरिन्ड से मिल जाते हैं /जाता है। मुरिन्ड या शीर्ष चौकोर कड़ी  से निर्मित है।  शीर्ष /मुरिन्ड  शुरू होने से पहले दोनों  ओर के स्तम्भ से मेहराब /arch .तोरण  शुरू होता है जो  दूसरे  स्तम्भ के अर्ध तोरण  से मिल पूरा  तोरण  बनता है।  तोरण /arch ट्यूड  आकृति का है.  अधिकतर खोलियों में  ऊपर तोरण के विरुद्ध नीचे बिलकुल विरोधी आकृति का तोरण  भी उत्कीर्ण हुआ है। 
  खोली के दरवाजों पर ज्यामितीय अलंकरण ही अंकन हुआ  है।
दूसरी मंजिल या सबसे ऊपरी मंजिल में दो प्रकार की खड़कियाँ है एक सबसे ऊपर व दूसरी किस्म की मध्य में।  उप्पर की खड़कियाँ चौकोर सामन्य है. मध्य की काष्ठ  खिड़कियों  में है तो ज्यामिति अलंकरण किन्तु मेहराब बनने से  खिड़कियों की सुंदरता ही नहीं बढ़ती अपितु  खिड़की के मेहराब मोरियों की सुंदरता में वृद्धिकारक आकृतियां बन जाते हैं। 
  गणेश सिंह रावल की भव्य तिपुर   बखाई   में खोलियों व मेहराबदार खिड़कियों में ज्यामितीय , प्राकृतिक कला अलंकरण हुआ है किन्तु  कहीं भी मानवीय  अलंकरण (मानव , पशु , पक्षी  या आधात्मिक धमरिक प्रतीक) नहीं दिकता है। 

  सूचना व फोटो  आभार: राजेंद्र सिंह रावल , जाजर   
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
कुमाऊं   संदर्भ में उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  ( बखाई , मोरी , छाज ) की काष्ठ अंकन लोक कला   श्रृंखला  - 4
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Kumaon , Uttarakhand , Himalaya -   4

Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  , Uttarakhand , Himalaya -    102
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Bhishma Kukreti

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मस्ट  (डबरालस्यूं ) में बिष्ट बंधुओं के  जंगले दार मकान / निमदारी में काष्ठ  कला   , अलंकरण 

डबरालस्यूं  गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला - 10 
  गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , मोरियों , खोलियों   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 103
 (कला व लंकरण पर केंद्रित )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

 डबराल स्यूं में  मस्ट पाली चैलू सैण के निकटवर्ती महत्वपूर्ण गाँव है , दोनों गाँवों को एक साथ ही जोड़कर बोलै जाता है।  इसका एक कारण है कि पाली  गाँव मल्ला ढांगू में भी है तो गलतफहमी न हो हेतु मस्ट पाली प्रयोग होता है। 
 मस्ट में बिष्ट बंधुओं का जंगलादार मकान ने मस्ट को एक विशेष पहचान दी।  काष्ठ कला वालनकरण में उच्च कटी का कार्य न होने पर भी जंगलादार  मकान / निमदारी  भव्य है व  बिगरैल ु भी है।
  बिष्ट बंधुओं क ेह मकान दुपुर याने तल व् पहली मंजिल वाला मकान है।  जंगला पहली मंजिल पर है।
तल मंजिल में फुट में दो  बड़े स्तम्भ दिखाई दे रहे हैं , दोनों स्तम्भों में शानदार  नक्कासी हुयी है व दोनों स्तम्भ पहली मंजिल को टेक दे रहे हैं।  फोटो में यह पहचान नहीं हो सक रही  है कि तल मंजिल के बड़े शक्तिशाली स्तम्भ पत्थर/सीमेंट  के हैं या काष्ट के।
   पहली मंजिल प के इस जंगले  में  केवल  सामने की ओर जंगला बंधा है व 15 काष्ठ स्तम्भ हैं।  स्तम्भ सपाट हैं याने उन पर ज्यामितीय अलंकरण हुआ है लेकिन  न तो प्राकृतिक (बेल बूटे ) और ना ही मानवीय (पशु , पक्षी या धार्मिक प्रतीक ) अलंकरण हुआ है
  जंगले के स्तम्भों में ढाई फिट ऊंचाई तक लौह जाली या रेलिंग है।
 निमदारी  के छत में टिन  की पट्टिका व बड़ी खिड़कियों  से साफ़ जाहिर है कि  मष्ट में बिष्ट बंधुओं की निमदारी  सन 1960  के पश्चात ही निर्मित हुयी होगी।   
निष्कर्ष है कि बिष्ट बंधुओं की निम दारी  भव्य है किंतु काष्ठ  कला में कोई उल्लेखनीय अलंकरण नहीं दीखता है

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध  हिमालयी संस्कृति फोटोग्राफर बिकम तिवारी

Copyright@ Bhishma Kukreti  for detailing

डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला  10
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  - 10
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों  , बखाईयों , मोरियों  , खोलियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -     

  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला   


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Construction works initiated by Pratap Shah and Establishing New city l Pratap Nagar
History of Tehri King Pratap Shah Period – 4
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 17
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1415   
 
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
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   Pratap Shah had keen interest in construction,. Pratap Shah built a garden in Tehri city. Pratap Shah constructed a road suitable for motor Fiten. The king constructed a few roads in rural regions. He built Rest Houses in Tehri Kingdom. Pratap Shah built court house and a couple of houses in Tehri city. The King constructed one mile motor road from Motibag to Ranibag and three miles motor road from palace to Ranibag.(1)
     -: Establishing Schools and Hospitals-:
 Pratap Shah established a primary school in Tehri city and that had been only school in the Kingdom for many years. Later on the school was graded to middle school and now, an inter college.
 -: Establishing Hospital in Tehri city:-
 The King established a government hospital in Tehri city. Rajvaidya Ravi Datt was herbal doctor and doctor Hariram Bhartiya was allopathic doctor there in hospital.(10
 Pratap Shah establishing a new City Pratap Nagar:-
Tehri city had basic geographical problem that in summer it was too hot and in winter it was too cold and there used to be fog all the day.
There was a hill at the height of7000 feet high and nine miles away from Tehri. The hill had pines, oak and rhododendron trees   in the hill Plato. Pratap Shah established there a City in 1877that had court, palace , treasury, and housing colonies for the state employees.  Pratap Sah maintained the Bhilangaan Jhual bridge, Pratap Shah constructed connecting road from Tehri to Pratap Nagar.  Pratap Shah also built garden and constructed canals for gardens too (2). 
Virtually Pratap Nagar was summer capital(1) 


References
1-Dabral S.P, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 181 
2-  Paul Breton, A hermit in the Himalayas pp 173-74   
Copyright@ B.C .Kukreti, bckukreti@gmail.com
History of Pratap Shah the Tehri King will be continued …


Bhishma Kukreti

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CEO must have gentlemen as friends those make him/her Happy
Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 59
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)
सुजनै: संगमं कुर्याद्ध्माय च सुखाय च I
सेव्यमानस्तु सुजनै: महानतिविराजते II161II
हिमांशुमालीव तथा नवोत्फुल्लोत्प्लं सर
 आनंददयति चेतासि यथा सुजन चेष्टितम् II62II
(  Shukra Niti  Rajkrityadhikar Nirupan,161-162  ) 
Translation:-
 Happiness and peace (righteous essence) come by companying good friends. Therefore, you should make good friends only.  That means The King get happiness by good friends (Associates and advisors) as moon and garden with pond and lotus make us happy. (  Shukra Niti  Rajkrityadhikar Nirupan161-162  ) 
There following aspects of good friends and  they are creating /affecting happiness -
 CEO must know about happy friends make him /her happy
CEO must realise that the people who are surrounded by happy people are happy and those people would be happy in future.
CEO should take a note that if a happy friend is far away that friends make other friends happy.
The CEO should make a note that following aspects about types of good friends-
The loyal type friends
Friends due to work
Opposite type of friends
Fearless type friend
Honest type friend
Neighbourhood friends
Friend culturally different 
Friend as mentor
References
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 36
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रविग्राम में  सवेशा नन्द  जमलोकी  (पधान परिवार  )     की भव्य तिबारी , खोली, दरवाजे व मोरी  में काष्ठ कला व अलंकरण
 (कला व अलंकरण केन्द्रित )
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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  गुप्तकाशी के निकट रविग्राम रुद्रप्रयाग का एक महत्वपूर्ण गाँव है।  रुद्रप्रयाग के लिए  खूबसूरत तिबारियों का जिला भी कहा जाता है।  प्रस्तुत , भुवनेश जमलोकी की भव्य तिबारी इस लोक कथन की पुष्टि ही करता है, इस मकान में कष्ट कला समझने हेतु  तीन मुख्य स्थलों में ध्यान देना होगा -
दुखंड /तिभित्या मकान दुपुर (तल मंजिल व पहला मंजिल )  है। रिवाज अनुसार ही पहली मंजिल पर दो कमरों को त्याबरी बरामदे में बदल दिया गया है
 1 -भुवनेश जमलोकी के मकान के तल मंजिल में  खोली )प्रवेश द्वार ) में काष्ठ कला व अलंकरण  व खोली के आस पास काष्ठ कला व अलंकरण
2  - पहली मंजिल में स्थापित  तिबारी में काष्ठ कला व अलंकरण
3 - पहली मंजिल की खड़की या मोरी व कमरे के दरवाजे पर काष्ठ कला व अलंकरण
     - :  तल मंजिल में  खोली में काष्ठ कला व अलंकरण 
 खोली देळी /देहरी  से शरू होती है   पहली मंजिल में प्रवेश हेतु आंतरिक प्रवेश द्वार हेतु सीढ़ियां भी यहीं से शुरू होती हैं।  देळी  के दोनों तरफ एक एक स्तम्भ /सिंगाड़ है , प्रत्येक तरफ के स्तम्भ के तीन भाग हैं।  स्तम्भ के   अंदरि भाग में प्राकृतिक (बेल बूटे ) छवि आभास के ज्यामितिय कटान अलंकरण है।  अंदर के स्तम्भ में  आधार पर कमलाकृति अंकित हुआ है व बाद में ऊपर की और स्तम्भ के अंदरूनी भाग  में भी ज्यामिति कटान  का   अंकन है जो बेल बूटे का आभास देता दीखता है । पहली मंजिलके छज्जे से स्तम्भ खोली के मेहराब।/तोरण /arch  में (वास्तव में मुरिन्ड का निम्न भाग ) परिवर्तित हो जाते हैं। निम्न तल का  मुरिन्ड या तोरण  पूरा ट्यूडर नुमा है।  तोरण /मुरिन्ड  के तीनों तलों  में  भी प्राकृति क कला अलंकरण आभास  हुआ है।  मुरिन्ड के तोरण के दोनों और त्रिभिजकार काष्ठ पट्टिकाएं हैं व उन पर  जाली नुमा या प्राकृतिक अलंकरण हुआ है ।
    तोरण।/मुरिन्ड के  ऊपरी भाग में एक  भू समांतर  दो पट्टिकाओं के बीच में    दीवालगीर /ब्रैकेटों से  निर्मित धार्मिक मंदिर नुमा आकृति है जिंसमें बीच में  धार्मिक प्रतीक देव स्थापित है।  दीवालगीर/ब्रैकेटों  में  कमल पुष्प व चिड़िया चोंच का मिश्रित अंकन हुआ है।  मुरिन्ड के ऊपर त्रिभुज पट्टिका में दोनों ओर मत्स्य आकृति अंकित  हुयी हैं याने दो मत्स्य आकृतियां अंकित है।
 मुरिन्ड  के बाह्य दीवालगीर ों में भी कमल पुष्प केशर   नाल (पराग  नली ) व चिड़िया चोंच उत्कीर्ण हुयी है जो खोली की सुंदरता वृद्धिकारक हैं।  व कला को  गतिशील भी बनाने में सक्षम हुए हैं। मुरिन्ड या खोली काष्ठ पट्टिका से ढकी है। 
निष्कर्ष निकलता है कि  खोली में तीनो प्रकार के  कला - ज्यामितीय , प्राकृतिक ,  व मानवीय (मस्त्य आकृति  , चिडिया  चोंच व देव मूर्ति )  अलंकरण का का सुंदर मिश्रण हुआ  है।   तल  मंजिल के अन्य कमरों के दरवाजों में कोई उल्लेखनीय अंकन नहीं  है।
 -: रवि ग्राम में पहली मंजिल में तिबारी पर  काष्ठ कला अलंकरण -:
तिबारी भव्य है , भुवनेश जमलोकी की तिबारी चार स्तम्भों से बनी है जिनसे तिबारी में जिसमे तीन खोली /द्वार बन जाते हैं  हैं।  किनारे के स्तम्भ दीवाल से नक्कासीदार कड़ी से जुड़े हैं।  स्तम्भों में कला व अलंकरण गढ़वाल की  तिबारी शैली जैसे ही हैं याने आधार पर अधोगामी कमल दल ,फिर कलयुक्त डीला , फिर उर्घ्वगामी कमल दल फिर स्तम्भ की  मोटाई   कम होना  , स्तम्भ के सबसे कम मोटाई वाले भाग से  ऊपर की ओर थांत (bat blade type )  का शुरू होना।  दूसरी ओर पट्टिका से मेहराब , arch  या तोरण बनना , व तोरण के ऊपर छत आधार पट्टिकाओं के जोडू पट्टिकाओं में बिभिन  आकृति अंकन।
भुवनेश जमलोकी की तिबारी के तोरण  के दोनों  ओर की प्रत्येक पट्टिका में जालीदार प्राकृतक  आकृति , दो दो अष्टदलीय पुष्प , और दो दो मछलियां उत्कीर्ण हुयी है , दोनों मछलियां वास्तव में फूल की ओर जा रही है।  इस तरह तिबारी में कुल  बारह  मछलियां व छह पुष्प उत्कीर्ण हुए हैं। 
प्रत्येक स्तम्भ थांत में दो दो  ब्रैकेट /दीवालगीर  स्थापित  हुए हैं जिनमें  पुष्प , पशु आकृति ( बैल या भैंस का मुंह ), पक्षी (तोता )  अंकित या स्थापित हुए हैं। 
मुरिन्ड के सबसे  ऊपर भू समांतर पट्टिका में फूल पत्तियों की आकृतियां अंकित /उत्कीर्ण हुयी है।
  :-रवि ग्राम में  भुवनेश्वर जमलोकी के मकान में पहली मंजिल में खिड़की स्तम्भों में कला , अलंकरण -:
भुवनेश जमलोकी की तिबारी के पहली मंजिल की खिड़की के द्वारों में दो दो स्तम्भ नुमा आकृति हैं  व प्रत्येक स्तम्भ कुछ कुछ तिबारी के मुख्य स्तम्भों का लघु व समान रूप लगते है। खिड़कियों की आकृतियां कुमाऊं के बखाईओं में बने मोरी के स्तम्भों से मिलते जुलते हैं।
   :-रवि ग्राम में  भुवनेश्वर जमलोकी के मकान में पहली मंजिल  में कमरे के द्वार पर काष्ठ  कला व अलंकरण -:
 भुवनेश जमलोकी के इस मकान की एक अन्य विशेष्ता है कि  दुसरे कमरे के द्वारों में स्तम्भों की उपस्थिति।  द्वार के स्तम्भों  में  आधार पर   कमल दल  आकृति  व ऊपरी सिरे पर प्राकृतक अलंकरण हुआ  है। द्वार के ऊपर देव मूर्ति भी स्थापित है। 
    निष्कर्ष निकलता है कि  रवि ग्राम में  भुवनेश जमलोकी के मकान में तल  मंजिल में खोली , एवं पहली मंजिल तिबारी ,  खिड़की व अन्य कमरे के दार पर प्राकृतिक , ज्यामितीय  व मानवीय (पशु , पक्षी व देव आकृति )  सभी का समिश्रण है।
संरचन के दृष्टि से मकान में  दृश्य कला के सभी सिद्धांतों का पूरा निर्बाह हुआ है  जैसे - सभी भग्न का एकीकृत रूप में समाना , एकरसता से छुटकारा , सभी चरों प्रकार के संतुलन निर्बाह  , गतिशीलता व लय प्राप्ति , एक ही जैसे  आकृतियों में समानता , आकृतियों में अनुपात , व्यतिरेक से   आनंद  प्राप्ति आदि। 
उपासना सेमवाल पुरोहित ने सूचना दी है की मकान सौ साल पुराना है जो छोटी खिड़की के होने से भी साबित होता है कि मकान पुराना है।   
सूचना व फोटो आभार : उपासना सेमवाल पुरोहित
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of   Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
रुद्रप्रयाग  गढवाल  , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलादार  मकान जं पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला 2
रुद्रप्रयाग  गढवाल  , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलादार  मकान जं पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला 2
 

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रैंस (द्वारीखाल ब्लॉक ) में भैरव दत्त बिंजोला की तिबारी व खोली में काष्ठ  कला , अलंकरण

  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अलंकरण अंकन   -  105

 संकलन - भीष्म कुकरेती
-   
  पिछले  अध्याय में नैल की लोक कलाएं में    उल्लेख हो गया है किमल्मला  ढांगू में  नैल -रैंस  जुड़वां गाँव है जहाँ बिंजोली (चौंदकोट )  से बिजला बसे।  रैंस  से कुछ तिबारियों व जंगलेदार निमदारियों की खबर मिली है।  प्रस्तुत तिबारी भैरव दत्त बिंजोला की तिबारी है जो आज  शायद ध्वस्त हो गयी है।  तिबारी बड़ी भव्य  थी  व शयम लाल बिंजोला बताते हैं कि  भैरव दत्त बिंजोला की तिबारी रैंस  की शान थी पहचान थी व मल्ला  ढांगू ही नहीं उत्तरी डबरालस्यूं , पश्चमी लंगूर में भी प्रसिद्ध तिबारी थी। 
 भैरव दत्त बिंजोला का मकान दुखंड /तिभित्या व तल व पहली मंजिल का था है व तल मंजिल में खोली है तो पहली मंजिल में भव्य तिबारी स्थापित हुयी है।  पाषाण छज्जा ढांगू के आम छज्जों से कम चौड़ा है। 
खोली के काष्ठ सिंगाड़ों /स्तम्भों व खोलीदार /मेहराब युक्त मुरिन्ड /मोर में प्राकृतिक उत्कीर्णन हुआ था। 
भैरव दत्त बिंजोला की तिबारी भी चार स्तम्भों /सिंगाड़ों की है व ऊपर मोर /मुरिन्ड  में चाप है। स्तम्भ दीवाल से बेल बूटे  की कलायुक्त कड़ी से जुड़े हैं।   स्तम्भ का आधार /ड्यूल  से  शुरू होता है व अधोगामी कमल दल से कुम्भी बनता है , अधोगामी कमल दलों के ऊपर डीला /धगुल है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी (ऊपर जा हुआ) कमल दल हैं और यहाँ से स्तम्भ की मोटाई कम   होती जाती है।  कमल पंखुड़ियों के ऊपर पत्तियों जैसे अलंकरण  उत्कीर्ण  हुआ है (प्राकृतिक  अलंकरण ) . जहां स्तम्भ की सबसे कम मोटाई है  वहां से नक्कासीदार  अधोगामी कमल दल है व फिर डीले /ड्युले /ringed  wood plate  हैं और उर्घ्वगामी कमल दल है व वहीं  से स्तम्भ का थांत  (bat blade type ) शुरू हो सीधा मथिण्ड  से मिल जाता है।  यहीं  से कमल दल के बगल से तोरण।/arch /चाप शुरू होता है , चाप /तोरण /मेहराब बहुतलीय हैं।  प्रत्येक मेहराब इ ऊपर किनारों पर त्रिभुजाकार जालीनुमा  बेल बूटों सस्ज्जित है व दो बड़े बहुदलीय फूल (चक्रनुमा )  भी अंकित है अतः  ऐसे कुल 6 फूल हैं।  मेहराब के ऊपर आयताकार तीन चार पट्टियां  )मथिण्ड )  हैं जिन पर प्राकृतिक अलकंरण उत्कीर्ण हुआ है। 
मथिण्ड पट्टिकाओं के ऊपर  एक चुआड़ी अलंकृत  पट्टिका है जो छत आधार पट्टिका से मिलती है।  छत आधार  पट्टिका से शंकुनुमा   आकृतियां लटकी हैं। 
छत आधार पट्टिका लकड़ी के दासों /टोड़ी  पर आधारित हैं।  दासों के अगर भाग में  ज्यामितीय अंकन हुआ है।  तिबारी में  कहीं भी मानवीय (पशु , पक्षी , देव आकृति ) अंकन नहीं दिखा हिअ
  निष्कर्ष में कहा जा सकता है  कि  भैरव दत्त बिंजोला की  भव्य तिबारी व खोली  थी जिसमे प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण हुआ है व आमनवीय अलंकरण नहीं हुआ है

  सूचना व फोटो आभार : श्याम लाल बिंजोला , रैंस 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बखाइयों ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 105
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

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Forest Management in Pratap Shah Period

History of Tehri King Pratap Shah Period – 5
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 171
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1417 
   
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
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 Prtap Shah was unhappy over British exploiting Tehri Forest and earning laks of rupees per year but state was getting only 10000 annually from British government.  For future prospective, Pratap Shah established a forest department. he appointed his elder brother in law Hari Singh as conservator and younger brother in law Hukam Singh as Deputy Conservator. (2)
 The King Pratap Shah took forests nearby villages under Tehri kingdom state ownership and by that there was restlessness among villagers. By new ownership , villagers suffered the shortage of wood and grass.
 Freedom rom Begar:-
As s the case in British Garhwal and Kumaon , in Tehri too, people had to work without any payment from goervrmen for government work.  It was difficult fro weak or ill peopleto wok dro compulsory Begar /government work . Pratap Shah changed the law that if any person could not attend the government compulsory work (Begar) the person might get exemption by paying Rs. One and ana one to the treasury .

References
1-Dabral S.P, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 181 
2-  Minya Prem Singh Guldast e Tavarikh – 189
Copyright@ B.C .Kukreti,
History of Pratap Shah the Tehri King will be continued …

 

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